अब और लॉकडाउन नहीं, गरीबों को भुखमरी में न धकेला जाये, राजस्थान के संगठनों की CM को चिट्ठी

Written by Kavita Srivastava | Published on: April 27, 2020
पीयूसीएल राजस्थान, मजदूर किसान शक्ति संगठन सहित 51 संगठनों ने राजस्थान के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर गुजारिश की है कि लॉकडाउन के कारण गरीब लोग भुखमरी के कगार पर आ गए हैं। ऐसे में लॉकडाउन की अवधि बढ़ाकर उन्हें और ज्यादा भुखमरी में न धकेला जाए। पढ़िए पूरा पत्र.. 



श्री अशोक गहलोत

मुख्यमंत्री, राजस्थान सरकार, जयपुर

विषय: 3 मई के बाद तालाबंदी यानि कि लॉकडाउन आंशिक रूप से ही होना चाहिए।

महोदय,
21 मार्च से शुरू हुआ राजस्थान में lockdown (तालाबंदी) अब 37 दिन पूरे कर चुका है। इन 37 दिनों में गरीब बहुत ही ज्यादा परेशान रहा है। प्रदेश में हजारों प्रवासी मज़दूर अपने घरों से दूर या तो शेल्टर होम में मुश्किल परिस्थितियों में रह रहे हैं और बस्तियों में बिना खाना-पानी या रसोई गैस के बगैर, हर किल्लत में जीवन जीने को मजबूर हैं, वैसे इसे क्या जीवन कहेंगे। यही हाल सभी गरीबों का है। आजीविका का साधन किसी के पास नहीं है। खाने के लिए भी राशन और जरुरत की चीजें खरीदने के लिए लोगों के पास पैसे नहीं हैं। शहरी इलाके में तो स्थिति बहुत दयनीय है।

केंद्र व राज्य सरकारों ने बहुत देर से और बहुत अपर्याप्त राहत की घोषणा की है और अनेक वंचित परिवार इस राहत के दायरे में भी नहीं आते। हमारा मानना है कि तालाबंदी ज़ारी रही तो भुखमरी की स्थिति बढ़ेगी। हम जो लम्बे समय से मांग करते आ रहे हैं कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सभी को राशन दिया जाये मतलब खाध्य सुरक्षा को सार्वभौमिक किया जाये. कम से कम सितम्बर 2020 तक हर इच्छुक व्यक्ति को 10 किलो अनाज, 1.5 किलो दाल और 800 ग्राम खाद्य तेल दिया जाये ( यह प्रति व्यक्ति को मिले )।

लॉकडाउन (तालाबंदी) के कारण आवागमन पर रोक के कारण लोग अस्पताल नहीं पहुँच पा रहे है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में लोगों को देखा नहीं जा रहा है, बाहर से ही मरीजों को रावना किया जा रहा है। इसका मतलब है कि कोरोना के अलावा जितने भी मरीज हैं वे भयंकर पीड़ा में हैं. जिला अस्पतालों में भी OPD का काम चल नहीं रहा है. चिकित्सा स्टाफ कोरोना के मरीज के लिए बैठा हुआ है. NON- COVID बीमारियों, जैसे मधुमेह के मरीज़ के साथ dialysis तक नहीं किया जा रहा है। किसी अन्य बीमारी के गंभीर मरीज आते भी हैं तो पहले COVID टेस्ट के लिए कहा जाता है और जब तक कोविड टेस्ट का परिणाम नहीं आ जाता है तब तक उसका इलाज शुरू ही नहीं किया जाता है. कोविड test में अभी भी 6 से 7 दिन लगते हैं। कई जगह गर्भवती महिलाओं को भी जाँच या अन्य स्वास्थ्य सेवाएँ नहीं दी जा रही हैं और समुदाय के आधार पर भेद भाव किया जा रहा है।

राजस्थान में गर्मी के मौसम को देखते हुए, तालाबंदी के दौरान गाँव व कच्ची बस्तियों में लोगों के लिए पानी लाना बहुत मुश्किल हो रहा है क्योंकि इन इलाकों में पानी के सरकारी स्रोत तो हैं ही नहीं लोग पहले किसी और जगह से पानी भरकर लाते थे लेकिन अब पुलिस घर से निकलने ही नहीं देती है तो पानी कैसे लायें और उसके बिना जीयें कैसे? सरकारी टैंकर नहीं पहुँच रहे हैं। लोग अपना बन्दोबस्त खुद ब खुद सालों से करते आयें हैं. इस स्थिति में लोगों का आना-जाना शुरू करना होगा या उन सभी कच्ची बस्ती और मोहल्लों में पानी की आपूर्ति आवश्यक रूप से करनी होगी।

तालाबंदी के दौरान शासन का लोगों पर दमन बहुत अधिक बढ़ा है. कई जगहों पर भोजन की तलाश में घर से निकले लोगों पर पुलिस ने हिंसा की है. राजस्थान में 21 मार्च से 22 अप्रैल तक 8160 लोगों को गिरफ्तार केवल रोकथाम (preventive arrest) के लिए की गई हैं। 1162 FIR, 1852 गिरफ्तारियां केवल धारा 144 के उल्लंघन में हुई हैं, इनमे से कई FIR में गैर ज़मानती धाराएँ जोड़ी गई हैं। लगभग 1 लाख गाड़ियाँ पकड़ी गई 2 करोड़ 74 लाख रूपये राशि चालान में भरी गई। यह भयावह नज़ारा है। आम लोगों का पानी के लिए निकलने पर अपराधीकरण बहुत अफ़सोस जनक है। जन स्वास्थ्य संकट डंडे के जोर पर हल नहीं किया जा सकता उसके लिए लोगों को समझाना पड़ेगा।

कोविड 19 एक नया वाइरस है। इसके बारे में विशेषज्ञों के बीच भी जानकारी सीमित है, इसके कारण जनता में भी अफ़वाह, भय और संदेह का माहौल बन गया है जो सतर्कता की सीमाएँ लाँघ कर एक उन्माद की तरह हो गया है। इसके कारण  प्रशासन भी जूझ रहा है और लोगों के साथ सख़्ती का इस्तेमाल कर रहा है । लॉकडाउन की स्थिति में कई जगहों पर सामान्य लोगों को सिर्फ़ छींकने या खाँसने पर भी पीटा गया है जिससे कई जगह लोगों की मृत्यु भी हुई है। कई कोलोनियों, गाँवों और बस्तियों के बाहर लोगों के झुंड, जो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, लाठियाँ लेकर गश्त और पहरा दे रहे हैं, और मनमर्ज़ी से लोगों को धमका रहे हैं और मारपीट भी कर रहे हैं।

राजस्थान सरकार की ज़िम्मेदारी है कि जो प्रवासी मजदूर अपने घर जाने के इच्छुक हैं उनके लिए तुरंत सुरक्षित यातायात का प्रबंध किया जाये और उन्हें घर भेजा जाये. दूसरी तरफ राजस्थान के मजदूर जहाँ भी अन्य राज्यों में फंसे हुए हैं वहां से उन्हें सुरक्षित राजस्थान उनके घर वापस लाया जाये।

आशा है कि 3 मई तक चलने वाले, 45 दिन के लॉकडाउन में राजस्थान सरकार ने कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए स्वास्थ्य प्रणाली को दुरुस्त किया होगा।

अब सरकार को पहचान, जांच, आइसोलेशन व रोकथाम की रणनीति अपनानी चाहिए. जिन जगहों पर केवल एक कोविड का मरीज़ पाया गया है, ऐसी जगहों को भी “हॉटस्पॉट” घोषित कर उन्हें सील कर दिया गया है. ऐसे कई लोग जिनका लॉकडाउन के शुरूआती दिनों में गुज़ारा चल रहा था, वे अब संकट की स्थिति में हैं. तालाबंदी को जारी रखने की सामाजिक और आर्थिक कीमत बहुत अधिक है, जिसका कोई औचित्य नहीं है. लोगों के सम्मानपूर्वक जीने के अधिकार को किसी भी समय जोखिम में नहीं डाला जा सकता.  

राज्य से तुरंत धारा 144 को हटाया जाये इसे केवल हॉटस्पॉट और कन्टेनमेंट जोन में ही रखा जाये.

हमारा आपसे आग्रह है कि कल प्रधानमंत्री के साथ होने वाली विडियो कांफ्रेंस में लॉकडाउन (तालाबंदी) को आंशिक तालाबंदी में परिवर्तित करने की मांग करनी चाहिए।

इस लॉकडाउन की बजह से आर्ह्तिक संकट बहुत अधिक गहरा गया है जो 6 से 9 महीने तक बरक़रार रहेगा इसी के साथ केंद्र सरकार से निम्न बिन्दुओं पर प्रमुखता से पैरवी की जानी चाहिए।


·         10 किलो गेहूं, 1.5 किलो दाल और 800 ग्राम तेल प्रति व्यक्ति सबको दिया जाये।

·         MGNREGA में कम से कम 200 दिन का रोज़गार दिया जाये।

·         गरीब के लिए आय सहयोग, 2500 का का विस्तार हो और अगले 6 महीने तक प्रत्येक महीने दिया जाये।

·         राज्य में शहरी रोज़गार गारंटी कानून बनाये जाने को लेकर राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय समितियां गठित की जाये। राज्य व राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी कानून बनाया जाये।

·         लॉकडाउन के दौरान 10,000 से ऊपर पुलिस द्वारा दर्ज मामले वापस लिए जाये।

·         बंदियों की संख्या जेलों में लगातार कम रखी जाये जैसे कि उच्चतम न्यायलय के कैदियों के सम्बन्ध में निर्देश हैं. राजस्थान में अभी तक केवल लगभग 800 कैदी निकाले गए जबकि तमिलनाडू में 4000 कैदी निकाले गए हैं।

·         श्रम कानूनों को सख्ती से लागू किया जाएं। सभी उद्योगों से मजदूरों की बकाया मजदूरी दिलवाई जाये।

·         COVID 19 में किसी भी एक समुदाय को दोषी ठहराना और चिन्हित करना बंद किया जाए, सांप्रदायिक राजनीति बंद हो.

हम हैं:

1.     मजदूर किसान शक्ति संगठन - अरुणा रॉय, निखिल डे

2.     पीयूसीएल राजस्थान - कविता श्रीवास्तव, अनंत भटनागर, भंवर लाल कुमावत (पप्पू),

3.     एन ए पी एम राजस्थान - कैलाश मीना, अखिल चौधरी

4.  सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज, राजस्थान -कोमल श्रीवास्तव, हेमंत मोहनपुरिया, बाबूलाल व नवीन महिच

5.     निर्माण एवं जनरल मजदूर यूनियन - हरिकेश बुगालिया

6.     राजस्थान असंगठित मजदूर यूनियन - मुकेश गोस्वामी

7.     सूचना का अधिकार मंच - कमल टांक

8.     भारत ज्ञान विज्ञानं समिति - अनिल

9.  हेल्पिंग हैंड्स जयपुर - नईम रब्बानी, डॉ राशिद हुसैन, नुरुल अबसार

10. जमाते इस्लामी हिन्द राजस्थान - मो. नाजिमुद्दीन, वकार अहमद 

11. पिंक सिटी हज एंड एजुकेशन वेलफेयर सोसाइटी - अब्दुल सलाम जोहर

12. महिला एवं जन अधिकार समिति- इंदिरा पंचोली-

13. नेशनल हॉकर्स फेडरेशन राजस्थान - याकूब मोहम्मद

14. महिला पञ्च-सरपंच संगठन रेवदर- बृजमोहन शर्मा

15. जागरूक नागरिक मंच नोखा- रावतराम

16. महिला पुनर्वास समूह समिति- रेणुका पामेचा, पुष्पा सैनी

17. आदिवासी अधिकार मंच- धर्मचंद खैर, सरफराज

18. जन चेतना संस्थान- ऋचा औदिच्य

19. राजस्थान मुस्लिम फॉर्म- शब्बीर खान

20. विविधा संस्थान- ममता जेटली

21. प्रयास संस्थान- नरेन्द्र गुप्ता, छाया पंचोली

22. राजसमन्द महिला मंच- शकुंतला पामेचा

23. जंगल जमीन जल आन्दोलन- रमेश नंदवाना, आरडी व्यास

24. संकल्प संस्थान- महेश बिंदल

25. पीयूसीएल अजमेर- केशवराम सिंघल, सिस्टर गीता

26. पीयूसीएल भीलवाड़ा- तारा अहलुवालिया

27. वागड़ मजदूर किसान संगठन- मानसिंह सिसौदिया

28. आल इंडिया दलित महिला मंच- सुमन देवठिया

29. गौंडवाड आदिवासी विकास संगठन- वकताराम देवासी

30. संवैधानिक अधिकार संगठन- धर्मेन्द्र तामडिया, सीमा कुमारी  

31. नवाचार संस्थान- अरुण कुमावत

32. एकल नारी शक्ति संगठन- चन्द्रकला सरमा

33. सेंटर फॉर दलित राइट्स- पील मिमरोथ, सतीश कुमार

34. राजस्थान समग्र सेवा संघ- सवाई सिंह

35. अकादमी फॉर सोसिओ लीगल स्टडीज- प्रेमकृष्ण शर्मा

36. राजस्थान महिला कामगार यूनियन- मेवा भारती

37. आज़ाद फाउंडेशन- अनीता माथुर

38. विकल्प संस्थान- उषा चौधरी

39. लोक अधिकार नेटवर्क- नवीन नारायण, अनीता सोनी

40. दलित अधिकार आन्दोलन पश्चिम राजस्थान- तोलाराम चौहान

41. नेशनल मुस्लिम वीमेन वेलफेयर सोसाइटी- निशात हुसैन

42. बोध शिक्षा समिति- योगेन्द्र उपाध्याय

43. डिग्निटी ऑफ़ गिर्ल्ड चाइल्ड- डॉ. मीता सिंह

44. हाडौती मीडिया रिसोर्स सेंटर- फ़िरोज़ खान  

45. राजस्थान मजदूर किसान मोर्चा- नोरतमल

46. विशाखा विमेंस डॉक्यूमेंटेशन एंड रिसोर्स सेंटर- भरत

47. सास्विका अजमेर- सिस्टर कैरोल

48. पीयूसीएल भरतपुर- राजेंद्र कुंतल

49. सहेली समिति दौसा- तारा सेन

50. एएमवीयूजीएसएस- आदेश भाई

51. इब्तिदा अलवर- राजेश सिंघी

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