गोडसे से प्रज्ञा ही नहीं, RSS का पुराना मोह है, इंतज़ार करें इसकी मूर्ति संसद भवन में प्रतिष्ठित करने का!

Written by Shamsul Islam | Published on: November 28, 2019
हमारे देश में तवलीन सिंह जैसे 'भोले-भाले' राजनैतिक विश्लेषकों/पत्रकारों की कमी नहीं है जो प्रधान मंत्री, मोदी के नेतृत्व में आरएसएस/भाजपा शासकों के जनता और देश विरोधी विघटनकारी विचारों और कार्यकलापों के प्रति सजग हो उठे हैं। यह अच्छी बात है। हालांकि सच यह है की हिन्दुत्वादी शासकों की टोली जो खिलवाड़ प्रजातान्त्रिक-धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र और इस की जनता के साथ आज कर रही है वे आरएसएस की पुरानी हिन्दुत्वादी नीतियों का ही अनुसरण है। मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद (जिस पद को ग्रहण करते हुए उन्होंने देश के प्रजातान्त्रिक-धर्मनिरपेक्ष ढांचे को सुरक्षित रखने की शपथ ली थी), उनकी जुमले-बाज़ियों से अर्जित की गयी लोकप्रियता के सहारे आरएसएस के राष्ट्र विरोधी मूल एजन्डे को देश पर थोपने में काफ़ी तेज़ी आयी है।    
 


एक ताज़ातरीन उदाहरण मालेगांव बम धमाकों में नामजद आरोपी प्रज्ञा ठाकुर का है जिन्होंने अब संसद के भीतर गांधीजी के हत्यारे, गोडसे को 'देशभक्त' बताया। यह वही साध्वी हैं जिन्हें आरएसएस/भाजपा ने संसदीय चुनाव 2019 में भोपाल से खड़ा किया था। प्रचार के दौरान भी इस गोडसे भक्त ने इस हत्यारे को 'देशभक्त' बताया था। इनके इस बयान पर मोदी ने नाराज़गी जताई थी और कहा था की वे प्रज्ञा को ऐसा कहने के लिए दिल से माफ़ नहीं कर पाएंगे। प्रधान मंत्री मोदी ऐसा कहते हुए फिर एक बार केवल जुमलेबाज़ी कर रहे थे, इसका पता भी जल्द ही चल गया। प्रज्ञा को लोक सभा की एक अति महत्पूर्ण समिति (रक्षा मामलों की समिति) में सदस्य मनोनीत किया गया।  

इस ख़ौफ़नाक यथार्थ को झुठलाना मुश्किल है कि देश में हिंदुत्ववादी राजनीती के उभार के साथ गांधी की हत्या पर ख़ुशी मनाना और हत्यारों का महामंडन, उन्हें भगवन का दर्जा देने का भी एक संयोजित अभियान चलाया जा रहा है। गांधीजी की शहादत दिवस (जनवरी 30) पर गोडसे की याद में सभाएं की जाती हैं, उसके मंदिर जहाँ उसकी मूर्तियां स्थापित हैं, में पूजा की जाती है। गांधीजी की हत्या को 'वध' (जिसका मतलब राक्षसों की हत्या है) बताया जाता है।

यह सब कुछ लम्पट हिन्दुत्वादी संगठनों या लोगों दुवारा ही नहीं किया जा रहा है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही महीनों में आरएसएस/भाजपा के एक वरिष्ठ विचारक, साक्षी जो संसद सदस्य भी हैं ने गोडसे को 'देश-भक्त' घोषित करने की मांग की। हालांकि उनको यह मांग विश्वव्यापी भर्त्सना के बाद वापिस लेनी पड़ी लेकिन इस तरह का वीभत्स प्रस्ताव हिन्दुत्वादी शासकों के गोडसे के प्रति प्यार को ही दर्शाती है।

 

इस सिलसिले में गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के महामण्डन की सबसे शर्मनाक घटना जून 2013 में गोवा में घटी। यहाँ पर भाजपा कार्यकारिणी की बैठक थी जिसमें गुजरात के तत्कालीन मुखयमंत्री नरेंद्र मोदी को 2014 के संसदीय चनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी चुना गया। इसी दौरान वहां हिन्दुत्वादी संगठन 'हिन्दू जनजागृति समिति' जिस पर आतंकवादी कामों में लिप्त होने के गंभीर आरोप हैं का देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए अखिल भारतीय सम्मलेन भी हो रहा था। इस सम्मलेन का श्रीगणेश मोदी के शुभकामना सन्देश से 7 जून 2013 को हुआ। मोदी ने अपने सन्देश में इस संगठन को "राष्ट्रीयता, देशभक्ति एवं राष्ट्र के प्रति समर्पण" के लिए बधाई दी। 

इसी मंच से 10 जून को हिंदुत्व के पैरोकार संगठनों, विशेषकर आरएसएस के क़रीबी लेखक के वी सीतारमैया का भाषण हुआ। इसने आरम्भ में ही घोषणा की कि "गाँधी भयानक दुष्कर्मी और सर्वाधिक पापी था"। सीतारमैया ने अपने भाषण का अंत इन शर्मनाक शब्दों से किया:

"जैसा कि भगवन श्री कृष्ण ने कहा है- 'दुष्टों के विनाश के लिए, अच्छों की रक्षा के लिए और धर्म की स्थापना के लिए, में हर युग में पैदा होता हूँ' 30 जनवरी की शाम, श्री राम, नाथूराम गोडसे के रूप में आए और गाँधी का जीवन समाप्त कर दिया"।

याद रहे आरएसएस की विचारधारा का वाहक यह वही व्यक्ति है जिसने अंग्रेजी में Gandhi was Dharma Drohi & Desa Drohi (गाँधी धर्मद्रोही और देशद्रोही था) शीर्षक से पुस्तक भी लिखी है जो गोडसे को समर्पित की गयी है।  

शहीद गाँधी जिन्होंने एक आज़ाद प्रजातान्त्रिक-धर्मनिरपेक्ष देश की कल्पना की थी और उस प्रतिबद्धता के लिए उन्हें जान भी गंवानी पड़ी थी, हिन्दुत्वादी संगठनों के राजनीतिक उभार के साथ एक राक्षसिये चरित्र के तौर पर पेश किए जा रहे हैं। नाथूराम गोडसे और उसके अन्य साथी हत्यारों ने गांधीजी की हत्या जनवरी 30, 2018 को की थी लेकिन 71 साल के बाद भी उनके 'वध' का जश्न और हत्यारों का गुणगान जारी है। इस बार यह जश्न संसद के भीतर हो रहा है और इसकी शुरुआत आरएसएस/भाजपा की एक नामी और कर्मठ साध्वी ने की है जिन्होंने अपने हिन्दुत्वादी जीवन का सफर आरएसएस के छात्र संगठन, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से किया था। देखना यह है कि कितनी जल्दी गोडसे को 'भारत रत्न' से नवाज़ा जाता है और नए बनाये जा रहे संसद भवन में इनकी मूर्ति स्थापित की जाती है!

गोडसे का गुणगान करके आरएसएस और उससे जुड़े लोग तो वही कर रहे हैं जो उन्हें करना था, लेकिन इस मामले में सब से शर्मनाक भूमिका गांधीवादी उन मठाधीशों की है जो गाँधी जी के नाम पर स्थापित विशाल आश्रमों और बड़ी संस्थाओं के मालिक हैं। यह गांधीवादी ज़रूर आत्मा के होने में विश्वास करते हैं, और किसी से तो उम्मीद नहीं, शायद गाँधी ही इनका कुछ इलाज करें।    
 
एस. इस्लाम के अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, मराठी, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, पंजाबी, गुजराती में लेखन और कुछ वीडियो साक्षात्कार/बहस के लिए देखें :
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