जयपुर में जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच के साझे प्रयास के अंतर्गत 15 से 17 नवंबर, तीन दिन का 'जन साहित्य पर्व' मनाया जा रहा है.
इस बार जलियांवाला बाग जनसंहार के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं. जलियांवाला के शहीदों को समर्पित तीन दिन के इस आयोजन में पिछले सौ बरसों के भारत के विकास का लेखा जोखा लेने की कोशिश की जाएगी. साहित्य, सियासत, सिनेमा, अर्थशास्त्र, विज्ञान, पत्रकारिता अलग अलग क्षेत्रों के बारे में अलग अलग सत्र रखे गए हैं.
आयोजन स्थल पर पुस्तक मेला भी होगा तो कुछ उत्साही युवा चित्रकार आपकी आंखों के सामने अपने देखे संसार को अपनी कूची से अंकित भी करेंगे. नाटक करने वालों की टोली भी होगी तो साल की महत्त्वपूर्ण दस्तावेजी फिल्में भी होंगी. ढेर से दोस्त तो होंगे ही बातों, बहसों और चाय की चुस्कियों के साथ.
कहने की जरूरत नहीं, यह सब लिखने का अर्थ आपको आमंत्रित करना ही है. जयपुर में हों तो ये तीन दिन अपनी डायरी में नोट कर लीजिए. कहीं आस पास हों, आना चाहें तो सम्पर्क करें, हमारे पास संसाधन कम हैं पर दिल में बड़ी जगह है !
और आखिर में अपील, यह आयोजन जेएलएफ की तरह कारपोरेट या धन्ना सेठों की तिजोरी से संचालित नहीं होता है. हमारा स्पष्ट मानना है कि पैसा एजेंडा सेट करता है और अगर हमें जरूरी सवालों को बहस के केंद्र में रखना है तो इन पूंजी के ठेकेदारों से सात हाथ दूर रहना होगा. कुछ मध्यवर्गीय नौकरीपेशा दोस्तों से जबरन वसूलकर ( जबरन वाला जबरन नहीं, हक़ वाला जबरन !) कुछ दिलदार दोस्तों से चंदा लेकर, कुछ आने वाले मेहमानों के सामने पृथ्वीराज कपूर स्टाइल में झोली फैलाकर ऐसे आयोजन पूरे होते हैं.
फेसबुक की दुनिया के दोस्तों से कम ही कहता हूँ पर आज कह रहा हूँ. यदि आप किसी भी रूप में सहयोग कर सकें तो एक अच्छा आयोजन और बेहतर हो पायेगा.
इस बार जलियांवाला बाग जनसंहार के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं. जलियांवाला के शहीदों को समर्पित तीन दिन के इस आयोजन में पिछले सौ बरसों के भारत के विकास का लेखा जोखा लेने की कोशिश की जाएगी. साहित्य, सियासत, सिनेमा, अर्थशास्त्र, विज्ञान, पत्रकारिता अलग अलग क्षेत्रों के बारे में अलग अलग सत्र रखे गए हैं.
आयोजन स्थल पर पुस्तक मेला भी होगा तो कुछ उत्साही युवा चित्रकार आपकी आंखों के सामने अपने देखे संसार को अपनी कूची से अंकित भी करेंगे. नाटक करने वालों की टोली भी होगी तो साल की महत्त्वपूर्ण दस्तावेजी फिल्में भी होंगी. ढेर से दोस्त तो होंगे ही बातों, बहसों और चाय की चुस्कियों के साथ.
कहने की जरूरत नहीं, यह सब लिखने का अर्थ आपको आमंत्रित करना ही है. जयपुर में हों तो ये तीन दिन अपनी डायरी में नोट कर लीजिए. कहीं आस पास हों, आना चाहें तो सम्पर्क करें, हमारे पास संसाधन कम हैं पर दिल में बड़ी जगह है !
और आखिर में अपील, यह आयोजन जेएलएफ की तरह कारपोरेट या धन्ना सेठों की तिजोरी से संचालित नहीं होता है. हमारा स्पष्ट मानना है कि पैसा एजेंडा सेट करता है और अगर हमें जरूरी सवालों को बहस के केंद्र में रखना है तो इन पूंजी के ठेकेदारों से सात हाथ दूर रहना होगा. कुछ मध्यवर्गीय नौकरीपेशा दोस्तों से जबरन वसूलकर ( जबरन वाला जबरन नहीं, हक़ वाला जबरन !) कुछ दिलदार दोस्तों से चंदा लेकर, कुछ आने वाले मेहमानों के सामने पृथ्वीराज कपूर स्टाइल में झोली फैलाकर ऐसे आयोजन पूरे होते हैं.
फेसबुक की दुनिया के दोस्तों से कम ही कहता हूँ पर आज कह रहा हूँ. यदि आप किसी भी रूप में सहयोग कर सकें तो एक अच्छा आयोजन और बेहतर हो पायेगा.