देशभर के सिपाही एक हो जाएं तो हासिल कर पाएंगे काम करने के बेहतर हालात और सैलरी

Written by Ravish Kumar | Published on: October 16, 2019
मध्य प्रदेश के पुलिसकर्मियों को आंशिक बधाई । उन्होंने अपने परिवार को आगे कर अच्छा किया है। इससे परिवार के बच्चों और माँओं में भी राजनीतिक चेतना आएगी। अन्य राज्यों की तरह मध्य प्रदेश की पुलिस को भी घंटों काम करन पड़ते हैं। छुट्टी नहीं मिलती। पारिवारिक जीवन समाप्त हो गया है। काम के तनाव से तरह तरह के रोगों ने घेर लिया है।



चुनाव से पहले कांग्रेस ने वचन पत्र जारी किया था कि सिपाही का पे ग्रेड 1900 से 2800 होगा। मगर अभी तक नहीं किया गया है। जिन सिपाहियों ने अपनी व्यथा सोशल मीडिया में पोस्ट की है उन्हें नोटिस दिया गया है। यह ठीक नहीं है। कांग्रेस को वादा निभाना होगा। अनिवार्य छुट्टी और आठ घंटे की शिफ़्ट के साथ 2800 का पे- ग्रेड देना होगा। ये लोग आई पी एस का तरह यूनियन बनाने की माँग कर रहे हैं जिसका पुरज़ोर समर्थन किया जाना चाहिए। अगर आई पी एस का ट्वीटर हैंडल हो सकता है, संगठन हो सकता है तो हमारे सिपाही भाइयों का क्यों नहीं।

अगर देश भर के सिपाही एक हो जाएँ तो वे काम करने के बेहतर हालात और सैलरी हासिल कर लेंगे। यूपी के सिपाही भी परेशान हैं। दूर पोस्टिंग होती है। सैलरी कम होती है तो दो जगह ख़र्चा चलाना मुश्किल होता है। छुट्टी नहीं मिलती तो पत्नी से मिलने नहीं जा सकते। उनके जीवन में प्यार ही नहीं है। शादी के बाद हनीमून पर भी नहीं जा पाते हैं। दहेज लेकर शादी करते हैं और उसी दहेज की अटैची में कपड़ा रखकर पत्नी से जुदा हो जाते हैं। सिपाही लोगों चौबीस घंटे काम करते हैं। उनकी हालत दयनीय है।

इसके सिए सभी को सत्याग्रह के रास्ते पर चलना होगा। पहले अपने भीतर की बेईमानी से आज़ाद होना होगा तभी सिस्टम से अपने लिए इंसाफ हासिल कर पाएँगे। सत्याग्रह से उनके भीतर नैतिक बल आएगा। सरकार को उनकी माँग माँगनी होगी। यह हो नहीं सकता कि आप सांप्रदायिक भी हों और सत्याग्रही भी। इसलिए पहले सांप्रदायिकता से लड़ें, खुद को ईमानदार बनाएँ। मेरी बात नहीं मानेंगे तो दो मिनट में आंदोलन दबा दिया जाएगा। मीडिया में कवरेज के लिए आंदोलन न करें। खुद को शुद्ध और जीत हासिल करने के लिए आंदोलन करें। बल्कि मीडिया को दूर रखे अपने आंदोलन से।

रेलवे के कर्मचारी लिखते हैं कि आठ घंटे की शिफ़्ट करवा दूँ। जब वे बिना मेहनत किए, चेक किए सरकारों के झूठ को स्वीकार कर लेते हैं, हिन्दू- मुस्लिम नेशनल सिलेबस रट लेते हैं तो अपनी तंगी से मुक्ति पाने का रास्ता मुझसे क्यों पूछते हैं? क्या उन्होंने कभी दूसरे की लड़ाई लड़ी है जो दूसरा उनके लिए लड़े ? यह सवाल सिपाही बंधुओं से भी है और छात्रों से भी।

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