प्रियंका गांधी को सोनभद्र के आदिवासी गाँव उभभा में पीड़ितों से मिलने जाने की अदम्य इच्छा को देख बेलछी की याद आना स्वाभाविक है.......... बेलछी को लोग इंदिरा गांधी की पुनर्वापसी के प्रतीक के रूप में याद करते है........ कहा जाता है कि उनके उस दुस्साहस की बराबरी पक्ष-विपक्ष का कोई भी नेता भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कभी नहीं कर पाया.......
आपातकाल के बाद 1977 में हुए ऐतिहासिक आम चुनाव में जनता पार्टी को सफलता मिली....... मोरारजी सरकार को नो महीने ही हुए थे कि बेलछी में 11 दलितों की हत्या हो गयी ............दरअसल वह दौर सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन का था
फ्रेंच पत्रकार क्रिस्टॉफ़ जेफ़रलॉट और नरेंद्र कुमार अपनी क़िताब ‘अंबेडर एंड डेमोक्रेसी’ में लिखते हैं कि 1977 में जनता पार्टी का राष्ट्रीय सत्ता में उभार ओबीसी वर्ग के लिए निर्णायक मोड़ था. आंकड़े बताते है कि जनता पार्टी की सरकार में दलितों पर तब तक के सबसे ज़्यादा हमले हुए थे जहां इंदिरा गांधी के 10 साल के राज में दलितों पर कुल 40,000 हमले हुए थे. वहीं, अप्रैल 1977 से लेकर सितंबर 1978 तक उनके ख़िलाफ़ 17,775 अत्याचारों की रिपोर्ट दर्ज़ हुई.
रामचंद्र गुहा ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखते हैं, ‘ओबीसी वर्ग ने ऊंची जाति के तौर तरीक़े ही नहीं अपनाये बल्कि हरिजनों के साथ वैसा ही बर्ताव किया जो ऊंची जाति के लोग करते थे. सोनभद्र की नरसंहार की इस घटना में भी हमे कुछ ऐसी ही झलक देखने को मिलती है
बेलछी का प्रतिरोध एक इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन मे बड़ा बदलाव लेकर के आया..... इंदिरा गांधी ने बेलछी तक पुहचने के लिए अपने जीवन की सबसे कठिनतम यात्रा की वह दिल्ली से हवाई जहाज के जरिए सीधे पटना और वहां से कार से बिहार शरीफ पहुंच गईं. तब तक शाम ढल गई और मौसम बेहद खराब था. उन्होंने ठान लिया था कि वे रात में ही बेलछी पहुचना है वे पैदल ही चल पड़ीं. .........बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र ने यह पूरा किस्सा बताया था......... 'इंदिरा बोलीं, हम वहाँ पैदल जाएंगे, चाहे हमें वहां पहुंचने के लिए रात भर चलना पड़े. पहले वो जीप पर चलीं, वो कीचड़ में फंस गई. फिर उन्होंने ट्रैक्टर का सहारा लिया. थोड़ी देर बाद उसने भी जवाब दे दिया. वहाँ पर बाढ़ का पानी भरा हुआ था. तब उनके लिए एक हाथी लाया गया."
मशहूर पत्रकार जनार्दन ठाकुर ने अपनी किताब 'ऑल द प्राइम मिनिस्टर्स मेन' में लिखा है कि''जब बाढ़ का पानी शुरू हुआ तो इंदिरा गाँधी अपनी साड़ी पिंडलियों तक उठा कर चलने लगीं.. लेकिन तभी बाबू साहब ने उनके लिए हाथी मंगवा भेजा. केदार पांडे ने उनसे पूछा, 'आप हाथी पर चढ़ेंगी कैसे?' इंदिरा ने कहा, 'मैं चढ़ जाउंगी. मैं पहले भी हाथी पर बैठ चुकी हूँ...........अगले ही क्षण वो हाथी की पीठ पर सवार थीं.जैसे ही हाथी ने चलना शुरू किया वहाँ मौजूद कांग्रेस कार्यकर्ता चिल्लाए, इंदिरा गाँधी की जय! हाथी की पीठ पर तीन घंटे चलने के बाद इंदिरा बेलची पहुंचीं.'
बेलछी के दलितों को उन्हें अपने बीच देख अपनी आँखों पर विश्वास नही हुआ वहां से उन्होंने जनता पार्टी की सरकार पर कड़े प्रहार किए नतीजा यह हुआ कि जो लोग इंदिरा को आपातकाल की खलनायिका और ग़रीबों का दुश्मन मान रहे थे, वे भी देश में व्याप्त सामाजिक और राजनीतिक अराजकता से परेशान होकर उनकी तरफ़ दुबारा मुड़ गए
उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है
सोनभद्र में उभभा गाँव मे पुश्तों से खेत जोत रहे आदिवासियो के नरसंहार में प्रियंका गाँधी द्वारा आदिवासियों से मिलने जाने की जिद हमे प्रियंका में इंदिरा गाँधी का अक्स देखने को मजबूर करती है कम से कम यह बात भारतीय लोकतंत्र के लिए एक अच्छा संकेत है
आपातकाल के बाद 1977 में हुए ऐतिहासिक आम चुनाव में जनता पार्टी को सफलता मिली....... मोरारजी सरकार को नो महीने ही हुए थे कि बेलछी में 11 दलितों की हत्या हो गयी ............दरअसल वह दौर सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन का था
फ्रेंच पत्रकार क्रिस्टॉफ़ जेफ़रलॉट और नरेंद्र कुमार अपनी क़िताब ‘अंबेडर एंड डेमोक्रेसी’ में लिखते हैं कि 1977 में जनता पार्टी का राष्ट्रीय सत्ता में उभार ओबीसी वर्ग के लिए निर्णायक मोड़ था. आंकड़े बताते है कि जनता पार्टी की सरकार में दलितों पर तब तक के सबसे ज़्यादा हमले हुए थे जहां इंदिरा गांधी के 10 साल के राज में दलितों पर कुल 40,000 हमले हुए थे. वहीं, अप्रैल 1977 से लेकर सितंबर 1978 तक उनके ख़िलाफ़ 17,775 अत्याचारों की रिपोर्ट दर्ज़ हुई.
रामचंद्र गुहा ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखते हैं, ‘ओबीसी वर्ग ने ऊंची जाति के तौर तरीक़े ही नहीं अपनाये बल्कि हरिजनों के साथ वैसा ही बर्ताव किया जो ऊंची जाति के लोग करते थे. सोनभद्र की नरसंहार की इस घटना में भी हमे कुछ ऐसी ही झलक देखने को मिलती है
बेलछी का प्रतिरोध एक इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन मे बड़ा बदलाव लेकर के आया..... इंदिरा गांधी ने बेलछी तक पुहचने के लिए अपने जीवन की सबसे कठिनतम यात्रा की वह दिल्ली से हवाई जहाज के जरिए सीधे पटना और वहां से कार से बिहार शरीफ पहुंच गईं. तब तक शाम ढल गई और मौसम बेहद खराब था. उन्होंने ठान लिया था कि वे रात में ही बेलछी पहुचना है वे पैदल ही चल पड़ीं. .........बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र ने यह पूरा किस्सा बताया था......... 'इंदिरा बोलीं, हम वहाँ पैदल जाएंगे, चाहे हमें वहां पहुंचने के लिए रात भर चलना पड़े. पहले वो जीप पर चलीं, वो कीचड़ में फंस गई. फिर उन्होंने ट्रैक्टर का सहारा लिया. थोड़ी देर बाद उसने भी जवाब दे दिया. वहाँ पर बाढ़ का पानी भरा हुआ था. तब उनके लिए एक हाथी लाया गया."
मशहूर पत्रकार जनार्दन ठाकुर ने अपनी किताब 'ऑल द प्राइम मिनिस्टर्स मेन' में लिखा है कि''जब बाढ़ का पानी शुरू हुआ तो इंदिरा गाँधी अपनी साड़ी पिंडलियों तक उठा कर चलने लगीं.. लेकिन तभी बाबू साहब ने उनके लिए हाथी मंगवा भेजा. केदार पांडे ने उनसे पूछा, 'आप हाथी पर चढ़ेंगी कैसे?' इंदिरा ने कहा, 'मैं चढ़ जाउंगी. मैं पहले भी हाथी पर बैठ चुकी हूँ...........अगले ही क्षण वो हाथी की पीठ पर सवार थीं.जैसे ही हाथी ने चलना शुरू किया वहाँ मौजूद कांग्रेस कार्यकर्ता चिल्लाए, इंदिरा गाँधी की जय! हाथी की पीठ पर तीन घंटे चलने के बाद इंदिरा बेलची पहुंचीं.'
बेलछी के दलितों को उन्हें अपने बीच देख अपनी आँखों पर विश्वास नही हुआ वहां से उन्होंने जनता पार्टी की सरकार पर कड़े प्रहार किए नतीजा यह हुआ कि जो लोग इंदिरा को आपातकाल की खलनायिका और ग़रीबों का दुश्मन मान रहे थे, वे भी देश में व्याप्त सामाजिक और राजनीतिक अराजकता से परेशान होकर उनकी तरफ़ दुबारा मुड़ गए
उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है
सोनभद्र में उभभा गाँव मे पुश्तों से खेत जोत रहे आदिवासियो के नरसंहार में प्रियंका गाँधी द्वारा आदिवासियों से मिलने जाने की जिद हमे प्रियंका में इंदिरा गाँधी का अक्स देखने को मजबूर करती है कम से कम यह बात भारतीय लोकतंत्र के लिए एक अच्छा संकेत है