आज गांधी की पुण्य तिथि पर एक पार्टी का पोस्टर देखा, जिसमें लिखा था- अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले गांधी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि।
मैं सोचता हूँ, क्या गांधी सिर्फ देश को आजाद कराने में दिए गए योगदान के लिए ही जाने जाते हैं ?
मैंने कई नेताओं को कहते सुना है- देश की आज़ादी में गांधी जी का योगदान महत्वपूर्ण था।
यह बात ठीक है पर बहुत ही अपूर्ण है। याद आता है वह समय जब देश आज़ादी का जश्न मना रहा था और बापू बंगाल के नोआखाली में दंगे शांत कराने में लगे थे। आज़ादी के वक्त देश जिन हालात से गुजर रहा था वह अक्सर हमें फिल्मों में देखने पत्रिकाओं में पढ़ने को मिल जाता है। हर तरफ मारकाट दंगे यह सब पढ़कर या फिर उस वक्त पर फिल्माए गए दृश्यों को देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मन में यही सवाल उठता है कि मिली आज़ादी का महत्व ही क्या जब लोग एक दूसरे की जान के लेने पर तुले हैं और खून की नदियां बहाए जा रहे हैं।
आज़ादी के पहले या बाद में बापू द्वारा की गई सत्य और अहिंसा की लड़ाई तथा समाज को जोड़ने के प्रयासों को छोड़कर सिर्फ अंग्रेजों को देश से भगाने का जिक्र कर गांधी को याद करना बेमानी से लगता है।
एक दिन एक आठवीं के बच्चे से मैंने पूछा कि बापू कौन थे ?
वह बोला- बापू ने अंग्रेजों को देश से खदेड़ दिया था।
मैंने फिर पूछा - और कुछ जो गांधी के बारे में जानते हो ?
वह गांधी के जन्मदिन से लेकर अन्य जानकारियां मुझे देने लगा पर एक भी बार उसने नहीं कहा कि बापू अहिंसा की लड़ाई लड़ रहे थे।
मैंने फिर पूछा - अच्छा वो गाना याद है ' दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल' !
वह बोला- बिलकुल याद है।
मैंने कहा- इन लाइनों पर कभी गौर किये हो
धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई
दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई
उसने हां में सिर हिला दिया।
मैंने उसे बताया कि बापू इसलिए नहीं महान की उन्होंने देश से अंग्रेजों को खदेड़ा बल्कि बापू की महानता उनके तरीके में हैं।
जो ताकत सत्य और अहिंसा में है वह गोली और बंदूक में नहीं है। पर अफसोस कि दुनिया भर की सरकारों से लेकर राष्ट्रवाद से लबरेज नागरिकों में सेना और गोला बारूद का ऐसा फितूर भरा है कि उन्हें लगता है सारा हल तोप और बंदूक में ही है।
मेरे एक मित्र हैं। वह कहते हैं कि मैं गांधीवादी हूँ। कभी-कभी कहते हैं- इस देश को मिलिट्री के हवाले कर देना चाहिए।
मैं सोचता हूँ यह आदमी गांधी को पढ़ता तो है पर खतरनाक है। एक तरफ तो अपने को गांधीवादी बताता है और दूसरी तरफ देश को मिलिट्री के हवाले करने की बात करता है। यह कैसा दोगलापन, मन में गांधी बगल में गन!
सवाल बस पढ़ने भर का नहीं है। अच्छे-अच्छे डिग्री धारियों को मैंने देखा है जो परीक्षा में गांधी और अहिंसा पर दस पन्ने का निबंध लिखकर आते हैं और जब 'कश्मीर और बस्तर' के हालात पर राय रखने की बात आती है तो कहते हैं सब सेना के हवाले कर दो। मैंने एक से पूछ लिया- AFSPA जहां- जहां लगाया वहां कितनी सफलताएं मिलीं ?
सब गोल मटोल जवाब देते। एक मिलिट्री शासन की सलाह देने वाले ने जो कि इतिहास से ग्रेजुएट है यहां तक कह दिया- यह अफ्सपा क्या होता है ?
मैंने कई ऐसे लोगों को देखा है जो गांधी पर चुटकुला बनाते हैं कि कैसे डरपोक था जो एक थप्पड़ खाने पर दूसरा गाल आगे करने की बात करता था। पर ये भूल जाते हैं कि वह अहिँसा की ही ताकत थी जिसनें अंग्रेजों के इतने बड़े साम्राज्य को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
यह वक्त दुनिया को प्रेम और अहिंसा से जोड़ने का है। बाकी राजनीति तो यही कहती है कि कुछ मुल्कों की GDP दुनिया को हथियार बेचकर समृद्ध है तो औरों की हथियार खरीदकर लड़ाई में नष्ट हुई जा रही है।
इस दुनिया को हथियारों की नहीं गांधी के विचारों की जरूरत है।
बापू की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन।
मैं सोचता हूँ, क्या गांधी सिर्फ देश को आजाद कराने में दिए गए योगदान के लिए ही जाने जाते हैं ?
मैंने कई नेताओं को कहते सुना है- देश की आज़ादी में गांधी जी का योगदान महत्वपूर्ण था।
यह बात ठीक है पर बहुत ही अपूर्ण है। याद आता है वह समय जब देश आज़ादी का जश्न मना रहा था और बापू बंगाल के नोआखाली में दंगे शांत कराने में लगे थे। आज़ादी के वक्त देश जिन हालात से गुजर रहा था वह अक्सर हमें फिल्मों में देखने पत्रिकाओं में पढ़ने को मिल जाता है। हर तरफ मारकाट दंगे यह सब पढ़कर या फिर उस वक्त पर फिल्माए गए दृश्यों को देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मन में यही सवाल उठता है कि मिली आज़ादी का महत्व ही क्या जब लोग एक दूसरे की जान के लेने पर तुले हैं और खून की नदियां बहाए जा रहे हैं।
आज़ादी के पहले या बाद में बापू द्वारा की गई सत्य और अहिंसा की लड़ाई तथा समाज को जोड़ने के प्रयासों को छोड़कर सिर्फ अंग्रेजों को देश से भगाने का जिक्र कर गांधी को याद करना बेमानी से लगता है।
एक दिन एक आठवीं के बच्चे से मैंने पूछा कि बापू कौन थे ?
वह बोला- बापू ने अंग्रेजों को देश से खदेड़ दिया था।
मैंने फिर पूछा - और कुछ जो गांधी के बारे में जानते हो ?
वह गांधी के जन्मदिन से लेकर अन्य जानकारियां मुझे देने लगा पर एक भी बार उसने नहीं कहा कि बापू अहिंसा की लड़ाई लड़ रहे थे।
मैंने फिर पूछा - अच्छा वो गाना याद है ' दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल' !
वह बोला- बिलकुल याद है।
मैंने कहा- इन लाइनों पर कभी गौर किये हो
धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई
दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई
उसने हां में सिर हिला दिया।
मैंने उसे बताया कि बापू इसलिए नहीं महान की उन्होंने देश से अंग्रेजों को खदेड़ा बल्कि बापू की महानता उनके तरीके में हैं।
जो ताकत सत्य और अहिंसा में है वह गोली और बंदूक में नहीं है। पर अफसोस कि दुनिया भर की सरकारों से लेकर राष्ट्रवाद से लबरेज नागरिकों में सेना और गोला बारूद का ऐसा फितूर भरा है कि उन्हें लगता है सारा हल तोप और बंदूक में ही है।
मेरे एक मित्र हैं। वह कहते हैं कि मैं गांधीवादी हूँ। कभी-कभी कहते हैं- इस देश को मिलिट्री के हवाले कर देना चाहिए।
मैं सोचता हूँ यह आदमी गांधी को पढ़ता तो है पर खतरनाक है। एक तरफ तो अपने को गांधीवादी बताता है और दूसरी तरफ देश को मिलिट्री के हवाले करने की बात करता है। यह कैसा दोगलापन, मन में गांधी बगल में गन!
सवाल बस पढ़ने भर का नहीं है। अच्छे-अच्छे डिग्री धारियों को मैंने देखा है जो परीक्षा में गांधी और अहिंसा पर दस पन्ने का निबंध लिखकर आते हैं और जब 'कश्मीर और बस्तर' के हालात पर राय रखने की बात आती है तो कहते हैं सब सेना के हवाले कर दो। मैंने एक से पूछ लिया- AFSPA जहां- जहां लगाया वहां कितनी सफलताएं मिलीं ?
सब गोल मटोल जवाब देते। एक मिलिट्री शासन की सलाह देने वाले ने जो कि इतिहास से ग्रेजुएट है यहां तक कह दिया- यह अफ्सपा क्या होता है ?
मैंने कई ऐसे लोगों को देखा है जो गांधी पर चुटकुला बनाते हैं कि कैसे डरपोक था जो एक थप्पड़ खाने पर दूसरा गाल आगे करने की बात करता था। पर ये भूल जाते हैं कि वह अहिँसा की ही ताकत थी जिसनें अंग्रेजों के इतने बड़े साम्राज्य को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
यह वक्त दुनिया को प्रेम और अहिंसा से जोड़ने का है। बाकी राजनीति तो यही कहती है कि कुछ मुल्कों की GDP दुनिया को हथियार बेचकर समृद्ध है तो औरों की हथियार खरीदकर लड़ाई में नष्ट हुई जा रही है।
इस दुनिया को हथियारों की नहीं गांधी के विचारों की जरूरत है।
बापू की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन।