मैं किसान पर गर्व करता हूँ तो सरकार उनपर लाठियां चला देती है और मेरा गर्व फुस्स हो जाता है

Written by Mithun Prajapati | Published on: December 10, 2018
साधो(साधु) मिल गए बाजार में। गर्व से फुले हुए थे। जटा सर पर गठरी की तरह रखी हुई थी। गले में रुद्राक्ष की माला, एक हाथ में छड़ी की मूठ और एक में कमंडल था।  एक बात विचित्र जो उन्हें हर साधुओं से अलग करती थी वह यह कि गेरुए धोती की जगह साधो ने गेरूआ टीशर्ट धारण किया था। टीशर्ट पर लिखा था- हिन्दुस्थान। यह बहुत अलग बात है। लोग कपड़े पहनते हैं साधु धारण करते हैं। एक दिन स्टेशन पर एक मुस्टंडे से दिखने वाले साधु  ने भिक्षा मांगी तो हमने कहा- बाबा लीजिए केला खाइए।

मुस्टंडे साधु ने कहा- हम संत हैं। खाते नहीं हैं, ग्रहण करते हैं। 
हां तो बात साधु की हो रही थी जो बाजार में मिल गए थे। जिन्होंने टीशर्ट को पहना नहीं बल्कि धारण किया था। मेरे माथे पर जबरन टीका लगाकर कहने लगे- ला बच्चा कुछ दे बाबा को।

मैंने कहा- बाबा बाजार में हैं हम, क्या दूँ ! घर पर आए होते तो कुछ सिधा पिसान दे देते। 
साधु ने छड़ी पर मूठ फिराते हुए कहा- कुछ रुपये ही दे दो। 

मैंने कहा- बाजार आये हैं बाबा। पैसे तो नहीं हैं कैश। कुछ एकाउंट वगैरह हो तो बताओ, ऑनलाइन कुछ भिक्षा दे दूं। 
वे बिगड़ गए- कहने लगे, साधु का अपमान। तुम्हें पता नहीं हम साधु मोहमाया, पश्चिमी सभ्यता की चीजों से दूर रहते हैं। यह ऑनलाइन बैंक एटीएम यह सब पश्चिमी संस्कृति है। 

मैंने बात को बिगड़ते देख कहा- अच्छा बाबा, चलिए चाय पीते हैं। चाय तो पियेंगे न आप!

बाबा के मुख पर प्रसन्नता दिखी। हम बगल की चाय के दुकान पर पहुंचे। मैंने चाय आर्डर की। बाबा के टीशर्ट को देखकर सवाल उठा तो मैंने पूछ लिया- बाबा , यह टीशर्ट भी तो पश्चिमी सभ्यता का है। हमारी सभ्यता तो धोती में हैं।

बाबा  आशय समझ गए। कहने लगे- बच्चा, मार्गशीर्ष का महीना है। ठंड जोरों पर है। धोती में सिकुड़ जाता हूँ। यह टीशर्ट ठंड से बचाये रखती है। धोती ऊपर से ओढ़ लेता हूँ। और यह यह जो टीशर्ट पर हिन्दुस्थान लिखा है, धोती पर लिखने से दिखाई भी तो नहीं देता। मार्गशीर्ष तो समझते हो न ?

मैंने हां में सिर हिलाया। साधु लोग जानते हैं कि आम व्यक्ति पश्चिमी सभ्यता का शिकार है। वह मार्गशीर्ष नहीं जानता पर नवंबर दिसंबर जरूर जानता है। सच भी है। मैंने एक बार एक सच्चे हिन्दू से पूछ लिया था- कौन सा महीना चल रहा है तो कहने लगा जून का। मैंने फिर पूछा- हिन्दू कैलेंडर वाला बताओ।
वह जोर देकर बोला- यह हिन्दू कैलेंडर ही तो है।
मैंने फिर पूछा- ये आषाढ़ क्या होता है ?
सच्चा हिन्दू बोल पड़ा- मुझे क्या आषाढ़ से। जनवरी फरवरी आसान है। असाढ़ सावन में क्यों फंसना!

अब चाय आ चुकी थी। बाबा चाय की चुस्की ले रहे थे। मैंने बाबा से  पूछा- पर बाबा, हिन्दुस्थान लिखने की क्या जरूरत ? आप तो साधु हैं, ॐ या राम-राम भी लिखवाकर पहन सकते हैं। 

बाबा दुखी हुए। कहने लगे। अब जमाना बदल गया है। चला गया राम और ॐ का दिन। हिन्दुस्थान लिखने से प्रभाव बढ़ता है। यह दर्शाता है कि यह भारत भूमि हिंदुओं का स्थान है। हम ही यहां के वासी हैं। लोग प्रभावित होते हैं।

चाय पीते हुए साधु अखबार पढ़ने लगे। पन्ने पलटते हुए एक अखबार पर उनकी नजर जा टिकी। वे खुशी से उनका मुखमण्डल खिल उठा। सीना फैलाने लगा, टीशर्ट तनने लगी।  लिखा हुआ हिन्दुस्थान और चौड़ा होने लगा।

मैंने उनकी प्रसन्नता का राज जानने के लिए पूछ लिया- बाबा क्या चाय बहुत अच्छी थी जो आप इतने प्रसन्न हो रहे हैं ?
वे मुस्कुराते हुए बोले- बच्चा, इन भोग की वस्तुओं में वो आनंद कहाँ ! मैं तो ये खबर पढ़कर गदगद हुआ जा रहा हूँ।
मैंने उत्सुकतावश पूछा- क्या खबर है बाबा जी?

बाबा जी उसी मुस्कान को जारी रखते हुए कहने लगे- दिल्ली में हिन्दू महासभा ने राम मंदिर निर्माण के लिए पहल तगड़ी कर दी है। मैं तो गर्व कर रहा हूँ इस देश पर कि राममंदिर बनेगा। तुम्हें गर्व नहीं होता ?

मैंने कहा- गर्व तो होता है बाबा पर ऐसी बातों पर नहीं।
बाबा ने आश्चर्यजनक रूप से मेरी तरफ देखा और पूछा- मुसलमान हो क्या ?
मैंने कहा- नहीं बाबा, पर......
उन्होंने बीच में बात काटते हुए कहा- फिर क्यों नहीं खुश होते ऐसी बातों पर, राममंदिर बनने की बात पर तुम्हें गर्व क्यों नहीं होता ?
मैंने कहा- बाबा, मैं बहुत सी बातों पर गर्व  करने लगता हूँ पर तबतक कुछ न कुछ गड़बड़ हो जाती है। 

सरकार ने एक दिन कहा- आधार कार्ड बढ़िया चीज है। हमारे लिए गर्व का विषय है कि लगभग देश में सबके पास आधकार्ड हो गया है। अब सबको मूलभूत सुविधाएं मिलने लगी हैं। 

मैं गर्व से फूलने लगा। तबतक खबर मिली कि एक बच्ची भात-भात कहते मर गयी और उसे भात नहीं मिला क्योंकि उसके पास आधारकार्ड नहीं था। मैं जितना गर्व से फूला था उतना पिचक गया।  प्रधानमंत्री ने कहा- देश के किसानों पर गर्व करो। मैंने गर्व करना शुरू कर दिया। अगले ही दिन खबर मिली कि शांति से प्रदर्शन कर रहे किसानों पर सरकार ने लाठियां चलवा दी। किसी ने कहा देश की बेटियों पर गर्व कर लो। मैंने गर्व कर लिया। अभी मैं पूरी तरह से गर्व कर भी नहीं पाया था कि पता चला। BHU में छात्राओं पर लाठियां बरसाई जा रही थीं।

मेरी बात साधु मजे से सुन रहे थे। उन्हें आनंद आ रहा था। सबका आनंद अलग-अलग होता है। कोई खबर सुनकर कोई आनंदित होता है तो कोई गम में होता है। किसी भी देश का सैनिक मरे तो समझदार कहेगा- लड़ाई नहीं होनी चाहिए, मरता तो इंसान ही है। वह दुखी होगा। कुछ लोग आनंदित होकर कहते हैं- दो लाशें और गिरनी चाहिए थी। 

इसके पहले कि साधो कुछ कहते पीछे से एक हवलदार डंडा भांजते हुए आया और चाय वाले को हड़काते हुए बोला- ये उठा अपनी दुकान। सड़क पर जाम लगता है। 

इतना कहकर उसने चाय की केतली हाथ के डंडे से धकेल दी। चाय जमीन पर फैल गयी। कुछ छीटें साधो के पैर पर पड़े। वे उठकर भागे और चाय की दुकान से दूर खड़े हुए।  पुलिस वाले ने चाय वालों को गालियां देना शुरू किया जैसे कि उसका कर्तव्य होता है। 

मैं साधु को प्रधानमंत्री के पकौड़े और रोजगार पर गर्व की बात बताने वाला ही था कि साधु ने कहा- अच्छा चलते हैं बच्चा, फिर मुलाकात होगी। 

साधु चले गए। मैं बस लोकतंत्र में पुलिस वाले कि गालियां सुनता असहाय सा चाय वाले कि तरफ देख रहा था। वह मेरी तरफ देखते ही सिर नीचे कर लिया। आखिर करे क्यों न ! सड़क पर चाय बेचना अपराध ही तो है।

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