जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें से राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी सबसे ज्यादा मुश्किल में लग रही है। सत्ता विरोधी लहर का असर कम करने के लिए वह पूरी कोशिश कर रही है।
इसी प्रयास के तहत उसने बड़े पैमाने पर मौजूदा विधायकों के टिकट काटे हैं। 160 विधायकों में से केवल 92 ही दोबारा चुनाव मैदान में उसने उतारे हैं। 68 विधायक टिकट से वंचित कर दिए गए हैं।
सत्ता विरोधी लहर और नाराजगी वैसे तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ है और भाजपा आलाकमान की कोशिश थी कि गजेंद्र सिंह शेखावत के रूप में एक दूसरा विकल्प खड़ा कर दिया जाए, लेकिन वसुंधरा राजे ने ये होने नहीं दिया।
अब विकल्प के रूप में, पार्टी ने विधायकों के टिकट काटने की रणनीति अपनाई है। स्थिति यह है कि 6 मंत्री भी टिकट से वंचित कर दिए गए हैं। इनमें से 2 मंत्रियों के बेटों को टिकट दिए गए हैं, लेकिन बचे 4 मंत्री बगावत करके निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।
पार्टी अब सारे 200 टिकटों का ऐलान कर चुकी है और जिन विधायकों के टिकट काटे हैं, उनमें से कई निर्दलीय के रूप में लड़ रहे हैं। टिकट काटने का काम वैसे तो वसुंधरा ने किया है, लेकिन बागी उम्मीदवारों को मनाने का काम चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक गजेंद्र सिंह शेखावत को सौंपा गया है।
उधर, खुद गजेंद्र सिंह शेखावत भी प्रदेशाध्यक्ष न बन पाने के कारण असंतुष्ट ही हैं, लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कारण चुप हैं।
मौजूदा विधायकों के टिकट बड़ी संख्या में काटकर वसुंधरा राजे अब एक तरह से अपने सारे पत्ते खोल चुकी हैं। टिकट काटने की बात से पार्टी के अन्य नेता सहमत नहीं थे, लेकिन वे यह सोचकर चुप रह गए कि इसके बाद अगर हार होती है तो वसुंधरा के पास कोई और बहाना नहीं रह जाएगा।
वास्तव में, राजस्थान में स्थिति ये है कि बहुत सारे भाजपाई भी पार्टी की हार केवल इसलिए चाहते हैं कि इस बहाने वसुंधरा राजे का पार्टी में छाया वर्चस्व कम हो जाएगा और विकल्प को उभरने का मौका मिल जाएगा।
इसी प्रयास के तहत उसने बड़े पैमाने पर मौजूदा विधायकों के टिकट काटे हैं। 160 विधायकों में से केवल 92 ही दोबारा चुनाव मैदान में उसने उतारे हैं। 68 विधायक टिकट से वंचित कर दिए गए हैं।
सत्ता विरोधी लहर और नाराजगी वैसे तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ है और भाजपा आलाकमान की कोशिश थी कि गजेंद्र सिंह शेखावत के रूप में एक दूसरा विकल्प खड़ा कर दिया जाए, लेकिन वसुंधरा राजे ने ये होने नहीं दिया।
अब विकल्प के रूप में, पार्टी ने विधायकों के टिकट काटने की रणनीति अपनाई है। स्थिति यह है कि 6 मंत्री भी टिकट से वंचित कर दिए गए हैं। इनमें से 2 मंत्रियों के बेटों को टिकट दिए गए हैं, लेकिन बचे 4 मंत्री बगावत करके निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।
पार्टी अब सारे 200 टिकटों का ऐलान कर चुकी है और जिन विधायकों के टिकट काटे हैं, उनमें से कई निर्दलीय के रूप में लड़ रहे हैं। टिकट काटने का काम वैसे तो वसुंधरा ने किया है, लेकिन बागी उम्मीदवारों को मनाने का काम चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक गजेंद्र सिंह शेखावत को सौंपा गया है।
उधर, खुद गजेंद्र सिंह शेखावत भी प्रदेशाध्यक्ष न बन पाने के कारण असंतुष्ट ही हैं, लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कारण चुप हैं।
मौजूदा विधायकों के टिकट बड़ी संख्या में काटकर वसुंधरा राजे अब एक तरह से अपने सारे पत्ते खोल चुकी हैं। टिकट काटने की बात से पार्टी के अन्य नेता सहमत नहीं थे, लेकिन वे यह सोचकर चुप रह गए कि इसके बाद अगर हार होती है तो वसुंधरा के पास कोई और बहाना नहीं रह जाएगा।
वास्तव में, राजस्थान में स्थिति ये है कि बहुत सारे भाजपाई भी पार्टी की हार केवल इसलिए चाहते हैं कि इस बहाने वसुंधरा राजे का पार्टी में छाया वर्चस्व कम हो जाएगा और विकल्प को उभरने का मौका मिल जाएगा।