आयरन मैन सरदार पटेल को जन्मदिन पर नमन. आयरन लेडी इन्दिरा गान्धी को उनकी पुण्यतिथि पर नमन. साथ ही लौह इरादों वाले दरभंगा के बाबूदीन को आज सलाम. जीयो बिहारी...
साल 2015. तीस हजारी कोर्ट से फैसला आया था. पीएसी के सारे आरोपी बरी हो गए थे. पीडितों से सवाल पूछा जाता था कि बताओं सामने जो जवान है, उसे पहचान सकते हो. जबकि कत्लेआम की वह घटना आधी रात को हुई थी और जवानों ने हेलमेट से अपना चेहरा भी ढंका था.
फैसले के अगले दिन मैं हाशिमपुरा मोहल्ले में था. पीएसी की गोली लगने के बाद, गंगनहर से बच निकले चार गवाहोँ से मुलाकात हुई. इनमेँ से दो बिहार, दरभंगा के है. बाबूदीन और मुजीबुर्ररहमान. पावर हैंडलूम का कारीगर. 1987 मेँ 15-16 साल की उम्र थी बाबूदीन की. करीब 5 फीट का कद. चेहरे पर चेचक के दाग. 15 साल की उमर में ही नौकरी करने मेरठ आ गया था, दरभंगा से भाग कर.
ट्रक में लाद कर जब अन्धेरी रात को पीएसी वाले लोगों को ले जारहे थे, तब उसी ट्रक में कहीं कोने में दुबका था बाबूदीन. गंगनहर पर उतार कर, लाइन में खडा कर सबको गोली मार दी गई. बाबूदीन को सीने और पैर मेँ गोली लगी थी. जब पीएसी वाले चले गए तब घायल बाबूदीन नहर से बाहर निकला. तब शायद उसकी मुलाकात किसी सिविल पुलिस वाले से हुई. पुलिस वाले उसे तत्काल गाजियाबाद अस्पताल ले गए.
बाबूदीन के नाम से ही पहली एफआईआर गाजियाबाद मेँ हुई. दरभंगा का ये गरीब आदमी 31 सालोँ से हाशिमपुरा मेँ ही रह कर वहाँ के लोगोँ और खुद के लिए भी इंसाफ की लडाई लड रहा है. आज इंसाफ मिला. हालांकि, उसे मुआवजा भी नहीँ मिला था, क्योंकि दो गोली खाने के बाद भी वो जिन्दा बच गया था.
तो बोलिए जय बिहार. ये एक गरीब, अर्द्ध साक्षर बिहारी का ही जज्बा है कि गोली खाने के बाद भी डटा रहा मैदान में. सत्ता-शासन-प्रशासन से लडता रहा. न धमकी से डरा न लालच से झुका. और आखिरकार पीएसी के 16 आरोपियों को आजीवन कैद की सजा दिलवा कर ही माना. उम्मीद है, अब सुप्रीम कोर्ट से भी इसी तरह का फैसला आएगा. सलाम बाबूदीन...
(नोटः ये लेखक के निजी विचार हैं। वरिष्ठ पत्रकार शशि शेखर इसे पहले अपने फेसबुक पोस्ट में प्रकाशित कर चुके हैं।)
साल 2015. तीस हजारी कोर्ट से फैसला आया था. पीएसी के सारे आरोपी बरी हो गए थे. पीडितों से सवाल पूछा जाता था कि बताओं सामने जो जवान है, उसे पहचान सकते हो. जबकि कत्लेआम की वह घटना आधी रात को हुई थी और जवानों ने हेलमेट से अपना चेहरा भी ढंका था.
फैसले के अगले दिन मैं हाशिमपुरा मोहल्ले में था. पीएसी की गोली लगने के बाद, गंगनहर से बच निकले चार गवाहोँ से मुलाकात हुई. इनमेँ से दो बिहार, दरभंगा के है. बाबूदीन और मुजीबुर्ररहमान. पावर हैंडलूम का कारीगर. 1987 मेँ 15-16 साल की उम्र थी बाबूदीन की. करीब 5 फीट का कद. चेहरे पर चेचक के दाग. 15 साल की उमर में ही नौकरी करने मेरठ आ गया था, दरभंगा से भाग कर.
ट्रक में लाद कर जब अन्धेरी रात को पीएसी वाले लोगों को ले जारहे थे, तब उसी ट्रक में कहीं कोने में दुबका था बाबूदीन. गंगनहर पर उतार कर, लाइन में खडा कर सबको गोली मार दी गई. बाबूदीन को सीने और पैर मेँ गोली लगी थी. जब पीएसी वाले चले गए तब घायल बाबूदीन नहर से बाहर निकला. तब शायद उसकी मुलाकात किसी सिविल पुलिस वाले से हुई. पुलिस वाले उसे तत्काल गाजियाबाद अस्पताल ले गए.
बाबूदीन के नाम से ही पहली एफआईआर गाजियाबाद मेँ हुई. दरभंगा का ये गरीब आदमी 31 सालोँ से हाशिमपुरा मेँ ही रह कर वहाँ के लोगोँ और खुद के लिए भी इंसाफ की लडाई लड रहा है. आज इंसाफ मिला. हालांकि, उसे मुआवजा भी नहीँ मिला था, क्योंकि दो गोली खाने के बाद भी वो जिन्दा बच गया था.
तो बोलिए जय बिहार. ये एक गरीब, अर्द्ध साक्षर बिहारी का ही जज्बा है कि गोली खाने के बाद भी डटा रहा मैदान में. सत्ता-शासन-प्रशासन से लडता रहा. न धमकी से डरा न लालच से झुका. और आखिरकार पीएसी के 16 आरोपियों को आजीवन कैद की सजा दिलवा कर ही माना. उम्मीद है, अब सुप्रीम कोर्ट से भी इसी तरह का फैसला आएगा. सलाम बाबूदीन...
(नोटः ये लेखक के निजी विचार हैं। वरिष्ठ पत्रकार शशि शेखर इसे पहले अपने फेसबुक पोस्ट में प्रकाशित कर चुके हैं।)