मध्यप्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनावों में जितनी अहमियत चुनाव लड़ने वालों की है तो उतनी ही ज्यादा अहमियत असंतुष्टों की है। ये असंतुष्ट टिकट न मिलने पर पार्टी का खेल बिगाड़ सकते हैं।
असंतुष्टों की समस्या से वैसे तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ही परेशान हैं, लेकिन लंबे समय से सत्ता से बाहर रहने वाली कांग्रेस इस मामले में थोड़ी राहत महसूस कर रही है।
असंतुष्टों की समस्या सबसे विकट तो है भारतीय जनता पार्टी में। सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि पार्टी करीब 70 विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों को मैदान में उतारना चाह रही है। ऐसे में पूरी आशंका है कि ये सारे के सारे 70 विधायक अपनी सीट पर या तो घर बैठ जाएंगे या फिर जिसको टिकट मिलेगा, उसे हराने की कोशिश करेंगे।
भाजपा अनुशासित पार्टी तो मानी जाती है, लेकिन अब उसमें इतना अनुशासन भी नहीं बचा है कि कोई मौजूदा मंत्री अपना टिकट आराम से कटवा ले और अपना सियासी खात्मा कर ले। ये बात इसलिए भी अहम है क्योंकि भाजपा 17 मंत्रियों के भी टिकट काट देने की फिराक में है।
फिलहाल तो हालत ये है कि पार्टी के नेता अपने समर्थकों की भीड़ लाकर पार्टी ऑफिसों में नारेबाजी करवाने लगे हैं। ये काम वे नेता ज्यादा कर रहे हैं जिन्हें अपना टिकट कट जाने की आशंका सता रही है।
किसी भी सीट पर जैसे ही किसी नेता का नाम आगे बढ़ता दिखाई देता है, उसके विरोधी तुरंत सक्रिय होकर नारेबाजी और विरोध-प्रदर्शन करने लगते हैं।
इस मुसीबत से बचने के लिए फिलहाल भाजपा में केवल एक ही उपाय सामने आया है। वह उपाय टिकट वितरण में देरी का है। पार्टी ऐन मौके पर टिकट बांटेगी ताकि जिनको टिकट न मिले, वो कम से कम किसी दूसरे दल में जाने का वक्त तो न पा सकें।
असंतुष्टों की समस्या से वैसे तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ही परेशान हैं, लेकिन लंबे समय से सत्ता से बाहर रहने वाली कांग्रेस इस मामले में थोड़ी राहत महसूस कर रही है।
असंतुष्टों की समस्या सबसे विकट तो है भारतीय जनता पार्टी में। सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि पार्टी करीब 70 विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों को मैदान में उतारना चाह रही है। ऐसे में पूरी आशंका है कि ये सारे के सारे 70 विधायक अपनी सीट पर या तो घर बैठ जाएंगे या फिर जिसको टिकट मिलेगा, उसे हराने की कोशिश करेंगे।
भाजपा अनुशासित पार्टी तो मानी जाती है, लेकिन अब उसमें इतना अनुशासन भी नहीं बचा है कि कोई मौजूदा मंत्री अपना टिकट आराम से कटवा ले और अपना सियासी खात्मा कर ले। ये बात इसलिए भी अहम है क्योंकि भाजपा 17 मंत्रियों के भी टिकट काट देने की फिराक में है।
फिलहाल तो हालत ये है कि पार्टी के नेता अपने समर्थकों की भीड़ लाकर पार्टी ऑफिसों में नारेबाजी करवाने लगे हैं। ये काम वे नेता ज्यादा कर रहे हैं जिन्हें अपना टिकट कट जाने की आशंका सता रही है।
किसी भी सीट पर जैसे ही किसी नेता का नाम आगे बढ़ता दिखाई देता है, उसके विरोधी तुरंत सक्रिय होकर नारेबाजी और विरोध-प्रदर्शन करने लगते हैं।
इस मुसीबत से बचने के लिए फिलहाल भाजपा में केवल एक ही उपाय सामने आया है। वह उपाय टिकट वितरण में देरी का है। पार्टी ऐन मौके पर टिकट बांटेगी ताकि जिनको टिकट न मिले, वो कम से कम किसी दूसरे दल में जाने का वक्त तो न पा सकें।