यह मामला सीधा आपकी जेब से जुड़ा हुआ है....

Written by Girish Malviya | Published on: October 21, 2018
कहते है.. बिना आग के धुंआ नही उठता, कल रिजर्व बैंक ने भुगतान और निपटान कानूनों में बदलाव के बारे में सरकार की एक समिति की कुछ सिफारिशों के खिलाफ बेहद कड़े शब्दों वाला अपना असहमति नोट (डिसेंट नोट) सार्वजनिक किया है, इसका सरल अर्थ यह है कि खुद रिजर्व बैंक के मन में सरकार की नीयत के बारे में गहरी शंकाए है.



इस विषय मे अधिक समझने के लिए यह जानना होगा कि आखिरकार यह पूरा मामला क्या है ?

दरअसल देश में अभी तक डिजिटल भुगतान के नियमन का काम रिजर्व बैंक के जिम्मे है, जो कि बैंकिंग क्षेत्र का भी नियामक है, डिजिटल पेमेंट्स में बैंक खातों के बीच लेनदेन होता है. आरबीआई का मानना है कि दुनियाभर में पेमेंट सिस्टम्स केंद्रीय बैंकों के अधीन कार्य करते हैं। ओर पूरे विश्व में क्रेडिट और डेबिट कार्ड्स बैंक ही जारी करते हैं, इसलिए डिजिटल पेमेंट के संबंध में भी अंतिम अधिकारिता उसी के पास रहना चाहिए जो कि बिलकुल ठीक बात है.

लेकिन भारत मे मोदी सरकार एक निराली नीति लागू कर रही है जिससे करंसी पर तो रिजर्व बैंक अंतिम नियामक रहे लेकिन डिजिटल भुगतान में उसकी भूमिका उतनी प्रभावशाली न रह जाए, देश में भुगतान संबंधी मौजूदा कानून में व्यापक बदलाव की सिफारिश करते हुए सरकार की एक उच्च स्तरीय समिति ने एक स्वतंत्र पेमेंट रेगुलेटरी बोर्ड (पीआरबी) गठित करने की बात की है ओर समिति चाहती है कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को इसका पदेन अध्यक्ष नही बनाया जाए.

आरबीआई का यह मानना है कि चाहे डिजिटल भुगतान हो या प्रत्यक्ष हर तरह के भुगतान का नियमन करना केन्द्रीय बैंक के अधिकार क्षेत्र में होना चाहिये क्योंकि मुद्रा आपूर्ति का नियमन करना उसके कामकाज का हिस्सा है. और लेनदेन के लिये मुद्रा में विश्वास बनाये रखना भी उसके कामकाज का हिस्सा है, यही कारण है कि आरबीआई पेमेंट्स रेग्युलेट्री बोर्ड को अपनी निगरानी में रखना चाहता है.

लेकिन मोदी सरकार ऐसा नही चाहती 2007 जो भुगतान और निपटान कानून बनाया गया था उसका मूल उद्देश्य ही भारत में भुगतान प्रणाली (पेंमेंट सिस्टम) का विनियमन और रिजर्व बैंक को ऐसे मामलों में प्राधिकारी नियुक्त करना था लेकिन इसे पूरी तरह से बदला जा रहा है.

एक ओर महत्वपूर्ण बात यह है कि 2007 से 2018 तक डिजिटल पेमेंट संबंधी सारा सीन ही बदल गया है अब पेटीएम जैसे डिजिटल वॉलेट आ गए है ओर डिजिटल वॉलेट से भुगतान में विवादों के लिए अभी देश में कोई विशेष कानून नहीं है. साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि वॉलेट कंपनियां फिलहाल आईटी ऐक्ट के सेक्शन 43-ए से रेग्युलेट होती हैं, जहां एन्फोर्समेंट जैसी कोई चीज नहीं है. वॉलेट पेमेंट यूजर और मोबाइल वॉलेट कंपनी के बीच एक टर्म्स एंड कंडिशंस अग्रीमेंट भर है, जिसे कानूनी संरक्षण देने की जरूरत है. ई-वॉलेट कंपनियों को भी आरबीआई से लाइसेंस लेना पड़ता है ऐसे में इन पर किसी दोहरे नियमन की अपेक्षा नहीं की जाती है. ओर इसीलिए आरबीआई को ही इसका अकेला ओर अंतिम नियामक बनाना सही रहेगा.

पेमेंट रेगुलेशन बोर्ड की अवधारणा तो ठीक है लेकिन रिजर्व बैंक को इसका नेतृत्व नही सौपने की सिफारिश करना बड़े सवाल खड़ा कर रहा है.

हम जैसे जैसे कैशलेस अर्थव्यवस्था के दौर में प्रवेश कर रहे है वैसे वैसे हमारी खून पसीने की कमाई अधिक असुरक्षित होती जा रही है. हम करंसी नोट पर लिखे आरबीआई के गवर्नर के वचन का ही भरोसा करते है. किसी दल की सरकार का नही इसलिए इस मूर्खतापूर्ण सिफारिशों को रद्दी की टोकरी में डाल देना चाहिए.

बाकी ख़बरें