“नौकरी मांगोगे कश्मीर देंगे...ज्यादा चिल्लाओगे तो मन्दिर देंगे”

Written by Shashi Shekhar | Published on: August 8, 2018
जनता शुतरमुर्ग बन गढ्ढे में सिर धंसा ले तो सरकार उसका शिकार नहीं करती, गढ्ढे में ही धंसा छोड देती है-



यही सत्ता का सत्य और साजिश है. वर्ना आरक्षण, मन्दिर, गाय, पाकिस्तान, मुसलमान तो है ही. केन्द्र एवं राज्य सरकारों में 24 लाख पद रिक्त है. और ये कोई पिछले 4 सालों में मिला अनुपम उपहार नहीं है. 1991 में जो नीति इस देश ने अपनाई, उससे छटाक भर इधर-उधर जाने की हिम्मत न कोई कांग्रेसी पीएम कर सका, न भाजपाई, न कोई सेकुलर मोर्चा वाला पीएम.

यहां 24 लाख पद रिक्त होने का मतलब सिर्फ इतना नहीं है कि इतनी नौकरियां दी जा सकती है. ये रिक्तियां सरकार/सत्ता की सामाजिक-आर्थिक-विकास नीतियों कच्चा चिठ्ठा है. एक्रॉस पार्टी, एक्रॉस रिजन. कोई दूध का धुला नहीं है. सेक्टरवाइज रिक्तियों को जानिए और फिर इसके निहितार्थ को समझिए.

शिक्षा विभाग में 10 लाख रिक्तियां है. यानी, 10 लाख शिक्षकों की जरूरत है. मतलब साफ. प्राथमिक शिक्षा के नाम पर सरकार सिर्फ खानापूर्ति कर रही है. इसे बर्बाद करने की साजिश रची जा चुकी है. अगले 15-20 सालों में ये पूरे तौर पर ध्वस्त हो जाएगा. प्राइवेट स्कूलों की चान्दी है. ये स्कूल किनके है, पता कीजिए.

पुलिस बल में 5.4 लाख रिक्तियां है. हम आप सुरक्षा के लिए निजी सुरक्षा एजेंसियों की मदद ले सकते है. रेलवे में 2.4 लाख रिक्तियां है. आप प्लेन से यात्रा कर सकते है. चाहे तो दिल्ली से मोतीहारी बस से भी जा सकते है. 2.2 लाख आंगनवाडी सेविकाओं के पद रिक्त है. आखिर, इसकी जरूरत ही क्या है? सरकार चाहे तो इसे खत्म कर दे. बच्चों का पोषण नहीं कर सकते तो पैदा ही मत कीजिए. ठीक है न?

स्वास्थ्य केन्द्र में 1.5 लाख रिक्तियां है. साथ ही अकेले एम्स में 21740 पद खाली है. मैक्स, फोर्टिस में जा कर इलाज कराइए. सरकार 5 लाख का स्वास्थ्य बीमा भी दे और अस्पताल भी. ये जनता का बहुत नाइंसाफी है सरकार के साथ. मैं इसकी घोर भर्त्सना करता हूं. आप भी करिए,मेरे साथ भर्त्सना. खुद की.

आर्म्ड फोर्स में 62 हजार वैकेंसी है. पारा मिलिट्री में भी 61 हजार पद खाली है. उम्मीद है, इसमें ज्यादातर ऑफिसर रैंक के पोस्ट ही रिक्त होंगे. जा कर पूछिए, युवाओं से क्यों नहीं सेना में अधिकारी बनना चाहते है या मौका ही नहीं दे रही है सरकार. सेना की दुर्दशा के लिए “एलीफैंट इन रूम” वाला मुहाबरा फिट बैठता है. ये एक अलग बहस है. लेकिन, कुछ जानना चाहते है तो थल सेना के डिप्टी हेड (ले. जनरल) शरत चन्द ने संसदीय समिति के समक्ष बयान दिया है, उसे ढूंढ कर पढ लीजिए. सेना की जमीनी हकीकत से रूबरू हो जाएंगे.

पोस्टल डिपार्टमेंट में 54 हजार पद रिक्त है. अब जब कूरियर का जमाना है, एएसएमएस का जमाना है तो भला सरकार क्यों यहां पद भरे. लेकिन, हमें जानना चाहिए कि आज भी गरीब अपनी कुछ थोडी बहुत बचत पोस्ट ऑफिस में ही डालता है. लेकिन, अब जियो पेमेंट बैंक है. धीरे-धीरे अंबानी जी बैंक भी खोलेंगे. चीन का बैंक आ ही रहा है. ऐसे में पोस्ट ऑफिस की जरूरत ही क्या है?
उच्च शैक्षणिक संस्थानों में 12 हजार से अधिक पद खाली है. कभी सोचा आपने ये कुकरमुत्तों की तरह कहां से और कौन लोग इंजीनियरिंग/मैनेजमेंट के कॉलेज खोल रहे है. लाखों की फीस दे कर बच्चे पढ रहे है और बाद में व्यापारिक संस्थाएं कह देती है कि 90 फीसदी बच्चे के पास नौकरी पाने के लिए स्कील ही नहीं है. अब भला स्कील कहां से आएगा, जब 2 कठ्ठा जमीन में आप यूनिवर्सिटी खोलने का लाइसेंस दे देंगे. खैर, आप आरक्षण ले कर गलगोटिया में एडमिशन लीजिए!

अंतिम और महत्वपूर्ण. देश की अदालतों में 5853 पद रिक्त है. पा लीजिए न्याय. ये सभी स्वीकृत पद है, जो रिक्त है. असल जरूरत तो इससे कहीं ज्यादा है.

तो, बताइए. कुछ समझे या नहीं? ये कश्मीर, ये पाकिस्तान, ये मन्दिर क्यों सबको सूट करता है. कांग्रेस को भी, भाजपा को भी. और हम जनता तो है ही शुतरमुर्ग...

(तस्वीर: दिल्ली के शकरपुर मेट्रो ब्रिज के नीच अपने खर्च से गरीब बच्चों को पढाते सब्जी विक्रेता राजेश कुमार शर्मा)

(ये लेखक के निजी विचार हैं। शशि शेखर वरिष्ठ  पत्रकार हैं। ये लेख मूलतः उनके फेसबुक पोस्ट में प्रकाशित किया गया है।)
 

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