भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जहां बस्तर का दौरा करके उसे अहमियत देने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में उनके ही ‘दत्तक पुत्र’ धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में कुछ विशेष संरक्षित जनजातियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र घोषित किया गया है, लेकिन इनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है।
नईदुनिया में छपी खबर के अनुसार, छत्तीसगढ़ में करीब आधा दर्जन जनजातियां हैं। इनके संरक्षण के लिए आधा दर्जन प्राधिकरण बने हैं, कई योजनाएं चल रही हैं, इनके लिए अच्छा-खासा बजट भी आता है, लेकिन जनजातियों तक कुछ नहीं पहुंच पाता। संरक्षित जनजातियां लगातार विलुप्त होती जा रही हैं।
छत्तीसगढ़ की जो प्रमुख विशेष संरक्षित जनजातियां हैं, उनमें कमार, बैगा, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर और अबूझमाड़िया हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, विशेष संरक्षित जनजातियों में बिरहोर सबसे ज्यादा खतरे में हैं। 2001 में इनकी आबादी करीब 3000 थी जो अब 2500 के करीब बची है।
बिरहोर के साथ ही पहाड़ी कोरवा, पंडो और अबूझमाड़िया की आबादी में भी हो रही गिरावट चिंता का विषय है। संरक्षित जनजातियों में शामिल बैगा आदिवासियों की संख्या 10 साल पहले 71 हजार के करीब थी, जो अब 42 हजार के करीब बची है। कमार जनजाति की आबादी भी इसी तरह से घटती जा रही है।
जानकारों का मानना है कि जंगलों में सरकार का दखल बढ़ना ही आदिवासियों की आबादी कम होने का मुख्य कारण है। खनिज संसाधनों के लालच में आदिवासियों को विस्थापित किया जाता है, और नई जगह उनका पुनर्वास सही तरह से हो नहीं पाता।
छत्तीसगढ़ में वैसे भी आदिवासियों के साथ अमानवीय व्यवहार हो रहा है। सामान्य आदिवासियों की संख्या भी लगातार घट रही है। 2011 में राज्य में 30.62 प्रतिशत यानी कुल 78 लाख 22 हजार आदिवासी थे, जबकि 2001 में हुई जनगणना में इनकी आबादी 31.8 प्रतिशत था।
छत्तीसगढ़ में कुछ विशेष संरक्षित जनजातियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र घोषित किया गया है, लेकिन इनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है।
नईदुनिया में छपी खबर के अनुसार, छत्तीसगढ़ में करीब आधा दर्जन जनजातियां हैं। इनके संरक्षण के लिए आधा दर्जन प्राधिकरण बने हैं, कई योजनाएं चल रही हैं, इनके लिए अच्छा-खासा बजट भी आता है, लेकिन जनजातियों तक कुछ नहीं पहुंच पाता। संरक्षित जनजातियां लगातार विलुप्त होती जा रही हैं।
छत्तीसगढ़ की जो प्रमुख विशेष संरक्षित जनजातियां हैं, उनमें कमार, बैगा, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर और अबूझमाड़िया हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, विशेष संरक्षित जनजातियों में बिरहोर सबसे ज्यादा खतरे में हैं। 2001 में इनकी आबादी करीब 3000 थी जो अब 2500 के करीब बची है।
बिरहोर के साथ ही पहाड़ी कोरवा, पंडो और अबूझमाड़िया की आबादी में भी हो रही गिरावट चिंता का विषय है। संरक्षित जनजातियों में शामिल बैगा आदिवासियों की संख्या 10 साल पहले 71 हजार के करीब थी, जो अब 42 हजार के करीब बची है। कमार जनजाति की आबादी भी इसी तरह से घटती जा रही है।
जानकारों का मानना है कि जंगलों में सरकार का दखल बढ़ना ही आदिवासियों की आबादी कम होने का मुख्य कारण है। खनिज संसाधनों के लालच में आदिवासियों को विस्थापित किया जाता है, और नई जगह उनका पुनर्वास सही तरह से हो नहीं पाता।
छत्तीसगढ़ में वैसे भी आदिवासियों के साथ अमानवीय व्यवहार हो रहा है। सामान्य आदिवासियों की संख्या भी लगातार घट रही है। 2011 में राज्य में 30.62 प्रतिशत यानी कुल 78 लाख 22 हजार आदिवासी थे, जबकि 2001 में हुई जनगणना में इनकी आबादी 31.8 प्रतिशत था।