मध्यप्रदेश में जिन योजनाओं का जोर-शोर से प्रचार किया जाता है, और चुनावों के समय अभी फिर से किया जा रहा है, उनमें से अधिकतर धरातल पर असफल दिखाई देती हैं। इतना ही नहीं, ये भी साफ दिखता है कि सरकार की योजना इनके क्रियान्वयन में है ही नहीं।
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ऐसी ही एक योजना विद्यार्थियों को आसानी से नौकरी दिलाने के लिए शुरू की गई है, जिसके तहत स्कूलों और कॉलेजों में वोकेशनल कोर्स संचालित किए जाते हैं।
राज्य के सभी उत्कृष्टता विद्यालयों समेत कई विद्यालयों में वोकेशनल कोर्स चल रहे हैं, और इसी के तहत सागर में भी कई उत्कृष्टता विद्यालयों तथा अन्य विद्यालयों में वोकेशनल कोर्स के तौर पर हेल्थ केयर की पढ़ाई करवाई जा रही है, लेकिन हकीकत ये है कि नए सत्र में हेल्थ केयर की कक्षाएं नहीं लग पा रही हैं क्योंकि ट्रेनर को पिछले साल का ही वेतन नहीं दिया गया है।
सागर में 10 उत्कृष्टता विद्यालयों और एक अन्य स्कूल में हेल्थ केयर की पढ़ाई अनिवार्य है। राज्य के 70 उत्कृष्टता विद्यालयों में इस ट्रेड की पढ़ाई हो रही है, लेकिन जो ट्रेनर इसके लिए लगाए गए हैं, उनका वेतन नहीं दिया जा रहा है।
दरअसल वोकेशनल ट्रेनर की नियुक्ति सीधी नहीं करके आउटसोर्सिंग कंपनी के जरिए चयन किया गया था और भुगतान भी कंपनी को ही किया जाता है, लेकिन कंपनी ट्रेनर को भुगतान करने में लापरवाही करती है। इससे परेशान होकर ट्रेनरों ने पढ़ाना बंद कर दिया है।
स्कूल शिक्षा विभाग इसमें अपनी कोई सीधी जिम्मेदारी नहीं मानता है और उसका कहना है कि भुगतान की जिम्मेदारी कंपनी की है।
दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक प्रदेश भर के 313 उत्कृष्टता विद्यालयों सहित कुल 626 स्कूलों में वोकेशनल कोर्स की पढ़ाई करवाई जा रही है। इनको पढ़ाने के लिए शासन ने नियमित शिक्षक न रखते हुए सीधे आउटसोर्सिंग कंपनियों के माध्यम से चुने गए ट्रेनर को काम पर रखा है।
प्रदेश भर में करीब 22 कंपनियों को आउटसोर्सिंग का काम दिया गया है, जो ट्रेनरों को वेतन नहीं दे रही हैं और नुकसान छात्र-छात्राओं को हो रहा है। सरकार का भी पैसा खर्च हो ही रहा है, लेकिन फायदा किसी को नहीं हो रहा है। ट्रेनरों का वेतन कंपनियों ने 20 हजार रुपए तक रखा है लेकिन कई जगह तो पूरे साल में एक भी पैसा नहीं दिया गया है।