श्री श्री रविशंकर का एक पुराना ट्विट इंटरनेट पर घूमता रहता है. उन्होंने कहा था कि यह जानकर ही ताज़गी आ जाती है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही एक डॉलर की कीमत 40 रुपये हो जाएगी. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बने चार साल से ज़्यादा हो रहे हैं और रुपया कभी 40 के आस पास नहीं पहुंचा.
इस बात को लेकर किसी को आहत होने की ज़रूरत नहीं है. यह कत्तई ज़रूरी नहीं है कि आप जनता से झूठ भी बोलें और करके भी दिखा दें. बस इतना ध्यान में रखें कि चुनावी साल में लोग कैसी कैसी मूर्खतापूर्ण बातें करते हैं और लोगों को उल्लू भी बना लेते हैं. वैसे अगर रविशंकर कुछ कर सकते हैं तो उन्हें करना चाहिए ताकि अमरीका और चीन के चक्कर में भारतीय रुपया और न लुढ़क जाए.
अभी तक भारतीय रुपये का रिकार्ड 28 अगस्त 2013 का बताया जाता है जब एक डॉलर की कीमत 68 रुपये 83 पैसे हो गई थी. बुधवार को 68 रुपये 63 पैसे हो गई. बहुत दूरी नहीं रह गई है. कहीं ऐसा न हो जाए कि मोदी के राज में रुपया मनमोहन के राज से भी कमज़ोर हो जाए और रामदेव और रविशंकर को शर्मिंदा होना पड़े. इसलिए दोनों को बोलना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी के कारण उनकी ज़ुबान ख़ाली जा रही है. तब दोनों आर्थिक मामले में कितनी दिलचस्पी लेते थे, संकट तो वही है, फिर अचानक से क्यों मुंह मोड़ लिया है, यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है.
“प्रधानमंत्री बहुत अच्छी तरह से समझते हैं कि हम ईरान को लेकर कहां खड़े हैं. उन्हें इस पर सवाल नहीं किया न इसकी आलोचना की. वे समझ गए हैं और वे यह भी समझते हैं कि अमरीका के साथ संबंध मज़बूत हैं और महत्वपूर्ण हैं और इन्हें बनाए रखने की ज़रूरत है.“
प्रधानमंत्री मोदी के बारे में संयुक्त राष्ट्र में अमरीका की राजदूत निक्की हेली का बयान ध्यान से पढ़िए. कितने प्यार से चेतावनी रही हैं. भारत के दौरे पर आईं हेली ने साफ साफ कहा है कि भारत को ईरान से तेल का आयात बंद करना पड़ेगा. भारत ईरान से काफी मात्रा में कच्चे तेल का आयात करता है. सस्ता भी पड़ता है. चाबहार में बंदरगाह भी बना रहा है जो भारत के लिए महत्वपूर्ण है. अमरीका ने इतना कहा है कि वह यह देखेगा कि चाबहार पोर्ट को इस्तमाल कर सकता है मगर नवंबर के बाद से अमरीका ईरान पर प्रतिबंध को लेकर गंभीर हो जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो भारत के लिए नई चुनौती खड़ी होगी.
भारतीय रिज़र्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट(FSR) आई है. इसमें बैंकों के लोन के एनपीए में बदलने को लेकर फिर से चिन्ता जताई गई है. अगर सबकुछ ऐसा ही चलता रहा तो मार्च 2019 तक सभी बैंकों का एन पी ए उनके दिए गए लोन का 12.2 प्रतिशत हो जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो 2000 के बाद यह सबसे अधिक होगा. वैसे अंतर्राष्ट्रीय हालात को देखते हुए एनपीए 13.3 प्रतिशत तक भी जा सकता है.
बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपने संपादकीय में लिखा है कि इसे देखकर नहीं लगता कि एन पी ए को कम करने के जो भी उपाय किए गए हैं उनका कुछ असर हुआ है. आपको याद हो कि वित्त मंत्री ने बैंकों को बचाने के लिए कई हज़ार करोड के पैकेज देने की बात कही थी और दिया भी गया है. दीवालिया और विलय को लेकर जो नया कानून बना है उसका भी इस संकट को कम करने में बहुत शानदार रिकार्ड नहीं है. नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में 706 मामले हैं जिनमें से अभी तक 176 का ही निपटारा हुआ है. जिस स्केल का यह सकंट है उसे देखते हुए नहीं लगता है कि ये सब कदम काफी होंगे. ऐसा बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है.
27 जून केबिजनेस स्टैंडर्ड में एक ख़बर छपी है जिस पर ध्यान जाना चाहिए. चीन ने लंका को कर्ज़ दे दे कर वहां अपनी घुसपैठ बना ली है. चीन ने लंका के हंबनतोता में बंदरगाह बनाने के लिए कर्ज़ दिया है. भारत को इसकी व्यावहारिकता में संदेह था इसलिए कर्ज़ नहीं दिया था. चीन अब लंका पर कर्ज़ा चुकाने का दबाव बनाने लगा. ये हालत हो गई कि लंका ने 99 साल के लिए बंदरगाह और 15000 एकड़ ज़मीन लीज़ पर दे दी है. इतिहास में इन्हीं रास्तों से मुल्कों पर कब्ज़े हुए थे. बताने की ज़रूरत नहीं है. अब इस बंदरगाह पर चीन का नियंत्रण हो गया है. ज़ाहिर है लंका के सामने भारत है तो भारत को चिन्ता करनी पड़ेगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं। रवीश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं। वर्तमान में एनडीटीवी में कार्यरत हैं।)
इस बात को लेकर किसी को आहत होने की ज़रूरत नहीं है. यह कत्तई ज़रूरी नहीं है कि आप जनता से झूठ भी बोलें और करके भी दिखा दें. बस इतना ध्यान में रखें कि चुनावी साल में लोग कैसी कैसी मूर्खतापूर्ण बातें करते हैं और लोगों को उल्लू भी बना लेते हैं. वैसे अगर रविशंकर कुछ कर सकते हैं तो उन्हें करना चाहिए ताकि अमरीका और चीन के चक्कर में भारतीय रुपया और न लुढ़क जाए.
अभी तक भारतीय रुपये का रिकार्ड 28 अगस्त 2013 का बताया जाता है जब एक डॉलर की कीमत 68 रुपये 83 पैसे हो गई थी. बुधवार को 68 रुपये 63 पैसे हो गई. बहुत दूरी नहीं रह गई है. कहीं ऐसा न हो जाए कि मोदी के राज में रुपया मनमोहन के राज से भी कमज़ोर हो जाए और रामदेव और रविशंकर को शर्मिंदा होना पड़े. इसलिए दोनों को बोलना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी के कारण उनकी ज़ुबान ख़ाली जा रही है. तब दोनों आर्थिक मामले में कितनी दिलचस्पी लेते थे, संकट तो वही है, फिर अचानक से क्यों मुंह मोड़ लिया है, यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है.
“प्रधानमंत्री बहुत अच्छी तरह से समझते हैं कि हम ईरान को लेकर कहां खड़े हैं. उन्हें इस पर सवाल नहीं किया न इसकी आलोचना की. वे समझ गए हैं और वे यह भी समझते हैं कि अमरीका के साथ संबंध मज़बूत हैं और महत्वपूर्ण हैं और इन्हें बनाए रखने की ज़रूरत है.“
प्रधानमंत्री मोदी के बारे में संयुक्त राष्ट्र में अमरीका की राजदूत निक्की हेली का बयान ध्यान से पढ़िए. कितने प्यार से चेतावनी रही हैं. भारत के दौरे पर आईं हेली ने साफ साफ कहा है कि भारत को ईरान से तेल का आयात बंद करना पड़ेगा. भारत ईरान से काफी मात्रा में कच्चे तेल का आयात करता है. सस्ता भी पड़ता है. चाबहार में बंदरगाह भी बना रहा है जो भारत के लिए महत्वपूर्ण है. अमरीका ने इतना कहा है कि वह यह देखेगा कि चाबहार पोर्ट को इस्तमाल कर सकता है मगर नवंबर के बाद से अमरीका ईरान पर प्रतिबंध को लेकर गंभीर हो जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो भारत के लिए नई चुनौती खड़ी होगी.
भारतीय रिज़र्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट(FSR) आई है. इसमें बैंकों के लोन के एनपीए में बदलने को लेकर फिर से चिन्ता जताई गई है. अगर सबकुछ ऐसा ही चलता रहा तो मार्च 2019 तक सभी बैंकों का एन पी ए उनके दिए गए लोन का 12.2 प्रतिशत हो जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो 2000 के बाद यह सबसे अधिक होगा. वैसे अंतर्राष्ट्रीय हालात को देखते हुए एनपीए 13.3 प्रतिशत तक भी जा सकता है.
बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपने संपादकीय में लिखा है कि इसे देखकर नहीं लगता कि एन पी ए को कम करने के जो भी उपाय किए गए हैं उनका कुछ असर हुआ है. आपको याद हो कि वित्त मंत्री ने बैंकों को बचाने के लिए कई हज़ार करोड के पैकेज देने की बात कही थी और दिया भी गया है. दीवालिया और विलय को लेकर जो नया कानून बना है उसका भी इस संकट को कम करने में बहुत शानदार रिकार्ड नहीं है. नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में 706 मामले हैं जिनमें से अभी तक 176 का ही निपटारा हुआ है. जिस स्केल का यह सकंट है उसे देखते हुए नहीं लगता है कि ये सब कदम काफी होंगे. ऐसा बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है.
27 जून केबिजनेस स्टैंडर्ड में एक ख़बर छपी है जिस पर ध्यान जाना चाहिए. चीन ने लंका को कर्ज़ दे दे कर वहां अपनी घुसपैठ बना ली है. चीन ने लंका के हंबनतोता में बंदरगाह बनाने के लिए कर्ज़ दिया है. भारत को इसकी व्यावहारिकता में संदेह था इसलिए कर्ज़ नहीं दिया था. चीन अब लंका पर कर्ज़ा चुकाने का दबाव बनाने लगा. ये हालत हो गई कि लंका ने 99 साल के लिए बंदरगाह और 15000 एकड़ ज़मीन लीज़ पर दे दी है. इतिहास में इन्हीं रास्तों से मुल्कों पर कब्ज़े हुए थे. बताने की ज़रूरत नहीं है. अब इस बंदरगाह पर चीन का नियंत्रण हो गया है. ज़ाहिर है लंका के सामने भारत है तो भारत को चिन्ता करनी पड़ेगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं। रवीश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं। वर्तमान में एनडीटीवी में कार्यरत हैं।)