कर्ज में बुरी तरह डूबी है मध्यप्रदेश सरकार

Written by Mahendra Narayan Singh Yadav | Published on: June 28, 2018
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने एक तरफ जनकल्याण के कामों की अनदेखी की है, दूसरी तरफ राज्य के 12 नगर निगमों पर एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्जा हो चुका है। विधानसभा में स्थानीय निधि संपरीक्षा प्रकोष्ठ की रिपोर्ट में ये तथ्य सामने आया है।

Shivraj Singh Chauhan

हालांकि ये मामला केवल नगर निगमों तक सीमित नहीं है। खुद राज्य सरकार पर भी कर्ज बेहद बढ़ गया है। मार्च 2018 तक सरकार पर एक लाख 60 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्जा हो चुका है।

नईदुनिया की खबर में बताया गया है कि रिपोर्ट के मुताबिक, नगर निगम वित्तीय संस्थाओं के कर्ज की किश्त समय पर नहीं चुका रहे हैं, इस कारण उन पर ब्याज भी बढ़ता जा रहा है। नगरपालिकाओं और नगर परिषदों ने तो कर्ज से जुड़े दस्तावेज़ तक प्रकोष्ठ को उपलब्ध नहीं कराए हैं।

खास बात ये भी है कि ये 1 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज 2013-14 तक का ही है। उसके बाद भी नगर निगम लगातार कर्जा लेते रहे हैं, और उन पर ब्याज भी बढ़ता रहा है।

प्रकोष्ठ की विधानसभा में पेश रिपोर्ट के मुताबिक, नगर निकायों में सरकार के नियमों की गलत व्याख्या करके मनमाना भुगतान किया जाता है। वाहन किराया, शुभकामना संदेश, यात्रा भत्ता, दोहरा कार्य भत्ता, मोबाइल फोन खरीदी, भंडार सामग्री खरीदी जैसी मदों में गड़बड़ी की जाती है।

रिपोर्ट के मुताबिक, नगरीय निकायों में नियमों की अनदेखी करके मनमाने तरीके से दैनिक वेतनभोगियों की नियुक्ति की जाती है।

सरकार ने नगरीय निकायों को निजी आय स्रोतों से प्राप्त आय के 65 प्रतिशत तक या सफाई कर्मचारियों की स्थिति में 75 प्रतिशत तक स्थापना खर्च करने के निर्देश दिए हैं। इसी के तहत दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की नियुक्ति पर पाबंदी लगाई गई है, लेकिन नगर निगमों में नियमों के खिलाफ इन कर्मचारियों की नियुक्ति की जा रही है।

मध्यप्रदेश विधानसभा में सोमवार को सीएजी की रिपोर्ट भी पेश हुई जिसमें भारी गड़बड़ियों का खुलासा हुआ है। 12 नगरीय निकायों में कैश बुक की तुलना में बैंक खातों में 150 करोड़ रुपए कम मिले हैं। सीएजी ने इस रकम के दुरुपयोग की आशंका जताई है।

ये हालत केवल नगर निगमों की ही नहीं है। खुद राज्य सरकार कर्ज में बुरी तरह से डूबी हुई है। नईदुनिया की खबर के मुताबिक मध्यप्रदेश सरकार बाजार से ही 88 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है जो कि सरकारी सिक्योरिटी को बेचकर उठाया गया है। ये कर्ज राज्य सरकार के कुल कर्ज के 50 फीसदी से ज्यादा है।

राज्य सरकार पर मार्च 2018 तक एक लाख 60 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज हो चुका है। इसी वित्तीय वर्ष के आरंभ में मध्यप्रदेश सरकार बाजार से तीन हजार करोड़ रुपए का कर्ज बाजार से ले चुकी है। बाजार से कर्ज उठाने पर सरकार को ज्यादा ब्याज देना पड़ता है। वर्ष 2017-18 में राज्य सरकार ने कर्ज के लिए 12 हजार करोड़ रुपए तो केवल ब्याज के रूप में चुकाए हैं जो कुल बजट का 6 प्रतिशत बैठता है।
 
 

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