पांच साल तक सत्ता और संगठन में अपनी मनमर्जी चलाने वाली राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अब एक साथ कई संकटों का सामना कर रही हैं।

एक तो पूरे राज्य में सत्ता विरोधी लहर चल रही है जिसे वसुंधरा किसी भी तरह से कम कर पाने में नाकाम साबित हो रही हैं। बिजली, पानी, सड़क के बुनियादी मुद्दों पर नाकामी से जनता के मन में गुस्सा जाहिर होने लगा है। स्कूलों और अस्पतालों की बदहाली से भी वसुंधरा के प्रति नाराजगी है।
कार्यकाल के आरंभ से ही वसुंधरा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगने लगे थे, इसलिए इस मोर्चे पर भी सरकार की छवि जनता के क्रोध को बढ़ाने वाली ही है।
जनता की नाराजगी के बीच, वसुंधरा को राज्य में अपनी पार्टी में ही विरोधियों का सामना करना पड़ रहा है। इन विरोधियों की चुनौती लगातार बढ़ती जा रही है। घनश्याम तिवाड़ी ने तो अलग दल भारत वाहिनी ही बना लिया है और अब उसका निर्वाचन आयोग से पंजीयन भी हो चुका है। तय हो गया है कि तिवाड़ी राज्य भर में सारी सीटों पर लड़ेंगे और वसुंधरा का विरोध करेंगे।
वसुंधरा की सबसे बड़ी मुसीबत ये भी है कि अपनी कार्यशैली से वे भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व का विश्वास भी खो चुकी हैं। अब नेतृत्व की हिम्मत इतनी तो नहीं हुई कि वो वसुंधरा को ही पद से हटा सके, लेकिन उनके खासमखास प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी का इस्तीफा उसने ले लिया है।
परनामी के इस्तीफे के बाद से ही भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व और वसुंधरा के बीच जंग छिड़ी हुई है। अमित शाह केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर वसुंधरा का विकल्प खड़ा करना चाहते हैं और वसुंधरा किसी भी तरह से इस पद पर अपनी कठपुतली बैठाना चाहती हैं।
अब चुनावी साल में जहां वसुंधरा को सत्ता विरोधी लहर को शांत करने में समय और ऊर्जा लगानी चाहिए थी, वहां वे दो माह से नए प्रदेशाध्यक्ष के पद पर किसी विरोधी की नियुक्ति रोकने के लिए दिल्ली-जयपुर एक करने में लगी हैं।
वसुंधरा राजे का संकट इतना बढ़ गया है कि उनका मुख्यमंत्री पद तो खतरे में है ही, साथ ही भाजपा के हारने की स्थिति में भी राज्य भाजपा संगठन में उनकी पकड़ कमजोर करने में अमित शाह जुट गए हैं। पहली कोशिश तो टिकट वितरण में वसुंधरा की मनमानी रोकने की ही है, ताकि राज्य में भाजपा जीते या हारे, लेकिन विधायक दल में वसुंधरा राजे का बहुमत न बन पाए।
2018 में जिन तीन बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें भाजपा की सबसे कमजोर हालत राजस्थान में ही मानी जा रही है, और इसी राज्य में भाजपा एकदम उपायहीन बैठी है।

एक तो पूरे राज्य में सत्ता विरोधी लहर चल रही है जिसे वसुंधरा किसी भी तरह से कम कर पाने में नाकाम साबित हो रही हैं। बिजली, पानी, सड़क के बुनियादी मुद्दों पर नाकामी से जनता के मन में गुस्सा जाहिर होने लगा है। स्कूलों और अस्पतालों की बदहाली से भी वसुंधरा के प्रति नाराजगी है।
कार्यकाल के आरंभ से ही वसुंधरा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगने लगे थे, इसलिए इस मोर्चे पर भी सरकार की छवि जनता के क्रोध को बढ़ाने वाली ही है।
जनता की नाराजगी के बीच, वसुंधरा को राज्य में अपनी पार्टी में ही विरोधियों का सामना करना पड़ रहा है। इन विरोधियों की चुनौती लगातार बढ़ती जा रही है। घनश्याम तिवाड़ी ने तो अलग दल भारत वाहिनी ही बना लिया है और अब उसका निर्वाचन आयोग से पंजीयन भी हो चुका है। तय हो गया है कि तिवाड़ी राज्य भर में सारी सीटों पर लड़ेंगे और वसुंधरा का विरोध करेंगे।
वसुंधरा की सबसे बड़ी मुसीबत ये भी है कि अपनी कार्यशैली से वे भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व का विश्वास भी खो चुकी हैं। अब नेतृत्व की हिम्मत इतनी तो नहीं हुई कि वो वसुंधरा को ही पद से हटा सके, लेकिन उनके खासमखास प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी का इस्तीफा उसने ले लिया है।
परनामी के इस्तीफे के बाद से ही भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व और वसुंधरा के बीच जंग छिड़ी हुई है। अमित शाह केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर वसुंधरा का विकल्प खड़ा करना चाहते हैं और वसुंधरा किसी भी तरह से इस पद पर अपनी कठपुतली बैठाना चाहती हैं।
अब चुनावी साल में जहां वसुंधरा को सत्ता विरोधी लहर को शांत करने में समय और ऊर्जा लगानी चाहिए थी, वहां वे दो माह से नए प्रदेशाध्यक्ष के पद पर किसी विरोधी की नियुक्ति रोकने के लिए दिल्ली-जयपुर एक करने में लगी हैं।
वसुंधरा राजे का संकट इतना बढ़ गया है कि उनका मुख्यमंत्री पद तो खतरे में है ही, साथ ही भाजपा के हारने की स्थिति में भी राज्य भाजपा संगठन में उनकी पकड़ कमजोर करने में अमित शाह जुट गए हैं। पहली कोशिश तो टिकट वितरण में वसुंधरा की मनमानी रोकने की ही है, ताकि राज्य में भाजपा जीते या हारे, लेकिन विधायक दल में वसुंधरा राजे का बहुमत न बन पाए।
2018 में जिन तीन बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें भाजपा की सबसे कमजोर हालत राजस्थान में ही मानी जा रही है, और इसी राज्य में भाजपा एकदम उपायहीन बैठी है।