राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार किस तरह से दोषियों को बचाने और निर्दोषों को फंसाने का काम करती है, इसका सबूत अलवर जिले के बहरोड़ तेजाब कांड में अदालत के फैसले से मिलता है।
एक तरफ राज्य में तेजाब के हमले की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, वहीं पुलिस इनके दोषियों को बचाने में लग जाती है और निर्दोषों को फंसाकर जेल में डाल देती है।
दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर के अनुसार अदालत ने इस मामले में पुलिस द्वारा गलत तरीके से फंसाए गए 4 लोगों को दोषमुक्त कर दिया और असली दोषी को आजीवन कारावास और तीन लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। मामले में यही दोषी नामजद आरोपी था, लेकिन राजनीतिक दबाव में काम करने वाली भ्रष्ट पुलिस ने उसे निर्दोष बता दिया और तेजाब पीड़िता की मदद करने पहुंचे 4 लोगों को ही मुजरिम बना दिया था।
वारदात 30 जुलाई 2015 की है। मांढण थाने में मेहतावास में जब सुमन देवी नाम की महिला रात में बेटी ऋतु और बेटे गुलशन के साथ अपने कमरे में सो रही थी, तभी रात को वीरेंद्र सिंह नाम का आदमी दीवार कूदकर अंदर आया और तीनों पर तेजाब फेंककर भाग गया था।
पुलिस ने वीरेंद्र के बजाय सुमन और उसके बेटे-बेटी की मदद करने आए पड़ोसी कृष्ण यादव, कर्मवीर, सविता और रजमल को ही दोषी बताकर मामले में झूठा फंसा दिया था।
पीड़ित सुमन देवी ने पुलिस उच्च अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री तक असली सच्चाई बताने की कोशिश की लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। मामला जब अदालत पहुंचा और सारा मामला न्यायाधीश के सामने आया तब एडीजे कोर्ट ने वीरेंद्र सिंह को गिरफ्तारी वारंट भेजकर मामले की सुनवाई की। सुनवाई के बाद पुलिस द्वारा आरोपी चारों लोग बेकसूर साबित हुए और असली आरोपी वीरेंद्र को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
पूरे मामले से राजस्थान पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो गए हैं। इसके साथ ही उच्च अधिकारियों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता भी संदेह के घेरे में आ गई है क्योंकि इन लोगों के सामने पीड़िता बार-बार जाकर बताती रही कि जिनको पुलिस आरोपी बना रही है, उन्होंने तो उसकी मदद की और उसे अस्पताल लेकर गए थे, जबकि असली दोषी को पुलिस बचा रही है।
एक तरफ राज्य में तेजाब के हमले की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, वहीं पुलिस इनके दोषियों को बचाने में लग जाती है और निर्दोषों को फंसाकर जेल में डाल देती है।
दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर के अनुसार अदालत ने इस मामले में पुलिस द्वारा गलत तरीके से फंसाए गए 4 लोगों को दोषमुक्त कर दिया और असली दोषी को आजीवन कारावास और तीन लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। मामले में यही दोषी नामजद आरोपी था, लेकिन राजनीतिक दबाव में काम करने वाली भ्रष्ट पुलिस ने उसे निर्दोष बता दिया और तेजाब पीड़िता की मदद करने पहुंचे 4 लोगों को ही मुजरिम बना दिया था।
वारदात 30 जुलाई 2015 की है। मांढण थाने में मेहतावास में जब सुमन देवी नाम की महिला रात में बेटी ऋतु और बेटे गुलशन के साथ अपने कमरे में सो रही थी, तभी रात को वीरेंद्र सिंह नाम का आदमी दीवार कूदकर अंदर आया और तीनों पर तेजाब फेंककर भाग गया था।
पुलिस ने वीरेंद्र के बजाय सुमन और उसके बेटे-बेटी की मदद करने आए पड़ोसी कृष्ण यादव, कर्मवीर, सविता और रजमल को ही दोषी बताकर मामले में झूठा फंसा दिया था।
पीड़ित सुमन देवी ने पुलिस उच्च अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री तक असली सच्चाई बताने की कोशिश की लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। मामला जब अदालत पहुंचा और सारा मामला न्यायाधीश के सामने आया तब एडीजे कोर्ट ने वीरेंद्र सिंह को गिरफ्तारी वारंट भेजकर मामले की सुनवाई की। सुनवाई के बाद पुलिस द्वारा आरोपी चारों लोग बेकसूर साबित हुए और असली आरोपी वीरेंद्र को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
पूरे मामले से राजस्थान पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो गए हैं। इसके साथ ही उच्च अधिकारियों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता भी संदेह के घेरे में आ गई है क्योंकि इन लोगों के सामने पीड़िता बार-बार जाकर बताती रही कि जिनको पुलिस आरोपी बना रही है, उन्होंने तो उसकी मदद की और उसे अस्पताल लेकर गए थे, जबकि असली दोषी को पुलिस बचा रही है।