सावित्री बाई ज्योति बा फुले भारतीय इतिहास में सर्वोत्तम युगल के तौर पर कहे जा सकते है. भारतीय समाज में यदि फुले दम्पति के कार्यो को भली प्रकार से समझ लिया और अपना लिया तो अहिंसात्मक क्रांति अवस्यम्भावी है. पिछले कुछ वर्षो में ज्योति बा फुले के विचारो के विषय में विभिन्न लोगो ने लिखा है लेकिन सावित्री बाई फुले के विचारो और कार्यो के बारे में बहुत कम जानकारी है. अधिकांशतः लोग उन्हें ज्योतिबा फुले की पत्नी के तौर पर जानते है हालाँकि ये उनके विशाल व्यक्तित्व के साथ अन्याय है.
सामाजिक आन्दोलनों को समर्पित हमारी अम्बेडकरवादी साथी रजनी तिलक को इस बात के लिए धन्यवाद देना पड़ेगा के उन्होंने सावित्री बाई फुले की रचनाओं, लेखो और ज्योति बा फुले को लिखे उनके पत्रों को संकलित कर ‘सावित्रीबाई फुले रचना समग्र’ नमक पुस्तक के तौर पर प्रकाशित की है जो हिंदी के पाठको के लिए बहुत ही अनमोल है. इस संकलन में सावित्रीबाई फुले द्वारा रचित कवितायें हैं, फिर उनके ज्योतिबा को लिखे तीन पत्र और उनके पांच महत्वपूर्ण भाषणों की शामिल किया गया है.
इस संकलन को पढ़कर सावित्रीबाई फुले की बहादुरी और उनकी सैधान्तिक ताकत की जिसने उन्हें भारत की सबसे क्रन्तिकारी सामाजिक कार्यकर्त्ता बनाया. उनकी कविताएं हमें उनके विचारो की विशालता का दर्शन कराते है जिनमे न केवल अन्धविश्वास के विरुद्ध उनकी लड़ाई है अपितु लोगो से उसको मुक्त करने हेतु उनके सुझाव भी हैं. शुद्रो को अन्ध्विशाश छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए और उसके लिए आवश्यक है अंग्रेजी भाषा का ज्ञान . उस ज़माने में भी एक साधारण शिक्षा प्राप्त महिला ये समझ चुकी थी के भारतीय शिक्षा शुद्रो को शोषित रखने का एक षड़यंत्र है. उनकी कविताओं को पढ़कर हम उनकी वैचारिक क्षमता और उनके चिंतन की दिशा को समझ सकते है . अपनी कविता अज्ञानता में वह कहती हैं:
‘ एक ही दुश्मन अपना,
खदेड़ दें उसे हम, सब मिल कर,
उससे ज्यादा खतरनाक न कोई,
खोजो खोजो मन की भीतर झांको,
बताओ तो खोजा क्या अपना दुश्मन,
खोजो तो कहाँ है वह हमारा दुश्मन,
सोचो सोचो बताओ बच्चो,
क्या नाम है उसका ?
नहीं पता कौन है दुश्मन ?
क्या तुमने प्रयास किया,
क्या तुम्हारा प्रयास विफल हुआ,
क्या तुमने खुद ही मान ली हार,
चलो चलो मैं बताती हूँ,
उस दुष्ट खतरनाक दुश्मन की पहचान,
ध्यान से सुनो उस दुश्मन का नाम,
उस दुश्मन को कहते हैं अज्ञान’
मैं समझता हूँ को आज के दौर में जब दुश्मन शब्द पर इतना जोर है, जब दुश्मन के माने पाकिस्तान, मुसलमान, दलित, आदिवासी बना दिए गए हो तो सावित्रीबाई फुले ये शब्द क्रांति से कम नहीं है और आज भी इसको दोबारा से हमारे बच्चो और बुजुर्गो के दिमाग में डालने की जरुरत है. ऐसी कितनी ही कविताएं इस संकलन में हैं जो आज के समाज को दिशा देने में बहुत सहायंक हो सकती है और शायद फुले दम्पति को भी भली प्रकार से समझने में काम आये.
अपने पति, मित्र, गुरु ज्योति बा फुले को सावित्री बाई के तीन पत्र इस संग्रह में शामिल किये गए है उनको प्रेम के अप्रतिम भेंट कह सकता हूँ. उनके पत्रों में केवल और केवल समाज की चर्चा है. वो इतने भावविभोर कर देने वाले है के आप अंदाजा लगा सकते है के दोनों के मध्य कितना मधुर सम्बन्ध था और कैसे सावित्री बाई ने अपने पति का कर कदम पर साथ दिया और कैसे ज्योति बा उनके साथ खड़े रहे. दूसरो को बदलने से पहले अपने घर में वो परिवर्तन नज़र आना चाहिए और वो कार्य ज्योतिबा फुले ने किया और सावित्री बाई फुले ने उस महान कार्य को आगे बढ़ाया. बेहद की खुबसूरत इन पत्रों में आप उन भावनाओं को समझिये जो सावित्रीबाई व्यक्त कर रही है.
29 अगस्त 1868 को नाथ् गाँव खंडाला, जिला सतारा से ज्योतिबा को लिखे अपने पत्र में सावित्री बाई गाँव की एक घटना का जिक्र करते हुए कहती हैं:
गांव में गणेश नाम का पुरोहित अक्सर आता था. वह गाँव गाँव क़स्बा कस्बा घूम घूम कर ग्रामीणों को पंचांग पढ़ कर सुनाता था, भविष्यवाणी करता था, नक्षत्र देखकर अनपढ़ लोगों को उनकी किस्मत देखता था और अच्छे बुरे बता कर दक्षिणा लेकर, पूजा पाठ करके उनसे पैसे लेकर अपना पेट पालन का काम करता था.
हमारे गाँव की हाल ही में युवा अवस्था में कदम रखने वाली सारजा नाम की युवती उससे आकर्षित हो गयी और उसकी बातो में आकर उससे प्रेम कर बैठी. न केवल दोनों प्रेम कर बैठे बल्कि उन दोनों ने शारीरिक सम्बन्ध बना लिए जिसके चलते लड़की छः माह की गर्भवती हो गयी. सारजा के शारीरिक बदलाव को देखकर लोगो के बीच कानाफूसी होने लगी. दोनों के बीच सम्बन्ध का आभास होते ही गाँव के दुष्ट किस्म के मनचलों ने दोनों पर हमला बोल दिया. सरेआम दोनों को घेर कर उनकी अव्नामानना की उनकी निर्दयता से पिटाई की. गाँव की सडकों पर दौड़ा दौड़ा कर उनकी दुर्गति कर डाली यहाँ तक कि उन लोगों ने जान से मार डालने की कोशिश की. जैसे ही मुझे इस घटना का पता चला मैं सब काम छोड़ कर उधर ही दौड़ कर पहुंची. मार काट पर उतारू लोगो के बीच मैं खड़ी हो गयी और उन्हें अंग्रेजो के शासन और कानून के बारे में बताया. मैंने उन्हें डराया के इनकी हत्या करने पर तुम्हे सजा मिलेगी. तरह तरह से समझाते हुए मैंने क्रूर भीड़ को हत्या करने से रोका.
इस कुक्र्त्य से उनका मन शांत करके उधर से ध्यान हटाया. मेरे बीच बचाव के बाद गाव के सदु भाई ने दोनों को धमकाते हुए अपना फैसला सुनाया के, ‘ सरजा ने इस पुरोहित वामन की बातों में आकर ने केवल अपनी इज्जत मिटटी में मिला दी बल्कि इसने गाँव की इज्जत भी मिटटी में मिला दी. अतः हमारा ये फैसला है के दोनों हमारा गाँव छोड़ कहीं भी चले जाएँ. उसके इस फैसले को स्वीकार कर लिया गया. हालाँकि गाँव वालों ने उन दोनों की जान बचा लेने के मेरे प्रयास पर हैरानी जताई.
सरजा और पुरोहित अपनी रक्षक, काल के मुंह से निकालने वाली आदि माता समझ कर मेरे पांवो पर गिर कर बहुत रोये. उनका रुदन थम नहीं रहा था. मेरे समझाने पर दोनों थोड़े संयत हुए. मैंने दोनों को आपकी शरण में भेज दिया है. उम्मीद है इस घटना की जानकारी मिलने के बाद आप उनकी कहीं रहने की व्यवस्था कर देंगे. अंत में बस इतना ही मैं आपको बताना चाहती थी.”
ये पत्र पढ़ कर आप अंदाज लगा सकते हैं के सावित्री बाई और ज्योति बा का रिश्ता कैसा था और किस प्रकार से दोनों की इंसानी रिश्तों और उनके मानवाधिकारों के प्रति गहन निष्ठां थी. सावित्रीबाई और ज्योति बा ने ब्राह्मणवाद के पुरे तंत्र का पर्दाफास किया लेकिन अपनी मानवीय मर्यादाओं में उन्होंने गरीब और उत्पीडित ब्राह्मणों की रक्षा करने में कोई कोताही नहीं की. इस पत्र में ब्राह्मण युवक के खिलाफ वह कोई जहर नहीं उगलती अपितु उसकी करतूतों की आलोचना करते हुए भी दोनों लोगो को ज्योति बा के पास भेज देती हैं.
आज से करीब 150 वर्ष पूर्व एक महिला दो व्यक्तियों के चाहत के लिए समाज के सामने खड़ी हो गयी और उसके पति ने उसका पूरा साथ दिया, ये दिखाता है के दोनों के मध्य कितना प्रेम और विश्वास था तथा भीड़ के न्याय देने की कोशिश का सावित्रीबाई ने कैसे विरोध किया. आज जब प्रेम विवाहों पर हमारी खाप पंचायतो के फतवे चल जाते हैं और लोग अपने ही बच्चों को जान से मार देने में कोई शर्म और अपराध नहीं महसूस करते, उन्हें सावित्री बाई से सीखना चाहिए के लोगो का जीवन बचाने के लिए क्या किया जाए. ऐसा विश्वास केवल उन लोगो में हो सकता है जो ईमानदारी से अपने कार्य कर रहे है और जिन पर लोगो का भरोषा होता है. आज समाज में ऐसे कार्यकर्ताओं की कमी है क्योंकि वैचारिक ताकत नहीं है और छोटे छोटे पद, पैसे के लालच में हम वो ताकत नहीं ला सकते जो सावित्रीबाई ने दिखाई. इस महत्वपूर्ण प्रत्र से ये भी पता चलता है कि सावित्री बाई मात्र गाँव में स्कूल नहीं चलाती थी अपितु समाज को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थीं और उनकी राजनैतिक और सामाजिक समझ बहुत परिपक्व थी.
एक अन्य पत्र में सावित्री बाई अपने मायके का जिक्र करती है कि कैसे उनका भाई ज्योति बा की आलोचना करता रहता है और बताता है कि अछूतों के लिए कार्य करने का कारण समाज ने आपका बहिष्कार किया क्योंकि आप पाप कर्म कर रहे हो. ’साधारणतः ऐसे वाकये हमारे घरों में आते है जब हमारे नाते रिश्तेदार हमारी सोच का विरोध करते हैं लेकिन आपका अपना भाई या पिता विरोध करे तो बेहद दुःख होता है. सावित्री बाई इस पत्र में ज्योति बा को बता रही है कैसे उन्होंने अपने भाई को बदला. अपने भाई के लिए वो लिखती है,‘ आपकी मति ब्राह्मणों की चाल की शिकार हो गयी है. उनकी घुट्टी पी पी कर, उनके पाखंडी उपदेश सुन कर आपकी बुद्धि दुर्बल हो गयी है और इसी कारण आपके स्वयं के विवेक ने काम करना बंद कर दिया है, एक तरफ आप इतने दयालु बनते हैं कि बकरी गाय को खूब प्यार करते हैं, उन्हें दुलारते हैं, नागपंचमी के त्यौहार में विषैले सांपों को दूध पिलाते हैं, ये कृत्य आपके लिए धर्म सम्मत है और महार मांग अपने जैसे इंसानों को तुम इंसान नहीं समझते. उनसे तुम परहेज करते हो, उन्हें अछूत, अस्पर्श्य समझ कर दुत्कारते हो. क्यों करते हो ऐसा. क्या तुम नहीं जानते के ब्राह्मण लोग तुम्हें भी अछूत ही समझते हैं. हमारे स्पर्श से भी उन्हें नफरत है.’
ये पत्र पढ़कर आप समझ जाईये कि ज्योतिबा की एक एक बात सावित्री बाई ने अपने मनमस्तिष्क में रख ली और उन्हें अपने पति को अपने कार्य को बताते हुए असीमित ख़ुशी और कौतुहल है. कोई भी संवेदनशील व्यक्ति इन पत्रों के अन्दर छुपी भावनाओं को समझेगा तो बदलाव आएगा. और ये सब पूरे 150 वर्ष पूर्व और वह महिला जिसने ने विद्यालय देखा था न कुछ और.
इस पत्र में वह आगे लिखती हैं: ‘ मैंने अपने भाई से यह भी कहा कि मेरा पति तुम्हारे जैसे लोगो में से नहीं है, जो धर्म यात्रा के नाम पर पंढरपुर तक पैदल हरी नाम जपते हुए चलता जाए और अपने लिए पुण्य कमाने का ढोंग करे. वे असली और सच्चा काम करते हैं, मानवता को जिन्दा रखते हैं, अनपढों को पढ़ा लिखाकर, उन्हें ज्ञान देकर उनके जीवन में रौशनी भरते हैं, उनमें स्वाभिमान जगा कर जीने की राह दिखाते हैं. यही सच्चा रास्ता है. उनका ध्येय अब मेरा भी ध्येय बन गया है. लोगों को शिक्षित करने में मुझे बहुत शांति मिलती है, स्त्रियों को पढ़ाने से मुझे खुद को प्रेरणा, प्रोत्साहन और उर्जा मिलती है. यह काम मुझे ख़ुशी देता है. इससे मुझे सुख शांति, आत्मतृप्ति मिलती है. ये ही वो काम है जिसमें इंसानियत और मानवता दीख पड़ती है’.
इस पत्र से साफ़ दीखता है के सावित्री बाई पर ज्योतिबा का कितना प्रभाव है और विश्वास है. ये भरोसा सबसे बड़ी चीज है किसी रिश्ते को मज़बूत करने में जब आपके रिश्तेदार, आपका अपना भाई भी आपका विरोधी हो जाए और आपके सामाजिक सरोकारों का मजाक उडाये लेकिन अगर सावित्री बाई के उत्तर देखें तो वो हरेक को निरुत्तर कर देती हैं. उनके में ज्ञान देने के लिए बड़ी बड़ी बाते नहीं है अपितु नैतिकता, ईमानदारी की वो बाते है जो हम सब जानते है लेकिन करते नहीं है. दूसरी बड़ी बात ये के दोनों आन्दोलन के साथी है इसलिए वो जो देखे उसी आधार पर बात रख रहे हैं. जिस प्रेम पूर्वक वह अपनी पूरी बातों को ज्योति बा के सामने रख रही हैं वो दिखाता है उन्हें अपने पति पर कितना गर्व है और उससे भी जरुरी के उनकी समझ कितनी पैनी और साफ़ हो चुकी है. आज अगर हर परिवार में पहले स्वयं को बदलने की चाहत होती तो हमारा समाज बहुत बदल गया होता.
इस पुस्तक में सावित्री बाई फुले के पांच भाषणों को भी शामिल किया गया है जो नितांत जरुरी है. ये बहुत साधारण भाषा में, जो गाँव के किसान, मजदुर, महिलाओं की समझ आ सकती है. अगर हम उनकी पूरी सोच को देखे तो वह निहायत ही व्यवहारिक है. उनके विचारो में ब्राह्मणवाद पर कुठारघात है तो अपने समाज को बदलने के लिए भी तैयार कर रही हैं. वो लोगो की पूजा विधि पर हमला नहीं करती लेकिन अन्धविश्वास को लेकर लोगो को समझाती है और धर्म के नाम पर पाखंड को वह बहुत साधारण भाषा में लोगो को समझा देते है. वह लोगो को मेहनत करने के लिए प्रेरित करती हैं:
“ काम धंधे, उद्यमशीलता ज्ञान व् प्रगति का प्रतीक है. इस कार्य में सामूहिक श्रम का महत्व है तो आलस्य, भाग्य विधाता, किस्मत, प्रारब्ध का निशेध उद्योगी इन्सान अपने सुख सुविधा में बढ़ोतरी करते हुए, अन्य लोगों को भी सुखी करने का प्रयास करता है. ठीक इसके विपरीत देव देवतावादी, भाग्यवादी, किस्मत और भगवान के भरोसे जीने वाला व्यक्ति आलसी व् मुफ्तखोर होने के कारण हमेशा के लिए दुखी रहता है तथा वह अन्य लोगो की सुख शांति को मिटटी में मिलाने का काम करता है. आलस्य ही गरीबी का पर्याय है. ज्ञान, धन, सम्मान का आलस्य दुश्मन होता है. आलसी आदमी को कभी भी धन, ज्ञान और सम्मान नहीं मिलता. लगातार परिश्रम, इच्छा शक्ति, सकारात्मक सोच बल पर ही सफलता मिलेगी, निश्चित रूप से मिलेगी, ऐसा मेरा यकीन है.
अपने एक भाषण विद्या दान में वह कहती हैं:
परम्पराओं और पुरखों से मिले ज्ञान को अर्जित कर जिन कारीगरों ने श्रमजीवी मेहनतकश जनता ने, अपने कार्य में महारत हासिल कर भारत देश को समृद्ध बनाया है, उन लोगो की कुशलता, वास्तु निर्माण का ज्ञान एवं कलात्मकता आदि गुणों की अनदेखी कर राजाओं ने राज किया, अपनी तिजोरी भरी किन्तु शुद्र अतिशुद्र जनता की उन्नति की और कतई ध्यान नहीं दिया. शुद्र अतिशुद्र जाति के लोग स्वाभाव से सीधे सादे एवं अनपढ़ होने की वजह से वे निहायत मुर्ख बने हुए है. उन्हें यदि न समझाया जाए और उपदेश न दिया जाए तो वे आप होकर आगे बढ़कर खुद के दिमाग, हिम्मत एवं होसले से कोई भी उद्योग करने से कतराते है. उनका स्वाभाव भी मिलनसार न होकर बुरा होता है. उन्हें अपने व्यक्तित्व में किस प्रकार सकारात्मक सुधार किया जाये, किस तरह अपनी प्रगति एवं विकास योजना बनाकर उस पर अमल करे , इस बात का ज्ञान जानकारी एवं प्रशिक्षण न होने के कारणों से वे अज्ञानता की वजह से आधे भूखे रहने हेतु तो कभी कभी पूर्ण रूप से भूखे रहने के लिए विवश है. शुद्र अति शुद्र जनता हेतु सम्मानजनक आजीविका का रास्ता सरकार को पहल लेकर खोजना होगा.
सावित्री बाई फुले ने ज्ञान, उद्योग, कर्म, व्यसन, नेक आचरण आदि सभी बातो पर लोगो को आगाह किया. जहाँ उन्होंने सरकार से अपने अधिकारों को लेने की बात कही वही समाज में भी बदलाव की बात की. किसानो को वो कर्जदारी से दूर रहने की सलाह देती है और कहती है के कर्ज लेना सभी अनर्थो का मूल है और कर्ज अच्छे भले इंसान को समग्र रूप से दिवालिया बना देता है.’
क्या हम कभी सोच सकते हैं कि ग्रामीण परिवेश में बढ़ी हुई महिला जिसने स्कूल भी न देखा हो इतनी परिपक्वता से बात करती हो और वो भी आज से पूरे 150 वर्ष पूर्व. फूले दम्पति हमारे समाज के लिए सबसे बड़ा आदर्श है के कैसे पति पत्नी मिलकर समाज बदलाव में सबसे बड़ा योगदान दे सकते है. मैं समझता हूँ सावित्री-ज्योति बा के प्रेम की कहानी शायद किसी भी सीरी-फरहाद या लैला मजनूँ से बड़ी प्रेम कहानी है क्योंकि उनकी प्रेम कहानी में रोमांस सामाजिक क्रांति से है. वो किसी सरकार का तख्ता उलट देने की कहानी नहीं कह रहे, वो किसी के प्रति घृणा और नफ़रत नहीं फैला रहे अपितु वो अज्ञानता को दूर करने के लिए साथ मिलकर लड़ रहे है. दोनों आपस में इतने बड़े विश्वास और प्रेम से जुड़े है के समाज के हर कटाक्ष या चुनौती को सीधे से झेलने को तैयार है.
फुले दम्पति ने समाज के हर तबके तो छुआ क्योंकि वे जानते है के समाज का विकास सबके बदले विना हो नहीं सकता. जहाँ सावित्री बाई फुले ने उस्मान शेख की बहिन् फातिमा शेख को शिक्षा प्रचार प्रसार में शामिल किया वही काशीबाई नामक एक ब्राह्मण विधवा महिला के बच्चे को गोद लिया और बड़ा कर समाज में सम्मान दिलवाया. इन सभी कार्यो में जो महत्वपूर्ण बात है वह है सकारात्मक सोच और समाज से जुड़ने के लिए रचनात्मक कार्यो में पहल. आज के दौर में रचानात्मक कार्यो को भुलाकर जो जुमलेवाजी चल रही है वो समाज को कही भी आगे नहीं ले जायेगी. लोग समाज तक नहीं पहुँच रहे है और केवल इवेंट मैनेजमेंट से प्रसिधी पाने का जरिया ढूंढ रहे है. समाज बदलाव से प्रसिधी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी है. सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले की जिंदगी हम सब के लिए एक बहुत बड़ा उदहारण है.
रजनी तिलक ने सावित्रीबाई फुले के जीवन के इन उनछुये पहलुओ को हमारे सामने लाकर एक बहुत बड़ा काम किया है. बहुत सी बाते केवल मराठी तक सीमित थी और उनका हिंदी अनुवाद श्री शेखर पवार ने किया है इसलिए उनका बहुत आभार. पुस्तक को द मर्जिनलाइज्द पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है. सामाजिक आन्दोलनों के सभी साथियो को जिनकी सामाजिक न्याय और बदलाव में गहन निष्ठां है उन्हें ये पुस्तक पढनी चाहिए क्योंकि ये बहुत विशाल काय ग्रन्थ नहीं है अपितु बहुत ठोस है और सावित्री बाई की कविताएं, उनके पत्र और उनके भाषण आपके दिलो को छू जाते है. ये सभी दस्तावेज हमारी बहुत बड़ी धरोहर है जिनका इस्तेमाल हमें अपने सामाजिक आन्दोलनों में लोगो में चेतना जगाने हेतु करना चाहिए. पुनः पुस्तक प्रकाशन से जुड़े सभी साथियो को बहुत शुभकामनायें .
पुस्तक का नाम : सावित्रीबाई फुले रचना समग्र
संपादक : रजनी तिलक
प्रकाशक : द मर्जिनलाइजद पब्लिकेशन, वर्धा
मूल्य : रुपैया १६०
संपर्क : themarginalised@gmail.com
सामाजिक आन्दोलनों को समर्पित हमारी अम्बेडकरवादी साथी रजनी तिलक को इस बात के लिए धन्यवाद देना पड़ेगा के उन्होंने सावित्री बाई फुले की रचनाओं, लेखो और ज्योति बा फुले को लिखे उनके पत्रों को संकलित कर ‘सावित्रीबाई फुले रचना समग्र’ नमक पुस्तक के तौर पर प्रकाशित की है जो हिंदी के पाठको के लिए बहुत ही अनमोल है. इस संकलन में सावित्रीबाई फुले द्वारा रचित कवितायें हैं, फिर उनके ज्योतिबा को लिखे तीन पत्र और उनके पांच महत्वपूर्ण भाषणों की शामिल किया गया है.
इस संकलन को पढ़कर सावित्रीबाई फुले की बहादुरी और उनकी सैधान्तिक ताकत की जिसने उन्हें भारत की सबसे क्रन्तिकारी सामाजिक कार्यकर्त्ता बनाया. उनकी कविताएं हमें उनके विचारो की विशालता का दर्शन कराते है जिनमे न केवल अन्धविश्वास के विरुद्ध उनकी लड़ाई है अपितु लोगो से उसको मुक्त करने हेतु उनके सुझाव भी हैं. शुद्रो को अन्ध्विशाश छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए और उसके लिए आवश्यक है अंग्रेजी भाषा का ज्ञान . उस ज़माने में भी एक साधारण शिक्षा प्राप्त महिला ये समझ चुकी थी के भारतीय शिक्षा शुद्रो को शोषित रखने का एक षड़यंत्र है. उनकी कविताओं को पढ़कर हम उनकी वैचारिक क्षमता और उनके चिंतन की दिशा को समझ सकते है . अपनी कविता अज्ञानता में वह कहती हैं:
‘ एक ही दुश्मन अपना,
खदेड़ दें उसे हम, सब मिल कर,
उससे ज्यादा खतरनाक न कोई,
खोजो खोजो मन की भीतर झांको,
बताओ तो खोजा क्या अपना दुश्मन,
खोजो तो कहाँ है वह हमारा दुश्मन,
सोचो सोचो बताओ बच्चो,
क्या नाम है उसका ?
नहीं पता कौन है दुश्मन ?
क्या तुमने प्रयास किया,
क्या तुम्हारा प्रयास विफल हुआ,
क्या तुमने खुद ही मान ली हार,
चलो चलो मैं बताती हूँ,
उस दुष्ट खतरनाक दुश्मन की पहचान,
ध्यान से सुनो उस दुश्मन का नाम,
उस दुश्मन को कहते हैं अज्ञान’
मैं समझता हूँ को आज के दौर में जब दुश्मन शब्द पर इतना जोर है, जब दुश्मन के माने पाकिस्तान, मुसलमान, दलित, आदिवासी बना दिए गए हो तो सावित्रीबाई फुले ये शब्द क्रांति से कम नहीं है और आज भी इसको दोबारा से हमारे बच्चो और बुजुर्गो के दिमाग में डालने की जरुरत है. ऐसी कितनी ही कविताएं इस संकलन में हैं जो आज के समाज को दिशा देने में बहुत सहायंक हो सकती है और शायद फुले दम्पति को भी भली प्रकार से समझने में काम आये.
अपने पति, मित्र, गुरु ज्योति बा फुले को सावित्री बाई के तीन पत्र इस संग्रह में शामिल किये गए है उनको प्रेम के अप्रतिम भेंट कह सकता हूँ. उनके पत्रों में केवल और केवल समाज की चर्चा है. वो इतने भावविभोर कर देने वाले है के आप अंदाजा लगा सकते है के दोनों के मध्य कितना मधुर सम्बन्ध था और कैसे सावित्री बाई ने अपने पति का कर कदम पर साथ दिया और कैसे ज्योति बा उनके साथ खड़े रहे. दूसरो को बदलने से पहले अपने घर में वो परिवर्तन नज़र आना चाहिए और वो कार्य ज्योतिबा फुले ने किया और सावित्री बाई फुले ने उस महान कार्य को आगे बढ़ाया. बेहद की खुबसूरत इन पत्रों में आप उन भावनाओं को समझिये जो सावित्रीबाई व्यक्त कर रही है.
29 अगस्त 1868 को नाथ् गाँव खंडाला, जिला सतारा से ज्योतिबा को लिखे अपने पत्र में सावित्री बाई गाँव की एक घटना का जिक्र करते हुए कहती हैं:
गांव में गणेश नाम का पुरोहित अक्सर आता था. वह गाँव गाँव क़स्बा कस्बा घूम घूम कर ग्रामीणों को पंचांग पढ़ कर सुनाता था, भविष्यवाणी करता था, नक्षत्र देखकर अनपढ़ लोगों को उनकी किस्मत देखता था और अच्छे बुरे बता कर दक्षिणा लेकर, पूजा पाठ करके उनसे पैसे लेकर अपना पेट पालन का काम करता था.
हमारे गाँव की हाल ही में युवा अवस्था में कदम रखने वाली सारजा नाम की युवती उससे आकर्षित हो गयी और उसकी बातो में आकर उससे प्रेम कर बैठी. न केवल दोनों प्रेम कर बैठे बल्कि उन दोनों ने शारीरिक सम्बन्ध बना लिए जिसके चलते लड़की छः माह की गर्भवती हो गयी. सारजा के शारीरिक बदलाव को देखकर लोगो के बीच कानाफूसी होने लगी. दोनों के बीच सम्बन्ध का आभास होते ही गाँव के दुष्ट किस्म के मनचलों ने दोनों पर हमला बोल दिया. सरेआम दोनों को घेर कर उनकी अव्नामानना की उनकी निर्दयता से पिटाई की. गाँव की सडकों पर दौड़ा दौड़ा कर उनकी दुर्गति कर डाली यहाँ तक कि उन लोगों ने जान से मार डालने की कोशिश की. जैसे ही मुझे इस घटना का पता चला मैं सब काम छोड़ कर उधर ही दौड़ कर पहुंची. मार काट पर उतारू लोगो के बीच मैं खड़ी हो गयी और उन्हें अंग्रेजो के शासन और कानून के बारे में बताया. मैंने उन्हें डराया के इनकी हत्या करने पर तुम्हे सजा मिलेगी. तरह तरह से समझाते हुए मैंने क्रूर भीड़ को हत्या करने से रोका.
इस कुक्र्त्य से उनका मन शांत करके उधर से ध्यान हटाया. मेरे बीच बचाव के बाद गाव के सदु भाई ने दोनों को धमकाते हुए अपना फैसला सुनाया के, ‘ सरजा ने इस पुरोहित वामन की बातों में आकर ने केवल अपनी इज्जत मिटटी में मिला दी बल्कि इसने गाँव की इज्जत भी मिटटी में मिला दी. अतः हमारा ये फैसला है के दोनों हमारा गाँव छोड़ कहीं भी चले जाएँ. उसके इस फैसले को स्वीकार कर लिया गया. हालाँकि गाँव वालों ने उन दोनों की जान बचा लेने के मेरे प्रयास पर हैरानी जताई.
सरजा और पुरोहित अपनी रक्षक, काल के मुंह से निकालने वाली आदि माता समझ कर मेरे पांवो पर गिर कर बहुत रोये. उनका रुदन थम नहीं रहा था. मेरे समझाने पर दोनों थोड़े संयत हुए. मैंने दोनों को आपकी शरण में भेज दिया है. उम्मीद है इस घटना की जानकारी मिलने के बाद आप उनकी कहीं रहने की व्यवस्था कर देंगे. अंत में बस इतना ही मैं आपको बताना चाहती थी.”
ये पत्र पढ़ कर आप अंदाज लगा सकते हैं के सावित्री बाई और ज्योति बा का रिश्ता कैसा था और किस प्रकार से दोनों की इंसानी रिश्तों और उनके मानवाधिकारों के प्रति गहन निष्ठां थी. सावित्रीबाई और ज्योति बा ने ब्राह्मणवाद के पुरे तंत्र का पर्दाफास किया लेकिन अपनी मानवीय मर्यादाओं में उन्होंने गरीब और उत्पीडित ब्राह्मणों की रक्षा करने में कोई कोताही नहीं की. इस पत्र में ब्राह्मण युवक के खिलाफ वह कोई जहर नहीं उगलती अपितु उसकी करतूतों की आलोचना करते हुए भी दोनों लोगो को ज्योति बा के पास भेज देती हैं.
आज से करीब 150 वर्ष पूर्व एक महिला दो व्यक्तियों के चाहत के लिए समाज के सामने खड़ी हो गयी और उसके पति ने उसका पूरा साथ दिया, ये दिखाता है के दोनों के मध्य कितना प्रेम और विश्वास था तथा भीड़ के न्याय देने की कोशिश का सावित्रीबाई ने कैसे विरोध किया. आज जब प्रेम विवाहों पर हमारी खाप पंचायतो के फतवे चल जाते हैं और लोग अपने ही बच्चों को जान से मार देने में कोई शर्म और अपराध नहीं महसूस करते, उन्हें सावित्री बाई से सीखना चाहिए के लोगो का जीवन बचाने के लिए क्या किया जाए. ऐसा विश्वास केवल उन लोगो में हो सकता है जो ईमानदारी से अपने कार्य कर रहे है और जिन पर लोगो का भरोषा होता है. आज समाज में ऐसे कार्यकर्ताओं की कमी है क्योंकि वैचारिक ताकत नहीं है और छोटे छोटे पद, पैसे के लालच में हम वो ताकत नहीं ला सकते जो सावित्रीबाई ने दिखाई. इस महत्वपूर्ण प्रत्र से ये भी पता चलता है कि सावित्री बाई मात्र गाँव में स्कूल नहीं चलाती थी अपितु समाज को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थीं और उनकी राजनैतिक और सामाजिक समझ बहुत परिपक्व थी.
एक अन्य पत्र में सावित्री बाई अपने मायके का जिक्र करती है कि कैसे उनका भाई ज्योति बा की आलोचना करता रहता है और बताता है कि अछूतों के लिए कार्य करने का कारण समाज ने आपका बहिष्कार किया क्योंकि आप पाप कर्म कर रहे हो. ’साधारणतः ऐसे वाकये हमारे घरों में आते है जब हमारे नाते रिश्तेदार हमारी सोच का विरोध करते हैं लेकिन आपका अपना भाई या पिता विरोध करे तो बेहद दुःख होता है. सावित्री बाई इस पत्र में ज्योति बा को बता रही है कैसे उन्होंने अपने भाई को बदला. अपने भाई के लिए वो लिखती है,‘ आपकी मति ब्राह्मणों की चाल की शिकार हो गयी है. उनकी घुट्टी पी पी कर, उनके पाखंडी उपदेश सुन कर आपकी बुद्धि दुर्बल हो गयी है और इसी कारण आपके स्वयं के विवेक ने काम करना बंद कर दिया है, एक तरफ आप इतने दयालु बनते हैं कि बकरी गाय को खूब प्यार करते हैं, उन्हें दुलारते हैं, नागपंचमी के त्यौहार में विषैले सांपों को दूध पिलाते हैं, ये कृत्य आपके लिए धर्म सम्मत है और महार मांग अपने जैसे इंसानों को तुम इंसान नहीं समझते. उनसे तुम परहेज करते हो, उन्हें अछूत, अस्पर्श्य समझ कर दुत्कारते हो. क्यों करते हो ऐसा. क्या तुम नहीं जानते के ब्राह्मण लोग तुम्हें भी अछूत ही समझते हैं. हमारे स्पर्श से भी उन्हें नफरत है.’
ये पत्र पढ़कर आप समझ जाईये कि ज्योतिबा की एक एक बात सावित्री बाई ने अपने मनमस्तिष्क में रख ली और उन्हें अपने पति को अपने कार्य को बताते हुए असीमित ख़ुशी और कौतुहल है. कोई भी संवेदनशील व्यक्ति इन पत्रों के अन्दर छुपी भावनाओं को समझेगा तो बदलाव आएगा. और ये सब पूरे 150 वर्ष पूर्व और वह महिला जिसने ने विद्यालय देखा था न कुछ और.
इस पत्र में वह आगे लिखती हैं: ‘ मैंने अपने भाई से यह भी कहा कि मेरा पति तुम्हारे जैसे लोगो में से नहीं है, जो धर्म यात्रा के नाम पर पंढरपुर तक पैदल हरी नाम जपते हुए चलता जाए और अपने लिए पुण्य कमाने का ढोंग करे. वे असली और सच्चा काम करते हैं, मानवता को जिन्दा रखते हैं, अनपढों को पढ़ा लिखाकर, उन्हें ज्ञान देकर उनके जीवन में रौशनी भरते हैं, उनमें स्वाभिमान जगा कर जीने की राह दिखाते हैं. यही सच्चा रास्ता है. उनका ध्येय अब मेरा भी ध्येय बन गया है. लोगों को शिक्षित करने में मुझे बहुत शांति मिलती है, स्त्रियों को पढ़ाने से मुझे खुद को प्रेरणा, प्रोत्साहन और उर्जा मिलती है. यह काम मुझे ख़ुशी देता है. इससे मुझे सुख शांति, आत्मतृप्ति मिलती है. ये ही वो काम है जिसमें इंसानियत और मानवता दीख पड़ती है’.
इस पत्र से साफ़ दीखता है के सावित्री बाई पर ज्योतिबा का कितना प्रभाव है और विश्वास है. ये भरोसा सबसे बड़ी चीज है किसी रिश्ते को मज़बूत करने में जब आपके रिश्तेदार, आपका अपना भाई भी आपका विरोधी हो जाए और आपके सामाजिक सरोकारों का मजाक उडाये लेकिन अगर सावित्री बाई के उत्तर देखें तो वो हरेक को निरुत्तर कर देती हैं. उनके में ज्ञान देने के लिए बड़ी बड़ी बाते नहीं है अपितु नैतिकता, ईमानदारी की वो बाते है जो हम सब जानते है लेकिन करते नहीं है. दूसरी बड़ी बात ये के दोनों आन्दोलन के साथी है इसलिए वो जो देखे उसी आधार पर बात रख रहे हैं. जिस प्रेम पूर्वक वह अपनी पूरी बातों को ज्योति बा के सामने रख रही हैं वो दिखाता है उन्हें अपने पति पर कितना गर्व है और उससे भी जरुरी के उनकी समझ कितनी पैनी और साफ़ हो चुकी है. आज अगर हर परिवार में पहले स्वयं को बदलने की चाहत होती तो हमारा समाज बहुत बदल गया होता.
इस पुस्तक में सावित्री बाई फुले के पांच भाषणों को भी शामिल किया गया है जो नितांत जरुरी है. ये बहुत साधारण भाषा में, जो गाँव के किसान, मजदुर, महिलाओं की समझ आ सकती है. अगर हम उनकी पूरी सोच को देखे तो वह निहायत ही व्यवहारिक है. उनके विचारो में ब्राह्मणवाद पर कुठारघात है तो अपने समाज को बदलने के लिए भी तैयार कर रही हैं. वो लोगो की पूजा विधि पर हमला नहीं करती लेकिन अन्धविश्वास को लेकर लोगो को समझाती है और धर्म के नाम पर पाखंड को वह बहुत साधारण भाषा में लोगो को समझा देते है. वह लोगो को मेहनत करने के लिए प्रेरित करती हैं:
“ काम धंधे, उद्यमशीलता ज्ञान व् प्रगति का प्रतीक है. इस कार्य में सामूहिक श्रम का महत्व है तो आलस्य, भाग्य विधाता, किस्मत, प्रारब्ध का निशेध उद्योगी इन्सान अपने सुख सुविधा में बढ़ोतरी करते हुए, अन्य लोगों को भी सुखी करने का प्रयास करता है. ठीक इसके विपरीत देव देवतावादी, भाग्यवादी, किस्मत और भगवान के भरोसे जीने वाला व्यक्ति आलसी व् मुफ्तखोर होने के कारण हमेशा के लिए दुखी रहता है तथा वह अन्य लोगो की सुख शांति को मिटटी में मिलाने का काम करता है. आलस्य ही गरीबी का पर्याय है. ज्ञान, धन, सम्मान का आलस्य दुश्मन होता है. आलसी आदमी को कभी भी धन, ज्ञान और सम्मान नहीं मिलता. लगातार परिश्रम, इच्छा शक्ति, सकारात्मक सोच बल पर ही सफलता मिलेगी, निश्चित रूप से मिलेगी, ऐसा मेरा यकीन है.
अपने एक भाषण विद्या दान में वह कहती हैं:
परम्पराओं और पुरखों से मिले ज्ञान को अर्जित कर जिन कारीगरों ने श्रमजीवी मेहनतकश जनता ने, अपने कार्य में महारत हासिल कर भारत देश को समृद्ध बनाया है, उन लोगो की कुशलता, वास्तु निर्माण का ज्ञान एवं कलात्मकता आदि गुणों की अनदेखी कर राजाओं ने राज किया, अपनी तिजोरी भरी किन्तु शुद्र अतिशुद्र जनता की उन्नति की और कतई ध्यान नहीं दिया. शुद्र अतिशुद्र जाति के लोग स्वाभाव से सीधे सादे एवं अनपढ़ होने की वजह से वे निहायत मुर्ख बने हुए है. उन्हें यदि न समझाया जाए और उपदेश न दिया जाए तो वे आप होकर आगे बढ़कर खुद के दिमाग, हिम्मत एवं होसले से कोई भी उद्योग करने से कतराते है. उनका स्वाभाव भी मिलनसार न होकर बुरा होता है. उन्हें अपने व्यक्तित्व में किस प्रकार सकारात्मक सुधार किया जाये, किस तरह अपनी प्रगति एवं विकास योजना बनाकर उस पर अमल करे , इस बात का ज्ञान जानकारी एवं प्रशिक्षण न होने के कारणों से वे अज्ञानता की वजह से आधे भूखे रहने हेतु तो कभी कभी पूर्ण रूप से भूखे रहने के लिए विवश है. शुद्र अति शुद्र जनता हेतु सम्मानजनक आजीविका का रास्ता सरकार को पहल लेकर खोजना होगा.
सावित्री बाई फुले ने ज्ञान, उद्योग, कर्म, व्यसन, नेक आचरण आदि सभी बातो पर लोगो को आगाह किया. जहाँ उन्होंने सरकार से अपने अधिकारों को लेने की बात कही वही समाज में भी बदलाव की बात की. किसानो को वो कर्जदारी से दूर रहने की सलाह देती है और कहती है के कर्ज लेना सभी अनर्थो का मूल है और कर्ज अच्छे भले इंसान को समग्र रूप से दिवालिया बना देता है.’
क्या हम कभी सोच सकते हैं कि ग्रामीण परिवेश में बढ़ी हुई महिला जिसने स्कूल भी न देखा हो इतनी परिपक्वता से बात करती हो और वो भी आज से पूरे 150 वर्ष पूर्व. फूले दम्पति हमारे समाज के लिए सबसे बड़ा आदर्श है के कैसे पति पत्नी मिलकर समाज बदलाव में सबसे बड़ा योगदान दे सकते है. मैं समझता हूँ सावित्री-ज्योति बा के प्रेम की कहानी शायद किसी भी सीरी-फरहाद या लैला मजनूँ से बड़ी प्रेम कहानी है क्योंकि उनकी प्रेम कहानी में रोमांस सामाजिक क्रांति से है. वो किसी सरकार का तख्ता उलट देने की कहानी नहीं कह रहे, वो किसी के प्रति घृणा और नफ़रत नहीं फैला रहे अपितु वो अज्ञानता को दूर करने के लिए साथ मिलकर लड़ रहे है. दोनों आपस में इतने बड़े विश्वास और प्रेम से जुड़े है के समाज के हर कटाक्ष या चुनौती को सीधे से झेलने को तैयार है.
फुले दम्पति ने समाज के हर तबके तो छुआ क्योंकि वे जानते है के समाज का विकास सबके बदले विना हो नहीं सकता. जहाँ सावित्री बाई फुले ने उस्मान शेख की बहिन् फातिमा शेख को शिक्षा प्रचार प्रसार में शामिल किया वही काशीबाई नामक एक ब्राह्मण विधवा महिला के बच्चे को गोद लिया और बड़ा कर समाज में सम्मान दिलवाया. इन सभी कार्यो में जो महत्वपूर्ण बात है वह है सकारात्मक सोच और समाज से जुड़ने के लिए रचनात्मक कार्यो में पहल. आज के दौर में रचानात्मक कार्यो को भुलाकर जो जुमलेवाजी चल रही है वो समाज को कही भी आगे नहीं ले जायेगी. लोग समाज तक नहीं पहुँच रहे है और केवल इवेंट मैनेजमेंट से प्रसिधी पाने का जरिया ढूंढ रहे है. समाज बदलाव से प्रसिधी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी है. सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले की जिंदगी हम सब के लिए एक बहुत बड़ा उदहारण है.
रजनी तिलक ने सावित्रीबाई फुले के जीवन के इन उनछुये पहलुओ को हमारे सामने लाकर एक बहुत बड़ा काम किया है. बहुत सी बाते केवल मराठी तक सीमित थी और उनका हिंदी अनुवाद श्री शेखर पवार ने किया है इसलिए उनका बहुत आभार. पुस्तक को द मर्जिनलाइज्द पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है. सामाजिक आन्दोलनों के सभी साथियो को जिनकी सामाजिक न्याय और बदलाव में गहन निष्ठां है उन्हें ये पुस्तक पढनी चाहिए क्योंकि ये बहुत विशाल काय ग्रन्थ नहीं है अपितु बहुत ठोस है और सावित्री बाई की कविताएं, उनके पत्र और उनके भाषण आपके दिलो को छू जाते है. ये सभी दस्तावेज हमारी बहुत बड़ी धरोहर है जिनका इस्तेमाल हमें अपने सामाजिक आन्दोलनों में लोगो में चेतना जगाने हेतु करना चाहिए. पुनः पुस्तक प्रकाशन से जुड़े सभी साथियो को बहुत शुभकामनायें .
पुस्तक का नाम : सावित्रीबाई फुले रचना समग्र
संपादक : रजनी तिलक
प्रकाशक : द मर्जिनलाइजद पब्लिकेशन, वर्धा
मूल्य : रुपैया १६०
संपर्क : themarginalised@gmail.com