दलितों को तालिबान बनने से बचाओ!

Written by Bhanwar Meghwanshi | Published on: December 11, 2017
राजसमन्द में हुई आतंकी वारदात के पक्ष में बड़ी संख्या में चरमपंथी हन्दू सोशल मीडिया पर अपने विचार खुल कर ज़ाहिर कर रहे हैं, लोगों ने आतंकी शम्भू की तस्वीर को "माई हीरो शम्भू भवानी" हेज टैग के साथ अपनी प्रोफाइल पिक्चर तक बना डाली है, इन शम्भू समर्थकों के नाम के साथ लगी जाति का विश्लेषण करने पर चोंकाने वाला सत्य सामने आता है, इस दुर्दांत हत्याकांड का खुलकर समर्थन कर रहे लोगों का 95 फीसदी अपर कास्ट हिन्दू है, जो शम्भू लाल रेगर नामक एक दलित के कृत्य को जायज ठहरा रहे हैं।



कातिल के चाहने वाले लोगों के तर्क लगभग वही है जो संघी दुष्प्रचार के साहित्य में बर्षों से विष वमन किये जा रहे हैं, लोग राजसमन्द की वारदात को जायज ठहराने के लिए अजीबोग़रीब कुतर्क उछाल रहे है, लोगों के बीच यह झूठ फैलाया जा रहा है कि आतंकी हमले का शिकार हुआ बंगाली मजदूर अफराजुल ने हत्यारे शम्भू की बहन से शादी कर रखी थी और उसे भगा कर पश्चिमी बंगाल ले गया था, जबकि सच्चाई तो यह है कि कातिल की बहन तो छोड़िए उसकी किसी रिश्तेदार से भी अफराजुल का किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं था, वह तो नफरत की विचारधारा द्वारा प्रशिक्षित हत्यारे शम्भू को ठीक से जानता तक नहीं था, बावजूद उसे कातिल ने महज़ मुसलमान होने की वजह से हमले का शिकार बनाया और बड़ी बेरहमी से पहले तो काटा और फिर जला डाला।

इस आतंकी वारदात को सिर्फ सनकी आदमी की सनक में किया आम अपराध बता देना उन घृणा के कारोबारी संगठनों की तरफदारी करना है जो अपनी विषैली विचारधारा से कमजोर दिमाग युवाओं को फंसा कर आत्मघाती दस्ते तैयार कर रहे है, राजसमन्द का जघन्य हत्याकांड यह भी साबित करता है कि दलित युवाओं का तालिबानीकरण किया जा रहा है, उनके ज़रिए मौत के सौदागर अपना आतंकी खेल खेलने में सफल हो रहे है।

इससे उच्च जाति के साम्प्रदायिक तत्व एक तीर से कईं शिकार करने की कोशिस कर रहे है, वे दलितों और मुसलमानों को आमने सामने की एक अंतहीन लड़ाई में झोंक कर खुद सुरक्षित होने के प्रयास में है, इसी के साथ वे दलित नोजवान पीढ़ी के अपराधीकरण का काम भी कर रहे ताकि वे हत्या, दंगे, लूट, हमले जैसी वारदातें करते रहे और जेलों में बरसों सड़ते रहें, इस तरह एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि पूरा परिवार ही बर्बाद हो जाये और अन्ततः सम्पूर्ण समुदाय ही नष्ट हो जाये।

दलित और मुस्लिम्स को आपसी युद्ध मे धकेल कर भारत के मनुवादी तत्व सारे अवसरों, साधनों व संशाधनों पर काबिज हो कर ऐश्वर्य भोगते रहना चाहते है, यह एक दीर्घकालिक भयानक हिन्दू षड्यंत्र है जिसका दलित शिकार हो चुका है।

पढ़ें- इफराजुल की हत्या का कारण 'लव जिहाद' नही 'भगवा जिहाद' है!

बड़े पैमाने पर दलित युवाओं को उन उग्र हिन्दू संगठनों से जोड़ा जा रहा है, जिनके जरिये हिंसक गतिविधिया करवाई जा सके, हुड़दंग करने, दंगे फैलाने, त्रिशूल बांटने, शस्त्र पूजा करवाने, चाकूबाजी और मुकदमे करवाने, हत्याएं करवाने तथा जैल भेजने के लिए ये नवनिर्मित हिन्दू बहुत काम आते हैं, हालांकि ये हिन्दू तभी तक माने जाते हैं, जब तक कि सामने मुसलमान हो या चुनाव हो, बाकी समय मे इनको नीच हिन्दू के तौर पर ही माना जाता है, हिंदुत्व की प्रयोगशाला में आज दलितों की औकात चीरे फाड़े जाने वाले मेढकों जैसी हो गयी है, फिर भी दलित खुशी खुशी हिंदुत्व के हरावल दस्ते बने हुए है।

एक फर्जी किस्म का ऊपरी ऊपरी क्षणिक आदर भाव मिल जाने और थोड़ी बहुत आर्थिक मदद पा कर आज का भ्रमित दलित नोजवान आत्मघाती हमलावर तक बनने को तत्पर हैं, वह कुछ भी सोच विचार नही कर पा रहा है, उसके मन मस्तिष्क पर हिदुत्व कुप्रचार इतना हावी हो गया है कि वह स्वयं को धर्म यौद्धा समझ कर मरने मारने पर उतारू है, वस्तुतः आज देश का दलित किशोर और नोजवान ज़िंदा बम बन कर खुदकशी की राह पर चल पड़ा है।

दलित युवाओं का यह तालिबानीकरण अब रंग दिखा रहा है, उन्हें इतना भर दिया गया है कि वे अब भस्मासुर बनकर खुद का ही नुकसान कर रहे है, वे अब मनु के गीत गा रहे है, वे अब आरक्षण हटाने की मांग कर रहे है, कल वे संविधान को मिटाने की बात करेंगे और लोकतंत्र की जगह तानशाही की वकालत भी करने लगे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

दलितों को आतंकी बनानेे का सबसे सटीक उदाहरण राजसमन्द को माना जा सकता है,  किसी भी हिन्दू संगठन ने अफराजुल की निर्मम हत्या की निंदा नही की, एक दो दिन की खामोशी के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद इंटरनेट हिन्दू आर्मी सक्रिय हो गई और हत्यारे शम्भू को हीरो बना डाला, उसे एक भटका हुआ नोजवान बताते हुए उससे बात करने और उसके प्रति सहानुभूति दिखाने की अपीलें जारी होने लगी है।

हैरत की बात तो यह है कि जितने भी लोग सोशल मीडिया और अन्यत्र शम्भू के पक्ष में मोर्चा खोले हुए है वे लगभग ऊपर के तीन वर्णों से आते है और उनका सीधा जुड़ाव संघ और उसके समविचारी संगठनों से है, हद तो यह है कि एक नराधम के कुकृत्य को धर्मसम्मत और राष्ट्रभक्ति का पर्याय बताया जा रहा है, उसको शम्भू नाथ बाहुबली कह कर गौरवान्वित किया जा रहा है, एक निर्दोष, निरपराध व्यक्ति को धोखे से बुलाकर पीछे से वार करने वाले अव्वल दर्जे के कायर को महान शूरवीर बता कर उसको महिमामण्डित इसलिए किया जा रहा है ताकि अन्य दलित युवाओं को भी इससे प्रेरणा मिल सके और वे भी इस धर्मयुद्ध में शामिल हो जाएं।

आतंक को पालने पोषने और उसका समर्थन करने के लिए टेरर फंडिंग भी शुरू हो चुकी है, हत्यारे शम्भू भवानी के मुकदमे के लिए पैसे एकत्र हो रहे है, उसके परिवार को मदद करने के लिए उसकी पत्नी का बैंक अकाउंट नम्बर सबको भेजा गया है, यह गतिविधियां इसलिए हो रही है कि इस तरह की आतंकी वारदातों को अंजाम देने वाले स्वयं को अकेला नही समझें, उग्र हिदू समूह उनके साथ खड़े है, वे बेझिझक विधर्मियों, लव जिहादियों, पाकपरस्त म्लेच्छों को मार सकते है।

यह दौर भारत के दलितों के तालिबानीकरण का है।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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