रोज की तरह आज भी भगत जी नित्यक्रिया से निवृत्त होकर खाट पर 'रामचरित मानस 'लेकर बैठ गए। जैसे ही उन्होंने सुन्दर कांड की चौपाई सुर के साथ शुरू की बगल में रखा मोबाइल फोन 'व्हाट्स अप' की मैैसेज टोन से वाइब्रेट हो उठा। एक माँ को अपने बड़े होते बच्चे की तोतली बोली सुनकर जो ख़ुशी मिलती है, उससे कहीं ज्यादा ख़ुशी भगत जी को 'व्हाट्स आप' के मैसेज के टोन सुनकर मिलती है। उन्होंने चौपाई बीच में रोककर पुस्तक बगल में खिसकाई और मोबइल लेकर मैसेज का मुआयना करने लगे।
मैसेज 'श्रीराम भारत रक्षा दल' नामक ग्रुप का था। भगत जी को गाँव के ही किसी लड़के ने इस ग्रुप से दो महीने पहले जोड़ा था। इस ग्रुप की यह खासियत थी की इसमे हिंदुत्व के प्रचार प्रसार से जुड़े मैसेज ही आते थे। कुछ मैसेज इस प्रकार के भी होते थे जिसमे एक विशेष धर्म ने किस प्रकार हिन्दू धर्म को क्षति पहुंचाई इसका वर्णन उदाहरण के साथ होता था। इन मैसेजों में गोधरा कांड,राममंदिर मुद्दा,कश्मीर के पंडितों की दुर्दसा जैसे मुद्दों का जिक्र होता था।
इन दो महीनों में जबसे भगत जी इस ग्रुप से जुड़े हैं उनका व्यक्तित्व ही बदल गया था। सदा खुश रहने वाले भगत जी गंभीर हो गए थे। देश दुनिया से बेखबर रहने वाले भगत जी को इस देश की और हिंदुत्व की काफी फ़िक्र होने लगी थी। शायद ये उस ग्रुप के मैसेजों का असर था। और भगत जी के अंदर बदलाव आये क्यों न..!! ये मैसेज ही इस प्रकार के होते हैं की समझदार और पढ़े लिखे लोगों के दिमाग में भी दूसरे धर्म के प्रति इतनी नफ़रत भर दे की खून देखकर भी सहम जाने वाला इंसान धर्म की रक्षा के नाम पर हथियार उठा ले। भगत जी तो बिचारे भले मानस थे ।
अपने धर्म पर चलो और सबसे प्रेम करो वाले भगत जी अब पहले जैसे नहीं रहे ,,इन दो महीनों में भगत जी काफी बदल गए थे। इंसान को इंसान की तरह देखने वाले भगत जी दाढ़ी और गोल टोपीधारी को देखते ही नफ़रत से भर जाते। एक योद्धा को शत्रु की ललकार भी कानों में इतना न चुभती होगी जितनी की भगत जी को अजान की आवाज दर्द दे जाती थी।
भगत जी ने मैसेज देखा तो बहुत ख़ुशी से उछल पड़े। उस मैसेज में किसी चौराहे पर ट्रक से गायें बरामद कर ड्राईवर और खलासी को पीटने की खबर थी। उनके चेहरे पर एक विजयी मुश्कान दौड़ गयी और फक्र से सीना तन गया। घर से लटके फूस के छप्पर के नीचे चाय बना रही भगतिन भगत के चेहरे को पढ़ने की नाकामयाब कोशिश कर रही थीं। उन्होने चाय छानी और ग्लास में लिए भगत के पास पहुँच गयीं। चाय की ग्लास भगत की तरफ बढ़ाते हुए वे बोलीं- क्या बात है, कभी आप गंभीर हो जा रहे हैं तो कभी ख़ुशी से आपका चेहरा खिल जा रहा है।
भगत बोले - तुम नहीं समझोगी पगली।
बातों बातों में ही भगतिन ने कहा -कितने दिन से कह रही हूँ की जरा बिटिया के घर हो आओ,,,हर बार टाल जाते हो..बिचारी से सिर्फ फोन पर ही बात हो पाती है..एक स्त्री की ससुराल में मायके वालों को देख जो ख़ुशी मिलती है शायद ही वो ख़ुशी किसी और चीज में मिलती हो। भगत ने कहा- ठीक है ,आज ही चला जाऊंगा,,मुझे भी मेरी बिटिया की फिकर है।
भगतिन ने कहा- तो फिर ठीक है ,बिटिया ने कुछ सामान मांगे थे जो उसके यहाँ खेत में नहीं होते ..एक गठरी बाँध दूँगी लेते जाना।
भगत जी ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा की ठीक है ,लेकिन जरा मेरी उम्र का लिहाज करके की गठरी बनाना।
भगतिन ने कहा- ठीक है, और मुस्कुराती हुई ओसारे की ओर बढ़ गयीं।
शाम का समय था ..भगत जी बेटी के यहाँ जाने के लिए तैयार होकर स्कूटर बाहर निकाल रहे थे। भगतिन भी बेटी को देने के लिए एक बोरी में उड़द की दाल ,घर का बना अचार, खेत से तोड़ के आयी ताज़ी सब्जियां और बेटी के द्वारा मांगे गए अन्य सामान पैक कर रहीं थी। भगत जी ने स्कूटर कपडे से साफ़ करते हुए भगतिन को आवाज लगाई- बिट्टन की अम्मा जरा जल्दी कर दो, अँधेरा होने पर सड़क पर चलना मेरे लिए मुश्किल होता है।
हर माँ का सपना होता है की वो अपनी बेटी के लिये उसके ससुराल क्या क्या न भेज दे .. शायद उसी सपने को पूरा करने के लिए भगतिन बोरी में सामान ठूसे जा रही थीं, जो कि भगत जी की उम्र के अनुपात में कहीं ज्यादा होने लगा था। भगत जी ने बगल में खड़े नाती की मदद से बोरी स्कूटर में बाँधी और बेटी के यहाँ चल पड़े।
सूरज डूब चूका था ..करीब आधा रास्ता तय करने के बाद सड़क ख़राब होने की वजह से भगत जी स्कूटर धीरे चला रहे थे। आँखे तो सड़क पर टिकी थीं मगर भगत जी का दिमाग बिटिया के बचपना और उसके बढ़ने के क्रम को याद करने में व्यस्त था। इन्हीं यादों के बीच कब अँधेरा हो गया भगत जी समझ ही न सके। सामने से आर ही वाहनों के लाइट के सामने भगत जी के स्कूटर की लाइट ऐसे प्रतीत हो रही थी जैसे सूरज के आगे कोई दिया लेस के रखा हो। ऐसी ही एक लाइट के आगे भगत जी की आँखे चुंधिया गयी और वो सड़क को भांप न सके ,,वे स्कूटर लेकर सड़क के किनारे पटरी पर डगमगाने लगे। आगे गिट्टी का ढेर होने के नाते स्कूटर संभाल न सके और बगल की खाईं में स्कूटर के साथ जा गिरे ,,माथे पर चोट आने की वजह से बस राम राम कहते बेहोश हो गए। सूनसान रस्ते पर हल्की रात में ही सन्नाटा परस गया था।
कुछ देर बाद वहां से एक बोलेरो गुजरी,,ड्राईवर की बगल में बैठे व्यक्ति को खाईं में जलती इंडिकेटर की लाइट से कुछ अनहोनी का एहसास हुआ। उसने गाड़ी साइड में लगवाई और जाकर देखा तो अवाक रह गया। दो आदमियों ने भगत जी को गाडी में डाला और बोलेरो आगे बढ़ गयी।
करीब रात के साढ़े आठ बजे का वक्त था। भगत जी को थोडा होश आने लगा था। उन्होंने अपने आप को एक बड़े हवादार कमरे में खाट पर पड़े हुए पाया। आँखे हल्की खुलीं तो उन्हें महसूस हुआ की उनके बगल में एक कुरता पजामा पहने और टोपी लगाये एक शख्स खड़ा है। उन्होंने पाया की उनकी खाट पर एक तीन साल की बच्ची बैठी उनके सर को सहला रही है। सामने निगाह गयी तो पाया की दीवार पर मक्का और मदीना की फ्रेम की हुई फोटो टंगी है। बगल में ही खूंटी पर एक गोल वाली टोपी भी थी। भगत जी को समझते देर नहीं लगी की ये किस सम्प्रदाय के लोगों का घर है।
भगत जी की खुली आँखे देख बगल में खड़ा शख़्स ख़ुशी से चिल्ला उठा --अब्बु जान ,जल्दी आईये ,,चाचा को होश आ गया है। उसके इतना कहते ही घर के सारे लोग उस खाट के सामने एकत्र हो गये और उन सब ख़ुशी देखते ही बनती थी। सब के मुंह से यही सुनने को मिल रहा था की -अल्लाह का शुक्र है की चाचा को होश आ गया।
भगत जी अब पूरी तरह होश में थे और सब देख और सुन सकते थे। ऐसे दृश्य को देख भगत जी का दिल भर गया,,दो महीनों से दिल में बैठ रही गन्दगी इन चंद लम्हों में ही ऐसे साफ़ होने लगी जैसे घनघोर घटा को मात देकर सूरज अपनी चमक धरती पर बिखेर रहा हो। उनके ह्रदय से नफरत की धुल साफ़ हो चुकी थी और आँखे मानवता देख नम...बगल में बैठी बच्ची ने थोडा तुतलाते हुए कहा - दादा दी ,आप को दल्द तो नई ओ लहा ऐ..। उसकी प्यारी बोली सुनकर भगत जी की पलकें आँख से आ रहे अश्रु को थाम न सकीं और आँसुओं की बूंदें गाल को भीगाते हुए बिस्तर तक पहुँच गयीं। सब समझ गए की ये दर्द के आंसू हैं मगर ये कैसे आंसू हैं, भगत ही जानते थे।
कही दूर से मंदिर पर बज रहे हनुमान चालीस की आवाज आ रही थी और एक तरफ कहीं मस्जिद से अजान की आवाज भी आ रही थी। भगत जी को ये आवाजें स्पष्ट सुन रहे थे और उनके लिए इन आवाजों में अब भेद करना मुश्किल था।
मैसेज 'श्रीराम भारत रक्षा दल' नामक ग्रुप का था। भगत जी को गाँव के ही किसी लड़के ने इस ग्रुप से दो महीने पहले जोड़ा था। इस ग्रुप की यह खासियत थी की इसमे हिंदुत्व के प्रचार प्रसार से जुड़े मैसेज ही आते थे। कुछ मैसेज इस प्रकार के भी होते थे जिसमे एक विशेष धर्म ने किस प्रकार हिन्दू धर्म को क्षति पहुंचाई इसका वर्णन उदाहरण के साथ होता था। इन मैसेजों में गोधरा कांड,राममंदिर मुद्दा,कश्मीर के पंडितों की दुर्दसा जैसे मुद्दों का जिक्र होता था।
इन दो महीनों में जबसे भगत जी इस ग्रुप से जुड़े हैं उनका व्यक्तित्व ही बदल गया था। सदा खुश रहने वाले भगत जी गंभीर हो गए थे। देश दुनिया से बेखबर रहने वाले भगत जी को इस देश की और हिंदुत्व की काफी फ़िक्र होने लगी थी। शायद ये उस ग्रुप के मैसेजों का असर था। और भगत जी के अंदर बदलाव आये क्यों न..!! ये मैसेज ही इस प्रकार के होते हैं की समझदार और पढ़े लिखे लोगों के दिमाग में भी दूसरे धर्म के प्रति इतनी नफ़रत भर दे की खून देखकर भी सहम जाने वाला इंसान धर्म की रक्षा के नाम पर हथियार उठा ले। भगत जी तो बिचारे भले मानस थे ।
अपने धर्म पर चलो और सबसे प्रेम करो वाले भगत जी अब पहले जैसे नहीं रहे ,,इन दो महीनों में भगत जी काफी बदल गए थे। इंसान को इंसान की तरह देखने वाले भगत जी दाढ़ी और गोल टोपीधारी को देखते ही नफ़रत से भर जाते। एक योद्धा को शत्रु की ललकार भी कानों में इतना न चुभती होगी जितनी की भगत जी को अजान की आवाज दर्द दे जाती थी।
भगत जी ने मैसेज देखा तो बहुत ख़ुशी से उछल पड़े। उस मैसेज में किसी चौराहे पर ट्रक से गायें बरामद कर ड्राईवर और खलासी को पीटने की खबर थी। उनके चेहरे पर एक विजयी मुश्कान दौड़ गयी और फक्र से सीना तन गया। घर से लटके फूस के छप्पर के नीचे चाय बना रही भगतिन भगत के चेहरे को पढ़ने की नाकामयाब कोशिश कर रही थीं। उन्होने चाय छानी और ग्लास में लिए भगत के पास पहुँच गयीं। चाय की ग्लास भगत की तरफ बढ़ाते हुए वे बोलीं- क्या बात है, कभी आप गंभीर हो जा रहे हैं तो कभी ख़ुशी से आपका चेहरा खिल जा रहा है।
भगत बोले - तुम नहीं समझोगी पगली।
बातों बातों में ही भगतिन ने कहा -कितने दिन से कह रही हूँ की जरा बिटिया के घर हो आओ,,,हर बार टाल जाते हो..बिचारी से सिर्फ फोन पर ही बात हो पाती है..एक स्त्री की ससुराल में मायके वालों को देख जो ख़ुशी मिलती है शायद ही वो ख़ुशी किसी और चीज में मिलती हो। भगत ने कहा- ठीक है ,आज ही चला जाऊंगा,,मुझे भी मेरी बिटिया की फिकर है।
भगतिन ने कहा- तो फिर ठीक है ,बिटिया ने कुछ सामान मांगे थे जो उसके यहाँ खेत में नहीं होते ..एक गठरी बाँध दूँगी लेते जाना।
भगत जी ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा की ठीक है ,लेकिन जरा मेरी उम्र का लिहाज करके की गठरी बनाना।
भगतिन ने कहा- ठीक है, और मुस्कुराती हुई ओसारे की ओर बढ़ गयीं।
शाम का समय था ..भगत जी बेटी के यहाँ जाने के लिए तैयार होकर स्कूटर बाहर निकाल रहे थे। भगतिन भी बेटी को देने के लिए एक बोरी में उड़द की दाल ,घर का बना अचार, खेत से तोड़ के आयी ताज़ी सब्जियां और बेटी के द्वारा मांगे गए अन्य सामान पैक कर रहीं थी। भगत जी ने स्कूटर कपडे से साफ़ करते हुए भगतिन को आवाज लगाई- बिट्टन की अम्मा जरा जल्दी कर दो, अँधेरा होने पर सड़क पर चलना मेरे लिए मुश्किल होता है।
हर माँ का सपना होता है की वो अपनी बेटी के लिये उसके ससुराल क्या क्या न भेज दे .. शायद उसी सपने को पूरा करने के लिए भगतिन बोरी में सामान ठूसे जा रही थीं, जो कि भगत जी की उम्र के अनुपात में कहीं ज्यादा होने लगा था। भगत जी ने बगल में खड़े नाती की मदद से बोरी स्कूटर में बाँधी और बेटी के यहाँ चल पड़े।
सूरज डूब चूका था ..करीब आधा रास्ता तय करने के बाद सड़क ख़राब होने की वजह से भगत जी स्कूटर धीरे चला रहे थे। आँखे तो सड़क पर टिकी थीं मगर भगत जी का दिमाग बिटिया के बचपना और उसके बढ़ने के क्रम को याद करने में व्यस्त था। इन्हीं यादों के बीच कब अँधेरा हो गया भगत जी समझ ही न सके। सामने से आर ही वाहनों के लाइट के सामने भगत जी के स्कूटर की लाइट ऐसे प्रतीत हो रही थी जैसे सूरज के आगे कोई दिया लेस के रखा हो। ऐसी ही एक लाइट के आगे भगत जी की आँखे चुंधिया गयी और वो सड़क को भांप न सके ,,वे स्कूटर लेकर सड़क के किनारे पटरी पर डगमगाने लगे। आगे गिट्टी का ढेर होने के नाते स्कूटर संभाल न सके और बगल की खाईं में स्कूटर के साथ जा गिरे ,,माथे पर चोट आने की वजह से बस राम राम कहते बेहोश हो गए। सूनसान रस्ते पर हल्की रात में ही सन्नाटा परस गया था।
कुछ देर बाद वहां से एक बोलेरो गुजरी,,ड्राईवर की बगल में बैठे व्यक्ति को खाईं में जलती इंडिकेटर की लाइट से कुछ अनहोनी का एहसास हुआ। उसने गाड़ी साइड में लगवाई और जाकर देखा तो अवाक रह गया। दो आदमियों ने भगत जी को गाडी में डाला और बोलेरो आगे बढ़ गयी।
करीब रात के साढ़े आठ बजे का वक्त था। भगत जी को थोडा होश आने लगा था। उन्होंने अपने आप को एक बड़े हवादार कमरे में खाट पर पड़े हुए पाया। आँखे हल्की खुलीं तो उन्हें महसूस हुआ की उनके बगल में एक कुरता पजामा पहने और टोपी लगाये एक शख्स खड़ा है। उन्होंने पाया की उनकी खाट पर एक तीन साल की बच्ची बैठी उनके सर को सहला रही है। सामने निगाह गयी तो पाया की दीवार पर मक्का और मदीना की फ्रेम की हुई फोटो टंगी है। बगल में ही खूंटी पर एक गोल वाली टोपी भी थी। भगत जी को समझते देर नहीं लगी की ये किस सम्प्रदाय के लोगों का घर है।
भगत जी की खुली आँखे देख बगल में खड़ा शख़्स ख़ुशी से चिल्ला उठा --अब्बु जान ,जल्दी आईये ,,चाचा को होश आ गया है। उसके इतना कहते ही घर के सारे लोग उस खाट के सामने एकत्र हो गये और उन सब ख़ुशी देखते ही बनती थी। सब के मुंह से यही सुनने को मिल रहा था की -अल्लाह का शुक्र है की चाचा को होश आ गया।
भगत जी अब पूरी तरह होश में थे और सब देख और सुन सकते थे। ऐसे दृश्य को देख भगत जी का दिल भर गया,,दो महीनों से दिल में बैठ रही गन्दगी इन चंद लम्हों में ही ऐसे साफ़ होने लगी जैसे घनघोर घटा को मात देकर सूरज अपनी चमक धरती पर बिखेर रहा हो। उनके ह्रदय से नफरत की धुल साफ़ हो चुकी थी और आँखे मानवता देख नम...बगल में बैठी बच्ची ने थोडा तुतलाते हुए कहा - दादा दी ,आप को दल्द तो नई ओ लहा ऐ..। उसकी प्यारी बोली सुनकर भगत जी की पलकें आँख से आ रहे अश्रु को थाम न सकीं और आँसुओं की बूंदें गाल को भीगाते हुए बिस्तर तक पहुँच गयीं। सब समझ गए की ये दर्द के आंसू हैं मगर ये कैसे आंसू हैं, भगत ही जानते थे।
कही दूर से मंदिर पर बज रहे हनुमान चालीस की आवाज आ रही थी और एक तरफ कहीं मस्जिद से अजान की आवाज भी आ रही थी। भगत जी को ये आवाजें स्पष्ट सुन रहे थे और उनके लिए इन आवाजों में अब भेद करना मुश्किल था।