जनता के कपड़े फटे हों तो लाखों के सूट में भी राजा नंगा दिखता है

Written by Mithun Prajapati | Published on: October 9, 2017
जब कभी सुनता हूँ कि देश में बुलेट ट्रेन आ रही है तो बड़ी हंसी आती है, पर उससे  ज्यादा नहीं जब राजा को लाखों का सूट पहने देखा था, जिसपर उनका नाम लिखा था। सोचो, जिस देश की अधिकतर जनता के पास पहनने के लिए सही ढंग के कपड़े न हों उस देश का राजा लाखों का सूट पहनता है। हंसी नहीं आई !! कोई बात नहीं, यह हंसने का विषय नहीं है। शर्म का विषय है। मुझे तो हंसी इस बात पर आई कि उस सूट में भी राजा नंगा ही दिख रहा था। उसके सूट पर खून के धब्बे नज़र आ रहे थे।  बुलेट ट्रेन का भी ऐसा ही है। राजा बुलेट- बुलेट चिल्लाता है और देश की रेल पटरी पर से उतर जाती है। रेलें चिल्लाती हैं कि हमें सुधारो, हमारे अंदर इतने लोग मरते हैं की उनकी चीखें सुनकर हम सहम जाते हैं। राजा कहता है- कोई बात नहीं, तुम्हें भी चीखें सुनकर नार्मल रहने की आदत पड़ जाएगी।


Modi Suit
 
यशपाल द्वारा लिखित एक कहानी  है- परदा। जिसमें चौधरी साहब रहते हैं। उनके खानदान में रईसी का चलन था। कुछ इस तरह की अपने घर को भी हवेली बुलाते थे। अंत में घर का सबकुछ बिक जाता है। वे खान नामक धनी से कर्ज भी ले लेते हैं। दरवाजे पर लगा परदा फट जाने के कारण वहां पुस्तैनी दरी लगा दी जाती है जो उनके रईसों का प्रमाण अब भी दे रही होती है। खान वसूली पर आता है और पैसे न मिलने पर गुस्से में दरी खींच लेता है। अंदर का दृश्य बड़ा ही भयावह होता है। रईसी के पीछे का  सच रोंगटे खड़े कर देता है। घर की महिलाओं के तन पर एक तिहाई कपड़ा भी नहीं होते। वे तन छुपाने के लिए एक दूसरे से चिपकी नज़र आती हैं। वर्षों से संभाली जा रही इज़्ज़त एक क्षण में तार-तार हो जाती है। चौधरी गिर के बेहोश हो जाते हैं, और उठते हैं तो इतनी  हिम्मत नहीं जुटा पाते की दरी फिर से टांग दें।
 
पर हमारा क्या। हम उस देश के वासी हैं जहां हर रोज एक नई दरी टांग दी जा रही है। कभी बुलेट ट्रेन की दरी, कभी हथियारों के डीलिंग की दरी तो कभी सर्जिकल स्ट्राइक की दरी। ये दरियां रोज खिंच जाती हैं और इज़्ज़त तार-तार हो जाती है।  पर राजा निर्लज्ज है। वह फिर दरी टांग देता है। पर दिखता है कि वह नंगा है। 
 
राजा की निर्लज्जता जनता के बीच उगे रागदरबारी गाने वाले विदूषकों के समानुपाती होती है। विदूषक जितना राग दरबारी गाएंगे राजा उतना ही निर्लज्ज होता जाएगा। मैं एक विदूषक को जानता हूँ जो बुलेट ट्रेन का हिमायती है। वह गांव जाने के लिए रेलवे में ऑनलाइन आरक्षित टिकट लेना का प्रयास करता है लेकिन उसका प्रयास हर बार सरकारी फैसले की तरह फेल हो जाता है। फिर वह दलालों को दुगुने पैसे देकर ब्लैक में टिकट खरीदता है। मैं कहता हूँ कि सरकार को बुलेट ट्रेन की बजाय मौजूदा रेल व्यवस्था में इन्वेस्ट कर  इसको ही सुधारना चाहिए। वह बिगड़ जाता है। कहता है- दुनिया आगे की सोचती है। तरक्की के लिए एक कदम आगे की सोचना चाहिए। यदि आज हम बुलेट ट्रेन के बारे में नहीं सोचेंगे तो कब सोचेंगे !!
 
मैं उसकी बात सुनता हूँ और बस सर पीटने की कोशिश करता हूँ। वो फ्रांस की रानी तो याद ही होगी न !! जिसमें रोटी न होने पर मजदूरों, किसानों को केक खाने की सलाह दी थी ?  वह तो परिस्थितियों से अनभिज्ञ थी। एक बार उसपर तरस खाया जा सकता है, पर ये विदूषक !!  ये तो सब जान रहे हैं, समझ रहे हैं । सोते हुए को जगाया जा सकता है पर जो सोने का नाटक कर रहा है उसका कुछ नहीं किया जा सकता।
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