लखनऊ के बहुजन प्रेरणा स्थलों में प्रमुख मान्यवर कांशीराम मेमोरियल इको गार्डन पार्क में लगी आग की खबरों ने पूरी रात भर दुनिया भर में अम्बेद्कर्वादियो को बहुत उद्वेलित किया . आग की बड़ी बड़ी लपटों के वीडियोस और फोटोग्राफ सोशल मीडिया के जरिये सब जगह पंहुंच चुके थे लेकिन हमने खबर की पुष्ठी करने के लिए जब गूगल सर्च कर या अखबारों या चैनलों के वेबसाइट्स के जरिये विस्तार से जानने की कोशिश की तो बहुत निराशा हाथ लगी . किसी भी मीडिया चैनल, अखबार या वेब पेज पर दो शब्द भी इस घटना के बारे में कोई जानकारी थी .
मतलब साफ़ है के लखनऊ के स्थानीय मीडिया या रास्ट्रीय मीडिया के लिए इसके कोई मतलब नहीं थे के देश भर के दलित बहुजनो के प्रेरणा स्थल को अगर खतरे की कोई खबर सोशल मीडिया पे है तो उनकी स्थानीय टीम इसके बारे में कुछ कह सकती थे . सुबह तक हमारे पास में लखनऊ के हिंदुस्तान की एक खबर थी जिसके मुताबिक कांशीराम मेमोरियल इको गार्डन पार्क में सुखी झाड़फूँक के कारण आग लगी और लाखो का नुक्सान होना बताया गया . शर्मनाक बात यह है के जो मीडिया छोटे से घटनाक्रम को घंटो हमारे गले में डालना चाहता है उसने जानबूझकर इस खबर को दबाये रखा .मान लीजिये के घटनाक्रम में कुछ नहीं हुआ और जल्दी आग पर काबू पा लिया गया फिर भी स्मारक सुरक्षित है इसको बताने में क्या जा रहा था .
वैसे सुश्री मायावती द्वारा बनाये गए बहुजन प्रेरणा केंद्र से उनके विरोधी कतई खुश नहीं थे. उन पर उस समय बेतहाशा पैसा खर्च करने और भ्रस्थाचार के आरोप भी लगे लेकिन ये बात सच है बहुजन आन्दोलन के लोगो के लिए ये आरोप ज्यादा मायने नहीं रखते थे क्योंकि ये स्मारक उनके इतिहास और सम्मान का प्रतीक बन गए . दुखद बात यह है के समाजवादी पार्टी के पांच साल के कार्यकाल में इन स्मारकों के काउंटर में जनेश्वर मिश्र स्मारक पार्क या लोहिया पार्क बनाया गया और उनके देखभाल के लिए खूब पैसा खर्च किया गया और आंबेडकर-कंशीराम और अन्य बहुजन स्मारकों को माने केवल दलितों का बताकर कोई देखभाल नहीं की गयी. योगी आदित्यनाथ और भाजपा के गले में ये स्मारक फांस की तरह लगे हुए हैं . हालाँकि शुरूआती दौर में जब बसपा ने सरकार बनायी थी तो इसमें तीन बड़े नायको की मूर्तियाँ लगनी थी जिसमे आंबेडकर, फुले और पेरियार प्रमुख थे लेकिन भाजपा ने पेरियार को राम विरोधी कह कर उनकी मूर्ति लगाने के विरुद्ध आन्दोलन कर दिया और बसपा ने धीरे धीरे सवर्णों के दवाब में आकर अपने पुरे आन्दोलन से पेरियार को गायब कर दिया . ये बात भी समझना जरुरी है के क्या संघ परिवार और उनके हिन्दू मुन्नानी समर्थक तमिलनाडु में क्या परियार के विरुद्ध कुछ कह सकते हैं ?
किसी भी मीडिया चैनल, अखबार या वेब पेज पर दो शब्द भी इस घटना के बारे में कोई जानकारी थी ...लखनऊ की आग से पार्टियों में कोई सुगबुगाहट नहीं .अच्छी बात है के बसपा ने इसका संज्ञान लिया और मुख्यमंत्री और राज्यपाल को इन स्मारकों की सुरक्षा के लिए कहा है . पार्टी ने एक समिति का गठन किया है जो इस सन्दर्भ में मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मिलेगा .
प्रेरणा केंद्र में पेरियार की मूर्ति का न होना अखरता है लेकिन अगर उस बात को छोड़ दे तो दुनिया भर के बहुजनो के लिए ये केंद्र उनके इतिहास और क्रन्तिकारी नायको को याद करने और उनकी कुर्बानियों को याद दिलाता है. ये और महत्वपूर्ण बात है के भारत में किसी भी राजधानी के मध्य में या यू कहिये के उसके सत्ता केंद्र बिंदु में बहुजन नायको के कोई स्मारक मौजूद नहीं है इसलिए लखनऊ के दिल में स्थापित इन स्मारकों को बहुजन समाज के लिए बहुत महत्व है .
लखनऊ की आग से पार्टियों में कोई सुगबुगाहट नहीं .अच्छी बात है के बसपा ने इसका संज्ञान लिया और मुख्यमंत्री और राज्यपाल को इन स्मारकों की सुरक्षा के लिए कहा है . पार्टी ने एक समिति का गठन किया है जो इस सन्दर्भ में मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मिलेगा .
इस घटनाक्रम से एक और बात सामने आई है के सोशल मीडिया का अभी भी सामाजिक न्याय की शक्तिया जमीन पर बिखरी हैं. बहुत से लोगो ने इस स्मारक पर आग लगने की फोटो सोशल मीडिया पर डाले लेकिन उसके अलावा कोई सुचना नहीं थी . हम सभी जानते हैं के मनुवादी मीडिया इन स्मारकों में कोई दिलचस्पी नहीं लेता और उसके लिए भारत पाकिस्तान के मैच पर चर्चा करना या कश्मीर पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गाली देने के अतिरिक कुछ नहीं है. वो योगी जी अयोध्या में किये गए पूजा पाठ को पुरे जोश के साथ दिखायेंगे लेकिन प्रदेश की राजधानी में इन स्मारकों में लगी आग को दिखाने या उस पर कोई सफाई भी नहीं देना चाहते हैं और ऐसे स्थिति में सोशल मीडिया और एक्टिविस्ट साथियो को लिखना और खबर देना ज्यादा जरुरी होता है जो दुखद है के नहीं हुआ . हमें लखनऊ से खबरों के इंतज़ार में पूरा दिन लगा. कुछ साथियो से फ़ोन पर बात भी हुई तो उन्हें पूर्ण जानकारी नहीं थी. शाम तक आंबेडकर महासभा श्री लाल जी निर्मल की एक पोस्ट पर कुछ फोटोग्राफ थे जिसमे बताया गया के आग केवल घास पर लगी थी और स्मारक सुरक्षित है , लेकिन फिर भी पुर्णतः संतुष्टि नहीं थी .
एक बात ध्यान रखनी पड़ेगी के मात्र फोटो पोस्ट कर देने से या विडियो उपलोड कर देने से हम घटनाओं के बारे में कुछ नहीं जान पाते हैं और इसलिए जरुरी है के स्थानीय साथी ऐसी घटनाओं की जांच करें और तुरंत सूचित करें . मनुवादी मीडिया से उम्मीद करने से अच्चा है के हम सभी स्वयं में पत्रकार बने और जो हमारे प्रेरणा स्थल हैं या ऐसी कोई घटना है जिसकी रिपोर्टिंग अखबार न करें वह हम सबको एक जिम्मेवार साथी के हैसियत से काम करना पड़ेगा नहीं थे इन घटनाओं और खबरों के ना होने के कारण लोगो बहुत तनाव में आ जाते हैं . आज के हालत ऐसे हैं के समय पर हम स्थितियों को विकट होने से बचा सकते हैं .
अब आग से चाहे जितना नुक्सान हो या न हो लेकिन सरकार के रणनीतिकार तो बहुजन आन्दोलन के अन्दर हिंदुत्व का विचार घोल रहे हैं . अस्मिता की राजनीती को संघ से अधिक कोई नहीं समझता और इसलिए वो अम्बेडकरवादी आन्दोलन को तोड़ने का प्रयास कर रहा है या उसे हिंदुत्व का हिस्सा बना देना चाहता है . हर जाति के एक ‘महान’नायक बनाने का संघ का प्रोजेक्ट बहुत पुराना है . इस प्रोजेक्ट से बाबा साहेब आंबेडकर, ज्योति बा फुले, पेरियार और हमारे बदलाव के महानायको को उनकी जातियों में समेटने का प्रयास है . उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने आज बताया है के भीम राव आंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल में राजा सोहेल देव की एक बड़ी प्रतिमा अन्दर और एक बाहर लगाईं जायेगी क्योंकि अति पिछड़ी जाति के राजभर और दलितों में पासी भी सोहेल देव को अपना राजा मानते हैं . ये बात और है के सोहेल देव को मुसलमानों के खिलाफ संघर्ष के अलावा अभी तक कोई और विशेष जानकारी हमारे पास तो नहीं है . क्या सोहेल देव छत्रपति शाहूजी महाराज के तरह दलित और पिछडो के लिए कुछ किये . क्या उनके राज काज के दौरान जाति का प्रश्न नहीं था और यदि था तो उनके क्या प्रयास इस सन्दर्भ में रहे है उसका कुछ पता किसी को नहीं हैं.
अब केवल सोहेल देव से ही संतुष्टि हो ऐसा नहीं है .मंत्री जी का कहना है के वे पिछड़े समाज की अहिल्याबाई होलकर, सावित्री बाई फुले, दक्ष प्रजापति और गौहर निषाद के साथ साथ महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमाये भी सामाजिक न्याय स्थल पर लगायेंगे .
अब केवल सोहेल देव से ही संतुष्टि हो ऐसा नहीं है .मंत्री जी का कहना है के वे पिछड़े समाज की अहिल्याबाई होलकर, सावित्री बाई फुले, दक्ष प्रजापति और गौहर निषाद के साथ साथ महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमाये भी सामाजिक न्याय स्थल पर लगायेंगे . ये कितना दुखद है के सत्ताधारी सामाजिक न्याय और बदलाव के पूरे संघर्ष को अपने राजनितिक हथियार बनाकर उन्ही लोगो को तोड़ने की साजिश कर रहे हैं जो इस व्यवस्था में दबे कुछ्ले थे . क्या परिवर्तन केंद्र या सामाजिक न्याय केंद्र राजा महाराजाओं की जीत के जश्न को मनाने का स्थल है ? क्या जातियों के नायक ढूंढ कर हमें ये भी बताया जायेगा के उन्होंने उसके भले या सामाजिक न्याय की खातिर क्या क्या किया . क्या इन राजा महाराजाओ के संघर्ष हमारे सामाजिक न्याय, जाति प्रथा, मनुवादी व्यस्था की घुटन के विरुद्ध थे या उन्होंने इस व्यवस्था को ही हमारे उपर लादने का काम किया है . क्या बहुजन नायको को आप उनकी जातियों तक ही सीमित रख देना चाहते हो ? क्या सामाजिक बदलाव का बाबा साहेब का सपना और संगर्ष मात्र उनकी बिरादरी के लिए था ? क्या फुले की ‘ गुलामगिरी’ और ‘किसान का कोड़ा’ अथवा पेरियार का आत्म-सम्मान आन्दोलन मात्र उनकी अपनी बिरादरियो के लिए था या सारे समाज के लिए था ? सामाजिक न्याय के इतने बड़े संघर्ष को मात्र बिरादरियो में बदलकर उनको आपस में भिड़ाने की संघ की साजिश को समझना जरुरी है . अगर आपको सजमिक न्याय के लिए संघर्ष रत लोगो की लड़ाई को आगे बढ़ाना है और वो जाति के बन्धनों से दूर हो तो भगत सिंह या राहुल संकृत्यायन का स्थान राजाओं महाराजाओं से पहले आता है .
प्राकृतिक आग से भले ही लखनऊ के प्रेरणा स्मारक और उसके इर्द गिर्द को बचा लिया गया हो लेकिन सत्ताधारियो द्वारा बहुजन समाज में दरार डालने की कोशिश को समझना होगा और सामाजिक न्याय की शक्तियों को एक होने के अलावा कोई चारा नहीं है . लोगो को अब साइन बोर्डो और जुमलो से उठकर अपने बारे में सवाल करने पड़ेंगे . आपके मंत्री विधायको से अपने विकास और बदलाव के सवाल पूछिए क्योंकि मूर्तियों की राजनीती में हिंदुत्व माहिर है आखिर इस देश में देवताओं और जाति की नेताओं की तो भरमार है इसलिए मूर्ति लगाकर अगर वोट मिल जाए तो काम की क्या जरुरत . सामाजिक बदलाव की वाहक शक्तियों को इन साजिशो को समझने की जरुरत है और उन छोटी छोटी जातियों को भरोशे में लेने की कोशिश करनी चाहिए जिनके पास वो नहीं पहुंचे है . आज हिंदुत्व की सबसे बड़ी मजबूती वही है जो सामाजिक न्याय की शक्तियों की कमजोरी है . वे वहा पहुँच रहे हैं जहा आप नहीं जा रहे . अपनी जातियों की दीवारे तोड़कर सामाजिक न्याय के दायरे को बढाए . बाबा साहेब आंबेडकर का संघर्ष भारत के सभी लोगो के सर्वंगीण विकास का था जहा बराबरी हो, बंधुत्व हो और आज़ादी हो . खाप पंचायतो के दीवाने क्या बाबा साहेब के अनुयायी हो सकते हैं ? सभी को याद रखना पड़ेगा के सामजिक न्याय और सामाजिक बदलाव का संघर्ष केवल नेताओं की मूर्तियों को स्मारकों तक में रख देने का संघर्ष नहीं है अपितु इस व्यवस्था में सबको हक़ और न्याय मिले उसका संघर्ष है . क्या उत्तर प्रदेश की सरकार का पहला कर्त्तव्य प्रदेश के लोगो में कानून का राज लाने का नहीं है ? क्या सहारनपुर के दलितों को न्याय मिल चूका है ? क्या अब समय नहीं आ गया के सरकार जमीन पर कुछ काम करके दिखाए और प्रतीकों की राजनीती से ऊपर उठे ? उम्मीद है के उत्तर प्रदेश के राजनैतिक दल जनता के मूल प्रश्नों पर काम करेंगे और सामाजिक न्याय के प्रश्नों के मात्र जाति के नेताओं की अस्मिता तक न सीमित कर दे . हिंदुत्व की जातीय राजनीती को समझने के लिए अभी बहुत लम्बी और गंभीर एवं विचारात्मक संघर्ष की जरुरत है और मात्र अम्बेडकरवादी विचारधारा ही उसकी तिकड़मो को पहचान सकती है और उसका मुकाबला कर सकती हैं. समय आ गया है के अम्बेद्करवादी विचार को समाज में अलग अलग स्तरों पर फैलाया जाए और आज के दौर में बाबा साहेब इन सभी प्रश्नों पर क्या विचार रखते उस पर न केवल चिंतन किया जाए अपितु लोगो के संघर्ष में भागीदार बना जाए . विचारधारा की सही समझ वाले लोग इन साजिशो को समझते हैं और वो ही इनको बेनकाब भी करेंगे.