बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं को अपने संघर्ष में बृहस्पतिवार को एक बड़ी जीत हासिल हुई। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने आंदोलन कर रहे स्टूडेंट्स के निलंबन आदेश को रद्द कर दिया और उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में भी स्टे लगा दिया। स्टूडेंट्स चौबीसों घंटे लाइब्रेरी सुविधा बहाल करने जैसी साधारण मांग को लेकर आंदोलनरत थे। जस्टिस दीपक मिश्रा वाली अगुआई वाली बेंच ने यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया कि 30 जुलाई तक उन सभी आठ स्टूडेंट्स की सेमेस्टर परीक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए जाएं।
छात्रों के समर्थन में इस फैसले को गिरीश त्रिपाठी के नेतृत्व वाले विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ बड़ी जीत माना जा रहा है। आरसएसएस के बेहद आक्रामक सदस्य त्रिपाठी पिछले तीन साल से विश्वविद्यालय प्रशासन पर काबिज हैं। उनकी दमनकारी नीतियों के खिलाफ छात्र-छात्राएं आंदोलन करते रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन असहमति की आवाज को दबाने की लगातार कोशिश करता रहा है और स्टूडेंट्स उनके खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। विरोधी राजनीतिक विचारधारा को भी दबाने की कोशिश हुई है। लेकिन स्टूडेंट्स इसके खिलाफ भी लड़े हैं। छात्र-छात्राओं ने परिसर में लैंगिक समानता के समर्थन में भी आवाज उठाई है। स्टूडेंट्स ने जाने-माने वकील प्रशांत भूषण और नेहा राठी के जरिये कोर्ट में अपनी आवाज उठाई थी।
स्टूडेंट्स साइबर लाइब्रेरी चौबीसों घंटे खोलने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे। लेकिन उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। इस वजह से वे अपनी परीक्षा नहीं दे पाए। उन्हें पिछले साल मई में होस्टल छोड़ना पड़ा। हालांकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी यूनिवर्सिटी के वीसी को नोटिस भेजा था।
सबरंगइंडिया बीएचयू में छात्र आंदोलन को लगातार कवर करता रहा है। स्टूडेंट्स चौबीसों घंटे साइबर लाइब्रेरी खोले रखने की मांग कर रहे थे। लेकिन बीएचयू के वीसी का कहना था कि यह विश्वविद्यालय के नियमों के खिलाफ है।
वाइस चासंलर ने बीएचयू के जो नियम निर्धारित किए हैं वे इस तरह हैं-
- लाइब्रेरी में पढ़ने की कोई जरूरत नहीं है
- बीएचयू के अंदर सिर्फ आरएसएस की शाखा को अऩुमति मिलेगी। किसी भी तरह के अन्य मुद्दे पर बहस या राजनीतिक अभिव्यक्ति बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
- महिलाओं को अपने भाइयों के करियर के लिए अपने कैरियर की बलि देनी होगी।
- छात्राओं के लिए भेदभाव भरे नियम।
बहरहाल अदालत ने आंदोलन कर रहे स्टूडेंट्स की परीक्षा के लिए अलग से इंतजाम करने का आदेश देते हुए कहा कि हरेक विषय की परीक्षा के बीच तीन दिन का गैप रखा जाए ताकि उन्हें तैयारी के लिए समय मिल सके। साथ ही 14 दिनों के भीतर उनकी फेलोशिप की राशि भी जारी करने को कहा, जिनकी यह रकम रोक ली गई थी। 23 सितंबर, 2016 को सबरंगइंडिया ने इस बारे में हसीबा अमीन ( Hasiba Amin, part of the NSUI) की स्टोरी प्रकाशित की थी। उन्होंने यूनवर्सिटी में उन बदलावों के बारे में लिखा था, जो इसके लोकतांत्रिक स्वरूप और कामकाज को प्रभिवत कर रहे हैं।
बीएचयू का भगवाकरण
बीएचयू केंद्रीय विश्वविद्यालय है। नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र के इस विश्वविद्यालय के मौजूदा वाइस चासंलर की नियुक्ति 2014 के आखिर में हुई थी। एक सर्च पैनल ने उनकी नियुक्ति की थी। इसके प्रमुख वही शख्स थे, जो मोदी के सांसद पद की उम्मीदवारी के प्रस्तावक थे।
मोदी ने यूनिवर्सिटी के अहम पदों पर अपने कैंडिडेट बिठा दिए हैं। प्रोफेसरों की नियुक्ति में जबरदस्त पक्षपात होता रहा है।
एक आरटीआई आवेदन से पता चला है कि कुछ शिक्षकों की बहाली तो चुराई गई पीएचडी थीसिस के आधार पर हुई है। फिर भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
एक खास मामले में तो विभागाध्यक्ष ने वीसी को यह बताया कि उनके कहे शिक्षक की नियुक्ति तो हो ही नहीं सकती क्योंकि उसके पास जरूरी शैक्षणिक योग्यता ही नहीं है।
इस पर वीसी ने उस विभागाध्यक्ष को कहा कि उनके निर्देश का पालन करे या फिर इस्तीफा दे। विभागाध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया। ऐसे मामले पूरी फैकल्टी में हर दूसरे दिन सामने आ रहे हैं। वीसी के कामकाज के तानाशाही अंदाज पर सवाल उठाने वाले के लिए वहां कोई जगह नहीं है। जो लोग विरोध कर रहे हैं उन्हें विश्वविद्यालय छोड़ना पड़ रहा है।
कैंपस में मर्दवाद का दबदबा
कैंपस में असहमति के अधिकार छीन लिए गए हैं। कैंपस में लोकतांत्रिक ढंग से विरोध करने वाले या अधिकारों की मांग करने वाले स्टूडेंट या तो निलंबित कर दिए जाते हैं या उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है। यूनिवर्सिटी में 24 घंटे लाइब्रेरी खुली रखने की मांग करने वाले स्टूडेंट को भूख हड़ताल पर बैठना पड़ा। स्टूडेंट की मांग जायज थी क्योंकि यूनिवर्सिटी के प्रोसपेक्टस में हर वक्त लाइब्रेरी खुली रखने का वादा था। मौजूदा वीसी की नियुक्ति से पहले लाइब्रेरी हर वक्त खुली रहती थी।
इस मामले में जिन स्टूडेंट ने विरोध किया था उन्हें 1000 से ज्यादा पुलिसवालों ने कैंपस से घसीट कर बाहर कर दिया था। उन्हें पीटा गया और दो अकादमिक सत्रों के लिए निलंबित कर दिया गया। यूनिवर्सिटी में मुद्दे उठाने वाले 20 से ज्यादा स्टूडेंट को अब तक निकाला जा चुका है। उन पर आपराधिक मामले लादे गए हैं और हत्या की कोशिश जैसे मुकदमे दर्ज कराए गए हैं।
यूनिवर्सिटी में छात्राओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाली छात्राओं से अभिभावकों के हस्ताक्षर वाली अंडरटेकिंग ली जा रही है। अभिभावकों से यह वादा लिया जा रहा है कि उनके बच्चे किसी विरोध प्रदर्शन में हिस्सा नहीं लेंगे। अगर वो ऐसा करते हुए पाए गए तो उन्हें हॉस्टल से निकाल दिया जाएगा। जहां लड़कों के लिए हॉस्टल में शाकाहारी और मासांहारी दोनों भोजन उपब्ध है वहीं लड़कियों के हॉस्टल में सिर्फ शाकाहारी भोजन ही उपलब्ध कराया जा रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन का मानना है कि छात्राओं को भोजन उपलब्ध कराना ‘मालवीय मूल्यों’ के खिलाफ है।
लड़कियों को अपनी पसंद के कपड़े नहीं पहनने दिए जा रहे हैं। छात्राओं को रात 8 बजे तक रिपोर्ट करना होता है। जबकि लड़कों के लिए कोई कर्फ्यू टाइम नहीं है। अगर कोई छात्रा रात दस बजे के बाद मोबाइल पर बात करती पकड़ी गई तो अभिभावकों से बात करने के अपराध में भी उनसे फोन छीन लिए जाते हैं। अभिभावकों को इसकी सूचना देने के बाद ही फोन वापस मिलते हैं। अगर कोई छात्रा किसी छात्र के साथ देखी गई तो वह प्रॉक्टर के हवाले कर दिया जाता । उस पर देश के पारंपरिक मूल्यों और संस्कृति को बदनाम करने का लांछन लगाया जाता है।
यूनवर्सिटी में समाज के पिछड़े वर्ग ( backward strata of the society ) का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। अगर आप यूनिवर्सिटी के विभागाध्यक्षों, अहम पदों पर बैठे लोगों या कार्यकारी परिषद में शामिल नामों की सूची देखें तो आपको सिर्फ अगड़ी जाति के लोगों के नाम मिलेंगे। ऐसे माहौल में जाहिर है भेदभाव का ही बोलबाला रहेगा।
यूनिवर्सिटी का वार्षिक बजट 760 करोड़ रुपये का है। लेकिन इसका खर्च का ब्योरा प्रकाशित नहीं किया जाता है। अब तक यूजीसी को खर्च की वार्षिक रिपोर्ट भेजी जाती थी लेकिन पिछले दो साल के दौरान यह भेजी गई है या नहीं इस बारे में कुछ भी पता नहीं है।
इस बीच यूनिवर्सिटी में घोटाले के कई मामले सामने आए हैं- सीटी, स्कैन सेंटर घोटाले से लेकर एल्यूमनी गिफ्ट घोटाला और शिक्षकों की नियुक्ति में पक्षपात जैसे मामले सामने आए हैं। ट्रॉमा सेंटर स्कैम से लेकर एमसीआई की मान्यता के बगैर मेडिकल कोर्स चलाने और प्रवेश परीक्षा घोटाले जैसे कई मामले सामने आ चुके हैं।
विश्वविद्यालय प्रशासन को दो ही एजेंडे रह गए हैं। एक- विश्वविद्यालय में सांप्रदायिक माहौल पैदा करना और दूसरा अपनी जेब भरना। जेब भरने की मारामारी इस कदर मची है कि छात्रों के हित दरकिनार हो गए हैं। स्टूडेंट्स को इतना डरा दिया गया है कि वे इन मामलों पर कुछ भी बोलने से डरे हुए हैं।
अलग विचारों को कुचला जा रहा है। वीसी से अलग मत रखने वाले मैगेसेसे अवार्ड विजेता संदीप पांडे को यूनिवर्सिटी से हटा दिया गया था। छात्र-छात्राओं को धमकाया गया कि अगर उन्हें वेलेंटाइन डे मनाते हुए देखा गया तो वे ‘ए’ कैटेगरी की सजा के भागीदार बनेंगे।
यूनिवर्सिटी के प्रोस्पेक्टस में कहा गया है कि लाइब्रेरी सुबह पांच बजे तक खुली रहेगी। लड़कियों के लिए बस का इंतजाम रहेगा। जब इस सुविधा को बहाल करने की मांग की गई तो वीसी ने कहा कि यह ठीक नहीं है। वीसी का कहना था कि ग्रेजुएट स्टूडेंट्स को सिलेबस के अलावा और कुछ भी पड़ने की जरूरत नहीं है। वीसी ने यह भी आरोप लगाया कि स्टूडेंटस हर वक्त साइबर लाइब्रेरी खुली रखने की मांग इसलिए कर रहे हैं कि पोर्न देख सकें। यूनिवर्सिटी में आरएसएस से जुड़े स्टूडेंट्स के कमरों से पेट्रोल बम पाए गए।
कैंपस में इस तरह के हालात बन गए हैं। ऐसे मामले में छात्र-छात्राओं को संपूर्ण शिक्षा कैसे मिल पाएगी। बीएचयू में छात्र-छात्राओं के खिलाफ विश्वविद्यालय प्रशासन का रुख बेहद खतरनाक होता जा रहा है। इसे किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।
कैंपस के अंदर छात्र-छात्राएं डरे हुए हैं। वे कुछ भी बोलने से कतराते हैं। ये हालात बेहद खराब हैं। छात्र-छात्राओं के दिमाग कैद हैं। पूरे देश के छात्र-छात्राओं को इस खतरे को समझना होगा। विश्वविद्यालय के यह रुख भारत के विचार के लिए गंभीर चुनौती है। हम सभी को एक होकर इस तरह की फासीवादी ताकतों से लड़ना होगा।