डेल्टा मेघवाल के शहादत दिवस पर उनके पिता ने लिखी कविता

Published on: March 28, 2017
Delta meghwal

शिक्षा के मंदिर में तुम ये कैसा काम कर बैठे !
तुम तो गुरु की महिमा को बदनाम कर बैठे !!
 
नहीं करेगा कानून, हैवानों ने ऐसा सोच लिया!
देखो दरिंदो ने फूल सी बेटी को नोंच लिया !!
 
कोई नेता नहीं बोलेगा, सब के होठ सिले हुए हैं !
क्या उम्मीद है, प्रशासन से ये सब मिले हुए हैं !!
 
इन नेताओं को बेटी नहीं बस वोट चाहिए !
क्या न्याय होगा जहाँ बस सबको नोट चाहिए !!
 
होता रहा ऐसा अन्याय तो मानवता मर जाएगी!
फिर बेटी कॉलेज पढ़ने के नाम से डर जाएगी !!
 
भेजा था माँ बाप ने बड़े अरमानो के साथ !
वो बेटी अस्मत खो बैठी कुछ हैवानों के साथ!!
 
तुमने डेल्टा नहीं, देश की एक प्रतिभा मारी है !
क्यों घूमते हैं बैखोफ ये दरिन्दे ,क्या लाचारी है!!
 
अपनी बहन बेटियाँ मर रहीं अब तो आत्मबोध करो!
उतर पड़ो सड़कों पर जाहिलों का प्रतिशोध करो !!
 
हे! भारत के जवानों अब तो हुंकार भरो !
नहीं कर सकते कुछ तो, चुल्लू भर पानी में डूब मरो!!
 
इन हैवानों से ना जाने कितनी बहनें हारी हैं!
अब कुछ करो कल अपनी बहन की बारी है !!
 
कैसे पढ़ेंगी बेटियाँ फिर घर से दूर होकर !
कब तक डेल्टायें मरती रहेंगी मजबूर होकर !!
 
सब के सब चुप क्यों हैं, क्यों कोई बोलता नहीं है!
खून नहीं पानी है क्या जो रगों में खौलता नहीं है!!
 
कवि की कलम एक डेल्टा की चीख लिख रही है !
मुझे तो इस डेल्टा में सबकी बहनें दिख रही हैं!!
 
दरिंदो की नोची वो लाश तुम्हें ललकार रही है!
बाहर निकलो भाइयों बहिन तुम्हें पुकार रही है!
 
(संपादन- भवेंद्र प्रकाश)

Courtesy: National Dastak

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