मेरी एक सलाह है SC, ST और OBC के बुद्धिजीवियों और बन रहे बुद्धिजीवियों से. इन समाजों के तमाम प्रोफेशनल्स और बडिंग प्रोफेशनल्स से. कृपया कोई क्रांतिकारिता न दिखाएं. अपने प्रोफेशन पर, अपने काम पर फोकस करें. अपने काम में बेहतर करें. पैसा कमाएं. तरक्की करें. मालूम है कि इन समाजों के लोगों के लिए यह मुश्किल है. कठिन है आपके लिए तरक्की करना. पर कोशिश करें.
आपका कोई बाप ऊपर के पदों पर तो है नहीं. आप गिरेंगे, तो आपको संभालने वाला कोई नहीं होगा. इसलिए संभलकर चलें. आप गिरेंगे तो सवर्ण तो हंसेगा ही. आपका अपना समाज भी सहानुभूति नहीं दिखाएगा. हो सकता है कि वह भी हंस दे.
आप समझ लीजिए कि इस देश में नीचे की जाति वाले किसी आदमी को बुद्धिजीवी कहलाने के लिए कई गुऩा ज्यादा बुद्धि का मालिक होना होगा. ऐसे आंबेडकर या फुले सदियों में एक आएंगे. ज्यादा की गुंजाइश नहीं है.
"आपकी दिक्कत यह नहीं है कि सवर्ण आपको बुद्धिजीवी नहीं मानता. आपका अपना समाज भी ब्राह्मण, भूमिहार को ही बुद्धिजीवी मानता है." जब तक ब्राह्मण/भूमिहार आपको बुद्धिजीवी न मान ले, तब तक आपका अपना समाज भी आपको बुद्धिजीवी नहीं मानेगा.
इसे रिक्गिनिशन Recognition की थ्योरी से समझिए.
जब आपकी स्वीकार्यता सार्वभौमिक यानी यूनिवर्सल है, तभी आपका आपका अपना समाज आपको स्वीकार करेगा. लेकिन आपके समाज का पार्टिकुलर Recognition आपको कभी यूनिवर्सल Recognition नहीं दिला सकता.
एक बात गांठ बांध लें.
"भारत में यूनिवर्सल रिकग्निशन यानी सार्वभौमिक पहचान ब्राह्मण देता है." जब आप ब्राह्मणों की सभा में समादृत हो गए, वहां आपकी जगह बन गई, तो आपका समाज आपको अपने आप सिर पर बिठा लेगा. इसलिए अपने काम में बेहतर बनने के अलावा आपके पास कोई रास्ता नहीं है. आपको प्रोफेशनली सवर्णों से बेहतर होना ही होगा.
पता है मुझे कि SC, ST, OBC के लिए प्रोफेशनल जगहों पर घुस पाना कितना मुश्किल है. जब लगभग सारी नौकरियां जान-पहचान से मिल रही हैं और ऊपर की जगहों पर अपना संपर्क होना निहायत जरूरी हो, तो आप सवर्णों के मुकाबले काफी पीछे रह जाते हैं. आपके लोग बड़े पदों पर हैं कहां? जो दो-चार पहुंच गए, वे अपनी बचा लें. समाज की मदद करना उनके लिए अभी मुमकिन ही नहीं है.
आपके लिए कोई रास्ता नहीं है. आपको अपनी क्षमता और मेहनत से अपनी जगह बनानी होगी.
हमारे समाज में समाज सुधारकों और क्रांतिकारियों की कोई कमी नहीं है. लेकिन SC, ST, OBC में कामयाब प्रोफेशनल्स की सख्त कमी है. उस कमी को पूरा करने की क्षमता जिन चंद लोगों में है, वो एक्टिविज्म में अपनी प्रतिभा को लगाएं, यह दुखद होगा. माफ कीजिए, अगर किसी को बुरा लगा हो तो.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
आपका कोई बाप ऊपर के पदों पर तो है नहीं. आप गिरेंगे, तो आपको संभालने वाला कोई नहीं होगा. इसलिए संभलकर चलें. आप गिरेंगे तो सवर्ण तो हंसेगा ही. आपका अपना समाज भी सहानुभूति नहीं दिखाएगा. हो सकता है कि वह भी हंस दे.
आप समझ लीजिए कि इस देश में नीचे की जाति वाले किसी आदमी को बुद्धिजीवी कहलाने के लिए कई गुऩा ज्यादा बुद्धि का मालिक होना होगा. ऐसे आंबेडकर या फुले सदियों में एक आएंगे. ज्यादा की गुंजाइश नहीं है.
"आपकी दिक्कत यह नहीं है कि सवर्ण आपको बुद्धिजीवी नहीं मानता. आपका अपना समाज भी ब्राह्मण, भूमिहार को ही बुद्धिजीवी मानता है." जब तक ब्राह्मण/भूमिहार आपको बुद्धिजीवी न मान ले, तब तक आपका अपना समाज भी आपको बुद्धिजीवी नहीं मानेगा.
इसे रिक्गिनिशन Recognition की थ्योरी से समझिए.
जब आपकी स्वीकार्यता सार्वभौमिक यानी यूनिवर्सल है, तभी आपका आपका अपना समाज आपको स्वीकार करेगा. लेकिन आपके समाज का पार्टिकुलर Recognition आपको कभी यूनिवर्सल Recognition नहीं दिला सकता.
एक बात गांठ बांध लें.
"भारत में यूनिवर्सल रिकग्निशन यानी सार्वभौमिक पहचान ब्राह्मण देता है." जब आप ब्राह्मणों की सभा में समादृत हो गए, वहां आपकी जगह बन गई, तो आपका समाज आपको अपने आप सिर पर बिठा लेगा. इसलिए अपने काम में बेहतर बनने के अलावा आपके पास कोई रास्ता नहीं है. आपको प्रोफेशनली सवर्णों से बेहतर होना ही होगा.
पता है मुझे कि SC, ST, OBC के लिए प्रोफेशनल जगहों पर घुस पाना कितना मुश्किल है. जब लगभग सारी नौकरियां जान-पहचान से मिल रही हैं और ऊपर की जगहों पर अपना संपर्क होना निहायत जरूरी हो, तो आप सवर्णों के मुकाबले काफी पीछे रह जाते हैं. आपके लोग बड़े पदों पर हैं कहां? जो दो-चार पहुंच गए, वे अपनी बचा लें. समाज की मदद करना उनके लिए अभी मुमकिन ही नहीं है.
आपके लिए कोई रास्ता नहीं है. आपको अपनी क्षमता और मेहनत से अपनी जगह बनानी होगी.
हमारे समाज में समाज सुधारकों और क्रांतिकारियों की कोई कमी नहीं है. लेकिन SC, ST, OBC में कामयाब प्रोफेशनल्स की सख्त कमी है. उस कमी को पूरा करने की क्षमता जिन चंद लोगों में है, वो एक्टिविज्म में अपनी प्रतिभा को लगाएं, यह दुखद होगा. माफ कीजिए, अगर किसी को बुरा लगा हो तो.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)