एक राष्ट्रीय अखबार में खबर पढ़ी की राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में कुल 139,123 लोगों ने आत्महत्या की है, जिसमें दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या लगभग एक चौथाई यानी 32,563 है।
इस बारे में टीवी चैनलों पर न कोई रोना-कलपना, ना कोई चर्चा सुनाई दी, ना किसी के द्वारा चिंता व्यक्त की गई। ना कोई जांच हुई। इतने मजदूर आत्महत्या के पीछे कौन से कारण रहे? इसकी बस रिपोर्ट अखबार में छपी और फाइल बंद।
दूसरी तरफ पिछले काफी दिनों से ज्यादातर टीवी चैनलों पर, सोशल मीडिया पर जो सबसे दमदार सबसे ज्यादा मसालेदार खबर चालू है वो है फिल्म अभिनेता सुशांत राजपूत की आत्महत्या। यह सबसे ज्यादा सरकारी चिंता का विषय हैं। जिसमें सीबीआई , पुलिस बिहार, बिहार राज्य का पूरा मंत्रिमंडल, देश का सत्ताशाली राजनीतिक दल व्यस्त है। वह आत्महत्या है या हत्या, अदालत ने इस पर अभी कोई निर्णय नहीं दिया है। मगर अभिनेता की आत्महत्या से निकली जांच में उसकी प्रेमिका और उसका भाई आदि को गिरफ्तार कर लिया गया है।
इस बीच एक अभिनेत्री कंगना जो शुरू से बहुत तीखा बोलने के लिए मशहूर रही है। इस मुद्दे पर भी तीखा बोलती हैं। और फिर शुरू हो जाता है ट्विटर युद्ध, उनको वाई श्रेणी की सुरक्षा मिल जाती है। फिर वे और ताकतवर हो कर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को तू तड़ाक से बोलती हैं।
साफ जाहिर है कि भले ही वे इनकार करे मगर देश की केंद्रीय सत्ता का वरद हस्त हो उनके सर पर पहले से ही था और अब एक नई मुहर लग गई। जिसका उन्होंने देश के गृहमंत्री को धन्यवाद भी दिया।
हमारी चिंता विषय यह नहीं है कि किसी अभिनेता की हत्या आत्महत्या की जांच हो या ना हो या किसी को बोलने का अधिकार है या नहीं ऑफिस तोड़ना चाहिए या नहीं लिखने का विषय तो यह है कि जब बिहार में कोरोनावायरस और बाढ़ से गरीब से गरीब तबका परेशानी की हालत में है। उस समय बिहार के मुख्यमंत्री सहित तमाम महकमें इस सिलसिले में क्यों व्यस्त हो गए?
3 साल पहले इस देश में घर के बाहर गौरी लंकेश जैसी निर्भीक लेखिका की हत्या कर दी गई। उसके कातिल नहीं पकड़े गए। 3 साल पहले की ईद पर 17 साल के जुनैद के कातिलों को अदालत ने फिलहाल जमानत दे दी। देश मे हुई मॉब लिंचिंग की किसी भी घटना में अभी तक दोषियों को सजा नहीं मिली है।
महाराष्ट्र के पालघर में साधुओ की हत्या पर अभिनेत्री चिंता व्यक्त कर रही हैं। कम से कम महाराष्ट्र सरकार ने तुरंत कार्यवाही करके 100 लोगों को गिरफ्तार तो किया था। उन पर 302 का मुकदमा दर्ज किया था। उत्तर प्रदेश झारखंड या और कहीं पर भी जहां मुस्लिमों की हत्या हुई कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया? कितने लोगों पर 302 की धारा लगाई गई? वह यह बात बिल्कुल भूल जाती हैं। बीजेपी के भगवा राष्ट्रवाद का जो झंडा उन्होंने उठा लिया है उसके साथ तो यह सब करने की उनकी मजबूरी है ही जो उनके स्वभाव से भी जुड़ी हुई है।
जो बीजेपी सुशांत ना भूले हैं ना भूलने देंगे का अभियान चला रही है मगर वह यह भूल जाती है की सुशांत की केदारनाथ फिल्म उत्तराखंड के 7 जिलों में बंद हो गई थी। सिनेमाघरों में तोड़फोड़ हुई थी। सुशांत पर और उस फ़िल्म के दूसरे अभिनेताओं पर बैन लगाने की पूरी मुहिम चलाई थी।
सलमान खान के आमिर खान के वक्तव्य को अपने से जोड़ करके अपने को राष्ट्रवादी देशभक्त कहना और फिर अपने को फासीवाद का शिकार बताने जैसी बचकानी हरकत उनकी बौद्धिकता को भी बताती है। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे जैसी कहावत याद दिलाता है। याद रहे आमिर खान की पत्नी ने जब कहा था कि मुझे भारत में रहने में डर लगता है उसके बाद उन्हें कोई वाई श्रेणी या किसी तरह की सुरक्षा ना देते हुए हमले किए थे। जो आज भी उनके मुसलमान होने पर लगातार जारी है। कोका कोला जैसे पेय पदार्थों का विज्ञापन करने वाले आमिर खान का हम कोई समर्थन नहीं करते हैं। दिल्ली में 2006 में सरदार सरोवर के खिलाफ चल रहे नर्मदा बचाओ आंदोलन की धरने पर 5 मिनट आने के बाद जिस तरह उनकी फिल्म पर हमले किए गए, सिनेमा घरों में तोड़फोड़ की गई। कंगना जी को इसकी जानकारी संभवत नहीं है। उनको यह भी जानकारी नहीं होगी कि रिया के पिता फौज में कर्नल रहे हैं।
मगर मामला तो इससे अलग और राजनीतिक गिरावट की पराकाष्ठा का है। जिसमें महाराष्ट्र सरकार भी एक दफ्तर गिरा कर खिसियानी बिल्ली जैसा व्यवहार करती नजर आती है। बेहतर होता कि महाराष्ट्र सरकार इस मुद्दे पर बिना कोई प्रतिबंधात्मक करवाई किए शिवसेना की आमची मुंबई की ओर से कंगना को सुरक्षा देती। और उनको उनकी भाषा का शिकार होने दिया जाता। जैसे कि वयोवृद्ध नेता शरद पवार ने भी कहा है।
समझ से परे की बात है कि अपने एक व्यवसायिक कार्यालय की तुलना वे राम मंदिर से करती हैं। क्या होता कि यदि कोई और अपने घर की तुलना राम मंदिर से कर देता? आर एस एस, बी जे पी और वीएचपी तुरंत हिंदू भावना आहत करने के जुर्म में देश भर में प्राथमिकी दर्ज करा चुकी होती। देश के अनेकानेक लोग जेलों में इसी तरह के मुकदमों में फंसा कर सड़ाये जा रहे हैं।
वाई सुरक्षा का मतलब यही है कि कैसे सुशांत की आत्महत्या से उपजे मुद्दों को तोड़ मरोड़ कर फिर अब राम मंदिर और कश्मीर का मुद्दा खड़ा किया जाए। और विकास की दहलीज से दूर कोरोना व बाढ़ से ग्रस्त बिहार राज्य का चुनाव जीता जाए।
बिहार के चुनाव के लिए भाजपा का तमाम मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए यह गंदा खेल जारी है। विपक्ष को बहुत समझ कर इन पुराने हथियारों का मुकाबला करना होगा। मगर क्या विपक्ष ये समझ पा रहा है ?
इस बारे में टीवी चैनलों पर न कोई रोना-कलपना, ना कोई चर्चा सुनाई दी, ना किसी के द्वारा चिंता व्यक्त की गई। ना कोई जांच हुई। इतने मजदूर आत्महत्या के पीछे कौन से कारण रहे? इसकी बस रिपोर्ट अखबार में छपी और फाइल बंद।
दूसरी तरफ पिछले काफी दिनों से ज्यादातर टीवी चैनलों पर, सोशल मीडिया पर जो सबसे दमदार सबसे ज्यादा मसालेदार खबर चालू है वो है फिल्म अभिनेता सुशांत राजपूत की आत्महत्या। यह सबसे ज्यादा सरकारी चिंता का विषय हैं। जिसमें सीबीआई , पुलिस बिहार, बिहार राज्य का पूरा मंत्रिमंडल, देश का सत्ताशाली राजनीतिक दल व्यस्त है। वह आत्महत्या है या हत्या, अदालत ने इस पर अभी कोई निर्णय नहीं दिया है। मगर अभिनेता की आत्महत्या से निकली जांच में उसकी प्रेमिका और उसका भाई आदि को गिरफ्तार कर लिया गया है।
इस बीच एक अभिनेत्री कंगना जो शुरू से बहुत तीखा बोलने के लिए मशहूर रही है। इस मुद्दे पर भी तीखा बोलती हैं। और फिर शुरू हो जाता है ट्विटर युद्ध, उनको वाई श्रेणी की सुरक्षा मिल जाती है। फिर वे और ताकतवर हो कर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को तू तड़ाक से बोलती हैं।
साफ जाहिर है कि भले ही वे इनकार करे मगर देश की केंद्रीय सत्ता का वरद हस्त हो उनके सर पर पहले से ही था और अब एक नई मुहर लग गई। जिसका उन्होंने देश के गृहमंत्री को धन्यवाद भी दिया।
हमारी चिंता विषय यह नहीं है कि किसी अभिनेता की हत्या आत्महत्या की जांच हो या ना हो या किसी को बोलने का अधिकार है या नहीं ऑफिस तोड़ना चाहिए या नहीं लिखने का विषय तो यह है कि जब बिहार में कोरोनावायरस और बाढ़ से गरीब से गरीब तबका परेशानी की हालत में है। उस समय बिहार के मुख्यमंत्री सहित तमाम महकमें इस सिलसिले में क्यों व्यस्त हो गए?
3 साल पहले इस देश में घर के बाहर गौरी लंकेश जैसी निर्भीक लेखिका की हत्या कर दी गई। उसके कातिल नहीं पकड़े गए। 3 साल पहले की ईद पर 17 साल के जुनैद के कातिलों को अदालत ने फिलहाल जमानत दे दी। देश मे हुई मॉब लिंचिंग की किसी भी घटना में अभी तक दोषियों को सजा नहीं मिली है।
महाराष्ट्र के पालघर में साधुओ की हत्या पर अभिनेत्री चिंता व्यक्त कर रही हैं। कम से कम महाराष्ट्र सरकार ने तुरंत कार्यवाही करके 100 लोगों को गिरफ्तार तो किया था। उन पर 302 का मुकदमा दर्ज किया था। उत्तर प्रदेश झारखंड या और कहीं पर भी जहां मुस्लिमों की हत्या हुई कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया? कितने लोगों पर 302 की धारा लगाई गई? वह यह बात बिल्कुल भूल जाती हैं। बीजेपी के भगवा राष्ट्रवाद का जो झंडा उन्होंने उठा लिया है उसके साथ तो यह सब करने की उनकी मजबूरी है ही जो उनके स्वभाव से भी जुड़ी हुई है।
जो बीजेपी सुशांत ना भूले हैं ना भूलने देंगे का अभियान चला रही है मगर वह यह भूल जाती है की सुशांत की केदारनाथ फिल्म उत्तराखंड के 7 जिलों में बंद हो गई थी। सिनेमाघरों में तोड़फोड़ हुई थी। सुशांत पर और उस फ़िल्म के दूसरे अभिनेताओं पर बैन लगाने की पूरी मुहिम चलाई थी।
सलमान खान के आमिर खान के वक्तव्य को अपने से जोड़ करके अपने को राष्ट्रवादी देशभक्त कहना और फिर अपने को फासीवाद का शिकार बताने जैसी बचकानी हरकत उनकी बौद्धिकता को भी बताती है। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे जैसी कहावत याद दिलाता है। याद रहे आमिर खान की पत्नी ने जब कहा था कि मुझे भारत में रहने में डर लगता है उसके बाद उन्हें कोई वाई श्रेणी या किसी तरह की सुरक्षा ना देते हुए हमले किए थे। जो आज भी उनके मुसलमान होने पर लगातार जारी है। कोका कोला जैसे पेय पदार्थों का विज्ञापन करने वाले आमिर खान का हम कोई समर्थन नहीं करते हैं। दिल्ली में 2006 में सरदार सरोवर के खिलाफ चल रहे नर्मदा बचाओ आंदोलन की धरने पर 5 मिनट आने के बाद जिस तरह उनकी फिल्म पर हमले किए गए, सिनेमा घरों में तोड़फोड़ की गई। कंगना जी को इसकी जानकारी संभवत नहीं है। उनको यह भी जानकारी नहीं होगी कि रिया के पिता फौज में कर्नल रहे हैं।
मगर मामला तो इससे अलग और राजनीतिक गिरावट की पराकाष्ठा का है। जिसमें महाराष्ट्र सरकार भी एक दफ्तर गिरा कर खिसियानी बिल्ली जैसा व्यवहार करती नजर आती है। बेहतर होता कि महाराष्ट्र सरकार इस मुद्दे पर बिना कोई प्रतिबंधात्मक करवाई किए शिवसेना की आमची मुंबई की ओर से कंगना को सुरक्षा देती। और उनको उनकी भाषा का शिकार होने दिया जाता। जैसे कि वयोवृद्ध नेता शरद पवार ने भी कहा है।
समझ से परे की बात है कि अपने एक व्यवसायिक कार्यालय की तुलना वे राम मंदिर से करती हैं। क्या होता कि यदि कोई और अपने घर की तुलना राम मंदिर से कर देता? आर एस एस, बी जे पी और वीएचपी तुरंत हिंदू भावना आहत करने के जुर्म में देश भर में प्राथमिकी दर्ज करा चुकी होती। देश के अनेकानेक लोग जेलों में इसी तरह के मुकदमों में फंसा कर सड़ाये जा रहे हैं।
वाई सुरक्षा का मतलब यही है कि कैसे सुशांत की आत्महत्या से उपजे मुद्दों को तोड़ मरोड़ कर फिर अब राम मंदिर और कश्मीर का मुद्दा खड़ा किया जाए। और विकास की दहलीज से दूर कोरोना व बाढ़ से ग्रस्त बिहार राज्य का चुनाव जीता जाए।
बिहार के चुनाव के लिए भाजपा का तमाम मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए यह गंदा खेल जारी है। विपक्ष को बहुत समझ कर इन पुराने हथियारों का मुकाबला करना होगा। मगर क्या विपक्ष ये समझ पा रहा है ?