चैनलों के नकली योद्धाओ, देश को युद्ध नहीं बुद्ध की जरूरत है !

Written by विद्या भूषण रावत | Published on: February 28, 2019
पिछले पांच वर्षो में भारतीय चैनलों और सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि देश में युद्धोन्माद का माहौल पैदा करने की रही है. मतभिन्नता वालों को देशद्रोही बताकर उन्हें चुन-चुन कर पहचानने और देख लेने को टीवी से अब मान्यता मिल चुकी है. सोशल मीडिया भी उनपर कोई कार्यवाही नहीं कर सकता और ऐसा लगता है कि पार्टियों के 'साइबर सैनिक' सारा युद्ध अपने फेक न्यूज़ कैंपेन के जरिए लड़ रहे हैं. इतिहास से कुछ लेना देना नहीं बस केवल विरोधियों को नीचा दिखाना है और दुश्मन साबित करना है. भक्तजनों की समस्या ये है कि आजकल नकली युद्ध और नकली योद्धा असली योद्धाओं के मुकाबले बहुत ज्यादा कमाई कर रहे हैं. युद्ध का एक अर्थशास्त्र है जो आज के दौर में मीडिया, नेता और दलालों की भरपूर कमाई करता है. टी आर पी के दौर में दरअसल रेटिंग ही असली सत्य है इसलिए झूठ को बार बार परोस कर लोगों के सामने रखा जाता है जो हकीकत से दूर होता है लेकिन बात ये है कि पीआर पर चलने वाली सरकार फौजी कमांडरों और विदेश मामलों के जानकारों को सुनने के बजाय, अपने भक्त पत्रकार कहे जाने वाले संघी कार्यकर्ताओं को ज्यादा ही अहमियत दे रही है.

युद्ध की राजनीति वो लोग करते हैं जो अति-विश्वास से प्रेरित होते हैं और जिन्हें ये यकीं होता है कि दुनिया में वे अकेले ही सब कुछ कर लेंगे. युद्ध में जाने के लिए तैयार करने के लिए आप जरुर अतिरेकपूर्ण बातें करते हैं लेकिन जिनको युद्ध में जाना होता है उन्हें हकीकत का पता होता है.

अगर इन पांच वर्षो में भारत को सबसे ज्यादा शर्मिंदा किसी ने किया है तो टी वी चैनलों में बैठे इन भौम्पुओं ने. देश की जनता को बांटने और उनकी बातों में हाँ न करने वालों को खुले तौर पर मारने की धमकी देने वाले ये लोग एक जिम्मेवार मीडिया नहीं हो सकते जिसके इस वक़्त देश को बहुत जरुरत है. मीडिया का काम सरकार को आगाह करना होता है और देश को सही सूचना देना होता है लेकिन इस मीडिया ने आग उगलते फर्जी विशेषज्ञों को अपने चैनलों पर बैठा कर युद्धोन्माद पैदा किया और उससे ज्यादा एक जहरीला माहौल पैदा किया ताकि देश का एक बहुत बड़ा समुदाय हमेशा शक के दायरे में रहे और पाकिस्तान और कश्मीर से सम्बंधित हर बात के लिए उसको ही दोषी ठहराया जाए.

जब परसों भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान की सीमा के अन्दर बने जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर बमबारी की तो उनकी आधिकारिक प्रतिक्रिया बहुत ही समझदारीपूर्ण थी जिसमें उन्होंने कहा कि भारत ने ये कार्यवाही न तो पाकिस्तान की सेना के विरुद्ध की है और न ही पाकिस्तान के लोगों के विरुद्ध. हमारी कार्यवाही पाकिस्तान में मौजूद उन लोगों के विरुद्ध है जो वहां से भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की भाषा बहुत संयत थी. लेकिन भारत के मीडिया ने तो इस पर जैसे अपनी जनता के विरुद्ध ही जंग छेड़ दी. मीडिया और भक्तों की ये हार्दिक इच्छा है कि दुनिया के नक़्शे से पाकिस्तान ही गायब हो जाए वैसे ही जैसे पाकिस्तान में बैठे बहुत से इस्लामिक जेहादी अभी भी लाल किले पे अपना झंडा फहराने की सोचते हैं. ये बात सोचने की है कि इस उपमहाद्वीप में राष्ट्रवाद के नाम पर धार्मिक कठमुल्लावाद थोपा जा रहा है. पाकिस्तान के सत्ताधारियों की कोशिश भारत को समय समय पर शर्मिंदा करने की रहती है. वहां की सत्ता पर अभी भी मिलिट्री का कब्ज़ा है और वो इस बात से दिखाई देता है कि विदेश मंत्रालय के बजाय वहां की सेना का प्रवक्ता मीडिया को संबोधित कर रहा है और यदि उसका लहजा देखेंगे तो पता चलेगा कि पूरा राजनैतिक भाषण, शान्ति का सन्देश और अपनी ताकत का एहसास भी.

परसों की घटना के बाद ये निश्चित था के पाकिस्तान अपने अस्तित्व को दिखाने के लिए कुछ करेगा और उसने भारतीय सीमा का उल्लंघन किया जिसको रोकने की कार्यवाही में भारतीय वायुसेना एक जांबाज अधिकारी विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण पाकिस्तान सीमा के अन्दर पाकिस्तानी फौजियों द्वारा बंदी बना लिए गए. पाकिस्तान का सैनिक तंत्र इस घटना की जैसे तलाश में था और इसका उसने इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. विंग कमांडर अभिनन्दन का विडियो दिखाया जा रहा है जिसमें वह बहादुरी से अपना नाम बताते हैं लेकिन और कोई जानकारी नहीं देते. हाँ बहादुर ऑफिसर ये जरुर कहते है कि पाकिस्तान की सेना पूरी तरह प्रोफेशनल है और उनका अच्छा ख्याल रख रही है.

विंग कमांडर अभिनंदन के घटनाक्रम के बाद से ही सोशल मीडिया में संदेशों की बाढ़ आ गयी है. अब युद्ध के विरुद्ध भी लोग बात कर रहे हैं. पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की पोती फातिमा भुट्टो ने वहां की सरकार से विंग कमांडर अभिनंदन को तुरंत रिहा करने की बात कही है. ऐसे बहुत से लोगों के संदेश आ रहे हैं. भारत में टीवी पर आग उगलने वाले जनरलों के अलावा भी बहुत से ऐसे सैन्य अधिकारी हैं जो युद्ध की मानसिकता के खिलाफ हैं और आतंकवाद जैसे मसलों पर अंतर्राष्ट्रीय दवाब को ज्यादा उपयोगी मानते हैं. जनरल एच एस पनाग, एडमिरल विष्णु भगवत, एडमिरल रामदास आदि ऐसे बहुत लोग हैं जो शांति की बात करते रहे हैं लेकिन आज का मीडिया उनका ध्यान भी नहीं देता.

दरअसल भारतीय लोगों का और विशेषकर हिंदुत्व के भक्तों का इतिहासबोध कुछ नहीं है. मैंने कई बार लिखा है कि ये देश मई 2014 में आज़ाद नहीं हुआ था जैसे कई भक्त समझ रहे है. इस देश ने युद्ध किये भी और जीते भी लेकिन उनसे कोई समाधान नहीं निकला. ज्यतादर युद्ध हम पर थोपे गए इसलिए जवाब देना बनता था. सबसे बड़ी बात युद्ध का फैसला राजनैतिक नेतृत्व करता है लेकिन उसको निर्णायक स्थिति में सैनिक नेतृत्व लाता है. युद्ध अगर देश में लोगों को एक दुसरे से अलग करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा तो हम वो जंग हार जायेंगे जिसके लिए हमारे संविधान सभा के लोगों ने इन इतना समय लगाया और हमको एक ऐसा संविधान दिया जिस पर हम वाकई गर्व कर सकते हैं. इतिहास की इतनी बड़ी धरोहर हमारे पड़ोस में कहीं नहीं है, उनके यहाँ अभी भी लोकतंत्र स्थाई नहीं बन पाया है और पुर्णतः फौजी नेतृत्व के हवाले है. इसलिए ये जरुरी है कि हमारी फौजें प्रोफेशनल बनी रहें और उनके नाम पर राजनीति न हो.

अभी जनरल एच एस पनाग ने 1971 के बांग्लादेश युद्ध का जिक्र किया जिसमें पाकिस्तान के 90,000 से अधिक सैनिक युद्धबंदी बने थे और भारत ने जिनेवा कन्वेंशन के तहत उन्हें पूरा सम्मान दिया और बाद में छोड़ा गया. जनरल पनाग ने बताया कि कैसे बिलकुल ऐसी ही परिस्थति में उन्होंने एक पाकिस्तानी पायलट फ्लाइट लेफ्टिनेंट परवेज़ कुरैशी मेंहदी को अपने जवानों के हाथों मरने से बचाया. परवेज़ कुरैशी अपने विमान से भारतीय सेना की टुकड़ियों को निशाना बना रहे थे और अचानक उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और परवेज़ पैराशूट की मदद से उतर गए लेकिन भारतीय जवानों ने उन्हें पकड़ लिया और जैसे होता है उनके साथ मारपीट भी की गयी. जनरल पनाग ने ये देख लिया और तेजी से अपनी टुकड़ी की ओर गए और अपने जवानों को अलग किया ताकि पाकिस्तानी पायलट बच सके. उन्होंने परवेज़ कुरैशी को आधिकारिक तौर पर गिरफ्तार किया और उस युद्ध का पहला युद्धबंदी बनाया. सैनिकों को युद्ध के समय ऐसी परिस्थितियों के लिए तैयार रहना पड़ता है और यही कि वे अनुशासन से बंधे होते हैं और अपने देश की सेवा कर रहे होते हैं. हर देश के सैनिकों को देश सेवा के लिए हमेशा तैयार रहना पड़ता है और इसलिए जेनेवा कन्वेंशन के तहत युद्धबंदियों के साथ मानवीय व्यवहार करने की बात होती है, उनका टार्चर नहीं किया जा सकता और देर सवेर उनको छोड़ना ही पड़ेगा. पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध के दौरान फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता को युद्धबंदी बनाया था लेकिन 8 दिन में उन्हें रिहा कर दिया था. पाकिस्तान के जिस नौजवान फ्लाइट लेफ्टिनेंट परवेज़ कुरैशी मेंहदी को 22 नवम्बर 1971 को जनरल पनाग ने ससम्मान बचाया वो पाकिस्तान के प्रमुख सैनिक अधिकारी बने और 1997-2000 तक वहां के वायु सेना प्रमुख बने.

कहने का आशय यह है कि आजकल के आग उगलने और मारकाट को बढ़ावा देने के दौर में हम अपने जांबाज़ जवानों को बहुत खतरे में डाल रहे हैं. युद्ध किसी भी दौर में अंतिम परिणाम नहीं लाया सिवाय विध्वंश के. मौतें दोनों ओर होती हैं, युद्ध बंदी भी दोनों ओर होते हैं. कल विंग कमांडर अभिनन्दन का विडियो खूब दिखाया जा रहा था. पाकिस्तान के सैनिक अधिकारी उसका मानसिक लाभ उठाने का प्रयास भी करते दिखे लेकिन एक हकीकत है और वो ये कि यदि कोई भी व्यक्ति इस युद्ध में पकड़ा गया और भीड़ के हत्थे चढ़ गया तो वो बहुत बेरहमी से मारा जा सकता है. ये अच्छी बात है कि पाकिस्तान के अधिकारियों ने उन्हें इज्जत दी लेकिन ये विडियो केवल दुनियाभर को दिखाने के लिए भी हो सकता है जबकि अन्दर कोई टार्चर न हो इसकी कोई गारंटी नहीं है.

इसलिए जरुरी है कि हम मानवीय संवेदनाओं की बात करें और लोगों को कानून अपने हाथ में लेने की बात न कहें. सेना और प्रशासन को उनका कार्य करने दें और लोगों में एकता का भाव लायें. जो मतभिन्नता को देशद्रोह करार दे रहे हैं वे ये सोचके कल उनके साथ भी घटनाएं हो सकती हैं. मैंने कई बार कहा कि हर एक समाज, जाति, धर्म, कहीं पर बहुमत में हैं और कहीं अल्पमत में. जरुरत इस बात की है कि हम सब एक दुसरे के अधिकारों का सम्मान करें और अल्पसंख्यकों को दुश्मन न बनाएं, उन्हें अपने संघर्षो में भागीदार बनाएं और उनके विचारों का सम्मान करें. जब भी ऐसे घटनाक्रम हों जहां भीड़ की क्रूरता बढ़ रही हो तो हम उसका हिस्सा न बनें. अगर हमारे 'मनोरंजन' चैनल लोगों को कानून हाथ में लेने की बढ़ रही प्रवृति को महिमंडित न कर इनके खतरों की ओर इंगित करेंगे तो आने वाले समय में हम एक बेहतरीन समाज का निर्माण कर पायेंगे.

हम अपने बहादुर सैनिकों का सम्मान करते हैं. वे अपने परिवारों से दूर रहकर निष्ठापूर्वक देशसेवा में लगे हैं. उनकी निष्ठा को राजनीति का हथियार न बनाएं. जो परिवार अपने लोगों को खोते हैं उन्हें पता है इसकी कितनी बड़ी कीमत होती है. जिनके सदस्य युद्धबंदी बनते हैं उनके परिवारों पर क्या गुजरती है ये हरेक को पता नहीं होता. युद्ध किसी बात का उत्तर नहीं है. युद्ध करके भी बातचीत के लिए आना पड़ता है तो फिर पहले ही वो काम क्यों न हो ?

हम आशा करते हैं कि पाकिस्तान जिनेवा कन्वेंशन का सम्मान करते हुए विंग कमांडर अभिनन्दन को ससम्मान रिहा करेगा और दोनों देश अपने सभी मुद्दों का खुले दिल से चर्चा कर समाधान निकालेंगे. दक्षिण एशिया में हमें युद्ध की नहीं बुद्ध की जरुरत है ताकि हमारे खर्चे सैनिक साजो सामान पर न होकर शिक्षा, स्वास्थय, गरीबी उन्मूलन, अन्धविश्वास निर्मूलन आदि पर खर्च हों. इसके लिए यह भी जरुरी है कि सभी देश अपने यहाँ व्याप्त धर्म के धंधेबाजों और उसके नाम पर घृणा और हिंसा फ़ैलाने वाले लोगों पर ईमानदार कार्यवाही करे ताकि हम सामूहिक रूप से प्रगति कर सकें. युद्ध और सेना का बेवजह राजनैतिक इस्तेमाल नहीं होना चाहिये क्योंकि वह देश के लोकतंत्र के लिए बहुत नुकसानवर्धक हो सकता है. हमारी सेनायें हमारे देश का प्रतिनिधित्व करती हैं इसलिए उनकी कुर्बानियां और जीत सारे देश के लिए होती है एक पार्टी या सरकार के लिए नहीं. हम सब देश की सीमा पर तैनात सैनिकों की चिंता करते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनकी परेशानियों को सरकार समझे और सार्थक कदम उठायें. भारतीय उप-महाद्वीप में व्याप्त समस्याओं का हल सारे देश मिलकर ही कर सकते हैं और इसके लिए आवश्यक है कि सभी सामाजिक न्याय की बात करें, अपने यहाँ अल्पसंख्यकों और हासिये पे रहने वाले लोगों को सत्ता में भागीदारी दें और महत्वपूर्ण बात यह है कि धार्मिक उन्मादियों पर कड़ी कार्यवाही करें और उन्हें सत्ता का संरक्षण न प्रदान करें. यदि ऐसा हुआ तो हमारे संघर्षों और झगड़ों से अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में हथियारों का सौदा करने वाली कंपनियों और उनके रक्षा दलालों की दुकाने भी बंद हो जायेंगी और सभी ओर शांति व समृद्धि रहेगी.

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)
 

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