द टेलीग्राफ में आज पहले पन्ने पर सात कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, "बिग्गेस्ट कॉरपोरेट स्लाइस फॉर बीजेपी"। मूल रूप से यह खबर कॉरपोरेट चंदे पर है और इसमें बताया गया है कि कॉरपोरेट चंदे का सबसे बड़ा हिस्सा भाजपा को मिला है। खबर कहती है कि भाजपा जब सत्ता में नहीं थी तब भी उसने अधिकतम कॉरपोरेट दान हासिल किया था। फिरोज एल विनसेन्ट की बाईलाइन वाली यह खबर नई दिल्ली डेटलाइन से है और मुख्य रूप से एसोसिएशन फॉर डेमोक्रैटिक रीफॉर्म्स (एडीआर) के विश्लेषण पर आधारित है। इसके मुताबिक राजनीतिक दलों को दो साल में 985 करोड़ रुपए से से ज्यादा का चंदा मिला और इसमें भाजपा का हिस्सा कांग्रेस के मुकाबले 16 गुना ज्यादा है। ऐसे में छोटी पार्टियों की क्या हैसियत होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
यह संयोग हो सकता है कि मायावती के शासन में 21 चीनी मिलों की बिक्री के मामले में कार्रवाई हुई और 19 राज्यों में 110 ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी हुई। 500 अफसरों की टीम का यह छापा निश्चित रूप से बड़ा और अनूठा है। इसलिए, अमर उजाला में यह खबर, "भ्रष्टाचार पर प्रहार : 19 राज्यों में 110 ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी" शीर्षक से लीड बनी है। पर भाजपा को चंदे वाली खबर (निश्चित रूप से चंदा लेना या प्राप्त करना भ्रष्टाचार नहीं है) अमर उजाला ने पहले पन्ने पर नहीं, दिल्ली की खबरों के पन्ने पर छापा है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह संपादकीय विवेक का मामला है पर इसे रेखांकित तो किया ही जा सकता है। दैनिक जागरण में भाजपा को चंदे वाली खबर पहले पन्ने पर तो नहीं है लेकिन छापे की खबर लीड है और इसका शीर्षक है, "माया के पूर्व सचिव के ठिकानों पर छापे"।
अब आप समझिए कि आपके अखबार आपको कैसी खबर देते हैं। आप जानते हैं कि अमर उजाला और जागरण मूल रूप से उत्तर प्रदेश के अखबार हैं। इसलिए मायावती से संबंधित खबर इनमें लीड छपे तो बड़ी बात नहीं है। पर आज यह खबर नवोदय टाइम्स में भी लीड है जबकि अंग्रेजी के अखबारों के साथ हिन्दी के दूसरे अखबारों में भी इसे इतनी प्रमुखता नहीं मिली है। दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका में यह सिंगल कॉलम की खबर है। हालांकि, ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि अखबारों में कौन सी खबरें नहीं छपती हैं। और इस लिहाज से यह महत्वपूर्ण खबर है कि पिछले दो वित्तीय वर्ष में देश के राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को 985 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा मिला है। यह चंदा इन दलों के ज्ञात स्त्रोतों का 93 फीसदी है। वहीं 2004-05 से 2014-15 के बीच मिले दान से यह 160 फीसदी ज्यादा है। पकौड़े बेचने का रोजगार करने वाले यह हिसाब लगा सकते हैं कि इतने समय में उनकी कमाई 160 फीसदी बढ़ी है कि नहीं।
आज सुबह सबसे पहले टेलीग्राफ में एडीआर की खबर देखने के बाद मैंने पाया कि दूसरे अखबारों में यह खबर नहीं है। गूगल किया तो अमर उजाला और नवभारत टाइम्स के साइट पर यह खबर मिल गई। लेकिन अखबार के पहले पन्ने पर नहीं थी। मुझे यह अटपटा लगा कि कोई खबर बनाकर भी अखबार में नहीं छापी जाए। इसलिए मैंने अखबार के पन्ने पलटना शुरू किया तो अमर उजाला में यह खबर दिल्ली की खबरों के पन्ने पर दिख गई हालांकि, मैं इसपर होने की उम्मीद नहीं कर रहा था। नवभारत टाइम्स में एडीआर वाली खबर तो नहीं मिली पर मायावती से संबंधित सीबीआई छापे की खबर जरूर प्रमुखता से मिली। मैंने दूसरे सभी अखबार बहुत ठीक से नहीं देखे। आप अपना अखबार खुद देखिए। फिलहाल, मैं अनुवाद से बचने के लिए अमर उजाला की खबर से आपको खबर के खास अंश बताता हूं। एडीआर के विश्लेषण के अनुसार 2016-18 के बीच सबसे ज्यादा पैसा प्रूडेंट/सत्या इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट ने भाजपा और कांग्रेस को दिया। इस ट्रस्ट ने भाजपा को 33 दानों के जरिए 405.52 करोड़ रुपये और कांग्रेस को 13 दानों के जरिए 23.90 करोड़ रुपये दान में दिए। वहीं एनसीपी को बी.जी. शिरके कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड ने 2.5 करोड़ रुपये दान में दिए।
एडीआर के मुताबिक राष्ट्रीय दलों ने अपनी दान रिपोर्ट में ऐसे 916 दानों का विवरण भी दिया है, जिनसे उन्हें 120.14 करोड़ रुपये दान में मिले। वहीं इन दलों के पास 76 ऐसे दान भी आएं जिन्होंने अपने पैन का विवरण नहीं दिया। इनसे इन दलों को 2.59 करोड़ रुपये मिले। भाजपा को इस अवधि में मिले कुल दान में 20 हजार रुपये से अधिक के स्वैच्छिक दानकर्ताओं द्वारा 94 प्रतिशत दान दिया गया। वहीं कांग्रेस को यह प्रतिशत 81 रहा। इस रिपोर्ट में भाजपा, कांग्रेस, एनसीपी के साथ सीपीआई, सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस शामिल रही। सीपीआई को सबसे कम दो प्रतिशत कॉरपोरेट दान मिला। बसपा को रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया, हालांकि वह राष्ट्रीय पार्टी है। वजह, बसपा ने साल 2004 से अब तक स्वयं को 20 हजार से अधिक का दान किसी दानकर्ता से नहीं मिलने की घोषणा की है।
वर्ष 2012-13 से वर्ष 2017-18 के बीच भी भाजपा को सर्वाधिक कॉरपोरेट दान मिला जो 1621.40 करोड़ रहा। वहीं राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को इस अवधि में कॉरपोरेट दान 414 प्रतिशत बढ़ गया। 2015-16 में गिरावट भी आई। वर्ष 2016-17 से 2017-18 के दौरान राष्ट्रीय पार्टियों को होने वाले कॉरपोरेट दान में 25.07 प्रतिशत की कमी रही आई। सबसे ज्यादा दान इन दलों को आठ सेक्टर से मिला है। एडीआर की रिपोर्ट में 20 हजार रुपये से ज्यादा के दान को ही इस लिस्ट में शामिल किया है। इनमें 49.58 फीसदी दान (488.42 करोड़ रुपये) इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट से, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर से 12.18 फीसदी (120 करोड़ रुपये), रियल इस्टेट सेक्टर से 9.19 फीसदी (90.57 करोड़ रुपये), खनिज व आयात- निर्यात सेक्टर से 6.55 फीसदी (64.544 करोड़ रुपये) मुख्य तौर पर शामिल हैं।
छह राष्ट्रीय दलों में भाजपा आगे
रिपोर्ट के मुताबिक छह राष्ट्रीय दलों में भाजपा को सबसे ज्यादा ऐसा दान मिला है। कुल 1731 कंपनियों ने भाजपा को 915.596 करोड़ रुपये का दान दिया था। दूसरे स्थान पर कांग्रेस को 151 कंपनियों ने 55.36 करोड़ का दान दिया था। वहीं तीसरे स्थान पर एनसीपी को 23 कंपनियों से 7.737 करोड़ रुपये दान में मिले थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
यह संयोग हो सकता है कि मायावती के शासन में 21 चीनी मिलों की बिक्री के मामले में कार्रवाई हुई और 19 राज्यों में 110 ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी हुई। 500 अफसरों की टीम का यह छापा निश्चित रूप से बड़ा और अनूठा है। इसलिए, अमर उजाला में यह खबर, "भ्रष्टाचार पर प्रहार : 19 राज्यों में 110 ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी" शीर्षक से लीड बनी है। पर भाजपा को चंदे वाली खबर (निश्चित रूप से चंदा लेना या प्राप्त करना भ्रष्टाचार नहीं है) अमर उजाला ने पहले पन्ने पर नहीं, दिल्ली की खबरों के पन्ने पर छापा है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह संपादकीय विवेक का मामला है पर इसे रेखांकित तो किया ही जा सकता है। दैनिक जागरण में भाजपा को चंदे वाली खबर पहले पन्ने पर तो नहीं है लेकिन छापे की खबर लीड है और इसका शीर्षक है, "माया के पूर्व सचिव के ठिकानों पर छापे"।
अब आप समझिए कि आपके अखबार आपको कैसी खबर देते हैं। आप जानते हैं कि अमर उजाला और जागरण मूल रूप से उत्तर प्रदेश के अखबार हैं। इसलिए मायावती से संबंधित खबर इनमें लीड छपे तो बड़ी बात नहीं है। पर आज यह खबर नवोदय टाइम्स में भी लीड है जबकि अंग्रेजी के अखबारों के साथ हिन्दी के दूसरे अखबारों में भी इसे इतनी प्रमुखता नहीं मिली है। दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका में यह सिंगल कॉलम की खबर है। हालांकि, ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि अखबारों में कौन सी खबरें नहीं छपती हैं। और इस लिहाज से यह महत्वपूर्ण खबर है कि पिछले दो वित्तीय वर्ष में देश के राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को 985 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा मिला है। यह चंदा इन दलों के ज्ञात स्त्रोतों का 93 फीसदी है। वहीं 2004-05 से 2014-15 के बीच मिले दान से यह 160 फीसदी ज्यादा है। पकौड़े बेचने का रोजगार करने वाले यह हिसाब लगा सकते हैं कि इतने समय में उनकी कमाई 160 फीसदी बढ़ी है कि नहीं।
आज सुबह सबसे पहले टेलीग्राफ में एडीआर की खबर देखने के बाद मैंने पाया कि दूसरे अखबारों में यह खबर नहीं है। गूगल किया तो अमर उजाला और नवभारत टाइम्स के साइट पर यह खबर मिल गई। लेकिन अखबार के पहले पन्ने पर नहीं थी। मुझे यह अटपटा लगा कि कोई खबर बनाकर भी अखबार में नहीं छापी जाए। इसलिए मैंने अखबार के पन्ने पलटना शुरू किया तो अमर उजाला में यह खबर दिल्ली की खबरों के पन्ने पर दिख गई हालांकि, मैं इसपर होने की उम्मीद नहीं कर रहा था। नवभारत टाइम्स में एडीआर वाली खबर तो नहीं मिली पर मायावती से संबंधित सीबीआई छापे की खबर जरूर प्रमुखता से मिली। मैंने दूसरे सभी अखबार बहुत ठीक से नहीं देखे। आप अपना अखबार खुद देखिए। फिलहाल, मैं अनुवाद से बचने के लिए अमर उजाला की खबर से आपको खबर के खास अंश बताता हूं। एडीआर के विश्लेषण के अनुसार 2016-18 के बीच सबसे ज्यादा पैसा प्रूडेंट/सत्या इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट ने भाजपा और कांग्रेस को दिया। इस ट्रस्ट ने भाजपा को 33 दानों के जरिए 405.52 करोड़ रुपये और कांग्रेस को 13 दानों के जरिए 23.90 करोड़ रुपये दान में दिए। वहीं एनसीपी को बी.जी. शिरके कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड ने 2.5 करोड़ रुपये दान में दिए।
एडीआर के मुताबिक राष्ट्रीय दलों ने अपनी दान रिपोर्ट में ऐसे 916 दानों का विवरण भी दिया है, जिनसे उन्हें 120.14 करोड़ रुपये दान में मिले। वहीं इन दलों के पास 76 ऐसे दान भी आएं जिन्होंने अपने पैन का विवरण नहीं दिया। इनसे इन दलों को 2.59 करोड़ रुपये मिले। भाजपा को इस अवधि में मिले कुल दान में 20 हजार रुपये से अधिक के स्वैच्छिक दानकर्ताओं द्वारा 94 प्रतिशत दान दिया गया। वहीं कांग्रेस को यह प्रतिशत 81 रहा। इस रिपोर्ट में भाजपा, कांग्रेस, एनसीपी के साथ सीपीआई, सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस शामिल रही। सीपीआई को सबसे कम दो प्रतिशत कॉरपोरेट दान मिला। बसपा को रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया, हालांकि वह राष्ट्रीय पार्टी है। वजह, बसपा ने साल 2004 से अब तक स्वयं को 20 हजार से अधिक का दान किसी दानकर्ता से नहीं मिलने की घोषणा की है।
वर्ष 2012-13 से वर्ष 2017-18 के बीच भी भाजपा को सर्वाधिक कॉरपोरेट दान मिला जो 1621.40 करोड़ रहा। वहीं राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को इस अवधि में कॉरपोरेट दान 414 प्रतिशत बढ़ गया। 2015-16 में गिरावट भी आई। वर्ष 2016-17 से 2017-18 के दौरान राष्ट्रीय पार्टियों को होने वाले कॉरपोरेट दान में 25.07 प्रतिशत की कमी रही आई। सबसे ज्यादा दान इन दलों को आठ सेक्टर से मिला है। एडीआर की रिपोर्ट में 20 हजार रुपये से ज्यादा के दान को ही इस लिस्ट में शामिल किया है। इनमें 49.58 फीसदी दान (488.42 करोड़ रुपये) इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट से, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर से 12.18 फीसदी (120 करोड़ रुपये), रियल इस्टेट सेक्टर से 9.19 फीसदी (90.57 करोड़ रुपये), खनिज व आयात- निर्यात सेक्टर से 6.55 फीसदी (64.544 करोड़ रुपये) मुख्य तौर पर शामिल हैं।
छह राष्ट्रीय दलों में भाजपा आगे
रिपोर्ट के मुताबिक छह राष्ट्रीय दलों में भाजपा को सबसे ज्यादा ऐसा दान मिला है। कुल 1731 कंपनियों ने भाजपा को 915.596 करोड़ रुपये का दान दिया था। दूसरे स्थान पर कांग्रेस को 151 कंपनियों ने 55.36 करोड़ का दान दिया था। वहीं तीसरे स्थान पर एनसीपी को 23 कंपनियों से 7.737 करोड़ रुपये दान में मिले थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)