“मेरी तबाहियों में मेरा अपना हाथ है, मेरे अपने लोगों का योगदान है"। सवा दो साल बाद जेल से रिहा हुए आजम खां की पीड़ा में राजनीतिक विश्लेषक उनके सियासी कदमों की आहट को सुन रहे हैं। आजम खां के अपनों को निशाने पर लेने से अटकलें भी तेज हो उठीं है कि क्या उनका इशारा सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की तरफ है या फिर रामपुर में उनके अपने लोग जो मुकदमों की हद तक उनके खिलाफ हो उठे हैं? बहरहाल दर्द फूटा है लेकिन साथ ही आजम खां ने यह कहकर एक नई मुस्लिम सियासत की ओर भी साफ साफ इशारा कर दिया है कि मुसलमानों को उनके "वोट के हक" की सजा मिल रही है। कहा इस बाबत वह प्रमुख मुस्लिम इदारों से चर्चा करेंगे कि कहीं ये वोट तो हमारी बर्बादी की वजह नहीं हैं। बहरहाल उनका इशारा कुछ हो, उनके अगले कदम पर सभी की निगाहें लगी है।
सीतापुर जेल से रिहा होकर रामपुर पहुंचे आजम खां ने पत्रकारों के समक्ष अपने दर्द को कुछ यूं बयां किया। कहा, मेरी तबाही में मेरा अपना हाथ है, मेरे अपनों का बड़ा योगदान है। मालिक से दुआ है कि उन्हें सदबुद्धि आए। अपनों की बात पर अटकलें तेज होनी ही थी। दूसरा, यह बात उन्होंने तब कही जब उनसे अखिलेश यादव द्वारा इस संघर्ष में उनका साथ न देने और मुसलमानों की नाराजगी को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, मेरी तबाहियों में मेरा अपना हाथ है। खान ने सवालिया लहजे में पूछा भी कि, मुझ पर मुकदमे कायम कराने वाले कौन लोग हैं, सबसे पहले 8 मुकदमे मेरे ऊपर हुए और उन लोगों ने कहा कि आजम खान ने जबरन मुझसे जमीन छीन ली। जिन 8 लोगों ने दीवानी अदालत में मुझ पर मुकदमे किये उन आठों लोगों के भुगतान चेक से किए गए थे।
आजम ने कहा, जो जमीन दो हजार रुपये बीघा की नहीं थी, उस वक्त उन्होंने एक बीघे के लिए 40 हजार रुपये दिये। सारे लोग मुकदमे हार गये और हमसे लिए पैसे से लोगों ने हज किये, 2 बीघा जमीन थी तो 8 बीघा जमीन खरीद ली। हालांकि 27 माह के संघर्ष में सपा की भूमिका को लेकर उठे सवाल पर आजम ने कहा कि ''मैं खतावार मानता ही नहीं हूं तो माफ किसलिए करूं। मेरे लिए जिसने जितना किया उसका शुक्रिया, जिसने नहीं किया उसका भी शुक्रिया। किसने कितना किया, यह आपसे बेहतर कौन जान सकता है।'' जेल में अखिलेश यादव द्वारा भेजे एक प्रतिनिधिमंडल से आजम खान द्वारा मुलाकात करने से मना कर दिए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि तब उनकी तबीयत ठीक नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत के बाद शुक्रवार सुबह सीतापुर जेल से रिहा हुए आजम खां को लेने उनके बेटे एवं विधायक अब्दुल्ला आजम, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) अध्यक्ष शिवपाल यादव, सहारनपुर देहात से विधायक आशु मलिक आदि तमाम समर्थक जेल पहुंचे और आजम खान का स्वागत किया। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव नहीं पहुंचे। उन्होंने ट्वीट कर खान का स्वागत किया। आजम खान लंबे काफिले और फूलमालाओं से स्वागत के बीच रामपुर पहुंचे। यूपी विधानसभा में दसवीं बार के सदस्य आजम खां ने सुप्रीम कोर्ट की जय करते हुए बात की शुरुआत की। कहा कि 'मैंने अपनी सारी जिंदगी एक चीज साबित करने की कोशिश की कि मेरी वफादारी संदिग्ध नहीं है, मैं जमीर बेचने वाला नहीं हूं, न मैं देश बेचने वाला हूं और न मैं कौम बेचने वाला हूं। ये मैंने आपातकाल के वक्त भी साबित कर दिया था।'
आजम खां ने सवाल किया, सरकार या सरकार की पार्टी (बीजेपी) को न जाने उनसे इतनी नफरत क्यों है, आज तक वह यह नहीं समझ सके। वह इसे जानने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा, इस वक्त उनके लिए बीजेपी, बीएसपी या कांग्रेस इसलिए बड़ा सवाल नहीं है, क्योंकि उनके परिवार पर हजारों की तादाद में मुकदमे दर्ज हैं। यही नहीं, खान ने कहा, 'आज मुसलमानों को जो भी सजा मिल रही है, यह उनके 'वोट के हक' की सजा मिल रही है। सारे सियासी दल यह समझते हैं कि मुसलमान सियासी जमातों के समीकरण खराब कर देते हैं। सपा नेता ने मुस्लिम धर्म से जुड़े प्रमुख शिक्षण संस्थानों का नाम लेते हुए कहा कि वह बरेली, नदवा, मुबारकपुर, देवबंद के लोगों से इस पर चर्चा करेंगे कि कहीं ये वोट तो हमारी बर्बादी की वजह नहीं हैं।
खास है कि एक मध्यवर्गीय परिवार में पैदा हुए आज़म ख़ान ने 1970 के दशक में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से क़ानून की पढ़ाई की। यहीं के छात्रसंघ में सियासत का ककहरा सीखा। इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया तो वो भी जेल गए। बाहर आए तो नई पहचान और लंबा राजनीतिक सफ़र उनका इंतज़ार कर रहा था। खास यह भी कि रामपुर को नवाबों का शहर कहा जाता है। लेकिन इन्हीं नवाबों से लड़कर आज़म ख़ान ने अपनी राजनीति शुरू की। 1980 में पहली बार विधायक बने और अगले दशकों में रामपुर को अपने नाम का पर्याय बना लिया। जो उनकी राजनीतिक परिपक्वता, जीवटता और लोगों खासकर मुसलमानों पर उनकी मजबूत पकड़ को भी दर्शाता है।
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सीतापुर जेल से रिहा होकर रामपुर पहुंचे आजम खां ने पत्रकारों के समक्ष अपने दर्द को कुछ यूं बयां किया। कहा, मेरी तबाही में मेरा अपना हाथ है, मेरे अपनों का बड़ा योगदान है। मालिक से दुआ है कि उन्हें सदबुद्धि आए। अपनों की बात पर अटकलें तेज होनी ही थी। दूसरा, यह बात उन्होंने तब कही जब उनसे अखिलेश यादव द्वारा इस संघर्ष में उनका साथ न देने और मुसलमानों की नाराजगी को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, मेरी तबाहियों में मेरा अपना हाथ है। खान ने सवालिया लहजे में पूछा भी कि, मुझ पर मुकदमे कायम कराने वाले कौन लोग हैं, सबसे पहले 8 मुकदमे मेरे ऊपर हुए और उन लोगों ने कहा कि आजम खान ने जबरन मुझसे जमीन छीन ली। जिन 8 लोगों ने दीवानी अदालत में मुझ पर मुकदमे किये उन आठों लोगों के भुगतान चेक से किए गए थे।
आजम ने कहा, जो जमीन दो हजार रुपये बीघा की नहीं थी, उस वक्त उन्होंने एक बीघे के लिए 40 हजार रुपये दिये। सारे लोग मुकदमे हार गये और हमसे लिए पैसे से लोगों ने हज किये, 2 बीघा जमीन थी तो 8 बीघा जमीन खरीद ली। हालांकि 27 माह के संघर्ष में सपा की भूमिका को लेकर उठे सवाल पर आजम ने कहा कि ''मैं खतावार मानता ही नहीं हूं तो माफ किसलिए करूं। मेरे लिए जिसने जितना किया उसका शुक्रिया, जिसने नहीं किया उसका भी शुक्रिया। किसने कितना किया, यह आपसे बेहतर कौन जान सकता है।'' जेल में अखिलेश यादव द्वारा भेजे एक प्रतिनिधिमंडल से आजम खान द्वारा मुलाकात करने से मना कर दिए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि तब उनकी तबीयत ठीक नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत के बाद शुक्रवार सुबह सीतापुर जेल से रिहा हुए आजम खां को लेने उनके बेटे एवं विधायक अब्दुल्ला आजम, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) अध्यक्ष शिवपाल यादव, सहारनपुर देहात से विधायक आशु मलिक आदि तमाम समर्थक जेल पहुंचे और आजम खान का स्वागत किया। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव नहीं पहुंचे। उन्होंने ट्वीट कर खान का स्वागत किया। आजम खान लंबे काफिले और फूलमालाओं से स्वागत के बीच रामपुर पहुंचे। यूपी विधानसभा में दसवीं बार के सदस्य आजम खां ने सुप्रीम कोर्ट की जय करते हुए बात की शुरुआत की। कहा कि 'मैंने अपनी सारी जिंदगी एक चीज साबित करने की कोशिश की कि मेरी वफादारी संदिग्ध नहीं है, मैं जमीर बेचने वाला नहीं हूं, न मैं देश बेचने वाला हूं और न मैं कौम बेचने वाला हूं। ये मैंने आपातकाल के वक्त भी साबित कर दिया था।'
आजम खां ने सवाल किया, सरकार या सरकार की पार्टी (बीजेपी) को न जाने उनसे इतनी नफरत क्यों है, आज तक वह यह नहीं समझ सके। वह इसे जानने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा, इस वक्त उनके लिए बीजेपी, बीएसपी या कांग्रेस इसलिए बड़ा सवाल नहीं है, क्योंकि उनके परिवार पर हजारों की तादाद में मुकदमे दर्ज हैं। यही नहीं, खान ने कहा, 'आज मुसलमानों को जो भी सजा मिल रही है, यह उनके 'वोट के हक' की सजा मिल रही है। सारे सियासी दल यह समझते हैं कि मुसलमान सियासी जमातों के समीकरण खराब कर देते हैं। सपा नेता ने मुस्लिम धर्म से जुड़े प्रमुख शिक्षण संस्थानों का नाम लेते हुए कहा कि वह बरेली, नदवा, मुबारकपुर, देवबंद के लोगों से इस पर चर्चा करेंगे कि कहीं ये वोट तो हमारी बर्बादी की वजह नहीं हैं।
खास है कि एक मध्यवर्गीय परिवार में पैदा हुए आज़म ख़ान ने 1970 के दशक में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से क़ानून की पढ़ाई की। यहीं के छात्रसंघ में सियासत का ककहरा सीखा। इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया तो वो भी जेल गए। बाहर आए तो नई पहचान और लंबा राजनीतिक सफ़र उनका इंतज़ार कर रहा था। खास यह भी कि रामपुर को नवाबों का शहर कहा जाता है। लेकिन इन्हीं नवाबों से लड़कर आज़म ख़ान ने अपनी राजनीति शुरू की। 1980 में पहली बार विधायक बने और अगले दशकों में रामपुर को अपने नाम का पर्याय बना लिया। जो उनकी राजनीतिक परिपक्वता, जीवटता और लोगों खासकर मुसलमानों पर उनकी मजबूत पकड़ को भी दर्शाता है।
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