मेल टुडे में उनके बनाए कार्टून के प्रकाशित होने के बाद सबरंग इंडिया के साथ एक ख़ास साक्षात्कार में सतीश आचार्य ने पत्रकारों पर बढ़ते हमलों की परिपाटी पर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर और बीजेपी आईटी सेल के बारे में बात की है.
प्रसिद्द कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य ने मेल टुडे को अपनी सेवाएं देना बंद कर दिया है क्योंकि संपादक ने मोदी और चीन पर उनका बनाया कार्टून पब्लिश न करने का फ़ैसला लिया था. मिड डे टैब्लोइड के लिए एक कार्टूनिस्ट के रूप में काम करते हुए सतीश आचार्य प्रमुखता से उभरे. जनता के बीच भी और यहां तक कि राजनीतिक गलियारों में भी ख़ासे पसन्द किए गए. इस बात का ज़िक्र उन्होंने बीते दिनों अपनी एक फ़ेसबुक पोस्ट में भी किया था जो ख़ूब वायरल हुई. पोस्ट में उन्होंने बताया कि 'क्लॉज़' शीर्षक से बनाया उनका कार्टून जिसमे चीन का लाल ड्रैगन भारत सहित दक्षिण एशिया को अपने चंगुल में जकड़े हुए है और मोदी बेख़बर, बेपरवाह से खड़े हैं, की जगह एक फ़ोटो को पब्लिश कर दिया गया.
2015 में फोब्ज़ इंडिया ने आचार्य को ऐसे 24 विचारकों में से एक के रूप में दिखाया गया था जिन्हें भारत के बाहर भी ख्याति प्राप्त है. चार्ली हेब्डो हमले पर उनका कार्टून कई लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय मीडिया समूहों द्वारा प्रकाशित किया गया था.
सबरंग इंडिया के साथ एक साक्षात्कार में आचार्य ने वर्तमान में पत्रकारों पर बढ़ते हमलों की प्रवृत्ति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बीजेपी आईटी सेल के बारे में बात की.
उन्होंने कहा “मुझे नहीं मालूम कि संपादक, मीडिया पर नज़र रखने वाले बीजेपी आईटी सेल से प्राभावित थे या नहीं या संपादकों पर बीजेपी आईटी सेल के द्वारा कितना और कैसा दबाव होता है. लेकिन संपादक द्वारा ख़ारिज किये गए हर कार्टून में मैंने एक पैटर्न देखा है कि वे सभी गाय, लिन्चिंग, मोदी, अमित शाह आदि से सम्बंधित थे.”
उन्होंने यह भी कहा कि यूपीए सरकार पर उन्होंने ऐसे कई कार्टून बनाए थे, लेकिन तब इस तरह की प्रतिक्रिया कभी नहीं मिली थी. "जब यूपीए सरकार सत्ता में थी तब मैंने उनपर भी कई कार्टून बनाए लेकिन इस तरह की कोई घटना कभी नहीं हुई. ऑनलाइन मिलने वाली आलोचनाएं और अपशब्द मेरे लिए कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन संख्या में वो जितने ऊंचे और स्तर में वो जितने नीचे अब हैं वैसे पहले कभी नहीं रहे. शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस के पास आईटी सेल नहीं था. सोशल मीडिया के ये हमले अब बहुत व्यवस्थित और संस्थागत हैं. वे किसी को चुनते हैं और उसपर लगातार निशाना बनाए रहते हैं. फ़ेसबुक पर ऐसे कितने ही लोगों को मैं ब्लॉक कर चुका हूं, ट्विटर और फ़ेसबुक में ऐसे अनगिनत लोगों की शिकायत कर चुका हूं लेकिन वे अलग-अलग नामों और नए-नए आईडी के साथ फिर वापस आते हैं. जब आप निगरानी के दायरे में होते हैं तो आपके पल-पल पर नज़र रखी जाती है.”
सोशल मीडिया के शातिर निरन्तर और निर्दयी हमले
दुर्व्यवहार करने वाले ऐसे बहुतेरों को आचार्य ने ब्लॉक किया लेकिन वे लगातार नए नाम और नई आईडी के साथ वापस आते हैं.
उन्होंने कहा “मोदी और चीन पर बनाया मेरा कार्टून जब वायरल हुआ तो उन्होंने इसे चोरी का कार्टून बताकर बदनाम करना शुरू किया. उन्होंने कहा कि आपने 1959 के उस कार्टून की नक़ल बनाई है जिसमें नेहरु पर लाल कम्युनिस्ट हांथ दिखाए गए थे. झूठ पैदा करने और फैलाने वाली उनकी मशीनरी न रूकती है न थकती है.”
उन्होंने ज़िक्र किया कि कैसे अभी-अभी एबीपी के पत्रकारों को निशाना बनाया गया, कई अन्य भी ऐसी ही परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं. "उन्हें ऑनलाइन बहुत सारे दुष्प्रचारों और बुरी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. मैं चाहता हूं कि पत्रकार और कार्टूनिस्ट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे इस अतिक्रमण पर खुल कर बात करें.”
“मैंने कई अखबारों के साथ काम किया और अपना योगदान दिया है कई प्रमुख अखबारों को पत्रकारों और कार्टूनिस्टों का मज़ाक उड़ाते भी देखा है. हम हमारे लिए तय की गई लक्ष्मण रेखा के दायरे में काम करते हैं. हमारी सीमाएं हैं जिन्हें हम पार नहीं करते. हम नियंत्रण से बाहर नहीं जाते हैं, कई मुद्दे सिर्फ़ इसलिए छोड़ दिए जाते हैं कि कहीं लोग नाराज़ न हो जाएं. हम नहीं चाहते कि दंगे शुरू हो जाएं या लोग एक दूसरे को मारने लग जाएं. कई अवांछित सोशल मीडिया तत्व हमारे आर्टवर्क के साथ छेड़छाड़ करते हैं उसका रूप बदल देते हैं उसमें नए किरदार जोड़कर हमारे नाम के साथ शेयर करते हैं. इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं. उससे यदि कोई समस्या उत्पन्न होती है तो वो हमसे भी सीधे जुड़ जाती है. ऐसी हरकत करने वालों का कोई अता-पता नहीं है. ऐसे मामलों में किसकी मदद ली जाए ये भी स्पष्ट नहीं है. हमें कठोर ऑनलाइन मीडिया सुरक्षा दिशानिर्देशों की आवश्यकता है.
मीडिया का चरम आत्मनियंत्रण
उन्होंने कहा कि “उस पोस्ट के बाद बहुत से लोगों ने मुझे निजी तौर पर सन्देश भेजे. बहुत से लोग ऐसी बाध्यता और ऐसे ही हमलों से जूझ रहे हैं. कार्टूनिस्टों के लिए यहां पर्याप्त नौकरियां नहीं हैं, वे मजबूर हैं करें भी तो क्या, वे अपनी नौकरी गवाना नहीं चाहते. ऐसा लगता है कि कार्टूनिस्टों पर एक अघोषित आदेश है कि वे सरकार को ख़ुश रखें, उसके विचारों का अनुसरण करें और ये सब वे अपने काम से साबित करें.”
उन्होंने कहा कि दर्शकों से और प्रेस में साथ करने वाले सहयोगियों से उन्हें बड़ा समर्थन प्राप्त हुआ है. बहुत से लोगों ने पर्सनली उनसे अपने अनुभव भी साझा किए हैं.
उन्होंने कहा कि "जनता इन दिनों संपादकों पर भरोसा नहीं करती है लेकिन कार्टूनिस्टों पर उनका विशवास अब भी कायम है. आज भारत में बहुत कम राजनीतिक कार्टूनिस्ट हैं. संविधान हमें स्वतंत्रता की गारंटी देता है लेकिन ये गारंटी धरातल पर कहीं नहीं दिखती. कार्टूनिस्ट असहाय होता है संपादक ही निर्णय लेता है कि उसे क्या प्रकाशित करना है क्या नहीं. मैं अभी भी कई अन्य प्रकाशनों के लिए कार्टून बनाता हूं. बावजूद इसके कि हमारे विचारों में मतभेद हैं उन्होंने अभिव्यक्ति की मेरी स्वतंत्रा को बनाए रखा है.”
अपनी बात में उन्होंने ये भी जोड़ा कि "मैं चाहता हूं कि अधिक संख्या में पत्रकार आगे आएं और अपने काम पर लग रही बेजा पाबंदियों की घटनाओं को सामने लाएं. उनमे से कई चुपचाप सबकुछ सह रहे हैं, उन्हें आवाज़ उठानी चाहिए. राजनीतिक कार्टून बनाना एक कठिन पेशा है. हर जगह, यहां तक कि अमित शाह के फ़ेसबुक अकाउंट पर भी मेरा आर्टवर्क पोस्ट किया गया है लेकिन स्वयं संपादकों ने उन्हें प्रकाशित करने में उदासीनता दिखाई है. आर के लक्ष्मण भाग्यशाली थे जो उन्हें अपने समय में इसका सामना नहीं करना पड़ा."
उन्होंने अन्य कार्टून भी साझा किए जिन्हें उनकी ट्विटर प्रोफ़ाइल पर रिजेक्ट कर दिया गया था.
मेल टुडे के संपादक दवैपायन बोस ने विवाद का जवाब दिया. उन्होंने कहा कि "सतीश आचार्य के कार्टून रोज़ाना प्रकाशित किए जाते हैं. ये पहली बार हुआ है कि उनका कोई कार्टून रोक दिया गया हो.” ऐसा करने का कारण बताते हुए वे कहते हैं "ये क्यों किया गया है - कृपया ध्यान दें कि संपादकीय निर्णय लेने की हमारी एक आंतरिक प्रक्रिया है और मेल टुडे की संपादकीय टीम का इसपर विशेषाधिकार भी है. हमारे यहां पूर्ण सम्पादकीय स्वतंत्रता है और ये झूठे आरोपों या अन्यायपूर्ण बहकावों से अप्रभावित रहती है. जो सामग्री हमारे सम्पादकीय पैमानों पर खरा उतरने में विफल होती हम उसे प्रकाशित करने को बाध्य नहीं हैं.” स्क्रोल से चर्चा करते हुए उन्होंने ये बात कही.
भारतीय उपमहाद्वीप में उन पत्रकारों की सूची लम्बी ही होती जा रही है जो सेंसर्ड हैं, जिनकी आवाज़ दबा दी गई है या जो निकाले जा चुके हैं. अपनी स्वतंत्रता को लेकर विवादों से घिरी मीडिया उसे मरने पर मजबूर तो कर रही है पर वो अब भी अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत है.
सतीश आचार्य की उस फ़ेसबुक पोस्ट को आप इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं
https://www.facebook.com/carto