सरदार भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह: कृषि कानूनों के खिलाफ चलाया था 'पगड़ी सम्भाल जट्टा' आंदोलन

Written by Sabrangindia Staff | Published on: February 23, 2021
नई दिल्ली। कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसान मंगलवार को पगड़ी संभाल जट्टा दिवस मना रहे हैं। रेवाड़ी बॉर्डर पर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब व महाराष्ट्र के किसान अपने-अपने संगठन के रंग की पगड़ी पहनकर पहुंचे। इस पगड़ी संभाल लहर का जन्मदाता भी पंजाब है। 1907 में पंजाब में किसानों की एक रैली हुई थी। इसमें एक अखबार झांग स्याल के संपादक बांके दयाल ने एक गीत गाया था, जिसके बोले थे... पगड़ी संभाल जट्टा। इस गीत ने प्रदर्शनकारियों पर ऐसा असर डाला कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ प्रदर्शन तेज हो गया था। जिस आंदोलन में यह गीत गाया गया था, वह शहीद ए आजम भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने छेड़ा था। किसानों के हक की लड़ाई में स्वामी सहजानंद सरस्वती का भी महत्वपूर्ण योगदान है। उत्तर प्रांत में किसान आंदोलन चलाने वाले स्वामी सहजानंद सरस्वती और सरदारा अजीत सिंह के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी यहां दी जा रही है।

 

सहजादनन्द सरस्वती और सरदार अजीत सिंह का संक्षिप्त परिचय
हिंदुस्तान में क्रांतिकारी किसान आंदोलनों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। किसानों ने 1857 और उससे पूर्व भी किसानों ने तत्कालीन सरकारों से निर्णायक लड़ाईयां लड़ी हैं. पंजाब के अलावा ब्रिटिश काल में संयुक्त प्रांत और अवध में किसानों के संघर्षों का इतिहास रहा है, जिसने आजादी से पूर्व अंग्रेज सरकार और आजादी के बाद की सरकारों को अपनी मांग मनवाने के लिए विवश किया था। अवध में बाबा रामचंद्र के आंदोलन ने प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, जौनपुर, लखनऊ, बाराबंकी, इलाहाबाद आदि इलाकों में अंग्रेज सरकारों को विवश कर दिया था। ऐसे ही दो किसान नेताओं को आज स्मरण करने का दिन है। शहीदे आजम सरदार भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह और उत्तर प्रांत में किसान आंदोलन चलाने वाले स्वामी सहजानंद सरस्वती। इन शख्सियतों के क्रांतिकारी संघर्षों को याद करते हुए कृषि कानूनों के खिलाफ जारी देशव्यापी किसान आंदोलन उनको क्रांतिकारी सलाम करता है।

सहजानन्द सरस्वती, जिनका असली नाम नवरंग राय था, का जन्म 22 फरवरी, 1889 को उप्र के गाजीपुर जिले में हुआ था। उनका देहान्त 28 जून 1950 को हुआ। वे एक क्रांतिकारी किसान नेता थे और एक इतिहासकार, दार्शनिक, लेखक भी। उनके काम का मुख्य क्षेत्र बिहार में केन्द्रित था। उन्होंने भीटा में एक आश्रम स्थापित किया था, जहां से उन्होंने अपने काम को संचालित किया और जीवन के बाद का समय बिताया।

उन्होंने 1929 में बिहार प्रान्तीय किसान सभा का निमार्ण किया ताकि जमींदारों के विरुद्ध वे किसानों की बेदखली के विरुद्ध तथा जुताई के अधिकार के लिए उनको गोलबंद कर सकें। इसी के साथ देश भर में किसान आंदोलन को उन्होंने प्रेरित किया जिसके फलस्वरूप 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ जिसके वे पहले अध्यक्ष बने। किसान सभा के घोषणापत्र ने जमींदारी व्यवस्था तथा ग्रामीण कर्जे समाप्त करने की मांग उठाई। ये जमींदार अंग्रेजी शासन द्वारा कर वसूली के लिए नियुक्त थे। यह आंदोलन जो किसानों की जमीन पर मालिकाना व खेती करने के अधिकार की रक्षा के लिए था, बिहार व संयुक्त प्रान्त की कांग्रेस सरकारों के साथ टकराव में आ गयी।

सहजानन्द सरस्वती ने 1937-38 में बिहार में ‘बकाश्त’ आंदोलन की शुरूआत की। बकाश्त का अर्थ है खुद काश्तकारी करना। यह आंदोलन जमींदारों द्वारा किसानों को जंमीन से बेदखल करने के विरूद्ध था। इसी आंदोलन के दबाव में बिहार टेनेन्सी कानून तथा बकाश्त भूमि कर कानून परित किये गए। भारत छोड़ो आंदोलन मे सहजानन्द को भी जेल में डाला गया।

चाचा अजीत सिंह
23 फरवरी 1881 को जन्मे अजीत सिंह ने भी किसानों के हक की लड़ाई लड़ी। उस समय पंजाब के किसान नये औपनिवेशिक कानूनों- नया औपनिवेशिकरण कानून तथा दोआब बारी कानून के विरुद्ध आक्रोशित थे। इन कानूनों की पृष्ठभूमि यह है कि अंग्रेज सरकार ने चेनाब नदी से अब पाकिस्तान में स्थित लयालपुर तक नहर बनवाई थी ताकि वहां खाली पड़े इलाके में वह किसानों को बसा सकें। इसके लिए किसानों का मुफ्त में जमीन व सुविघाएं देने की घोषणा भी की गयी थी ताकि पूर्व सैनिक व किसान अपने गांव छोड़कर वहां बस सकें। 

जालंधर, अमृतसर व होशियारपुर से किसान अपनी जमीन व सम्पत्ति छोड़कर बस भी गए थे और मेहनत करके उस जमीन को उर्वरक बना दिया था। पर ऐसा हो जाने के बाद सरकार ने नये कानून बनाए और घोषणा कर दी कि इस समृद्ध भूमि की मालिक सरकार है और किसान बटाईदार हैं, उन्हें मालिकाना हक से वंचित कर दिया। अब किसान न तो उसमें घर व झोंपड़ी बना सकते थे, न पेड़ काट सकते थे, ना ही जमीन बेच सकते थे। जमीन का वारिस भी केवल बड़ा लड़का बन सकता था और किसी भी उल्लंघन में जमीन सरकार की हो जाती थी। 20 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई के लिए बनी नहरों के नाम पर जो कर लगाये गए उनकी वसूली में खर्च की भरपाई के बाद भी हर साल 7 लाख रुपये अबपासी कर वसूला जाता था।

अजीत सिंह व उनके साथियों ने इन सवालों पर एक लोकप्रिय आंदोलन का निर्माण किया। कांग्रेस इस आंदोलन का नेतृत्व करने में विफल रही क्योंकि उसके नेताओं ने कहा कि कानून अब पास हो चुके हैं। इसके बाद किसानों ने सरदार अजीत सिंह और उनकी भारत माता सोसाइटी, जो इन सवालों पर एक बहादुराना संघर्ष संचालित कर रही थी, का नेतृत्व स्वीकार किया।

कुछ ही समय में लाहौर और उसके निकटवर्ती इलाके रैलियों, सम्मेलनों व प्रदर्शनों से भरपूर हो गए और हजारों लोग इनमें भाग लेने लगे। इन सभाओं में इन दमनकारी कानूनों पर चर्चा होती थी और साथ में अंग्रेजी उपनिवेशवाद द्वारा देश को तबाह करने पर तथा विदेशी राज के विरुद्ध एक सम्पूर्ण विद्रोह खड़ा करने पर भी। सरकार ने अजीत सिंह के भाषणों को सुनने पर रोक भी लगा दी।

3 मार्च 1907 को लयालपुर में एक विशाल जनसभा व रैली आयोजित की गयी। इसमें झांग सयाल अखबार के सम्पादक, बांके दयाल ने एक गीत प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘पगड़ी सम्भाल जट्टा, पगड़ी सम्भाल ओए ...’। बाद में इस संघर्ष का नाम ही इसी पर पड़ गया।

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