फ़िल्म "काला" में पा रंजीत की कल्पनाशीलता अद्भुत है, वे जिन बारीक रास्तों से बहुजन भारत के नैरेटिव को उभार रहे हैं वह भारत मे 'इस पैमाने' पर पहली बार हो रहा है.
फ़िल्म "काला" वास्तव में एक मील का पत्थर है. इसके संवादों, प्रतीकों, इशारों, मूर्तियों और चित्रों इत्यादि से बहुजन भारत की उपस्थिति और ताकत का बेबाक चित्रण हुआ है.
बहुजनों की ग़रीबी, शहरीकरण की समस्याओं और दलित मुस्लिम एकता का जो चित्रण इसमें मिलता है वह महत्वपूर्ण है. फ़िल्म में टर्निंग पॉइंट जे रूप में "बहुजन नॉन-कोऑपरेशन मूवमेंट" की सफलता का जो रंग उभरता है वह पूरे बहुजन समाज और भारत के लिए एक निर्णायक सन्देश रचता है.
बहुजनों को वास्तव में अब यही काम करना है. धर्मसत्ता, अर्थसत्ता और राजसत्ता के ऊपरी स्तरों पर बहुजनों से सवर्णों ने सदियों से असहयोग का रवैया अपना रखा है. बहुजनों को अब इसका जवाब देते हुए निचले स्तरों और जमीन पर रोजमर्रा के कामों में सवर्णों से असहयोग आरंभ करना होगा.
एक समर्पित अंबेडकरवादी पा रंजीत की निष्ठा बहुजन भारत के पक्ष में साफ नजर आती है. वे जिस विचारधारा को लेकर चल रहे हैं उसे बहुत शक्ति के साथ उन्होने सबके सामने रख दिया है.
भविष्य में रजनीकांत एक दक्षिणपंथी राजनीति के हिमायती या मोहरे की तरह पा रंजीत को इस्तेमाल करते हुए बहुजन आंदोलन को कितना हाईजैक करते हैं या नहीं करते हैं यह भविष्य बताएगा. रजनीकांत की बहुजन हितैषी छवि को दक्षिणपंथ कितना इस्तेमाल करता है ये भी भविष्य ही बताएगा.
लेकिन पा रंजीत अभी तो रजनीकांत की इमेज को बहुजन हित के लिए इस्तेमाल कर चुके हैं.
भविष्य के परिणामों के आने तक इसे पा रंजीत की कल्पनाशीलता और निष्ठा की विजय मानी जानी चाहिए.
आगे उम्मीद करनी चाहिए कि रंजीत की निष्ठा रजनीकांत की महत्वाकांक्षा से जीत सके और बहुजन भारत के निर्माण की दिशा में अधिक सृजनात्मक ढंग से काम कर सके.
फ़िल्म "काला" वास्तव में एक मील का पत्थर है. इसके संवादों, प्रतीकों, इशारों, मूर्तियों और चित्रों इत्यादि से बहुजन भारत की उपस्थिति और ताकत का बेबाक चित्रण हुआ है.
बहुजनों की ग़रीबी, शहरीकरण की समस्याओं और दलित मुस्लिम एकता का जो चित्रण इसमें मिलता है वह महत्वपूर्ण है. फ़िल्म में टर्निंग पॉइंट जे रूप में "बहुजन नॉन-कोऑपरेशन मूवमेंट" की सफलता का जो रंग उभरता है वह पूरे बहुजन समाज और भारत के लिए एक निर्णायक सन्देश रचता है.
बहुजनों को वास्तव में अब यही काम करना है. धर्मसत्ता, अर्थसत्ता और राजसत्ता के ऊपरी स्तरों पर बहुजनों से सवर्णों ने सदियों से असहयोग का रवैया अपना रखा है. बहुजनों को अब इसका जवाब देते हुए निचले स्तरों और जमीन पर रोजमर्रा के कामों में सवर्णों से असहयोग आरंभ करना होगा.
एक समर्पित अंबेडकरवादी पा रंजीत की निष्ठा बहुजन भारत के पक्ष में साफ नजर आती है. वे जिस विचारधारा को लेकर चल रहे हैं उसे बहुत शक्ति के साथ उन्होने सबके सामने रख दिया है.
भविष्य में रजनीकांत एक दक्षिणपंथी राजनीति के हिमायती या मोहरे की तरह पा रंजीत को इस्तेमाल करते हुए बहुजन आंदोलन को कितना हाईजैक करते हैं या नहीं करते हैं यह भविष्य बताएगा. रजनीकांत की बहुजन हितैषी छवि को दक्षिणपंथ कितना इस्तेमाल करता है ये भी भविष्य ही बताएगा.
लेकिन पा रंजीत अभी तो रजनीकांत की इमेज को बहुजन हित के लिए इस्तेमाल कर चुके हैं.
भविष्य के परिणामों के आने तक इसे पा रंजीत की कल्पनाशीलता और निष्ठा की विजय मानी जानी चाहिए.
आगे उम्मीद करनी चाहिए कि रंजीत की निष्ठा रजनीकांत की महत्वाकांक्षा से जीत सके और बहुजन भारत के निर्माण की दिशा में अधिक सृजनात्मक ढंग से काम कर सके.