अहिंसक आंदोलन को 'आतंकवाद' कहना भी 'आतंकी' होना ही है

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: February 22, 2020
आरिफ मोहम्मद खान को मैं सुलझा हुआ राजनेता समझता था। भाजपा का समर्थन करने, गवरनर बनने और सीएए का समर्थन करने के बावजूद। उनके ताजा बयान के बाद मुझे लगने लगा है कि वे कुर्सी के लिए कुछ भी कहने करने वालों से अलग नहीं हैं। पद पर बने रहने के लिए उन्हें ऐसी बात करने की जरूरत नहीं है। भाजपा इस स्थिति में तो नहीं ही है कि ऐसी बातें नहीं करने पर उन्हें पद से हटा देगी। ना ही उन्हें इससे डरना चाहिए। ऐसे बयान न देने से भाजपा उन्हें दोबारा राज्यपाल न बनाए यह संभव है (उनका इरादा कुछ और हो तो मैं नहीं जानता) पर ऐसा बहुत आम है भी नहीं। इसलिए सम्मान से रहना चाहिए। अपनी नहीं तो पद के सम्मान का ख्याल जरूर रखना चाहिए।



शाहीनबाग का धरना अपने विचार दूसरों पर थोपना कैसे हो सकता है। अपने विचार दूसरों पर थोपना तो सीएए कानून है, राज्यपाल महोदय का यह बयान है कि सीएए का विरोध ऐसे नहीं होना चाहिए या यह भी आतंकवाद है। एक अहिंसक आंदोलन आतंकवाद है तो गुर्जर आंदोलन क्या था जिसके नेता अब भाजपा में हैं? यह दिलचस्प है कि राज्यपाल ने ''भारतीय छात्र संसद'' में कहा, ''उग्रता केवल हिंसा के रूप में सामने नहीं आती। यह कई रूपों में सामने आती है। पर उन्होंने यह नहीं कहा कि वह बच्चों के देसी कट्टा चलाने के रूप में भी आती है। धरने के बारे में उन्होंने कहा है, अगर आप मेरी बात नहीं सुनेंगे, तो मैं आम जनजीवन को प्रभावित करूंगा।''

शाहीनबाग का धरना आमजनजीवन को कैसे प्रभावित कर रहा है। एक सड़क बंद होने से जनजीवन प्रभावित होने लगता तो देश भर में कितनी सड़कें कितने कारणों से कितने समय से बंद हैं और बंद रहती हैं उसका कोई हिसाब है? और सच यह है कि सड़क बंद हो तो आदमी दूसरे रास्ते से जा सकता है पर सड़क खराब हो, टूटी, गड्डेवाली हो, जाम हो तो जनजीवन ज्यादा प्रभावित होता है। पर चिन्ता सिर्फ शाहीनबाग की ही है। वह भी तब जब सरकार बार-बार साफ-साफ कह चुकी है कि सीएए का विरोध करते रहें उसे वापस नहीं लिया जाएगा। अगर धरने से जनजीवन प्रभावित हो रहा है तो इसपर बात करके रास्ता निकालने की कोशिश हो सकती है पर यह काम सरकार नहीं कर रही है।

सरकार धरना देने वालों से जबरदस्ती भी नहीं कर रही है जैसा आम तौर पर सड़कें खुलवाने के लिए करती है। ऐसी हालत में तो लगता है कि इस आतंकवाद को सरकार का समर्थन है। आप कह सकते हैं कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है। पर सीएए की संवैधानिकता का मामला भी तो सुप्रीम कोर्ट में है। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि सीएए का विरोध गलत है। धरना देना तो कहीं भी गलत हो सकता है, सड़क की जगह पार्क ही क्यों न हो। ऐसे में कहा जा सकता है कि इतने बड़े पद पर बैठकर धरने को आतंकवाद कहना भी आतंकी होना ही है।

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