RSS के शीर्ष नेतृत्व के वैचारिक, नैतिक, सामाजिक और राजनैतिक पतन की दास्तान: बलराज मधोक की ज़ुबानी

Written by Shamsul Islam | Published on: June 17, 2022
बलराज मधोक (1920-2016) की 1963 में छपी आत्मकथा, ज़िंदगी का सफ़र-3-दीनदयाल उपाध्याय कि हत्या से इंदिरा गांधी की हत्या तक, हर उस इंसान को पढ़ना ज़रूरी है जो आरएसएस के राष्ट्र-समाज-इंसानियतविरोधी चरित्र को समझना चाहता है।



आरएसएस का यह दावा रहता है कि वे हिंदु धर्म/हिंदुओं के पुनर्जागरण और पुनरुत्थान के लिये 1925 में अस्तित्व में आया। इसके अनुसार, आरएसएस हिंदुओं के लिये एक ऐसा अनोखा इकलौता आदर्श संगठन है जो उन्हें आध्यात्मिक, नैतिक और भौतिक विकास के शिखर पर ले जाना चाहता है ताकि दुनिया उनके सामने नतमस्तक हो। लेकिन सच इन दावों से कितना भिन्न और शर्मनाक है इस का भरपूर अंदाज़ा आख़िरी सांस तक आरएसएस से जुड़े रहे हिन्दुत्व के प्रमुख विचारकों में से एक, बलराज मधोक की आपबीती पढ़कर लगाया जा सकता है। 

बलराज मधोक 1938 में आरएसएस के संपर्क में आये और 1942 में इसके प्रचारक (पूर्णकालिक कार्यकर्ता) बने और आख़िरी सांस लेने (मई 2, 2016) तक इस के सदस्य रहे। उन्हें आरएसएस की तरफ़ से राष्ट्रीय महत्व कि ज़िम्मेदारियाँ दी गयी थीं।

आरएसएस के प्रचारक बनते ही उन्हें जम्मू-कश्मीर रियासत का ज़िम्मा दिया गया, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर उन्होंने आरएसएस के जेबी राजनैतिक संगठन जनसंघ की 1951 में स्थापना की और उसके अध्यक्ष बने, आरएसएस के एक और जेबी छात्र संगठन, अखिल भारतीय विद्यार्थी-परिषद की 1949 में स्थापना की, 1960 में गौ-हत्या विरोधी आंदोलन को संगठित किया
तथा आरएसएस की तरफ़ से पहली बार उन्होंने 1968 में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने की मांग की। 1969 में उन्होंने देश के अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के विवादस्पद ‘भारतीयकरण’ की अवधारणा पेश की।

आरएसएस को इतनी गहराई से जानने वाले बलराज मधोक ने जो इसके सबसे महत्वपूर्ण विचारक माधव सदाशिव गोलवलकर से भी सीधे संपर्क में थे ने, ही आरएसएस के नेतृत्व के पतन के बारे में जो शर्मनाक जानकारियाँ दी हैं वे बहुत विचलित करने वाली हैं, इन्हें हमेशा छुपाया गया। बलराज मधोक की आप-बीती के अनुसार, आरएसएस का शीर्ष नेतृत्व अय्याशी, आरएसएस के भीतर हत्याओं और साज़िशों में लिप्त था। मधोक प्रत्यक्ष उदाहरण देकर बताते हैं कि आरएसएस के सरसंघचालक, गोलवलकर और बाला देवरस इन सब को रोकने के बजाये आरएसएस में मुजरिमों की टोली को संरक्षण देते रहे। 

मधोक पर यह इल्ज़ाम भी नहीं लगाया जा सकता कि उन्होंने यह सब इसलिए लिखा क्योंकि उन्हें आरएसएस से निकाल दिया गया था। उनकी मौत पर आरएसएस की तरफ़ से जारी निम्नलिखित ख़त इस बात की गवाही देता है कि मरते-दम तक आरएसएस से जुड़े थे। इस पत्र के आतिरिक्त बलराज मधोक की पुस्तक से ऐसे पन्ने यहाँ पेश हैं जिन्हें पढ़कर यह समझना जरा भी मुश्किल नहीं है कि आरएसएस इस देश के लोगों, ख़ासकर हिंदुओं के लिए कितना ख़तरनाक है। और अगर आरएसएस से जुड़ी इस पतित चरित्र वाली टोली इस देश पर राज कर रही है तो देश को सर्वनाश होने से कौन बच सकता है! पर क्या इस देश के लोग ऐसा होने देंगे!!  











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