पुणेः महाराष्ट्र के पुणे की सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी (एसपीपीयू) के कुलपति नितिन कर्मलकर और विश्वविद्यालय के चार कर्मचारियों के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मराठी में एम. फिल की पढ़ाई कर रहे आकेश भोसले (25) की शिकायत के आधार पर शनिवार रात को चतुरशृंगी पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। भोसले के अनुसार वे बतौर स्वतंत्र पत्रकार कई प्रिंट और ब्रॉडकास्ट संस्थानों के साथ जुड़े हुए हैं।
भोसले द्वारा पुणे की सत्र अदालत में याचिका दायर करने के बाद पिछले महीने अदालत ने पुलिस को भोसले की शिकायत की जांच करने के निर्देश दिए थे। भोसले के वकील तौसीफ शेख ने कहा था कि यूनिवर्सिटी ने उनके मुवक्किल को मामले में गलत तरीके से फंसाया है क्योंकि वह अनुसूचित जाति से हैं।
यह मामला यूनिवर्सिटी की कैंटीन से जुड़े नियमों में बदलाव से जुड़ा हुआ है, इन नियमों में बदलाव को लेकर एक अप्रैल को कैंपस में विरोध प्रदर्शन हुआ था। मार्च के आखिरी सप्ताह में जारी किए गए कैंटीन के नए नियमों के तहत कूपन प्रणाली को खत्म कर दिया गया और गेस्ट छात्रों के साथ खाना साझा करने पर रोक लगा दी गई थी। इन नए नियमों में कहा गया कि कैंटीन में केवल उन्हीं छात्रों को खाना परोसा जाएगा, जिनके पास मासिक पास होगा।
भोसले ने कहा, ‘मुझे ये नियम स्वीकार नहीं थे और मैंने इसके खिलाफ लिखा भी। मैंने यह भी लिखा कि इसे लेकर छात्रों में रोष है।’ इन नए नियमों को लेकर एक अप्रैल को कैंटीन के पास छात्रों और यूनिवर्सिटी के सुरक्षाकर्मियों के बीच हंगामा हुआ था।
एसपीपीयू प्रशासन ने बाद में कई छात्रों के खिलाफ चतुरशृंगी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, इन पर यूनिवर्सिटी की संपत्ति नष्ट करने का आरोप लगाया गया था। एफआईआर में भोसले सहित 12 छात्रों के नाम थे। यह एफआईआर आईपीसी की धारा 353 को तहत उन पर उसी दिन दर्ज की गई थी।
इस विरोध प्रदर्शन को नियोजित न बताते हुए भोसले ने आरोप लगाया कि एफआईआर में उनका नाम था क्योंकि उन्होंने एसपीपीयू के खिलाफ कई लेख लिखे थे, जिनमें संस्थान की कई गलत गतिविधियों को उजागर किया गया था।
भोसले ने कहा, ‘यूनिवर्सिटी ने अपने नए रिफेक्ट्री नियमों को लेकर न तो पहले कोई जानकारी दी और न ही छात्रों के साथ किसी तरह की चर्चा की। हमें अगले दिन यानी दो अप्रैल को पता चला कि हमारे खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। लेकिन विरोध प्रदर्शन में मौजूद अन्य पत्रकारों के बीच में से सिर्फ मुझे ही क्यों निशाना बनाया गया?’ उन्होंने कहा कि मेरे खिलाफ एफआईआर का मतलब मुझे संस्थान के खिलाफ कुछ भी लिखने से रोकने का प्रयास है।
इसके बाद भोसले ने पुलिस से संपर्क किया लेकिन उनकी शिकायत पर संज्ञान नहीं लिया गया, जिसके बाद वे सत्र न्यायलय पहुंचे जहां अदालत ने पुलिस को विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार पुलिस ने बताया कि भोसले की शिकायत पर अदालत के आदेश के बाद कुलपति डॉ। नितिन कर्मलकर, रजिस्ट्रार प्रफुल्ल पवार, सीनेट सदस्य संजय चकाने, सिक्योरिटी इंचार्ज सुरेश भोसले औरसुरक्षा कर्मी भूरसिंह राजपूत के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मराठी में एम. फिल की पढ़ाई कर रहे आकेश भोसले (25) की शिकायत के आधार पर शनिवार रात को चतुरशृंगी पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। भोसले के अनुसार वे बतौर स्वतंत्र पत्रकार कई प्रिंट और ब्रॉडकास्ट संस्थानों के साथ जुड़े हुए हैं।
भोसले द्वारा पुणे की सत्र अदालत में याचिका दायर करने के बाद पिछले महीने अदालत ने पुलिस को भोसले की शिकायत की जांच करने के निर्देश दिए थे। भोसले के वकील तौसीफ शेख ने कहा था कि यूनिवर्सिटी ने उनके मुवक्किल को मामले में गलत तरीके से फंसाया है क्योंकि वह अनुसूचित जाति से हैं।
यह मामला यूनिवर्सिटी की कैंटीन से जुड़े नियमों में बदलाव से जुड़ा हुआ है, इन नियमों में बदलाव को लेकर एक अप्रैल को कैंपस में विरोध प्रदर्शन हुआ था। मार्च के आखिरी सप्ताह में जारी किए गए कैंटीन के नए नियमों के तहत कूपन प्रणाली को खत्म कर दिया गया और गेस्ट छात्रों के साथ खाना साझा करने पर रोक लगा दी गई थी। इन नए नियमों में कहा गया कि कैंटीन में केवल उन्हीं छात्रों को खाना परोसा जाएगा, जिनके पास मासिक पास होगा।
भोसले ने कहा, ‘मुझे ये नियम स्वीकार नहीं थे और मैंने इसके खिलाफ लिखा भी। मैंने यह भी लिखा कि इसे लेकर छात्रों में रोष है।’ इन नए नियमों को लेकर एक अप्रैल को कैंटीन के पास छात्रों और यूनिवर्सिटी के सुरक्षाकर्मियों के बीच हंगामा हुआ था।
एसपीपीयू प्रशासन ने बाद में कई छात्रों के खिलाफ चतुरशृंगी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, इन पर यूनिवर्सिटी की संपत्ति नष्ट करने का आरोप लगाया गया था। एफआईआर में भोसले सहित 12 छात्रों के नाम थे। यह एफआईआर आईपीसी की धारा 353 को तहत उन पर उसी दिन दर्ज की गई थी।
इस विरोध प्रदर्शन को नियोजित न बताते हुए भोसले ने आरोप लगाया कि एफआईआर में उनका नाम था क्योंकि उन्होंने एसपीपीयू के खिलाफ कई लेख लिखे थे, जिनमें संस्थान की कई गलत गतिविधियों को उजागर किया गया था।
भोसले ने कहा, ‘यूनिवर्सिटी ने अपने नए रिफेक्ट्री नियमों को लेकर न तो पहले कोई जानकारी दी और न ही छात्रों के साथ किसी तरह की चर्चा की। हमें अगले दिन यानी दो अप्रैल को पता चला कि हमारे खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। लेकिन विरोध प्रदर्शन में मौजूद अन्य पत्रकारों के बीच में से सिर्फ मुझे ही क्यों निशाना बनाया गया?’ उन्होंने कहा कि मेरे खिलाफ एफआईआर का मतलब मुझे संस्थान के खिलाफ कुछ भी लिखने से रोकने का प्रयास है।
इसके बाद भोसले ने पुलिस से संपर्क किया लेकिन उनकी शिकायत पर संज्ञान नहीं लिया गया, जिसके बाद वे सत्र न्यायलय पहुंचे जहां अदालत ने पुलिस को विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार पुलिस ने बताया कि भोसले की शिकायत पर अदालत के आदेश के बाद कुलपति डॉ। नितिन कर्मलकर, रजिस्ट्रार प्रफुल्ल पवार, सीनेट सदस्य संजय चकाने, सिक्योरिटी इंचार्ज सुरेश भोसले औरसुरक्षा कर्मी भूरसिंह राजपूत के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।