पीएम मोदी की सुरक्षा चूक मामले को जिस तरह सियासत के तहत तूल दिया जा रहा है, उससे हर कोई हैरान हैं लेकिन इस कड़ी में ताजा वार, पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी का है। जिन्होंने एक ट्वीट कर मामले में राजनीति को गरमा दिया है। चन्नी ने कहा कि पीएम देश के एक सम्मानित नेता हैं, लेकिन उनके कद के नेता को इस तरह की ‘घटिया नौटंकी’ में शामिल होना शोभा नहीं देता। यही नहीं, चन्नी ने एक ट्वीट के जरिये पीएम पर तंज कसते हुए मामले को और हवा दे दी है। सीएम चन्नी ने सरदार वल्लभभाई पटेल का एक कथन ट्वीट कर, बिना नाम लिए पीएम मोदी पर सीधा हमला बोल दिया है।
सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने ट्वीट में सरदार पटेल को कोट करते हुए लिखा है कि ‘जिसे कर्त्तव्य से ज्यादा जान की फिक्र हो, उसे भारत जैसे देश में बड़ी जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए: सरदार वल्लभभाई पटेल।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे के दौरान ‘सुरक्षा चूक’ को लेकर बीजेपी की आलोचना का सामना कर रहे सीएम चन्नी ने सरकार गिराने का भी आरोप लगाया है कि नरेंद्र मोदी की ‘जान को खतरे की नौटंकी’ का उद्देश्य राज्य में ‘लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को गिराने’ का है। चन्नी ने कहा कि प्रधानमंत्री देश के एक सम्मानित नेता हैं, लेकिन उनके कद के नेता को इस तरह की ‘घटिया नौटंकी’ में शामिल होना शोभा नहीं देता। लुधियाना के मच्छीवाड़ा में एक अलग कार्यक्रम में चन्नी ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री के आसपास के खुफिया अधिकारियों को उनकी सुरक्षा के लिए खतरा महसूस हुआ था तो वे क्या कर रहे थे। पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने तो इस मामले को पंजाब के मान-सम्नान से जोड़ दिया है। नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा, ‘ये कहना आपकी जान को खतरा है, ये पंजाब के नाम पर कालिख पोतने का आपका प्रयास है, लेकिन वो सफल नहीं होगा। पंजाब में आपका कुछ बचा नहीं है।’
खास है कि चुनावी राज्य पंजाब के दौरे पर गए प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा में बुधवार को उस वक्त ‘‘गंभीर चूक’’ की घटना हुई, जब फिरोजपुर में कुछ प्रदर्शनकारियों ने एक सड़क मार्ग को अवरुद्ध कर दिया, जहां से उन्हें गुजरना था। इस वजह से प्रधानमंत्री एक फ्लाईओवर पर 20 मिनट तक फंसे रहे। घटना के बाद प्रधानमंत्री दिल्ली लौट गए। वह ना तो किसी कार्यक्रम में शामिल हुए और ना ही दो साल के बाद राज्य में अपनी पहली रैली को संबोधित कर सके। बठिंडा आकर उन्होंने बयान दिया था कि अपने मुख्यमंत्री चन्नी को कहना कि धन्यवाद, मैं जिंदा लौट आया। इस पर चन्नी भी लगातार पलटवार कर रहे हैं।
टांडा में न्यू अनाज मंडी में 18 करोड़ रुपये के विकास कार्यों की आधारशिला रखने के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए चन्नी ने दावा किया कि मोदी की जान को कोई खतरा नहीं था, बल्कि फिरोजपुर में भाजपा की रैली में लोगों की संख्या कम होने के कारण उन्होंने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया। उन्होंने कहा कि रैली स्थल पर खाली कुर्सियों के कारण पीएम 'सुरक्षा खतरे के तुच्छ कारण' का हवाला देते हुए दिल्ली वापस चले गए। चन्नी ने आरोप लगाया कि जिस 'झूठे बहाने' पर पीएम ने अपनी यात्रा रद्द की, वह ‘पंजाब को बदनाम करने और राज्य में लोकतंत्र की हत्या करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है जैसा कि पूर्व में जम्मू कश्मीर में किया गया।’ सीएम ने कहा कि अगर प्रदर्शनकारी एक किमी से अधिक दूर थे तो प्रधानमंत्री की जान को खतरा कैसे हुआ। उन्होंने कहा कि जहां मोदी का काफिला रुका, वहां एक नारा भी नहीं लगा, तो उनकी जान को खतरा कैसे हो सकता था।
चन्नी ने कहा कि पंजाबियों ने देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है और वे कभी भी प्रधानमंत्री के जीवन तथा सुरक्षा के लिए कोई खतरा पैदा नहीं कर सकते। मुख्यमंत्री ने कहा कि रैली में जनता की कम उपस्थिति ने राज्य में भाजपा की खराब स्थिति को उजागर कर दिया है। दसूया में चन्नी ने कहा कि 70,000 कुर्सियों के साथ रैली में केवल 700 लोग मौजूद थे, यह मोदी सरकार के खिलाफ लोगों के मन में बढ़ती नाराजगी को दर्शाता है। फिर भी अगर प्रधानमंत्री के आसपास के खुफिया अधिकारियों को उनकी सुरक्षा के लिए खतरा महसूस हुआ था तो वे क्या कर रहे थे?।
यही नहीं, चन्नी ने कहा कि पीएम की सुरक्षा में कोई चूक नहीं हुई और उन्हें किसी तरह का कोई खतरा नहीं था। चन्नी ने कहा कि उनकी इंटेलिजेंस ने बताया कि आगे सड़क पर कुछ लोग आकर बैठे हुए हैं। आपको किसी दूसरे रास्ते से या हेलीकॉप्टर से जाना होगा, वो (पीएम) मुड़ गए और बठिंडा एयरपोर्ट पर जाकर हमारे वित्त मंत्री से कहते हैं कि जाकर चन्नी जी से कह देना कि मैं जान बचाकर आ गया।इसके आगे सीएम चन्नी ने कहा कि ओ यार कोई खतरा हुआ नहीं, आप इतनी जिम्मेदार पोस्ट के बंदे हो आपके पास कोई बंदा नहीं आया, कोई नारा नही लगा, कोई पत्थर नहीं लगा, कोई खरोंच नहीं आई, कोई गोली नहीं चली। कौन सी बात की जान बचा कर आ गए? मैं इस बात पर हैरान हूं।
उधर, वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर व्यास ने पीएम की सुरक्षा चूक मामले में बनाए जा रहे नैरेटिव को लेकर सवाल उठाया है कि भारत क्या हो गया है? क्या सीरिया? क्या भारत के भीतर असुरक्षा के ऐसे हालात, जो प्रधानमंत्री (अफसरों से) बोले कि ‘अपने सीएम (चरणजीत सिंह चन्नी) को थैंक्स कहना मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक जिंदा लौट पाया’। सोचें, एक प्रधानमंत्री के ‘जिंदा’ लौटने की खैर मनाने वाले डायलॉग के अर्थ पर? क्या पंजाब खालिस्तानी हो गया? क्या सिख व किसान प्रदर्शनकारी उनकी जान के पीछे पड़े हैं? यदि श्रीनगर के किसी फ्लाईओवर पर नरेंद्र मोदी का काफिला कश्मीरी प्रर्दशनकारियों के जाम में फंसा होता तो प्रधानमंत्री के जान बचा कर भागने और ‘थैंक्स’ की बात गले उतर सकती थी। लेकिन पंजाब में प्रधानमंत्री के दिल-दिमाग में असुरक्षा और जान के खतरे की ऐसी धुकधुकी! क्या नरेंद्र मोदी फ्लाईओवर पर फंसी अपनी कार में बैठे-बैठे सचमुच जान की चिंता में भयाकुल थे? और उनका काफिला जब तक एयरपोर्ट नहीं पहुंचा तब तक वे जान की चिंता में घबराए हुए थे?
क्या भारत देश का सुरक्षा सेटअप, प्रधानमंत्री की सुरक्षा एजेंसी एसपीजी इतनी भी अब समर्थ नहीं बची जो प्रधानमंत्री के पास भय को फटकने नहीं दें। मोदी इतने भयभीत कैसे हुए जो दिमाग सोचते-सोचते एयरपोर्ट पर पहुंचते ही अफसरों के सामने इस डायलॉग से फट पड़े कि ‘अपने सीएम को थैंक्स कहना कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट जिंदा लौट पाया’। मुझे दुनिया के ऐसे किसी राष्ट्रपति प्रधानमंत्री का वाकया-घटना ध्यान नहीं आता, जिसमें प्रधानमंत्री का ऐसा घबरा कर बोलना हुआ हो, जान बचा कर भागना हुआ हो जैसे नरेंद्र मोदी का हुसैनीवाला के करीब के फ्लाईओवर से बठिंडा एयरपोर्ट पहुंच कर जिंदा लौट आने के भाव में हुआ है।
दुनिया में कई प्रधानमंत्रियों-राष्ट्रपतियों के जाम में फंसने, प्रर्दशनों का सामना होने की घटनाएं हुई हैं लेकिन किसी प्रधानमंत्री के मुंह से दुनिया ने नहीं सुना कि वह अपने अफसरों के आगे भय को जाहिर करते हुए यह कहे कि ‘थैंक्स…जिंदा लौट पाया’। और पूरा देश, सत्तारूढ़ पार्टी, समर्थक लोग प्रधानमंत्री की जान पर आए खतरे से बचने के लिए पूजा-पाठ व हवन करें। चर्च में जा कर घंटी बजाएं। पादरी लोग पूजा करें। कहा, घटना की कुल वजह सुरक्षा चूक है। इसकी नंबर एक जिम्मेवार केवल प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए बनी एसपीजी है। लेकिन प्रधानमंत्री, मंत्री, सत्तारूढ़ दल और मीडिया क्या मानते हुए और बहस करते हुए हैं कि जो हुआ वह ‘कांग्रेस के खूनी इरादे (स्मृति ईरानी) से था’ या ‘कांग्रेस के खूनी इरादे नाकाम रहे’ या खालिस्तानियों की साजिश से हुआ। इस सबका दो टूक अर्थ है कि प्रधानमंत्री अब अपने देश में भी सुरक्षित नहीं हैं। देश की राजनीति ऐसी हिंसक हो गई है कि पार्टियों के खूनी इरादे बन गए हैं और खालिस्तानी पंजाब में चाहे जो कर सकते हैं। प्रदर्शनकारी किसान खालिस्तानी हैं।
गौर करें, प्रधानमंत्री मोदी के ‘जिंदा लौट पाया’ के डायलॉग से लेकर राष्ट्रपति से मुलाकात तक के हुए हल्ले और नैरेटिव पर। उस सबसे भारत की क्या तस्वीर उभरती है? पहली बात, भारत में प्रधानमंत्री भी सुरक्षित नहीं। दूसरी बात, टॉप सुरक्षा एजेंसी एसपीजी से लेकर लोकल पुलिस सब नाकारा। तीसरी, देश में एक-दूसरे का खून पीने वाली राजनीति। चौथी, प्रधानमंत्री भयभीत। पांचवी, पंजाब, खालिस्तान और सिख किसानों के बीच प्रधानमंत्री असुरक्षित। छह, तिल का ताड़ बना भारत के 140 करोड़ लोगों में हर दिन, दिन-प्रतिदिन असुरक्षा, भय और भक्ति पैदा करवाने का प्रायोजन। हां, आम नागरिक भला कैसे अपने को सुरक्षित समझेगा जब देश का प्रधानमंत्री खुद यह बोलते हुए हो कि गनीमत जो मैं एयरपोर्ट तक जिंदा लौट पाया।
जब प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए भगवान के आगे पूजा-पाठ होती हुई तो आम आदमी अपनी सुरक्षा, जीवन पर क्या सोचेगा? इससे भी गंभीर मसला यह है कि 140 करोड़ लोगों में इस तरह की बातें क्या समर्थन-विरोध, प्रधानमंत्री के प्रति भक्ति और नफरत के भाव बनवाते हुए नहीं। पंजाब में किसान, सिख, कथित खालिस्तानी सब क्या सोचते हुए होंगे? इस बात का खास मतलब नही कि प्रधानमंत्री ने बठिंडा एयरपोर्ट पर डायलॉग भयाकुलता में बोला या सियासी मकसद से? रियलिटी यह है कि दो-तीन दिन पूरा देश उनकी बात पर सुर्खियां और बहस लिए हुए है। इसका कुल असर बेवजह का खौफ और समाज में विभाजकता व असुरक्षा पैदा होना है।
बहरहाल मूल बात है कि भारत के किसी प्रधानमंत्री ने क्या कभी सोचा बूझा कि फलां प्रदेश में उनकी जान को खतरा। तब नरेंद्र मोदी ने पंजाब में ऐसा क्यों फील किया? जवाब हो सकता है कि रियल खतरा हो। क्या ऐसा? तब पूरे देश में अमन-चैन और लोकतंत्र के तकाजे में सवाल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने को किन इलाकों, किन वर्गों, किन लोगों में सुरक्षित फील करते होंगे? क्या उन्हीं इलाकों, उन्हीं लोगों के बीच जो भाजपा शासित हैं, जहां उनके अपने समर्थक हैं? क्या नरेंद्र मोदी उन सभी प्रदेशों में यात्रा करते हुए सहज रहते होंगे जहां विपक्षी पार्टियों की सरकारें हैं?
पंजाब की तरह केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, ओड़िशा, बंगाल जैसे प्रदेशों के दौरे में वे वैसे ही सहज रहते होंगे जैसे यूपी में योगी आदित्यनाथ के साथ घूमते हुए होते हैं? विरोधियों आंदोलनकारियों के जमावड़े को वे अपने ही लोगों (भारतीयों) का जमावड़ा मानते हैं या सोचते हैं कि वे मेरे लिए तो नहीं मर रहे। ये सवाल और ऐसे सोचना मौजूदा मुकाम में देश की सेहत से जुड़े हैं। सन् 2022 की रियलिटी है कि 140 करोड़ लोग जैसे अलग अलग पालों में दिखते हैं वैसे ही भारत की सरकार, भारत के प्रधानमंत्री, भारत की राजनीति के न केवल सरोकार व चिंताएं बंटी हैं, बल्कि सबको देखना-समझना भी मेरे और तेरे, अपने-पराये में हो गया है!
सवाल है कि क्या एसपीजी ने मौसम खराब होने की पूर्व सूचना के आधार पर प्रधानमंत्री को पंजाब जाने से रोका था? अगर प्रधानमंत्री अपने विशेष विमान से बठिंडा पहुंच गए तो वहां क्या एसपीजी ने प्रधानमंत्री को आगे की यात्रा करने से रोका था? क्या एसपीजी ने कहा था कि अचानक सड़क के रास्ते जाने का कार्यक्रम सुरक्षित नहीं है? क्या उसने चेतावनी दी थी और उसके बाद प्रधानमंत्री की जिद पर आगे जाने का कार्यक्रम बना था? अगर सड़क के रास्ते जाने का कार्यक्रम बना तो एसपीजी की एडवांस टीम ने फिरोजपुर से क्या रिपोर्ट दी थी और एएसएल की टीम ने क्या राज्य की पुलिस और प्रशासन के साथ तालमेल करके रास्ते के बारे में जानकारी ली थी? प्रधानमंत्री की सुरक्षा और उनके रूट्स आदि की सुरक्षा से जुड़ी सारी बातें ‘ब्लू बुक’ में दर्ज हैं। उसके मुताबिक प्रधानमंत्री जब किसी राज्य में सड़क के रास्ते यात्रा करते हैं तो राज्य के मुख्य सचिव, डीजीपी, संबंधित जिलों के कलेक्टर, एसपी सब साथ होते हैं या आगे पीछे चल रहे होते हैं। क्या प्रधानमंत्री की फिरोजपुर यात्रा के दौरान ऐसा था और अगर ऐसा नहीं था तो एसपीजी ने क्यों प्रधानमंत्री को यात्रा करने दिया?
घटना इतनी है कि प्रधानमंत्री पंजाब दौरे पर गए और उनका काफिला एक जगह फ्लाईओवर पर जाम में फंस गया, जहां 15-20 मिनट रूकने के बाद प्रधानमंत्री वापस लौट गए। इस घटना से प्रधानमंत्री की जान पर खतरे का नैरेटिव बनाने की क्या जरूरत है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में इससे बड़ी चूक तो पहले कई बार हो चुकी है। सोचें, इससे पहले सुरक्षा घेरा टूटने या प्रोटोकॉल तोड़े जाने पर कभी प्रधानमंत्री की जान पर खतरे का नैरेटिव क्यों नहीं बना? दो बार तो अनजान लोग पीएम के मंच पर प्रधानमंत्री के पास पहुंच गए थे जो कोई मामूली बात नहीं थी? लेकिन उस समय यह नहीं कहा गया कि किसी ने प्रधानमंत्री की जान लेने की साजिश रची है।
इस बार खुद प्रधानमंत्री ने नैरेटिव बनाया। उन्होंने खुद सड़क के रास्ते फिरोजपुर जाने का फैसला किया और जब रास्ते में किसानों के आंदोलन की वजह से उनको लौटना पड़ा तो खुद ही राज्य के पुलिस अधिकारियों से कहा कि अपने सीएम को थैंक्यू कहना कि हम जिंदा बठिंडा हवाई अड्डे तक पहुंच गए। सोचें, यह कितनी शर्मनाक बात है? क्या प्रधानमंत्री को पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के सामने इस तरह की बात करनी चाहिए? यह बात वे खुद सीएम को कह सकते थे। लेकिन सार्वजनिक रूप से यह बात कह कर उन्होंने ऐसा मैसेज दिया, जैसे राज्य सरकार और दूसरी ताकतें उनको जान से मारने की साजिश कर रही थीं और वे बड़ी मुश्किल से जिंदा लौटे हैं। तभी ऐसा लग रहा है कि किसी खास मकसद से इस बार जान पर खतरे का नैरेटिव बनाया गया है। अभी तक हिंदू और हिंदुत्व खतरे में थे और अब उसके एकमात्र रक्षक नरेंद्र मोदी की जान खतरे में आ गई है।
सोचें, इस बात से बहुसंख्यक हिंदुओं को किस तरह से उद्वेलित किया जा सकता है! उत्तर प्रदेश और चार अन्य राज्यों के चुनाव से पहले ऐसा लग रहा है कि दूसरा कोई मुद्दा क्लिक होता नहीं दिखा तो जान पर खतरे का प्रचार शुरू किया गया है। यह सही है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होना चाहिए लेकिन यह बात भी उतनी ही सही है कि प्रधानमंत्री को अपनी जान की सुरक्षा के मामले का राजनीतिक इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए। अगर पंजाब में सुरक्षा से समझौता हुआ है तो उसकी जांच होनी चाहिए और दोषियों को सजा दी जानी चाहिए लेकिन इस नाम पर लोगों को जज्बाती बनाना और वोट हासिल करने की सोचना, कोई अच्छी राजनीतिक मिसाल नहीं है।
सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने ट्वीट में सरदार पटेल को कोट करते हुए लिखा है कि ‘जिसे कर्त्तव्य से ज्यादा जान की फिक्र हो, उसे भारत जैसे देश में बड़ी जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए: सरदार वल्लभभाई पटेल।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे के दौरान ‘सुरक्षा चूक’ को लेकर बीजेपी की आलोचना का सामना कर रहे सीएम चन्नी ने सरकार गिराने का भी आरोप लगाया है कि नरेंद्र मोदी की ‘जान को खतरे की नौटंकी’ का उद्देश्य राज्य में ‘लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को गिराने’ का है। चन्नी ने कहा कि प्रधानमंत्री देश के एक सम्मानित नेता हैं, लेकिन उनके कद के नेता को इस तरह की ‘घटिया नौटंकी’ में शामिल होना शोभा नहीं देता। लुधियाना के मच्छीवाड़ा में एक अलग कार्यक्रम में चन्नी ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री के आसपास के खुफिया अधिकारियों को उनकी सुरक्षा के लिए खतरा महसूस हुआ था तो वे क्या कर रहे थे। पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने तो इस मामले को पंजाब के मान-सम्नान से जोड़ दिया है। नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा, ‘ये कहना आपकी जान को खतरा है, ये पंजाब के नाम पर कालिख पोतने का आपका प्रयास है, लेकिन वो सफल नहीं होगा। पंजाब में आपका कुछ बचा नहीं है।’
खास है कि चुनावी राज्य पंजाब के दौरे पर गए प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा में बुधवार को उस वक्त ‘‘गंभीर चूक’’ की घटना हुई, जब फिरोजपुर में कुछ प्रदर्शनकारियों ने एक सड़क मार्ग को अवरुद्ध कर दिया, जहां से उन्हें गुजरना था। इस वजह से प्रधानमंत्री एक फ्लाईओवर पर 20 मिनट तक फंसे रहे। घटना के बाद प्रधानमंत्री दिल्ली लौट गए। वह ना तो किसी कार्यक्रम में शामिल हुए और ना ही दो साल के बाद राज्य में अपनी पहली रैली को संबोधित कर सके। बठिंडा आकर उन्होंने बयान दिया था कि अपने मुख्यमंत्री चन्नी को कहना कि धन्यवाद, मैं जिंदा लौट आया। इस पर चन्नी भी लगातार पलटवार कर रहे हैं।
टांडा में न्यू अनाज मंडी में 18 करोड़ रुपये के विकास कार्यों की आधारशिला रखने के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए चन्नी ने दावा किया कि मोदी की जान को कोई खतरा नहीं था, बल्कि फिरोजपुर में भाजपा की रैली में लोगों की संख्या कम होने के कारण उन्होंने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया। उन्होंने कहा कि रैली स्थल पर खाली कुर्सियों के कारण पीएम 'सुरक्षा खतरे के तुच्छ कारण' का हवाला देते हुए दिल्ली वापस चले गए। चन्नी ने आरोप लगाया कि जिस 'झूठे बहाने' पर पीएम ने अपनी यात्रा रद्द की, वह ‘पंजाब को बदनाम करने और राज्य में लोकतंत्र की हत्या करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है जैसा कि पूर्व में जम्मू कश्मीर में किया गया।’ सीएम ने कहा कि अगर प्रदर्शनकारी एक किमी से अधिक दूर थे तो प्रधानमंत्री की जान को खतरा कैसे हुआ। उन्होंने कहा कि जहां मोदी का काफिला रुका, वहां एक नारा भी नहीं लगा, तो उनकी जान को खतरा कैसे हो सकता था।
चन्नी ने कहा कि पंजाबियों ने देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है और वे कभी भी प्रधानमंत्री के जीवन तथा सुरक्षा के लिए कोई खतरा पैदा नहीं कर सकते। मुख्यमंत्री ने कहा कि रैली में जनता की कम उपस्थिति ने राज्य में भाजपा की खराब स्थिति को उजागर कर दिया है। दसूया में चन्नी ने कहा कि 70,000 कुर्सियों के साथ रैली में केवल 700 लोग मौजूद थे, यह मोदी सरकार के खिलाफ लोगों के मन में बढ़ती नाराजगी को दर्शाता है। फिर भी अगर प्रधानमंत्री के आसपास के खुफिया अधिकारियों को उनकी सुरक्षा के लिए खतरा महसूस हुआ था तो वे क्या कर रहे थे?।
यही नहीं, चन्नी ने कहा कि पीएम की सुरक्षा में कोई चूक नहीं हुई और उन्हें किसी तरह का कोई खतरा नहीं था। चन्नी ने कहा कि उनकी इंटेलिजेंस ने बताया कि आगे सड़क पर कुछ लोग आकर बैठे हुए हैं। आपको किसी दूसरे रास्ते से या हेलीकॉप्टर से जाना होगा, वो (पीएम) मुड़ गए और बठिंडा एयरपोर्ट पर जाकर हमारे वित्त मंत्री से कहते हैं कि जाकर चन्नी जी से कह देना कि मैं जान बचाकर आ गया।इसके आगे सीएम चन्नी ने कहा कि ओ यार कोई खतरा हुआ नहीं, आप इतनी जिम्मेदार पोस्ट के बंदे हो आपके पास कोई बंदा नहीं आया, कोई नारा नही लगा, कोई पत्थर नहीं लगा, कोई खरोंच नहीं आई, कोई गोली नहीं चली। कौन सी बात की जान बचा कर आ गए? मैं इस बात पर हैरान हूं।
उधर, वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर व्यास ने पीएम की सुरक्षा चूक मामले में बनाए जा रहे नैरेटिव को लेकर सवाल उठाया है कि भारत क्या हो गया है? क्या सीरिया? क्या भारत के भीतर असुरक्षा के ऐसे हालात, जो प्रधानमंत्री (अफसरों से) बोले कि ‘अपने सीएम (चरणजीत सिंह चन्नी) को थैंक्स कहना मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक जिंदा लौट पाया’। सोचें, एक प्रधानमंत्री के ‘जिंदा’ लौटने की खैर मनाने वाले डायलॉग के अर्थ पर? क्या पंजाब खालिस्तानी हो गया? क्या सिख व किसान प्रदर्शनकारी उनकी जान के पीछे पड़े हैं? यदि श्रीनगर के किसी फ्लाईओवर पर नरेंद्र मोदी का काफिला कश्मीरी प्रर्दशनकारियों के जाम में फंसा होता तो प्रधानमंत्री के जान बचा कर भागने और ‘थैंक्स’ की बात गले उतर सकती थी। लेकिन पंजाब में प्रधानमंत्री के दिल-दिमाग में असुरक्षा और जान के खतरे की ऐसी धुकधुकी! क्या नरेंद्र मोदी फ्लाईओवर पर फंसी अपनी कार में बैठे-बैठे सचमुच जान की चिंता में भयाकुल थे? और उनका काफिला जब तक एयरपोर्ट नहीं पहुंचा तब तक वे जान की चिंता में घबराए हुए थे?
क्या भारत देश का सुरक्षा सेटअप, प्रधानमंत्री की सुरक्षा एजेंसी एसपीजी इतनी भी अब समर्थ नहीं बची जो प्रधानमंत्री के पास भय को फटकने नहीं दें। मोदी इतने भयभीत कैसे हुए जो दिमाग सोचते-सोचते एयरपोर्ट पर पहुंचते ही अफसरों के सामने इस डायलॉग से फट पड़े कि ‘अपने सीएम को थैंक्स कहना कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट जिंदा लौट पाया’। मुझे दुनिया के ऐसे किसी राष्ट्रपति प्रधानमंत्री का वाकया-घटना ध्यान नहीं आता, जिसमें प्रधानमंत्री का ऐसा घबरा कर बोलना हुआ हो, जान बचा कर भागना हुआ हो जैसे नरेंद्र मोदी का हुसैनीवाला के करीब के फ्लाईओवर से बठिंडा एयरपोर्ट पहुंच कर जिंदा लौट आने के भाव में हुआ है।
दुनिया में कई प्रधानमंत्रियों-राष्ट्रपतियों के जाम में फंसने, प्रर्दशनों का सामना होने की घटनाएं हुई हैं लेकिन किसी प्रधानमंत्री के मुंह से दुनिया ने नहीं सुना कि वह अपने अफसरों के आगे भय को जाहिर करते हुए यह कहे कि ‘थैंक्स…जिंदा लौट पाया’। और पूरा देश, सत्तारूढ़ पार्टी, समर्थक लोग प्रधानमंत्री की जान पर आए खतरे से बचने के लिए पूजा-पाठ व हवन करें। चर्च में जा कर घंटी बजाएं। पादरी लोग पूजा करें। कहा, घटना की कुल वजह सुरक्षा चूक है। इसकी नंबर एक जिम्मेवार केवल प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए बनी एसपीजी है। लेकिन प्रधानमंत्री, मंत्री, सत्तारूढ़ दल और मीडिया क्या मानते हुए और बहस करते हुए हैं कि जो हुआ वह ‘कांग्रेस के खूनी इरादे (स्मृति ईरानी) से था’ या ‘कांग्रेस के खूनी इरादे नाकाम रहे’ या खालिस्तानियों की साजिश से हुआ। इस सबका दो टूक अर्थ है कि प्रधानमंत्री अब अपने देश में भी सुरक्षित नहीं हैं। देश की राजनीति ऐसी हिंसक हो गई है कि पार्टियों के खूनी इरादे बन गए हैं और खालिस्तानी पंजाब में चाहे जो कर सकते हैं। प्रदर्शनकारी किसान खालिस्तानी हैं।
गौर करें, प्रधानमंत्री मोदी के ‘जिंदा लौट पाया’ के डायलॉग से लेकर राष्ट्रपति से मुलाकात तक के हुए हल्ले और नैरेटिव पर। उस सबसे भारत की क्या तस्वीर उभरती है? पहली बात, भारत में प्रधानमंत्री भी सुरक्षित नहीं। दूसरी बात, टॉप सुरक्षा एजेंसी एसपीजी से लेकर लोकल पुलिस सब नाकारा। तीसरी, देश में एक-दूसरे का खून पीने वाली राजनीति। चौथी, प्रधानमंत्री भयभीत। पांचवी, पंजाब, खालिस्तान और सिख किसानों के बीच प्रधानमंत्री असुरक्षित। छह, तिल का ताड़ बना भारत के 140 करोड़ लोगों में हर दिन, दिन-प्रतिदिन असुरक्षा, भय और भक्ति पैदा करवाने का प्रायोजन। हां, आम नागरिक भला कैसे अपने को सुरक्षित समझेगा जब देश का प्रधानमंत्री खुद यह बोलते हुए हो कि गनीमत जो मैं एयरपोर्ट तक जिंदा लौट पाया।
जब प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए भगवान के आगे पूजा-पाठ होती हुई तो आम आदमी अपनी सुरक्षा, जीवन पर क्या सोचेगा? इससे भी गंभीर मसला यह है कि 140 करोड़ लोगों में इस तरह की बातें क्या समर्थन-विरोध, प्रधानमंत्री के प्रति भक्ति और नफरत के भाव बनवाते हुए नहीं। पंजाब में किसान, सिख, कथित खालिस्तानी सब क्या सोचते हुए होंगे? इस बात का खास मतलब नही कि प्रधानमंत्री ने बठिंडा एयरपोर्ट पर डायलॉग भयाकुलता में बोला या सियासी मकसद से? रियलिटी यह है कि दो-तीन दिन पूरा देश उनकी बात पर सुर्खियां और बहस लिए हुए है। इसका कुल असर बेवजह का खौफ और समाज में विभाजकता व असुरक्षा पैदा होना है।
बहरहाल मूल बात है कि भारत के किसी प्रधानमंत्री ने क्या कभी सोचा बूझा कि फलां प्रदेश में उनकी जान को खतरा। तब नरेंद्र मोदी ने पंजाब में ऐसा क्यों फील किया? जवाब हो सकता है कि रियल खतरा हो। क्या ऐसा? तब पूरे देश में अमन-चैन और लोकतंत्र के तकाजे में सवाल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने को किन इलाकों, किन वर्गों, किन लोगों में सुरक्षित फील करते होंगे? क्या उन्हीं इलाकों, उन्हीं लोगों के बीच जो भाजपा शासित हैं, जहां उनके अपने समर्थक हैं? क्या नरेंद्र मोदी उन सभी प्रदेशों में यात्रा करते हुए सहज रहते होंगे जहां विपक्षी पार्टियों की सरकारें हैं?
पंजाब की तरह केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, ओड़िशा, बंगाल जैसे प्रदेशों के दौरे में वे वैसे ही सहज रहते होंगे जैसे यूपी में योगी आदित्यनाथ के साथ घूमते हुए होते हैं? विरोधियों आंदोलनकारियों के जमावड़े को वे अपने ही लोगों (भारतीयों) का जमावड़ा मानते हैं या सोचते हैं कि वे मेरे लिए तो नहीं मर रहे। ये सवाल और ऐसे सोचना मौजूदा मुकाम में देश की सेहत से जुड़े हैं। सन् 2022 की रियलिटी है कि 140 करोड़ लोग जैसे अलग अलग पालों में दिखते हैं वैसे ही भारत की सरकार, भारत के प्रधानमंत्री, भारत की राजनीति के न केवल सरोकार व चिंताएं बंटी हैं, बल्कि सबको देखना-समझना भी मेरे और तेरे, अपने-पराये में हो गया है!
सवाल है कि क्या एसपीजी ने मौसम खराब होने की पूर्व सूचना के आधार पर प्रधानमंत्री को पंजाब जाने से रोका था? अगर प्रधानमंत्री अपने विशेष विमान से बठिंडा पहुंच गए तो वहां क्या एसपीजी ने प्रधानमंत्री को आगे की यात्रा करने से रोका था? क्या एसपीजी ने कहा था कि अचानक सड़क के रास्ते जाने का कार्यक्रम सुरक्षित नहीं है? क्या उसने चेतावनी दी थी और उसके बाद प्रधानमंत्री की जिद पर आगे जाने का कार्यक्रम बना था? अगर सड़क के रास्ते जाने का कार्यक्रम बना तो एसपीजी की एडवांस टीम ने फिरोजपुर से क्या रिपोर्ट दी थी और एएसएल की टीम ने क्या राज्य की पुलिस और प्रशासन के साथ तालमेल करके रास्ते के बारे में जानकारी ली थी? प्रधानमंत्री की सुरक्षा और उनके रूट्स आदि की सुरक्षा से जुड़ी सारी बातें ‘ब्लू बुक’ में दर्ज हैं। उसके मुताबिक प्रधानमंत्री जब किसी राज्य में सड़क के रास्ते यात्रा करते हैं तो राज्य के मुख्य सचिव, डीजीपी, संबंधित जिलों के कलेक्टर, एसपी सब साथ होते हैं या आगे पीछे चल रहे होते हैं। क्या प्रधानमंत्री की फिरोजपुर यात्रा के दौरान ऐसा था और अगर ऐसा नहीं था तो एसपीजी ने क्यों प्रधानमंत्री को यात्रा करने दिया?
घटना इतनी है कि प्रधानमंत्री पंजाब दौरे पर गए और उनका काफिला एक जगह फ्लाईओवर पर जाम में फंस गया, जहां 15-20 मिनट रूकने के बाद प्रधानमंत्री वापस लौट गए। इस घटना से प्रधानमंत्री की जान पर खतरे का नैरेटिव बनाने की क्या जरूरत है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में इससे बड़ी चूक तो पहले कई बार हो चुकी है। सोचें, इससे पहले सुरक्षा घेरा टूटने या प्रोटोकॉल तोड़े जाने पर कभी प्रधानमंत्री की जान पर खतरे का नैरेटिव क्यों नहीं बना? दो बार तो अनजान लोग पीएम के मंच पर प्रधानमंत्री के पास पहुंच गए थे जो कोई मामूली बात नहीं थी? लेकिन उस समय यह नहीं कहा गया कि किसी ने प्रधानमंत्री की जान लेने की साजिश रची है।
इस बार खुद प्रधानमंत्री ने नैरेटिव बनाया। उन्होंने खुद सड़क के रास्ते फिरोजपुर जाने का फैसला किया और जब रास्ते में किसानों के आंदोलन की वजह से उनको लौटना पड़ा तो खुद ही राज्य के पुलिस अधिकारियों से कहा कि अपने सीएम को थैंक्यू कहना कि हम जिंदा बठिंडा हवाई अड्डे तक पहुंच गए। सोचें, यह कितनी शर्मनाक बात है? क्या प्रधानमंत्री को पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के सामने इस तरह की बात करनी चाहिए? यह बात वे खुद सीएम को कह सकते थे। लेकिन सार्वजनिक रूप से यह बात कह कर उन्होंने ऐसा मैसेज दिया, जैसे राज्य सरकार और दूसरी ताकतें उनको जान से मारने की साजिश कर रही थीं और वे बड़ी मुश्किल से जिंदा लौटे हैं। तभी ऐसा लग रहा है कि किसी खास मकसद से इस बार जान पर खतरे का नैरेटिव बनाया गया है। अभी तक हिंदू और हिंदुत्व खतरे में थे और अब उसके एकमात्र रक्षक नरेंद्र मोदी की जान खतरे में आ गई है।
सोचें, इस बात से बहुसंख्यक हिंदुओं को किस तरह से उद्वेलित किया जा सकता है! उत्तर प्रदेश और चार अन्य राज्यों के चुनाव से पहले ऐसा लग रहा है कि दूसरा कोई मुद्दा क्लिक होता नहीं दिखा तो जान पर खतरे का प्रचार शुरू किया गया है। यह सही है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होना चाहिए लेकिन यह बात भी उतनी ही सही है कि प्रधानमंत्री को अपनी जान की सुरक्षा के मामले का राजनीतिक इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए। अगर पंजाब में सुरक्षा से समझौता हुआ है तो उसकी जांच होनी चाहिए और दोषियों को सजा दी जानी चाहिए लेकिन इस नाम पर लोगों को जज्बाती बनाना और वोट हासिल करने की सोचना, कोई अच्छी राजनीतिक मिसाल नहीं है।