आज के अखबारों में दो खबरें गौरतलब हैं। एक तो लगभग सभी अखबारों में पहले पन्ने पर प्रमुखता से है पर दूसरी खबर सिर्फ राजस्थान पत्रिका में पहले पन्ने पर है। दैनिक जागरण में यह खबर, "विपक्षी दलों को देंगे पूरी अहमियत: मोदी" शीर्षक से छह कॉलम में लीड प्रकाशित हुई है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह आदर्शवादी बयान है और प्रधानमंत्री जो करते और कहते रहे हैं उससे इसका कोई संबंध नहीं है। फिर भी कहा है तो खबर है और यह कैसे और कितनी छपे यह संपादकीय विवेक का मामला है। प्रधानमंत्री ने कहा उसपर कितना अमल करेंगे और कब करेंगे या करेंगे कि नहीं यह सब बाद की बात है इसलिए अभी उसपर चर्चा का कोई मतलब नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री ने जो कहा उसे संकेत की तरह लिया जाए और अगर विपक्ष को प्रधानमंत्री पूरी अहमित देने की बात कर रहे हैं तो अखबार भी विपक्ष को पूरी अहमियत दे रहे हैं कि नहीं यह भी देखने वाली बात होगी।
इसे आज ही के अखबारों में देखिए तो आप पाएंगे कि इस बार भोपाल से चुन कई आई भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने संसद में शपथग्रहण के दौरान कल फिर वही किया जो वे भाजपा का उम्मीदवार बनने के बाद से करती रही हैं। विपक्ष ने इसपर एतराज किया। प्रधानमंत्री के कहे अनुसार इसे भी महत्व मिलना चाहिए था पर मैं नहीं जानता वह कैसे व्यक्त होगा। पहले की स्थिति में इसे अखबारों में व्यक्त होना ही नहीं था लेकिन जब अखबार प्रधानमंत्री की इस घोषणा को महत्व दे रहे हैं तो क्या उनके (अखबारों के अपने) रवैये में बदलाव आएगा? वैसे तो आज इस बारे में कुछ कहना या तलाशना जल्दबाजी होगी पर यह मामला है जो बताता है कि कम से कम आज के अखबारों पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा है। प्रधानमंत्री के बयान को राजस्थान पत्रिका ने पहले पन्ने पर प्रज्ञा ठाकुर की खबर के साथ छापा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में भी ऐसा ही है।
प्रज्ञा ठाकुर के इस मामले को पूरी तरह पढ़िए। आप समझ सकेंगे कि प्रधानमंत्री कहते क्या हैं और उनकी पार्टी कैसे लोगों को संसद में लाई है। मेरा मानना है कि देश के ज्यादातर अखबार पिछले पांच साल से सरकार और खासकर प्रधानमंत्री की छवि बनाने में लगे हैं। इसमें प्रधानमंत्री और पार्टी के अपने प्रयास तो हैं ही, अखबारों का योगदान भी कम नहीं है। आज के इस बयान, कथन, घोषणा या आश्वासन को ही लीजिए और देखिए इसे अखबारों ने कितनी प्रमुखता से छापा है। बगैर किसी टीका-टिप्पणी के। इसमें कोई बुराई नहीं है पर इस खबर को पढ़ते ही अगर आप दूसरी खबर जानेंगे तो आपको उसकी याद आएगी। निष्पक्षता का तकाजा था कि इन लगभग परस्पर विरोधी खबरों को एक साथ (आज इस विशेष मौके पर) प्रकाशित किया जाता और पाठकों को राय बनाने के लिए छोड़ दिया जाता। राजस्थान पत्रिका की खबर में राहुल गांधी पर ली गई चुटकी भी है।
यही नहीं, अखबार अगर चाहते तो अपनी राय भी स्पष्ट रूप से राय की तरह लिख सकते थे और पाठकों को राय बनाने में मदद कर सकते थे। पर यह काम खुलकर होना चाहिए। आप देखिए आपके अखबार ने क्या किया। मैं पहले यह बताता हूं कि जागरण ने प्रधानमंत्री की घोषणा को कैसे छापा है फिर बताउंगा की प्रज्ञा ठाकुर बिना विवाद के शपथ भी नहीं ले सकीं और अखबारों को यह पहले पन्ने की खबर नहीं लगी। पहले पन्ने पर जो खबरें हैं वो आपके सामने है आप तय कर सकते हैं कि आपके अखबार का चयन कैसा है। मैं सिर्फ अपनी राय दे रहा हूं और आपको सतर्क रहने की सलाह दे रहा हूं। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि अल्पसंख्यकों के लिए पहले जो हुआ वह तुष्टिकरण था और अब जो किया जा रहा है वह सबका साथ और सबका विश्वास हासिल करने के लिए किया जा रहा है। इस राजनीति को समझने की जरूरत है।
विपक्ष हां में हां मिलाए तो क्या विपक्ष और विरोध करे तो उसी का जो वह अब तक करता आया है। यह राजनीति है और दिलचस्प है। असल में यह विपक्ष को ही नहीं, मतदाताओं को भी उलझाने की राजनीति है। वोट बैंक की ही घिसी-पिटी राजनीति है जिसे आदर्शवाद की चाशनी के साथ पूरी चतुराई से परोसा जा रहा है। आप मानें ना न मानें, पिछले पांच साल में अखबारों (टेलीविजन की भी) की नालायकी और व्हाट्सऐप्प के अफवाहों ने लोगों के पास ऐसी सूचनाएं पहुंचाई हैं और उन्हें इनपर विश्वास दिलाया है कि कई लोग बाकायदा मूर्ख घोषित किए जा सकते हैं सिर्फ इसलिए कि उन्हें वह सूचना व्हाट्सऐप्प पर मिली थी। किसने भेजी थी यह तक याद नहीं है।
ऐसे में आज की दोनों खबरों का अपना महत्व है। दैनिक जागरण का मुख्य शीर्षक है, “दिया भरोसा - 17वीं लोकसभा के पहले सत्र की शुरुआत के अवसर पर पीएम ने बढ़ाया सहयोग का हाथ”। कायदे से इस खबर के साथ प्रधानमंत्री के पहले के बयान और कामों का संदर्भ भी होना चाहिए था। इसके बिना यह बहुत गंभीर लग रहा है जो है नहीं (हो नहीं सकता)। और मुमकिन है अखबारों ने इशारे को ठीक समझा हो। प्रज्ञा सिंह से संबंधित इंटरनेट पर उपलब्ध खबर के मुताबिक, संसद में शपथ ग्रहण के दौरान साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर विवाद, दो बार लेनी पड़ी शपथ। इसमें कहा गया है, भोपाल से लोकसभा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर जब शपथ लेने लगीं तो उनके नाम को लेकर विवाद हो गया और उन्हें रिकॉर्ड में लिखा गया नाम न लेने के कारण दोबारा शपथ लेने को कहा गया।
शाम 4.35 बजे के आसपास साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ लेते हुए संन्यास वाला अपना नाम साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पूर्ण चेतनानंद गुरू अवधेशानंद के तौर पर लिया। इस पर स्पीकर और कई सांसदों ने एतराज जताया। विपक्ष ने इस पर हंगामा भी किया। द टेलीग्राफ ने लिखा है कि प्रज्ञा ने जोर देकर कहा कि शपथ लेने के लिए उन्होंने जो फॉर्म भर कर दिया है उसमें उनका पूरा नाम यही है। इससे तो यही लगता है कि शपथ लेने के लिए कल भरे गए अपने फॉर्म में उन्होंने कोई और नाम भरा (गुरू का नाम जोड़ दिया जो उनके आधिकारिक नाम में नहीं है) और जोर देती रहीं कि वे इसी नाम पर शपथ लेंगी।
कहने की जरूरत नहीं है कि एक सांसद इस तरह अपना नाम बदले या कभी कुछ और कभी कुछ और लिखे यह कोई अच्छी स्थिति नहीं है और अखबार इसे क्यों बताएं जब उन्होंने राहुल गांधी को पप्पू साबित करने का जिम्मा लिया हुआ है। प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने शुरु में कहा कि यही उनका पूरा नाम है लेकिन विपक्ष के हंगामे के बाद प्रोटेम स्पीकर ने कहा कि उन्हें रिकॉर्ड चेक करना होगा। रिकॉर्ड चेक करने पर पाया गया कि नाम के साथ पूर्ण चेतनानंद गुरू अवधेशानंद का नाम शामिल नहीं है। इसके बाद उन्हें रिकॉर्ड में दिए गए नाम के साथ शपथ लेने को कहा गया। इसके बाद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने ईश्वर के नाम पर शपथ ग्रहण की। साध्वी के पक्ष में सत्ता पक्ष के सांसदों ने भी उठकर समर्थन में नारेबाजी की। जब साध्वी प्रज्ञा सिंह शपथ लेने के लिए आईं तो उस समय भी सदन में जय श्री राम के नारे लगाए गए थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
इसे आज ही के अखबारों में देखिए तो आप पाएंगे कि इस बार भोपाल से चुन कई आई भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने संसद में शपथग्रहण के दौरान कल फिर वही किया जो वे भाजपा का उम्मीदवार बनने के बाद से करती रही हैं। विपक्ष ने इसपर एतराज किया। प्रधानमंत्री के कहे अनुसार इसे भी महत्व मिलना चाहिए था पर मैं नहीं जानता वह कैसे व्यक्त होगा। पहले की स्थिति में इसे अखबारों में व्यक्त होना ही नहीं था लेकिन जब अखबार प्रधानमंत्री की इस घोषणा को महत्व दे रहे हैं तो क्या उनके (अखबारों के अपने) रवैये में बदलाव आएगा? वैसे तो आज इस बारे में कुछ कहना या तलाशना जल्दबाजी होगी पर यह मामला है जो बताता है कि कम से कम आज के अखबारों पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा है। प्रधानमंत्री के बयान को राजस्थान पत्रिका ने पहले पन्ने पर प्रज्ञा ठाकुर की खबर के साथ छापा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में भी ऐसा ही है।
प्रज्ञा ठाकुर के इस मामले को पूरी तरह पढ़िए। आप समझ सकेंगे कि प्रधानमंत्री कहते क्या हैं और उनकी पार्टी कैसे लोगों को संसद में लाई है। मेरा मानना है कि देश के ज्यादातर अखबार पिछले पांच साल से सरकार और खासकर प्रधानमंत्री की छवि बनाने में लगे हैं। इसमें प्रधानमंत्री और पार्टी के अपने प्रयास तो हैं ही, अखबारों का योगदान भी कम नहीं है। आज के इस बयान, कथन, घोषणा या आश्वासन को ही लीजिए और देखिए इसे अखबारों ने कितनी प्रमुखता से छापा है। बगैर किसी टीका-टिप्पणी के। इसमें कोई बुराई नहीं है पर इस खबर को पढ़ते ही अगर आप दूसरी खबर जानेंगे तो आपको उसकी याद आएगी। निष्पक्षता का तकाजा था कि इन लगभग परस्पर विरोधी खबरों को एक साथ (आज इस विशेष मौके पर) प्रकाशित किया जाता और पाठकों को राय बनाने के लिए छोड़ दिया जाता। राजस्थान पत्रिका की खबर में राहुल गांधी पर ली गई चुटकी भी है।
यही नहीं, अखबार अगर चाहते तो अपनी राय भी स्पष्ट रूप से राय की तरह लिख सकते थे और पाठकों को राय बनाने में मदद कर सकते थे। पर यह काम खुलकर होना चाहिए। आप देखिए आपके अखबार ने क्या किया। मैं पहले यह बताता हूं कि जागरण ने प्रधानमंत्री की घोषणा को कैसे छापा है फिर बताउंगा की प्रज्ञा ठाकुर बिना विवाद के शपथ भी नहीं ले सकीं और अखबारों को यह पहले पन्ने की खबर नहीं लगी। पहले पन्ने पर जो खबरें हैं वो आपके सामने है आप तय कर सकते हैं कि आपके अखबार का चयन कैसा है। मैं सिर्फ अपनी राय दे रहा हूं और आपको सतर्क रहने की सलाह दे रहा हूं। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि अल्पसंख्यकों के लिए पहले जो हुआ वह तुष्टिकरण था और अब जो किया जा रहा है वह सबका साथ और सबका विश्वास हासिल करने के लिए किया जा रहा है। इस राजनीति को समझने की जरूरत है।
विपक्ष हां में हां मिलाए तो क्या विपक्ष और विरोध करे तो उसी का जो वह अब तक करता आया है। यह राजनीति है और दिलचस्प है। असल में यह विपक्ष को ही नहीं, मतदाताओं को भी उलझाने की राजनीति है। वोट बैंक की ही घिसी-पिटी राजनीति है जिसे आदर्शवाद की चाशनी के साथ पूरी चतुराई से परोसा जा रहा है। आप मानें ना न मानें, पिछले पांच साल में अखबारों (टेलीविजन की भी) की नालायकी और व्हाट्सऐप्प के अफवाहों ने लोगों के पास ऐसी सूचनाएं पहुंचाई हैं और उन्हें इनपर विश्वास दिलाया है कि कई लोग बाकायदा मूर्ख घोषित किए जा सकते हैं सिर्फ इसलिए कि उन्हें वह सूचना व्हाट्सऐप्प पर मिली थी। किसने भेजी थी यह तक याद नहीं है।
ऐसे में आज की दोनों खबरों का अपना महत्व है। दैनिक जागरण का मुख्य शीर्षक है, “दिया भरोसा - 17वीं लोकसभा के पहले सत्र की शुरुआत के अवसर पर पीएम ने बढ़ाया सहयोग का हाथ”। कायदे से इस खबर के साथ प्रधानमंत्री के पहले के बयान और कामों का संदर्भ भी होना चाहिए था। इसके बिना यह बहुत गंभीर लग रहा है जो है नहीं (हो नहीं सकता)। और मुमकिन है अखबारों ने इशारे को ठीक समझा हो। प्रज्ञा सिंह से संबंधित इंटरनेट पर उपलब्ध खबर के मुताबिक, संसद में शपथ ग्रहण के दौरान साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर विवाद, दो बार लेनी पड़ी शपथ। इसमें कहा गया है, भोपाल से लोकसभा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर जब शपथ लेने लगीं तो उनके नाम को लेकर विवाद हो गया और उन्हें रिकॉर्ड में लिखा गया नाम न लेने के कारण दोबारा शपथ लेने को कहा गया।
शाम 4.35 बजे के आसपास साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ लेते हुए संन्यास वाला अपना नाम साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पूर्ण चेतनानंद गुरू अवधेशानंद के तौर पर लिया। इस पर स्पीकर और कई सांसदों ने एतराज जताया। विपक्ष ने इस पर हंगामा भी किया। द टेलीग्राफ ने लिखा है कि प्रज्ञा ने जोर देकर कहा कि शपथ लेने के लिए उन्होंने जो फॉर्म भर कर दिया है उसमें उनका पूरा नाम यही है। इससे तो यही लगता है कि शपथ लेने के लिए कल भरे गए अपने फॉर्म में उन्होंने कोई और नाम भरा (गुरू का नाम जोड़ दिया जो उनके आधिकारिक नाम में नहीं है) और जोर देती रहीं कि वे इसी नाम पर शपथ लेंगी।
कहने की जरूरत नहीं है कि एक सांसद इस तरह अपना नाम बदले या कभी कुछ और कभी कुछ और लिखे यह कोई अच्छी स्थिति नहीं है और अखबार इसे क्यों बताएं जब उन्होंने राहुल गांधी को पप्पू साबित करने का जिम्मा लिया हुआ है। प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने शुरु में कहा कि यही उनका पूरा नाम है लेकिन विपक्ष के हंगामे के बाद प्रोटेम स्पीकर ने कहा कि उन्हें रिकॉर्ड चेक करना होगा। रिकॉर्ड चेक करने पर पाया गया कि नाम के साथ पूर्ण चेतनानंद गुरू अवधेशानंद का नाम शामिल नहीं है। इसके बाद उन्हें रिकॉर्ड में दिए गए नाम के साथ शपथ लेने को कहा गया। इसके बाद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने ईश्वर के नाम पर शपथ ग्रहण की। साध्वी के पक्ष में सत्ता पक्ष के सांसदों ने भी उठकर समर्थन में नारेबाजी की। जब साध्वी प्रज्ञा सिंह शपथ लेने के लिए आईं तो उस समय भी सदन में जय श्री राम के नारे लगाए गए थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)