पी चिदंबरम का साप्ताहिक कॉलम: मोदी जी का बालाकोट सपना और कुछ सवाल

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: March 19, 2019
चुनाव आयोग ने रविवार को बिगुल बजा ही दिया। सरकार के पक्ष में आयोग ने अपना यह आखिरी काम भी कर ही दिया। चुनाव की घोषणा से लोगों ने राहत की सांस ली है - अब और शिलान्यास नहीं होंगे, और अध्यादेश नहीं आएंगे और बिना सोचे-समझे तथा पैसे की कमी से जूझने वाली योजनाओं की हताश ‘शुरूआत’ होगी। एक गिनती के अनुसार, तेरह फरवरी को संसद सत्र खत्म होने के बाद से प्रधानमंत्री अब तक एक सौ पचपन योजनाओं का ‘उद्घाटन’ या ‘शिलान्यास’ कर चुके हैं।

इसका एक बहुत ही दिलचस्प उदाहरण है। अहमदाबाद मेट्रो का काम 14 मार्च, 2015 को शुरू हो गया था। इसमें कोई खास प्रगति नहीं हुई। इसके लिए गुजरात सरकार की खूब खिल्ली उड़ी। यह तय किया गया था कि एक हिस्सा ‘पूरा’ कर ‘सेवा’ शुरू कर दी जाएगी। इसलिए जल्दबाजी में साढ़े छह किलोमीटर लंबी मेट्रो लाइन पूरी कर दी गई। चार मार्च, 2019 को प्रधानमंत्री ने गर्व के साथ इस सेवा का उद्घाटन किया।

कहानी यहीं खत्म नहीं हो जाती। यह लाइन साढ़े छह किलोमीटर लंबी है लेकिन इस पर स्टेशन दो ही हैं, बाकी का निर्माण चल रहा है। इस तरह जो मेट्रो चल रही है वह सिर्फ मौज के लिए है जिसमें कोई टिकट नहीं, कोई किराया नहीं, बस मुफ्त की सवारी!

हां या ना में बताइए 
अब गंभीर मसलों पर गौर करें। नई सरकार चुनने के लिए करीब नब्बे करोड़ मतदाता वोट डालेंगे। इसमें मुख्य मुद्दा मोदी सरकार का कामकाज होगा। कुछ प्रासंगिक सवाल ये हैं -

1. क्या आपको लगता है कि आप एक स्वतंत्र देश के स्वंतत्र नागरिक हैं और आपको अपने धर्म या जाति या भाषा की वजह से भीड़ द्वारा मार दिए जाने, कपड़े उतार कर घुमाए जाने या पीटे जाने या बहिष्कार या भेदभाव का डर नहीं है? यदि आप महिला हैं तो उत्पीड़न या छेड़छाड़ से बेखौफ हैं?

2. क्या आपको भरोसा है कि आपकी बातचीत या संदेशों की सरकार द्वारा जासूसी नहीं की जाएगी?

3. क्या आप मानते हैं कि पिछले पांच सालों में वाकई बड़ी संख्या में रोजगार सृजित हुए हैं? यदि आप अभिभावक हैं तो क्या आपको इस बात का भरोसा है कि आपके बेटे या बेटी को जल्द ही नौकरी मिल जाएगी? (सीएमआइई के अनुसार फरवरी 2019 तक नौकरी तलाश रहे नौजवानों की संख्या तीन करोड़ बारह लाख थी।)

4. यदि आप एक किसान हैं तो क्या आपको लगता है कि पिछले पांच सालों में हालात काफी कुछ सुधरे हैं? क्या आपकी आमद बढ़ी है? क्या एक किसान होने की खुशी है आप में और क्या आप अपने बेटे / बेटी को किसान बनने के लिए प्रेरित करेंगे?

5. क्या आप मानते हैं कि नोटबंदी एक अच्छा विचार था? नोटबंदी से आपको कोई फायदा हुआ? क्या आपको लगता है कि नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को कोई फायदा हुआ?

6. क्या आप मानते हैं कि कई कर दरों और महीने में तीन रिटर्न वाले जीएसटी से लघु, छोटे और मझौले उद्योगों को कोई फायदा हुआ है? क्या छोटे कारोबारियों के लिए जीएसटी कानूनों के अनुरूप चलना आसान होगा? क्या आपको लगता है कि जिस तरह से जीएसटी लागू किया गया, उससे कारोबारी खुश हैं?

7. क्या मोदी सरकार ने हर व्यक्ति के खाते में पंद्रह लाख रुपए आने, हर साल दो करोड़ रोजगार सृजित करने, विदेशों से कालाधन वापस लाने, अमेरिकी डॉलर को चालीस रुपए तक ले आने, आतंकवाद का खात्मा खासतौर से जम्मू-कश्मीर में और अच्छे दिन लाने जैसे अपने मुख्य चुनावी वादे पूरे किए?

8. क्या आपको लगता है कि मोदी सरकार की बाहुबल, सैन्य और बहुमत पर चलने की नीति जम्मू-कश्मीर में हिंसा को खत्म कर पाएगी और राज्य में खासतौर से घाटी में शांति स्थापित कर पाएगी?

मोदी जी और मित्र 
10. क्या आपको यह यकीन है कि बिना सरकार की जानकारी के विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी भारत से भाग गए होंगे?

11. क्या आपको लगता है कि मोदी सरकार द्वारा किया गया रफाल सौदा दूध का धुला है और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की कीमत पर एक निजी कंपनी को फायदा नहीं पहुंचाया गया? क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि रफाल सौदे पर कीमतों, विमानों की संख्या घटाने, गारंटी संबंधी भारी-भरकम छूट देने, विमानों की आपूर्ति में लगने वाला समय, ऑफसेट पार्टनर का चुनाव आदि को लेकर जांच होनी चाहिए?

12. क्या आप मानते हैं कि प्रमुख जांच एजेंसियां जैसे सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर विभाग आदि स्वतंत्र और निष्पक्ष रह गई हैं? क्या सीबीआई के भीतर अधिकारियों की जंग से इस एजेंसी की साख को गहरा धक्का नहीं लगा है?

13. क्या सभी छह हवाई अड्डों (अमदाबाद, गुवाहाटी, जयपुर, लखनऊ, मंगलुरु और तिरुवनंतपुरम) के निजीकरण का अनुबंध गुजरात के एक औद्योगिक घराने को दे देना सही था? क्या ऐसा लगता है कि यह एक सामान्य फैसला था?

उन्माद या बुद्धिमानी 
ये ऐसे सवाल हैं जो उन असल मुद्दों की ओर ध्यान खींचते हैं जिनका सामना आज देश कर रहा है। एक नागरिक के रूप में अगर आपका इन मुद्दों को लेकर कोई सरोकार है तो मेरा आपसे अनुरोध है कि इन सवालों का जवाब दें। आप हां कह सकते हैं या ना कह सकते हैं, लेकिन इन सवालों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। मोदी सरकार की आखिरी बची-खुची उम्मीद यह होगी कि आप इन सवालों की अनेदखी कर देंगे या किसी भी कीमत पर ये बालाकोट में भारतीय वायुसेना की कार्रवाई के बाद पैदा हुए राष्ट्रवाद के जोश में बह जाएंगे।

भारतीय वायुसेना देश की है और इस पर हमें गर्व है। पुलवामा का हमला सरकार की नाकामी का नतीजा था, बालाकोट की कार्रवाई भारतीय वायुसेना की सफलता थी और अगले दिन पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई सरकार की नाकामी थी।

ऊपर जो सवाल पूछे गए हैं, पुलवामा-बालाकोट उनका जवाब नहीं है। यह डर को खत्म नहीं कर देगा, न ही रोजगार पैदा करेगा या किसानों के गुस्से को शांत करेगा, न ही लघु, छोटे और मझोले उद्योगों में फिर से जान फूंक पाएगा या माल्या, नीरव मोदी और चोकसी को वापस ले आएगा, न ही इससे जांच एजेंसियों की साख फिर से लौटने वाली और न ही इससे कश्मीर घाटी में शांति बहाल हो पाएगी।

नरेंद्र मोदी के चुनावी भाषण बालाकोट में भारतीय वायुसेना की कार्रवाई पर केंद्रित हैं और मतदाताओं के बीच एक तरह का उन्माद पैदा करने का इरादा रखते हैं। उन्हें उम्मीद है कि बालाकोट उन्हें जितवा देगा। मेरा मानना है कि भारत के लोग समझदार हैं।

(इंडियन एक्सप्रेस में ‘अक्रॉस दि आइल’ नाम छपने वाला पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम का यह कॉलम जनसत्ता में ‘दूसरी नजर’ नाम से छपता है। पेश है जनसत्ता का अनुवाद, साभार पर वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के हवाले से संशोधित/संपादित।)

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