भारतीय कौन है? असम में नागरिकता संकट को लेकर मानवाधिकार संगठनों की एकजुटता बैठक

Written by sabrang india | Published on: October 8, 2019
नागरिकता का अंतिम राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) 31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित हो चुका है। 19 लाख से अधिक लोग इससे बाहर हो चुके हैं। जो लोग लिस्ट से बाहर हुए हैं उन्हें समर्थन देने के लिए विभिन्न मानवाधिकार संगठन, नागरिक, समाज के सदस्य और अन्य नागरिक एक साथ आ रहे हैं। जो लोग बाहर हुए हैं, उनमें भाषाई, धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यक शामिल हैं: बंगाली हिंदू, श्रमिक वर्ग मुस्लिम, गोरखा समुदाय के सदस्य, स्वदेशी समुदाय जैसे कोच राजबंगेशी, विवाहित महिलाएं और बच्चे। सूची से बाहर किए गए लोगों की सबसे बड़ी संख्या ऐसी है आर्थिक रूप से हाशिए पर हैं, ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित हैं और सताए गए समुदायों से हैं। असम में हर वक्त बाढ़ का खतरा रहता है। ऐसे में आवश्यक दस्तावेजों का संरक्षण व उन्हें हासिल करना ही बहुत मुश्किल है। 



लेकिन, सबसे ज्यादा प्रभावित शायद गाँव में रहने वाली विवाहित महिलाएँ हैं जिनके पास वस्तुतः कोई दस्तावेज नहीं है। जैसे कि अधिकांश बच्चे अस्पतालों में पैदा नहीं होते हैं, शायद ही कभी स्कूल में भेजे जाते हैं। किशोरावस्था में ही वे विवाहित हो जाते हैं, ऐसे में उनके पास जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र या कोई अन्य दस्तावेज नहीं होते हैं। ऐसे में उनका नाम नागरिकता रजिस्टर से बाहर हो जाता है। यह भी चौंकाने वाला है कि कारगिल युद्ध में लड़े मोहम्मद सनाउल्लाह और पूर्व राष्ट्रपति एफए अहमद के परिवार के लोगों को भी अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा गया!

अगला क्रम
जिन लोगों को अंतिम एनआरसी से बाहर रखा गया है, वे अब एक नई परीक्षा से गुजरने वाले हैं, जहां उन्हें फॉरेन ट्रिब्यूनल (एफटी) के समक्ष अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। यदि वे अपनी नागरिकता की वास्तविकता के बारे में अधिकरण के सदस्यों को समझाने में विफल रहते हैं तो उन्हें निर्वासन का इंतजार करने के लिए एक डिटेंशन कैंप में बंद कर दिया जाएगा।

इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि यदि विदेशी करार दिए गए लोगों को उनके कथित मूल देश ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया तो उनका क्या होगा। बांग्लादेश ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह तथाकथित 'विदेशियों' में से किसी को भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं देगा। क्या ये लोग फिर डिटेंशन कैंप/शिविरों में ही अपना जीवन बिताएंगे? क्या यह उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है? असम सरकार ने इस ज्वलंत मुद्दे पर कोई जवाब नहीं दिया है। इसके बजाय सरकार नए एफटी सदस्यों को नियुक्त करने और नए डिटेंशन कैंप के निर्माण में अधिक रुचि रख रही है।

असम के अलावा, NRC की तरह राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को लेकर भी अखिल भारतीय स्तर पर सवाल उठ रहे हैं। कर्नाटक और महाराष्ट्र में स्थापित किए जा रहे निरोध शिविरों को लेकर अलग-अलग संभावनाएं सवालों को जन्म दे रही हैं और असुरक्षा को हवा दे रही हैं। इन मुद्दों पर भी बैठक में चर्चा की जाएगी।

आगे का रास्ता
यह स्पष्ट है कि हम किसी से भी करुणा की उम्मीद नहीं कर सकते, या एक ऐसे शासन से मदद की उम्मीद नहीं कर सकते जो पूरे भारत में असम के प्रयोग की नकल करने का सपना देखता है। केंद्रीय गृह मंत्री ने पूरे भारत में NRC लागू करने की सरकार की इच्छा जताई है। यही कारण है कि देर से ही सही, इस मुद्दे के पीछे एक व्यापक समझ और एकजुटता का निर्माण महत्वपूर्ण है। हमें असम में अपने साथी भारतीयों के साथ एकजुटता से खड़े होने और विभाजनकारी ताकतों का मुकाबला करने के तरीके पर रणनीति बनाने की जरूरत है जो ‘बाहरी’ का डर पैदा कर संस्कृति को खत्म करना चाहते हैं। हमें असम में मानवीय संकट और अखिल भारतीय स्तर पर इस तरह की राजनीति की संभावनाओं के सवाल पर सभी राज्यों में सहायता समूहों की स्थापना व एकजुटता बनाए रखने की दिशा में भी काम करना चाहिए।

सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) और पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (PUCL) के अलावा कई अन्य संगठनों ने नागरिकता के मुद्दे और आगे बढ़ने के तरीके पर चर्चा करने के लिए आपको एक सार्वजनिक बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। हम सभी उदार और धर्मनिरपेक्ष समझ वाले लोगों और समूहों से जुड़ने का आग्रह करते हैं। CJP असम में दो साल से अधिक समय से जमीन पर काम कर रही है।

दिनांक: 11 अक्टूबर, 2019

समय: दोपहर 3 बजे से शाम 7 बजे तक

स्थान: मुंबई मराठी पत्रकार संघ हॉल (दूसरी मंजिल)

मुंबई में हम लोगों के अलावा असम के कुछ लोगों को आमंत्रित करने की योजना है- वकीलों के साथ-साथ पीड़ितों को भी इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। आने वाले कुछ वकील अपने खर्चों को स्वयं वहन करेंगे लेकिन हमें करीब दो से तीन पीड़ितों के खर्चों को साझा करना पड़ सकता है। भाग लेने वाले समूहों से अनुरोध किया जाता है कि वे सामर्थ्यानुसार योगदान दे सकते हैं। 

असम में नागरिकता के मुद्दे / संकट के साथ-साथ शेष भारत के लिए निहितार्थ पर चर्चा की जानी चाहिए; यह सब इसलिए क्योंकि जैसा कि कागजात में बताया गया है कि महाराष्ट्र में एक डिटेंशन सेंटर का निर्माण पहले से ही किया जा रहा है।

विस्तृत एजेंडा इस प्रकार है:

(a) असम से गवाही: असम में पीड़ितों की स्थिति

(b) नागरिकता का विकास, नागरिकता पर कानून और भारत में विदेशियों पर कानून

(c) असम में नागरिकता का अजीबोगरीब मामला: 1947 के आधार पर एनआरसी, डी वोटर,

(d) विदेशी ट्रिब्यूनल: कामकाज और प्रश्न

(e) विदेशी अधिनियम में हिंदुओं आदि को शामिल करने और नागरिकता संशोधन विधेयक (2016) लागा जा चुका है, जिसका मकसद सिर्फ कुछ समुदायों को ही NRC से बाहर रखने की साजिश नजर आता है।

(f) कार्ययोजना: सभी राज्यों (महाराष्ट्र) में असम के लिए एकजुटता समूह अखिल भारतीय स्तर पर निर्माण करने की रणनीतियाँ।

कार्यक्रम का समर्थन करने वाले संगठन:
अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ (AIDWA)
अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS)
अखिल भारतीय मिल्ली परिषद
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म
डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (DYFI)
फोरम अगेंस्ट ऑप्रेसन ऑफ विमन (FAOW)
मानवाधिकार कानून नेटवर्क (HRLN)
भारतीय ईसाई महिला आंदोलन (ICWM)
भारतीय सामाजिक कार्य मंच (INSAF)
इंडियन मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी (IMSD)
जन स्वास्थ्य अभियान
जिमी फाउंडेशन 
LABIA - ए क्वीर फेमिनिस्ट LBT कलेक्टिव
नेशनल एलायंस ऑफ़ पीपुल्स मूवमेंट्स (NAPM)
नॉर्थ ईस्ट कलेक्टिव
पुलिस रिफॉर्म वॉच
रिवोल्यूशनरी वर्कर्स पार्टी ऑफ़ इंडिया (RWPI)
सलोका (Saloka)

कृपया कार्यक्रम में उपस्थिति के लिए यहां पंजीकरण करें -
https://cjp.org.in/event/nrc-assam-who-is-an-indian/

फेसबुक एड्रेस: https://www.facebook.com/events/941611282880637/

कृपया कार्यक्रम में शरीक हों और व्यापक रूप से शेयर करें!

बाकी ख़बरें