अच्छे पेड न्यूज का उदाहरण, देखिए हिन्दुस्तान टाइम्स में नितिन गडकरी का इंटरव्यू। इसमें पाठक के लिए वह नहीं है जो होना चाहिए था जबकि चुनावी दल के लिए उपयोगी है
मतदाताओं को अखबारों के जरिए लुभाने या सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में अखबारों के बिछ जाने तथा तामाम कायदे कानूनों के साथ चुनावी नैतिकता को भी ताक पर रख दिए जाने के अपने उदाहरणों के तहत आज मैं अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग , जहाजरानी और जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी के इंटरव्यू की चर्चा करूंगा। हिन्दी के अपने पाठकों के लिए अंग्रेजी में छपे इस इंटरव्यू का तर्जुमा मेरा है। मुझे नहीं पता (लिखा नहीं है) कि यह इंटरव्यू किस भाषा में किया गया और अंग्रेजी में जो छपा - वह अनुवाद है कि नहीं - पर चूंकि ऐसा संभव है इसलिए अनुवाद में और इसकी वजह से तेवर में हो सकने वाले मामूली अंतर का ख्याल रखें। हालांकि, इसकी संभवना कम से कम रहे इसके लिए मैं उन अंशों की चर्चा ही नहीं करूंगा। मेरा फोकस शीर्षक और उससे संबंधित सवालों और शीर्षक की प्रस्तुति पर ही केंद्रित है।
आज के अखबारों में मैंने सबसे पहले हिन्दुस्तान टाइम्स देखा और इसके पहले पन्ने के अधपन्ने पर ‘इलेक्शन 2019’ के तहत अंदर के पन्नों की तीन 'खबरों' का शीर्षक और उनका मामूली विस्तार है। दो खबरें पेज आठ की और एक पेज 15 का है। इनमें एक अनूदित शीर्षक है, "हम '14 के मुकाबले मजबूत लग रहे हैं इसलिए विपक्ष एकजुट हो रहा है : गडकरी"।
भाजपा की तरफ से यह कोई नया दावा नहीं है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह इस विषय पर बोलते रहे हैं और इसपर काफी कहा-लिखा जा चुका है। पहले पन्ने पर प्रकाशित 'खबर' में कहा गया है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक इंटरव्यू में हिन्दुस्तान टाइम्स से यह बात कही। अंदर यह इंटरव्यू नितिन गडकरी की चार कॉलम की फोटो के साथ आठ कॉलम में है। अखबार के एक पन्ने पर लगभग 70 प्रतिशत में प्रकाशित इस इंटरव्यू के नीचे एक साथ तीन विज्ञापन है। शीर्षक चार कॉलम तीन लाइन में है। (तस्वीर देखें)
अनुवाद इस प्रकार होगा, “विपक्ष हमसे डरता है इसलिए गठजोड़ कर रहा है”। यह शीर्षक इस तथ्य के बावजूद है कि भाजपा अकेले चुनाव नहीं लड़ रही है ना पहले लड़ी थी। भाजपा का बिहार में जेडी(यू) से गठजोड़ है। बाकी क्या खेल हुआ (जनादेश को ठगने वाला) आप जानते ही है। राम विलास पासवान से गठजोड़ बचाए रखने के लिए सरकार ने क्या किया आप जानते हैं। जीतन राम मांझी बड़े नेता नहीं हैं पर भाजपा से गठजोड़ है। महाराष्ट्र में शिवसेना से गठजोड़ था और पांच साल गालियां सुनने-सुनाने के बावजूद फिर हो गया है। भाजपा का तमिलनाडु में एआईएडीएमके से गठजोड़ हो गया है। भाजपा का पंजाब में अकाली दल से गठजोड़ है। इसके बावजूद भाजपा को हराने के लिए सभी विपक्षी एक हो रहे हैं। और इस बारे में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था सांप, नेवला कुत्ता सब मोदी जी की बाढ़ में एक हो रहे हैं। बाद में सफाई दी थी लेकिन इसका वीडियो उपलब्ध है।
अनिशा दत्ता के इस इंटरव्यू के साथ लिखा है कि यह संपादित अंश है इसलिए मैं नहीं जानता कि उनसे सवाल पूछे गए कि नहीं और पूछे गए तो संपादित हो गए कि नहीं। मैं जो छपा है उसकी बात करूं तो इस शीर्षक या जवाब (अथवा ऐसे अंश के बाद) मैं यह जरूर पूछता कि विपक्ष आपसे डरता है का क्या मतलब है? मुझे समझ में नहीं आ रहा है। इस जवाब के दो मतलब हो सकते हैं, आपसे हार का डर है या आपके सत्ता में आने का डर है। अगर हार से डर है तो यह पहले क्यों नहीं था या था कि नहीं और था तो अब नया क्या है और हार का डर पहले क्यों नहीं था और अब है तो क्यों? इस इंटरव्यू में ऐसा कोई सवाल नहीं पूछा गया है। आइए, शीर्षक तक के पूरे सवाल-जवाब को देख लेते हैं।
सवाल : चुनाव के बारे में आपका आकलन क्या है। भाजपा वापस सत्ता में आएगी क्या?
जवाब : निश्चित रूप से। हम 300 से ज्यादा सीटें जीतेंगे और बहुमत के साथ वापस आएंगे।
टिप्पणी : इसके बाद सवाल यह होना चाहिए था कि आपके ऐसा कहने का आधार क्या है? या आप ऐसा कैसे कह रहे हैं या कह सकते हैं। पर जो सवाल छपा है वह है –
सवाल : 2014 में कई विपक्षी दल अलग-अलग लड़े थे। जब विपक्ष की एकता मजबूत हो रही है, आपकी राय में इसका चुनाव पर क्या असर होगा?
टिप्पणी : कहने की जरूरत नहीं है कि यह सवाल उपरोक्त जवाब के लिए ही पूछा गया है। वरना इसमें भी यह जोड़ा जाना चाहिए था कि इसके बावजूद आप कैसे पहले के मुकाबले 300 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं और ये तीन सौ सीटें भाजपा की अकेली होंगी या गठबंधन की सीटें मिलाकर?
जवाब : 1971 में इंदिरा गांधी के खिलाफ सभी विपक्षी दलों ने एक बड़ा गठजोड़ किया था पर वह पूरी तरह खत्म हो गया था। राजनीति में दो जोड़ दो चार नहीं होते हैं। एक दूसरे को पसंद नहीं करने वाले ये सभी लोग अब सबसे अच्छे मित्र बन गए हैं। कारण यह है कि वे हमसे डरते हैं। हमारी शक्ति बढ़ गई है। वे डर के मारे एकजुट हुए हैं।
टिप्पणी : गडकरी जी 1971 की बात कर रहे हैं और अभी मिलेनियल्स (1990 के बाद पैदा हुए बच्चों) की बात चल रही है। उनलोगों की बात चल रही है जो पहली बार वोट देंगे और जिनके लिए रोजगार का संकट खड़ा है। इंटरव्यू में आजकल इस तरह टोकना संभव नहीं है। यहां इस जवाब पर सवाल बनता था, आपसे या आपके सत्ता में रहने पर सीबीआई, ईडी, आयकर आदि से? सवाल देखिए –
सवाल : पर जब कभी उनलोगों ने गठजोड़ किया है आपको हराया है जहां कहीं भी उपचुनाव हुए हैं। 2014 में मतों का आपका हिस्सा बढ़कर सिर्फ 30-31 प्रतिशत था।
टिप्पणी : मेरे हिसाब से ऐसे सवाल का कोई मतलब नहीं है। खासकर पहले के जवाब और तेवर के संदर्भ में। इसका जवाब सामान्य स्थितियों में कोई भी यही देगा कि उपचुनाव और विधानसभा चुनाव की बात अलग है। इस सवाल का टालने वाला उत्तर पता है और सवालों के तेवर से समझ में आ रहा है कि यह इंटरव्यू आगे पढ़ने लायक नहीं होने वाला है। फिर भी पूछा गया है और छपा भी है, तो हम जवाब देख लें।
जवाब : यह सही है कि हम वोटों के बंटवारे से जीते थे। पर नरेन्द्र मोदी सरकार ने पिछले पांच वर्षों में जो काम किए हैं – पिछले 50 वर्षों में जो नहीं हुआ था वह पिछले पांच वर्षों में हो चुका है। इसीलिए विपक्षी दल हमारे खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। दूसरा कारण यह भी है कि हम मजबूत दिखते हैं। अगर हम कमजोर होते तो वे एकजुट नहीं होते। मेरा मानना है कि अगर लोग जाति, धर्म, भाषा को तवज्जो न दें तो उन्हें हमारा समर्थन करना चाहिए। हमलोगों ने कभी कोई बंटवारा नहीं किया है। हमलोगों ने एक तरफ विकास की राजनीति की है और दूसरी ओर वे सांप्रदायिकता, जातियता की राजनीति कर रहे हैं और डर का माहौल बना रहे हैं।
टिप्पणी : उपरोक्त जवाब का पहला वाक्य देखिए। आप समझ सकते हैं कि विपक्षी एकजुटता से कौन डर रहा है और क्यों उसे महामिलावट कहा जा रहा है। लेकिन अगला सवाल इस पर नहीं है। इसके बाद जो जवाब दिया गया वह भाजपा का प्रचार है और रेडियो-टीवी सब पर आ चुका है अब इंटरव्यू के रूप में प्रस्तुत है। जवाब में नितिन गडकरी ने कहा है, हमलोगों ने कभी कोई बंटवारा नहीं किया है। हमलोगों ने एक तरफ विकास की राजनीति की है और दूसरी ओर वे सांप्रदायिकता, जातियता की राजनीति कर रहे हैं और डर का माहौल बना रहे हैं। मैं इस दावे को झूठ और गलत मानता हूं। अगला सवाल इन दो बातों पर होना चाहिए था। लेकिन जो छपा है वह सवाल है -
सवाल : भाजपा सरकार पर अक्सर यह आरोप लगता है वह राष्ट्रवाद का उपयोग चुनावों में राजनीतिक हथियार के रूप में करती है। प्रधानमंत्री हवाई हमलों का उपयोग चुनावी रैलियों में करते हैं। आपके विचार क्या है?
टिप्पणी : यह सवाल ही बकवास है। पूर्व रक्षा मंत्री मरहूम मनोहर परिकर जब आईएनटी के विरोध को नजरअंदाज कर सकते हैं और भाजपा इस तथ्य का उपयोग पत्रकारिता के खिलाफ और अपनी (प्रधानमंत्री की) छवि बचाने के लिए कर सकती है। इसके लिए महत्वपूर्ण सरकारी फाइल से गोपनीय दस्तावेज लीक हो सकता है तो इस सवाल का जवाब जिसे जानना होगा पढ़ेगा मैं मुफ्त में अनुवाद क्यों करूं?
कहने की जरूरत नहीं है कि पूरा इंटरव्यू ऐसे ही सवाल जवाब का समसर्वत्र मिश्रण है। इसमें राजनीतिक सूचनाएं हो सकती हैं। संभव है कुछ सवालों से आम पाठकों को उनके काम की जानकारी मिल जाए वे नितिन गडकरी के बारे में कोई राय बना सकें या कुछ और भी उपयोग हो। पत्रकारिता की दृष्टि से यह इंटरव्यू बेकार या फालतू नहीं है। जनसंपर्क या प्रचार की पत्रकारिता है। अच्छा पेड न्यूज हो सकता है। इसमें पाठक के लिए वह नहीं है जो होना चाहिए था।
यही संपादकीय स्वतंत्रता है और यही प्रेस की आजादी है। कुछ लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि मीडिया का विरोध क्यों हो रहा है। काश उन्हें समझ में आ जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक और मीडिया समीक्षक हैं।)
मतदाताओं को अखबारों के जरिए लुभाने या सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में अखबारों के बिछ जाने तथा तामाम कायदे कानूनों के साथ चुनावी नैतिकता को भी ताक पर रख दिए जाने के अपने उदाहरणों के तहत आज मैं अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग , जहाजरानी और जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी के इंटरव्यू की चर्चा करूंगा। हिन्दी के अपने पाठकों के लिए अंग्रेजी में छपे इस इंटरव्यू का तर्जुमा मेरा है। मुझे नहीं पता (लिखा नहीं है) कि यह इंटरव्यू किस भाषा में किया गया और अंग्रेजी में जो छपा - वह अनुवाद है कि नहीं - पर चूंकि ऐसा संभव है इसलिए अनुवाद में और इसकी वजह से तेवर में हो सकने वाले मामूली अंतर का ख्याल रखें। हालांकि, इसकी संभवना कम से कम रहे इसके लिए मैं उन अंशों की चर्चा ही नहीं करूंगा। मेरा फोकस शीर्षक और उससे संबंधित सवालों और शीर्षक की प्रस्तुति पर ही केंद्रित है।
आज के अखबारों में मैंने सबसे पहले हिन्दुस्तान टाइम्स देखा और इसके पहले पन्ने के अधपन्ने पर ‘इलेक्शन 2019’ के तहत अंदर के पन्नों की तीन 'खबरों' का शीर्षक और उनका मामूली विस्तार है। दो खबरें पेज आठ की और एक पेज 15 का है। इनमें एक अनूदित शीर्षक है, "हम '14 के मुकाबले मजबूत लग रहे हैं इसलिए विपक्ष एकजुट हो रहा है : गडकरी"।
भाजपा की तरफ से यह कोई नया दावा नहीं है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह इस विषय पर बोलते रहे हैं और इसपर काफी कहा-लिखा जा चुका है। पहले पन्ने पर प्रकाशित 'खबर' में कहा गया है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक इंटरव्यू में हिन्दुस्तान टाइम्स से यह बात कही। अंदर यह इंटरव्यू नितिन गडकरी की चार कॉलम की फोटो के साथ आठ कॉलम में है। अखबार के एक पन्ने पर लगभग 70 प्रतिशत में प्रकाशित इस इंटरव्यू के नीचे एक साथ तीन विज्ञापन है। शीर्षक चार कॉलम तीन लाइन में है। (तस्वीर देखें)
अनुवाद इस प्रकार होगा, “विपक्ष हमसे डरता है इसलिए गठजोड़ कर रहा है”। यह शीर्षक इस तथ्य के बावजूद है कि भाजपा अकेले चुनाव नहीं लड़ रही है ना पहले लड़ी थी। भाजपा का बिहार में जेडी(यू) से गठजोड़ है। बाकी क्या खेल हुआ (जनादेश को ठगने वाला) आप जानते ही है। राम विलास पासवान से गठजोड़ बचाए रखने के लिए सरकार ने क्या किया आप जानते हैं। जीतन राम मांझी बड़े नेता नहीं हैं पर भाजपा से गठजोड़ है। महाराष्ट्र में शिवसेना से गठजोड़ था और पांच साल गालियां सुनने-सुनाने के बावजूद फिर हो गया है। भाजपा का तमिलनाडु में एआईएडीएमके से गठजोड़ हो गया है। भाजपा का पंजाब में अकाली दल से गठजोड़ है। इसके बावजूद भाजपा को हराने के लिए सभी विपक्षी एक हो रहे हैं। और इस बारे में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था सांप, नेवला कुत्ता सब मोदी जी की बाढ़ में एक हो रहे हैं। बाद में सफाई दी थी लेकिन इसका वीडियो उपलब्ध है।
अनिशा दत्ता के इस इंटरव्यू के साथ लिखा है कि यह संपादित अंश है इसलिए मैं नहीं जानता कि उनसे सवाल पूछे गए कि नहीं और पूछे गए तो संपादित हो गए कि नहीं। मैं जो छपा है उसकी बात करूं तो इस शीर्षक या जवाब (अथवा ऐसे अंश के बाद) मैं यह जरूर पूछता कि विपक्ष आपसे डरता है का क्या मतलब है? मुझे समझ में नहीं आ रहा है। इस जवाब के दो मतलब हो सकते हैं, आपसे हार का डर है या आपके सत्ता में आने का डर है। अगर हार से डर है तो यह पहले क्यों नहीं था या था कि नहीं और था तो अब नया क्या है और हार का डर पहले क्यों नहीं था और अब है तो क्यों? इस इंटरव्यू में ऐसा कोई सवाल नहीं पूछा गया है। आइए, शीर्षक तक के पूरे सवाल-जवाब को देख लेते हैं।
सवाल : चुनाव के बारे में आपका आकलन क्या है। भाजपा वापस सत्ता में आएगी क्या?
जवाब : निश्चित रूप से। हम 300 से ज्यादा सीटें जीतेंगे और बहुमत के साथ वापस आएंगे।
टिप्पणी : इसके बाद सवाल यह होना चाहिए था कि आपके ऐसा कहने का आधार क्या है? या आप ऐसा कैसे कह रहे हैं या कह सकते हैं। पर जो सवाल छपा है वह है –
सवाल : 2014 में कई विपक्षी दल अलग-अलग लड़े थे। जब विपक्ष की एकता मजबूत हो रही है, आपकी राय में इसका चुनाव पर क्या असर होगा?
टिप्पणी : कहने की जरूरत नहीं है कि यह सवाल उपरोक्त जवाब के लिए ही पूछा गया है। वरना इसमें भी यह जोड़ा जाना चाहिए था कि इसके बावजूद आप कैसे पहले के मुकाबले 300 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं और ये तीन सौ सीटें भाजपा की अकेली होंगी या गठबंधन की सीटें मिलाकर?
जवाब : 1971 में इंदिरा गांधी के खिलाफ सभी विपक्षी दलों ने एक बड़ा गठजोड़ किया था पर वह पूरी तरह खत्म हो गया था। राजनीति में दो जोड़ दो चार नहीं होते हैं। एक दूसरे को पसंद नहीं करने वाले ये सभी लोग अब सबसे अच्छे मित्र बन गए हैं। कारण यह है कि वे हमसे डरते हैं। हमारी शक्ति बढ़ गई है। वे डर के मारे एकजुट हुए हैं।
टिप्पणी : गडकरी जी 1971 की बात कर रहे हैं और अभी मिलेनियल्स (1990 के बाद पैदा हुए बच्चों) की बात चल रही है। उनलोगों की बात चल रही है जो पहली बार वोट देंगे और जिनके लिए रोजगार का संकट खड़ा है। इंटरव्यू में आजकल इस तरह टोकना संभव नहीं है। यहां इस जवाब पर सवाल बनता था, आपसे या आपके सत्ता में रहने पर सीबीआई, ईडी, आयकर आदि से? सवाल देखिए –
सवाल : पर जब कभी उनलोगों ने गठजोड़ किया है आपको हराया है जहां कहीं भी उपचुनाव हुए हैं। 2014 में मतों का आपका हिस्सा बढ़कर सिर्फ 30-31 प्रतिशत था।
टिप्पणी : मेरे हिसाब से ऐसे सवाल का कोई मतलब नहीं है। खासकर पहले के जवाब और तेवर के संदर्भ में। इसका जवाब सामान्य स्थितियों में कोई भी यही देगा कि उपचुनाव और विधानसभा चुनाव की बात अलग है। इस सवाल का टालने वाला उत्तर पता है और सवालों के तेवर से समझ में आ रहा है कि यह इंटरव्यू आगे पढ़ने लायक नहीं होने वाला है। फिर भी पूछा गया है और छपा भी है, तो हम जवाब देख लें।
जवाब : यह सही है कि हम वोटों के बंटवारे से जीते थे। पर नरेन्द्र मोदी सरकार ने पिछले पांच वर्षों में जो काम किए हैं – पिछले 50 वर्षों में जो नहीं हुआ था वह पिछले पांच वर्षों में हो चुका है। इसीलिए विपक्षी दल हमारे खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। दूसरा कारण यह भी है कि हम मजबूत दिखते हैं। अगर हम कमजोर होते तो वे एकजुट नहीं होते। मेरा मानना है कि अगर लोग जाति, धर्म, भाषा को तवज्जो न दें तो उन्हें हमारा समर्थन करना चाहिए। हमलोगों ने कभी कोई बंटवारा नहीं किया है। हमलोगों ने एक तरफ विकास की राजनीति की है और दूसरी ओर वे सांप्रदायिकता, जातियता की राजनीति कर रहे हैं और डर का माहौल बना रहे हैं।
टिप्पणी : उपरोक्त जवाब का पहला वाक्य देखिए। आप समझ सकते हैं कि विपक्षी एकजुटता से कौन डर रहा है और क्यों उसे महामिलावट कहा जा रहा है। लेकिन अगला सवाल इस पर नहीं है। इसके बाद जो जवाब दिया गया वह भाजपा का प्रचार है और रेडियो-टीवी सब पर आ चुका है अब इंटरव्यू के रूप में प्रस्तुत है। जवाब में नितिन गडकरी ने कहा है, हमलोगों ने कभी कोई बंटवारा नहीं किया है। हमलोगों ने एक तरफ विकास की राजनीति की है और दूसरी ओर वे सांप्रदायिकता, जातियता की राजनीति कर रहे हैं और डर का माहौल बना रहे हैं। मैं इस दावे को झूठ और गलत मानता हूं। अगला सवाल इन दो बातों पर होना चाहिए था। लेकिन जो छपा है वह सवाल है -
सवाल : भाजपा सरकार पर अक्सर यह आरोप लगता है वह राष्ट्रवाद का उपयोग चुनावों में राजनीतिक हथियार के रूप में करती है। प्रधानमंत्री हवाई हमलों का उपयोग चुनावी रैलियों में करते हैं। आपके विचार क्या है?
टिप्पणी : यह सवाल ही बकवास है। पूर्व रक्षा मंत्री मरहूम मनोहर परिकर जब आईएनटी के विरोध को नजरअंदाज कर सकते हैं और भाजपा इस तथ्य का उपयोग पत्रकारिता के खिलाफ और अपनी (प्रधानमंत्री की) छवि बचाने के लिए कर सकती है। इसके लिए महत्वपूर्ण सरकारी फाइल से गोपनीय दस्तावेज लीक हो सकता है तो इस सवाल का जवाब जिसे जानना होगा पढ़ेगा मैं मुफ्त में अनुवाद क्यों करूं?
कहने की जरूरत नहीं है कि पूरा इंटरव्यू ऐसे ही सवाल जवाब का समसर्वत्र मिश्रण है। इसमें राजनीतिक सूचनाएं हो सकती हैं। संभव है कुछ सवालों से आम पाठकों को उनके काम की जानकारी मिल जाए वे नितिन गडकरी के बारे में कोई राय बना सकें या कुछ और भी उपयोग हो। पत्रकारिता की दृष्टि से यह इंटरव्यू बेकार या फालतू नहीं है। जनसंपर्क या प्रचार की पत्रकारिता है। अच्छा पेड न्यूज हो सकता है। इसमें पाठक के लिए वह नहीं है जो होना चाहिए था।
यही संपादकीय स्वतंत्रता है और यही प्रेस की आजादी है। कुछ लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि मीडिया का विरोध क्यों हो रहा है। काश उन्हें समझ में आ जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक और मीडिया समीक्षक हैं।)