नई दिल्लीः देश में मेहनतकश तबका अच्छे हाल में नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने जो आंकड़ा जारी किया है वह चिंताजनक है। एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक, साल 2019 में आत्महत्या करने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 23.4 फीसदी बढ़ी है। एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की है, जिसमें दिहाड़ी मजदूरों की संख्या लगभग एक चौथाई यानी 32,563 है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, छह साल पहले की तुलना में 2019 में यह संख्या दोगुनी होकर 23.4 फीसदी हो गई है। हालांकि, इन आंकड़ों में से कृषि क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर शामिल नहीं हैं।
2019 में तमिलनाडु में सबसे अधिक 5,186 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। इसके बाद महाराष्ट्र में 4,128 मजदूरों, मध्य प्रदेश में 3,964, तेलंगाना में 2,858 और केरल में 2,809 मजदूरों ने आत्महत्या की। आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में दिहाड़ी मजदूरों के बाद दूसरे स्थान पर गृहिणियों ने आत्महत्या की है। इस दौरान 21,359 यानी 15.4 फीसदी गृहिणियों ने आत्महत्या की।
हालांकि, गृहिणियों और कृषि सेक्टर में काम करने वाले मजदूरों के आत्महत्या के मामलों में कमी आई है। कृषि क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों के लिए एक अलग उप-श्रेणी है और 2019 में हुई कुल आत्महत्याओं में से 3.1 फीसदी इसी से जुड़े हुए लोग हैं। एनसीआरबी ने 2014 से ही ‘एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स’ श्रेणी में मजदूरों की आत्महत्याओं को वर्गीकृत करना शुरू कर दिया था। 2014 में इस श्रेणी के तहत 12 फीसदी आत्महत्या हुईं, लेकिन 2015 के बाद से इसमें इजाफा होता रहा है।
साल 2015 में इसमें 17.8 फीसदी की वृद्धि देखी गई थी, जबकि 2016 में 19.2 फीसदी, 2017 में 22.1 फीसदी, 2018 में 22.4 फीसदी और 2019 में 23.4 फीसदी दर्ज हुई। एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट में आत्महत्याओं को नौ श्रेणियों में बांट दिया है, जिसमें दिहाड़ी मजदूर, गृहिणियों और कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के अलावा पेशेवर/वेतनभोगी, छात्र, स्वरोजगार, सेवानिवृत्त, बेरोजगार और अन्य लोग शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘इन आंकड़ों में सिर्फ आत्महत्या करने वाले लोगों के पेशों को दर्शाया गया है।’2019 में आत्महत्या करने वाले बेरोजगारों का अनुपात 10.1 फीसदी तक पहुंच गया है, जो 1995 में एनसीआरबी के आंकड़े जारी करने के बाद से यानी बीते 25 सालों में पहली बार दोहरे अंकों तक पहुंचा है। 2019 में 14,019 बेरोजगारों ने आत्महत्या की थी, जिसमें 2018 में 12,936 बेरोजगारों की आत्महत्या की तुलना में 8.37 फीसदी का उछाल आया है। वे पांच राज्य जहां बेरोजगारों ने सबसे ज्यादा आत्महत्या की हैं, उनमें केरल (10,963), महाराष्ट्र (1,511), तमिलनाडु (1,368), कर्नाटक (1,293) और ओडिशा (858) शामिल हैं।
2019 में बेरोजगारों की आत्महत्याओं की संख्या ने 1997 में हुई बेरोजगारों की संख्या को पीछे छोड़ दिया है। 1997 में 9.8 फीसदी बेरोजगारों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2019 में यह 10.1 फीसदी है। साल 2007 में बेरोजगारों की आत्महत्या की दर सबसे कम 6.9 प्रतिशत रही, जबकि 1995 से लेकर 2004 तक यह 8 प्रतिशत से अधिक रही। 2005 से लेकर 2014 तक यह 8 प्रतिशत से कम रही और उसके बाद से लगातार बढ़ रही है।
साभार- द वायर

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, छह साल पहले की तुलना में 2019 में यह संख्या दोगुनी होकर 23.4 फीसदी हो गई है। हालांकि, इन आंकड़ों में से कृषि क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर शामिल नहीं हैं।
2019 में तमिलनाडु में सबसे अधिक 5,186 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। इसके बाद महाराष्ट्र में 4,128 मजदूरों, मध्य प्रदेश में 3,964, तेलंगाना में 2,858 और केरल में 2,809 मजदूरों ने आत्महत्या की। आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में दिहाड़ी मजदूरों के बाद दूसरे स्थान पर गृहिणियों ने आत्महत्या की है। इस दौरान 21,359 यानी 15.4 फीसदी गृहिणियों ने आत्महत्या की।
हालांकि, गृहिणियों और कृषि सेक्टर में काम करने वाले मजदूरों के आत्महत्या के मामलों में कमी आई है। कृषि क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों के लिए एक अलग उप-श्रेणी है और 2019 में हुई कुल आत्महत्याओं में से 3.1 फीसदी इसी से जुड़े हुए लोग हैं। एनसीआरबी ने 2014 से ही ‘एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स’ श्रेणी में मजदूरों की आत्महत्याओं को वर्गीकृत करना शुरू कर दिया था। 2014 में इस श्रेणी के तहत 12 फीसदी आत्महत्या हुईं, लेकिन 2015 के बाद से इसमें इजाफा होता रहा है।
साल 2015 में इसमें 17.8 फीसदी की वृद्धि देखी गई थी, जबकि 2016 में 19.2 फीसदी, 2017 में 22.1 फीसदी, 2018 में 22.4 फीसदी और 2019 में 23.4 फीसदी दर्ज हुई। एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट में आत्महत्याओं को नौ श्रेणियों में बांट दिया है, जिसमें दिहाड़ी मजदूर, गृहिणियों और कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के अलावा पेशेवर/वेतनभोगी, छात्र, स्वरोजगार, सेवानिवृत्त, बेरोजगार और अन्य लोग शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘इन आंकड़ों में सिर्फ आत्महत्या करने वाले लोगों के पेशों को दर्शाया गया है।’2019 में आत्महत्या करने वाले बेरोजगारों का अनुपात 10.1 फीसदी तक पहुंच गया है, जो 1995 में एनसीआरबी के आंकड़े जारी करने के बाद से यानी बीते 25 सालों में पहली बार दोहरे अंकों तक पहुंचा है। 2019 में 14,019 बेरोजगारों ने आत्महत्या की थी, जिसमें 2018 में 12,936 बेरोजगारों की आत्महत्या की तुलना में 8.37 फीसदी का उछाल आया है। वे पांच राज्य जहां बेरोजगारों ने सबसे ज्यादा आत्महत्या की हैं, उनमें केरल (10,963), महाराष्ट्र (1,511), तमिलनाडु (1,368), कर्नाटक (1,293) और ओडिशा (858) शामिल हैं।
2019 में बेरोजगारों की आत्महत्याओं की संख्या ने 1997 में हुई बेरोजगारों की संख्या को पीछे छोड़ दिया है। 1997 में 9.8 फीसदी बेरोजगारों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2019 में यह 10.1 फीसदी है। साल 2007 में बेरोजगारों की आत्महत्या की दर सबसे कम 6.9 प्रतिशत रही, जबकि 1995 से लेकर 2004 तक यह 8 प्रतिशत से अधिक रही। 2005 से लेकर 2014 तक यह 8 प्रतिशत से कम रही और उसके बाद से लगातार बढ़ रही है।
साभार- द वायर