भारत के ही किसी एक शहर में एक परिवार रहता है जिसका एक बच्चा बहुत ही ज़िद्दी और अख्खड़ , मुहल्ले में जब वह खेलते समय बच्चों से हार या पिट जाता तो अपने घर में जाकर रोता और सफाईयाँ देता कि "मैंने कुछ नहीं किया , वो लोग झूठ बोल रहे हैं ,और रोते हुए कहता कि मैंने ऐसे किया , मैंने वैसे किया, सारी गलती उन लोगों की है , बूहूहूहू । और फिर उसके घर वाले "लठैत" घर से बाहर आकर उन लोगों को चार बातें सुनाते जिनके साथ बच्चा खेल रहा था।
यह उदाहरण हमारे और आपके मुहल्ले या कालोनी में बच्चों की लड़ाईयों में अक्सर ही सबके सामने आया होगा , कल प्रधानमंत्री जी ने भी उसी बच्चे की तरह व्यवहार किया , और जब सारा विपक्ष उनके संसद में होने की माँग कर रहा है तो वह भाजपा संसदीय दल की बैठक में उसी बच्चे की तरह रोकर सफाईयाँ दे रहे थे कि "विपक्ष गलत जानकारी फैला रहा है" "मेरा मकसद यह था" , "आप लोग जनता को समझाईये" , " इस नोटबंदी को सर्जिकल स्ट्राईक मत कहिए" इत्यादि इत्यादि।
जैसे अपने घर में जाकर रोने वाला ज़िद्दी लड़का अक्सर गलत होता है वैसे ही यहाँ प्रधानमंत्री भी गलत हैं, क्युँकि नोटबंदी को एक और सर्जिकल स्ट्राईक उन्होंने खुद 22 अक्टूबर 2016 को वड़ोदरा की अपनी पिछली ही मीटिंग में कहा था और उनके तब के भाषण से प्रेरित होकर ही उनके परिवार वालों ने नोटबंदी को सर्जिकल स्ट्राईक कहना प्रारंभ किया , आज प्रधानमंत्री दूसरे को "सर्जिकल स्ट्राइक" कहने से मना कर रहे हैं तो मान लीजिए कि वह अपने निर्णय में फँस चुके हैं और पूरे देश को फँसा चुके हैं जिसपर लीपापोती करने के लिए वह अपनी "भाँड मीडिया" और खुद की अभिनय क्षमता का प्रयोग कर रहे हैं, प्रधानमंत्री जी आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति के "ट्रेजडी किंग" होने जा रहे हैं।
ध्यान दीजिए कि 8 नवम्बर के बाद प्रधानमंत्री जी ताबड़तोड़ सभाएँ कर रहे हैं , जापान में एक , महाराष्ट्र और गोवा में 3 , गाज़ीपुर में 1 , आगरा में 1 , पत्रकारिता से संबंधित एक कार्यक्रम में एक और कल भी किसी प्रोग्राम में एक , अर्थात 13 दिन में 8 प्रवचन और हो सकता है कि दो एक दिन में दो एक और प्रवचन देकर रविवार को "मन की बात" करें तो कुल 12 भाषण, और सब जगह देश को समझाने का प्रयास , तो आप खुद समझ सकते हैं कि एक तो प्रधानमंत्री को भी देश की नाराजगी का एहसास है और दूसरा यह कि "नोटबंदी" के लिए पूरी स्क्रिप्ट लिखी गयी , प्रधानमंत्री के भाषणबाजी के प्रोग्राम तय किए गये , बस तैयारी इस बात की नहीं की गयी कि इस नोटबंदी के कारण बर्बाद होने वाली जनता को और क्या विकल्प दिए जाएँ जिससे देश में अव्यवस्था ना फैले।
दरअसल संघ की ट्रेनिंग से इन नागपुरियों के पास गजब की थेथरई होती है , शब्दों को चबा चबा कर आक्रामक रुप से बोलने की कला होती है और प्रधानमंत्री इस कला के सबसे बड़े उदाहरण हैं , उनको लगता है कि उनके भाषण देने , चीख चीख कर समझाने , हाथ उठवा देने से गरीब जनता अपनी भूख और पैसे की ज़रूरत भूल जाएगी तो यह उनकी मुर्खता ही है।
कल राज्यसभा में ये बोल रहे थे कि यह विषय वित्तमंत्री के स्तर का है तो प्रधानमंत्री को सदन में बुलाने की ज़िद क्युँ ? तो सवाल उठेगा ही कि यह विषय वित्तमंत्री के स्तर के विषय को प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर को खुद घोषणा क्युँ की ? जब खुद घोषणा की तो वित्तमंत्री से जवाब क्यूँ ?
देश फँस चुका है और प्रधानमंत्री समझ चुके हैं कि वह देश को फँसा चुके हैं , उदाहरण देखिए कि नोटबंदी की घोषणा के अगले ही दिन प्रधानमंत्री जापान निकल गये और वहाँ उचक उचक कर , मटक मटक कर , ताली बजा बजा कर अपने निर्णय पर खुद की पीठ ठोक रहे थे और अब वह सुबक सुबक कर रो रहे हैं।
गलती मानकर उसमें सुधार करने की बजाए रोना और उलहना देना कायरता की निशानी है और देश का प्रधानमंत्री बार बार खुद के कायर होने का उदाहरण दे रहा है , पूरा देश परेशान है और प्रधानमंत्री खुद देश को संसद में जवाब देने की बजाए संसदीय दल के पल्लू में बैठ कर सुबक रहे हैं तो माफ कीजिएगा उनके पास 56" की छाती नहीं कुछ और ही है।
संसद का सामना ना करना और वहाँ के सवाल जवाब से भागना वैसे ही है जैसे मुहल्ले का वह ज़िद्दी बच्चा अपने स्कूल की कक्षा से भागता है , निश्चित रूप से देश और प्रधानमंत्री फँस चुके हैं ।
यह उदाहरण हमारे और आपके मुहल्ले या कालोनी में बच्चों की लड़ाईयों में अक्सर ही सबके सामने आया होगा , कल प्रधानमंत्री जी ने भी उसी बच्चे की तरह व्यवहार किया , और जब सारा विपक्ष उनके संसद में होने की माँग कर रहा है तो वह भाजपा संसदीय दल की बैठक में उसी बच्चे की तरह रोकर सफाईयाँ दे रहे थे कि "विपक्ष गलत जानकारी फैला रहा है" "मेरा मकसद यह था" , "आप लोग जनता को समझाईये" , " इस नोटबंदी को सर्जिकल स्ट्राईक मत कहिए" इत्यादि इत्यादि।
जैसे अपने घर में जाकर रोने वाला ज़िद्दी लड़का अक्सर गलत होता है वैसे ही यहाँ प्रधानमंत्री भी गलत हैं, क्युँकि नोटबंदी को एक और सर्जिकल स्ट्राईक उन्होंने खुद 22 अक्टूबर 2016 को वड़ोदरा की अपनी पिछली ही मीटिंग में कहा था और उनके तब के भाषण से प्रेरित होकर ही उनके परिवार वालों ने नोटबंदी को सर्जिकल स्ट्राईक कहना प्रारंभ किया , आज प्रधानमंत्री दूसरे को "सर्जिकल स्ट्राइक" कहने से मना कर रहे हैं तो मान लीजिए कि वह अपने निर्णय में फँस चुके हैं और पूरे देश को फँसा चुके हैं जिसपर लीपापोती करने के लिए वह अपनी "भाँड मीडिया" और खुद की अभिनय क्षमता का प्रयोग कर रहे हैं, प्रधानमंत्री जी आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति के "ट्रेजडी किंग" होने जा रहे हैं।
ध्यान दीजिए कि 8 नवम्बर के बाद प्रधानमंत्री जी ताबड़तोड़ सभाएँ कर रहे हैं , जापान में एक , महाराष्ट्र और गोवा में 3 , गाज़ीपुर में 1 , आगरा में 1 , पत्रकारिता से संबंधित एक कार्यक्रम में एक और कल भी किसी प्रोग्राम में एक , अर्थात 13 दिन में 8 प्रवचन और हो सकता है कि दो एक दिन में दो एक और प्रवचन देकर रविवार को "मन की बात" करें तो कुल 12 भाषण, और सब जगह देश को समझाने का प्रयास , तो आप खुद समझ सकते हैं कि एक तो प्रधानमंत्री को भी देश की नाराजगी का एहसास है और दूसरा यह कि "नोटबंदी" के लिए पूरी स्क्रिप्ट लिखी गयी , प्रधानमंत्री के भाषणबाजी के प्रोग्राम तय किए गये , बस तैयारी इस बात की नहीं की गयी कि इस नोटबंदी के कारण बर्बाद होने वाली जनता को और क्या विकल्प दिए जाएँ जिससे देश में अव्यवस्था ना फैले।
दरअसल संघ की ट्रेनिंग से इन नागपुरियों के पास गजब की थेथरई होती है , शब्दों को चबा चबा कर आक्रामक रुप से बोलने की कला होती है और प्रधानमंत्री इस कला के सबसे बड़े उदाहरण हैं , उनको लगता है कि उनके भाषण देने , चीख चीख कर समझाने , हाथ उठवा देने से गरीब जनता अपनी भूख और पैसे की ज़रूरत भूल जाएगी तो यह उनकी मुर्खता ही है।
कल राज्यसभा में ये बोल रहे थे कि यह विषय वित्तमंत्री के स्तर का है तो प्रधानमंत्री को सदन में बुलाने की ज़िद क्युँ ? तो सवाल उठेगा ही कि यह विषय वित्तमंत्री के स्तर के विषय को प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर को खुद घोषणा क्युँ की ? जब खुद घोषणा की तो वित्तमंत्री से जवाब क्यूँ ?
देश फँस चुका है और प्रधानमंत्री समझ चुके हैं कि वह देश को फँसा चुके हैं , उदाहरण देखिए कि नोटबंदी की घोषणा के अगले ही दिन प्रधानमंत्री जापान निकल गये और वहाँ उचक उचक कर , मटक मटक कर , ताली बजा बजा कर अपने निर्णय पर खुद की पीठ ठोक रहे थे और अब वह सुबक सुबक कर रो रहे हैं।
गलती मानकर उसमें सुधार करने की बजाए रोना और उलहना देना कायरता की निशानी है और देश का प्रधानमंत्री बार बार खुद के कायर होने का उदाहरण दे रहा है , पूरा देश परेशान है और प्रधानमंत्री खुद देश को संसद में जवाब देने की बजाए संसदीय दल के पल्लू में बैठ कर सुबक रहे हैं तो माफ कीजिएगा उनके पास 56" की छाती नहीं कुछ और ही है।
संसद का सामना ना करना और वहाँ के सवाल जवाब से भागना वैसे ही है जैसे मुहल्ले का वह ज़िद्दी बच्चा अपने स्कूल की कक्षा से भागता है , निश्चित रूप से देश और प्रधानमंत्री फँस चुके हैं ।