तेल की ताकत के बावजूद इज़राइल का कुछ नहीं बिगाड़ सकते मुसलमान!

Written by हसन पाशा | Published on: May 15, 2021
मुसलमान फ़िलिस्तीन पर चाहे जितना आंसू बहा लें मगर इज़राइल का कुछ बिगाड़ नहीं सकते। आज तक कुछ नहीं कर पाये तो अब क्या करेंगे। इज़राइल की कुल आबादी एक करोड़ के लगभग है. इस एक करोड़ में कुछ ईसाई और मुसलमान भी हैं. इस के अलावा दुनिया भर में पचास लाख यहूदी और होंगे। यानी सब मिला कर यहूदी होते हैं डेढ़ करोड़। इन के मुक़ाबले में मुसलामानों की कुल आबादी है डेढ़ करोड़ से ऊपर. ये दुनिया के इस कोने से लेकर उस कोने तक दुनिया भर में न जाने कितने मुल्कों में फैले हैं. इनमें 50 देश मुस्लिम बहुसंख्या वाले हैं. इस पर भी ग़ौर कीजिये कि दुनिया का 60 फ़ीसदी तेल और गैस मुस्लिम बहुल देशों के पास है. तेल यानी ताक़त।



इसके बावजूद मुसलामानों की ताक़त यहूदियों के सामने कहीं नहीं टिकती। अमेरिका जो दुनिया में सबसे ज़्यादा मज़बूत मुल्क माना जाता है वहां यहूदियों की लॉबी इतनी गहरी जड़ें जमाये हुए है कि वहां सरकारी नीतियां यहूदी हित को ध्यान में रख कर बनती हैं. 

मुसलमान कहां हैं? अपनी बड़ी आबादी के बावजूद कहीं नहीं हैं. इनसे बेहतर स्थिति में हिन्दू हैं. जो बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां हैं, कई के प्रमुख हिन्दू हैं. मुसलमान बस इतने ही हैं कि ढूंढ़ना पड़ेगा। उन्हीं पर चाहें तो गर्व कर लें।

इन पचास मुस्लिम बहुल देशों में कोई एक देश बता दें जिनकी सैन्य शक्ति या वैज्ञानिक विकास ईर्ष्या के लायक हो. जहां तक आर्थिक प्रगति की बात है आप सऊदी जैसे कुछ अरब राज्यों का नाम ले सकते हैं. मगर जिस पेट्रोल की ताक़त पर ये खड़े हुए हैं उसके लिए उन्हें अंग्रेज़ों का एहसानमंद रहना पड़ेगा। अगर उन्होंने उनकी ज़मीनों में पेट्रोल तलाश न किया होता तो आज भी सिर पर तम्बू उठाए रेगिस्तानों में भटक रहे होते। अंग्रेज़ों की मेहरबानी से ही सही, इन पूर्व बद्दुओं के पास बेइंतेहा दौलत आयी. उस दौलत से कौन सी ऐसी ताक़त इन्होंने हासिल कर ली कि दुनिया इज़राइल की तरह इनका भी लोहा माने? कोई एक मैदान ये बता दें जहां इन्होंने अपना झंडा गाड़ा हो. इतना वक़्त गुज़र गया इन्हें दौलत में खेलते हुए।
 
सिर्फ 73 साल पुराना इज़राइल टेक्नोलॉजी के मैदान में अगर चाहे तो अपने आप को सही मायने में विश्वगुरू कहला सकता है. एग्रीकल्चर के क्षेत्र में जो उसने नई तकनीकें विकसित कीं आज उन्हें दुनिया भर में अपनाया जा रहा है. अपनी इतनी कम उम्र में आज वो इतना आत्मनिर्भर हो चुका है कि दुनिया उसकी तरफ़ देख रही है। 

मुस्लिम दुनिया में एक तरक़्क़ी जो सबसे स्पष्ट रूप से हुई है वो है आतंकवाद और कट्टरपन। जितने आतंकवादी संगठन आज हैं उनमें मुस्लिम संगठनों की बहुतायत है. ये दुनिया को जीतने निकले हैं और अपना घर भी खो रहे हैं. इनकी वजह से जिन मुसलामानों का इनसे दूर दूर तक का सम्बन्ध नहीं हैं उन्हें भी शक की नज़र से देखा जाता है. हक़ीकत ये है कि इनसे जिसे सबसे ज़्यादा क्षति पहुंची है वो खुद मुसलमान है. आज इंडोनेशिया जो सबसे बड़ा मुस्लिम बहुल देश है उसकी स्पष्ट नीति कुछ भी हो मगर अप्रत्याशित रूप वो भी यही चाहता है की बाहर से कोइ भी वहां आये पर मुसलमान न आये. कट्टरपन का ये हाल है कि हमारे बहुत सारे मौलवी ऐसे हैं जो सिर्फ दीनी तरक़्क़ी की बात करते हैं, दुनियावी तरक़्क़ी की अहमियत नहीं मानते। वो ये भूल जाते हैं कि आप अपने पीछे कई ऐसी पीढ़ियां छोड़ने वाले हैं जो आपके इस नज़रिये की वजह से दुखी और असुरक्षित रहेंगी। फ़िक्र की बात है कि इनकी बातों को सुनने और उन पर अमल करने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है. 
 
एक ख़याल जो मुसलामानों में काफ़ी लोकप्रिय है वो ये है कि ईसाई और यहूदी मिल कर मुसलामानों के ख़िलाफ़ साज़िश में लगे हुए हैं. वो क्यों ऐसा करेंगे? आपने कौन सी महान उपलब्धि हासिल कर ली है कि वो आप को ईर्ष्या वश क्षति पहुँचाने की योजनाएं बनाने लगेंगे? वैसे भी ईसाइयों और यहूदियों के बीच तू बड़ी कि मैं बड़ी का इतिहास काफी पुराना है. ईसाइयों ने लाखों यहूदियों की विगत में गर्दनें काटीं। आज उनके बीच शांति है तो इसके पीछे बड़ी वजह ये है कि यहूदियों ने साबित कर दिया है कि गिनती में कम होते हुए भी वो किसी से कम नहीं हैं. जिस दिन मुसलमान ये साबित कर देंगे उस दिन से उनकी भी अहमियत मानी जाएगी।

मुसलामान उत्साहित हो कर मुस्लिम उम्मह का नारा लगाते हैं. कैसा उम्मह? कहाँ है ये? उम्मह तो बनते ही आपसी गर्दन काटी में गुम हो गया। कितने फ़िरक़े हैं मुसलामानों के जो एक दूसरे से सख़्त नफ़रत करते हैं. उनका नाम गिनाने की ज़रूरत है? इन्होंने एक दूसरे को जितना मारा है उससे कहीं कम दूसरों के हाथों मरे हैं. हो सकता है कि ये सारे फ़िरक़े अपने आप को ही मुकम्मल उम्मह मानते हों. 
 
ये भी समझने की बात है कि इज़राइल बन चुका है. इसे मिटाने का ख़याल शेखचिल्लीपन के सिवाए कुछ नहीं है. उसकी तरह ताकत वर बनिए। मुस्लिम उम्माह सारे मुसलामानों को एक करके बनाइये। अगर योरोप एक सम्प्रदाय के बुनियाद पर एकजुट हो सकता है तो मुस्लिम देश भी व्याहारिक स्तर पर एक हो सकते हैं. मिल कर ताक़तवर बनिए, किसी से जंग करने के लिए नहीं बल्कि दुनिया को आउट रीच करने के लिए. मज़हबियत की सीमा समझिये। मज़हबियत का दुनियावी मामलों में दखल अच्छा नहीं हो सकता। स्पर्धा कीजिये हर देश से और इज़राइल से भी, दुश्मनी नहीं। शिक्षा में, तकनीक में, आर्थिक तौर पर, दूरअंदेशी में क्योंकि दुनियावी तरक़्क़ी भी बेहद अहम है. तब किसी भी देश या सम्प्रदाय को  दुश्मन मानने की ज़रुरत आप महसूस नहीं करेंगे। मुसलमान जब हर तरह से ताक़तवर हो जाएगा तो इज़राइल और उसके साथ साथ सारी दुनिया मुसलामानों की इज़्ज़त करने पर बाध्य होगी।

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