मंदिर जाते पंडित जी दलित बच्चे से टकराने पर वापस नहाने चले गए पर कुत्ते के चाटने से नहीं !

Written by मिथुन प्रजापति | Published on: December 27, 2018
ठंड जोरों पर है। लोग ठिठुर रहे हैं, आग का सहारा ले रहे हैं। जिनके पास उपलब्ध है वे रजाई में हैं। ऐसे में कई लोग मिल जाते हैं जो नहाकर आये होते हैं और गर्व से इस बात को लोगों को बता रहे होते हैं कि उन्होंने इतनी ठंड में भी नहा लिया है। दरअसल वे कहना चाह रहे होते हैं- आप मुझपर गर्व कीजिए, जैसे मैं अपने पर कर रहा हूँ। 

उनपर गर्व न करो तो बुरा मान जाते हैं। सोचते होंगे, कितना अजीब इंसान है, मेरे नहाने पर गर्व नहीं कर रहा है!

मेरे घर के बगल में छोटा सा मंदिर है। एक सज्जन हर रोज सुबह स्नान कर जोर-जोर से हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। तापमान 4℃ हो जाये तब भी वे स्नान कर हनुमान चालीसा पढ़ना नहीं छोड़ते। यह बात  अलग है कि चालीसा कांपते हुए, लड़खड़ाते हुए निकल रहा होता है। पाठ इतना जोर-जोर से करते हैं कि अगल-बगल वालों को अलार्म की जरूरत नहीं पड़ती। लोग सुबह उठ जाया करते हैं। वे समाज को अलार्म की सेवा दे रहे हैं। जिसे सुबह सात बजे उठना है वह चार बजे ही उठ जाता है। 

एक महिला एक दिन शिकायत लेकर चली गयी कि आप थोड़ा धीरे पढ़ा करिए, बच्चों के छमाही इम्तहान चल रहे हैं। वे डिस्टर्ब हो जाते हैं। महिला की बात सुन वे गुस्से में आ गए। कहने लगे- कैसे बच्चे हैं जो एकाग्र होकर पढ़ नहीं सकते! पढ़ने वाले बच्चे शोर वाली जगह में भी पढ़कर टॉप कर जाते हैं।

महिला निरुत्तर थी। वह कुछ कहती उसके पहले ही वे फिर बोल पड़े- अब्राहम लिंकन को ही देख लो, सड़क पर पढ़ाई किये थे। वह महिला चुपचाप चली आई। वह अब्राहम लिंकन को नहीं जानती थी। आते वक्त यही सोचती रही इतना ज्ञानी बेवकूफ कैसे हो सकता है। भक्ति तो शांति का विषय है।

बात स्नान की हो रही थी। स्नान के बारे में मेरी राय यह है कि यह विशुद्ध रूप से बाज़ारवाद का मामला है। नहाने के नाम पर बाज़ार आपको कुछ भी बेच देता है और आप खरीद लेते हैं। तेल, साबुन, बॉडी लोशन यहां तक कि गीजर भी नहाने के नाम पर ही बिकता है। एक रिश्तेदार ने एक दिन पूछा- तुम नहाने के बाद शरीर पर क्या लगाते हो ?

मैंने साधारण शब्दों में कहा- सरसों का तेल।
उन्होंने मुझे नीची नजर से देखा जैसे किसी अभागे को देख रहे हों जैसे मुझसा बेचारा इस दुनिया में कोई न हो।  उन्होंने फिर कहा- तुम बॉडी लोशन क्यों नहीं इस्तेमाल करते !
मैंने कहा- बॉडी लोशन को इस्तेमाल कैसे करते हैं ?
वे बोले- फलाने साबुन से नहाकर बॉडी पर लगा लो और बालों में ये ब्रांड का तेल यूज़ करो बढ़िया रहता है।
मैंने कहा- नहाने के बाद सिर्फ सरसों के तेल से काम नहीं चल सकता !
वे बोले- जबतक बॉडी लोशन और फलाना कंपनी का तेल साबुन न लगाओ नहाने का क्या फायदा !

एक चीज जो समझ के परे है कि नहाने को लोग इतना जोर क्यों डालते हैं? यह तो व्यक्तिगत मामला है। भरी ठंड में एक माँ अपने पांच साल के बच्चे को पीटते कुंए की तरफ घसीटते हुए कहा रही थी- आज तो तुझे नहलाकर ही छोडूंगी। कल बिना नहाये स्कूल चला गया। आज नहीं नहाया तो खाना भी नहीं दूंगी।

बताओ इतना जुल्म बच्चे पर  वह भी नहाने के लिए। मजे की बात यह कि दादा जो तीन दिन से रजाई में से नहीं निकला वह भी कहता है- हाँ, मार-मार के नहलाना, गंदे होकर जाएंगे तो क्या खाक पढ़ेंगे !

दादा ने पढ़ाई का संबंध स्नान से जोड़ दिया। ऐसे कितने लोग हैं जो स्नान का संबंध खाने से जोड़ देते हैं। एक साहब कहने लगे- मैं बिना नहाये खाता नहीं हूं। मैं सोचता हूँ नहाने का खाने से क्या संबंध ! चबाना मुंह से है उठाना हाथ से है तो क्या हाथ मुंह धोकर नहीं खाया जा सकता ! 

एक दूसरे साहब थे कहने लगे- बिना नहाये यदि किसी ने खाना बनाया हो तो मैं नहीं खाता, यह रसोईं और भोजन दोनों का अपमान होता है।

मैंने कहा- आप बिना नहाये खा लेते हैं ?
वे बोले- खाने में क्या है ! रसोईं शुद्ध होनी चाहिए। 
मैंने पूछा- खाना आप बनाते हैं ?
वे बड़ी शालीनता से बोले- यह तो महिलाओं का काम है।
मैं अपना सिर पीटता हूँ। कितना बेशर्म इंसान है जो खाना बनाने का काम सिर्फ महिलाओं का बताता है और साथ में ठंडी हो या गर्मी नहाने की शर्त अनिवार्य कर रखा है।

नहाने का संबंध लोग शुद्धता और अशुद्धता से भी जोड़ने लगते हैं। कितने लोग मानते हैं कि नहाने से सिर्फ शरीर ही नहीं साफ होता बल्कि पाप भी धुल जाते हैं। पाप धुलने में गंगा का पानी सर्वोत्तम माना गया है। पाप करके गंगा नहा लो सब ठीक हो जाता है। बढ़िया टेक्निक है। विश्व को हमसे सीखना चाहिए। बड़े शहरों में लगे उद्द्योगों से निकला कचरा गंगा में जाकर शुद्ध हो जाता है। ये गंगा नदी में रहने वाले जीव इंसानो से कुछ सीखते क्यों नहीं! बेमतलब गंगा में रहते हुए प्रदूषण के कारण मर जाते हैं। थोड़ा नहा क्यों नहीं लेते  जीवनदायी गंगा के पानी से। 

पंडित जी मंदिर की तरफ जा रहे थे। रास्ते में दलित बस्ती का बच्चा उनसे टकरा गया। 'हरि ॐ हरि ॐ' कहते वे घर की तरफ भागे। एक ने पूछा- क्या हुआ पंडित जी ?

मुंह बनाते हुए झल्लाकर पंडित जी ने कहा- मंदिर जा रहे थे नहाकर, चमरा के लड़िका आके लड़ गया। अपवित्र कर दिया। अब फिर नहाने जा रहे हैं। सब भरभंड कर दिया... हरि ॐ... हरि ॐ... घोर कलियुग।

वे घर आकर फिर नहाकर निकले तो घर का कुत्ता धोती खींचने लगा। वे बोले- हट मोतिया, एक तो वैसे ही देर हो चली है। और देर हुई तो भीड़ बढ़ जाएगी।

इतना कहने पर भी जब कुत्ते ने न छोड़ा तो वे थाली बगल में रख मोती नामक कुत्ते की गर्दन सहलाने लगे। कुत्ता भी लाड़ में आकर उनके हाथ और कभी मुंह की तरफ जीभ फिराने लगा।

मैं उस बच्चे के बारे में सोचता हूँ जो दलित था और पंडित जी से टकरा गया था और इस कुत्ते के बारे में। फिर स्नान के महत्व के बारे में कि शरीर तो साफ कर देती है पर आत्मा नहीं। 
 

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