'गोडसे को देशभक्त बताने वाले संसद जाएं, ऐसे जनादेश का सम्मान तुम कर लो, हमसे न हो पायेगा'

Written by Mithun Prajapati | Published on: May 28, 2019
साधो, उदासी छोड़ो। आओ सामान्य जीवन मे लौट आओ। कब तक जनादेश का शोक मनाओगे?



साधो, दुख तो होता है, पर क्या करें? लोग कहते हैं कि जनादेश का सम्मान करो। मैं जानता हूँ, चाहे तुम हो या मैं या वह सामान्य इंसान जो दुनियादारी से मतलब रखता है उसके लिए यह जनादेश सम्मान करने के लिए गले की हड्डी है। चाहकर भी हमसे सम्मान नहीं हो पा रहा। उनकी बात अलग है जो कहते हैं- कोउ नृप होय, हमें का हानि !

साधो, सुनने में तो आ रहा है कि करीब पचास प्रतिशत सांसद इस बार दागी चुनकर आये हैं और तुम तो जानते ही हो कि कइयों के ऊपर तो आतंकी होने के आरोप भी लगे हैं। ऐसे में कैसे कर लें जनादेश का सम्मान!

साधो, मैं चुनावी चर्चा करना चाहता हूं पर सिर्फ तीन सीटों की- बेगूसराय, पूर्वी दिल्ली और भोपाल की।

साधो, वो बेगूसराय का कन्हैया कुमार याद है? वही जो बात बड़ी सधी करता था। जिसने बेगूसराय में चुनाव हो जाने तक सत्तापक्ष में खलबली मचा रखी थी। मैं चाहता था कि वह जीतकर संसद पहुंचे। मैं चाहता था कि वह संसद में विपक्ष की आवाज बनकर सत्तापक्ष को मुद्दों पर ले आये जैसा कि वह अपने चुनाव प्रचार के दौरान सिर्फ मुद्दों की बात करता था। मैं पूरे चुनाव के दौरान स्टार प्रचारकों से लेकर प्रत्याशियों तक के भाषण रैली पर नजर गड़ाए हुए था। 

साधो, मुझे ऐसा कोई प्रत्याशी न दिखा जो कन्हैया की तरह बेबाकी से अपनी बात रखता हो। वह रेसिस्ट नहीं है, जातिवादी नहीं है, साम्प्रदायिक नहीं है, वह जानता है कि महिलाओं की समाज में क्या स्थिति होनी चाहिए और अक्सर नारीवाद के मुद्दे उठाता रहा है। वह पढ़ालिखा है। वह अक्सर गरीबों, किसानों, दलितों, आदिवासियों अल्पसंख्यको पर हो रहे हमले के मुद्दे उठाता रहा है। उसने हमेशा विपक्ष के उम्मीदवार को प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा न कि अन्य की तरह दुश्मन की तरह। ऐसे प्रत्याशी की जगह संसद में होनी थी। पर हम क्या कर सकते हैं! बेगूसराय के वोटर तो थे नहीं। कहते हैं कि जनता ने उस एक व्यक्ति के नाम पर वोट दिया है जो लोकतंत्र की बात करता है पर यह भूल जाता है कि लोकतंत्र में जनता MP चुनती है न कि प्रधानमंत्री।

साधो, पूर्वी दिल्ली से आतिशी चुनाव हार गई। यह मेरे लिए सोचनीय विषय रहा। अब तुम कहोगे कि क्या गौतम गंभीर बुरा है? साधो, मैं कहता हूं बिलकुल नहीं। पर तुमने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में आतिशी के द्वारा किए गए कार्य को देखा है। अब तुम कहोगे कि गंभीर स्वच्छ छवि का व्यक्ति है। वह शिक्षा या अन्य क्षेत्र में बेहतर कर सकता है। 

मैं मान लेता हूँ तुम्हारी बात  पर तुम्हें उनकी ये बात शायद न याद हो जब उन्होंने कहा था कि उनका बहस में विश्वास नहीं है। साधो, अब क्या यह भी बताना पड़ेगा कि संसद में बहस ही होती है। वहां हम अपने पार्टी प्रमुख को मशरूम बनाकर खिलाने नहीं जाते। चुनाव प्रचार के दौरान गंभीर का एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें दिखा था कि भीषण गर्मी में रोड शो के दौरान गंभीर का डुप्लीकेट धूप में हाथ हिला रहा है और गंभीर कार में एयरकंडीशन में बैठे हैं। यह कितना सत्य था पता नहीं पर यदि सत्य था तो भयानक था। 

साधो, वहीं मैं आतिशी के द्वारा दिल्ली के सरकारी स्कूलों में किए गए अतुलनीय कार्य को देखता हूँ तो बस यही लगता है कि इन्हें संसद में होना चाहिए। आज देश की समस्याओं में शिक्षा और शिक्षा की तकनीक मुख्य समस्या है। तमाम बजट होने के बाद भी समाज एक तबका शिक्षा से वंचित रह जा रहा है या फिर प्राथमिक शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इसका कारण कुछ हद तक सरकारी स्कूल, शिक्षण व्यवस्था और बेहतर अध्यापकों का न होना भी है। आतिशी के कार्यों की वजह से मैं चाहता था कि वह संसद पहुंचे पर ऐसा हो न सका।

साधो, भोपाल ने जनादेश के मामले में कमाल किया है। मैं निजी तौर पर चाहता था कि साध्वी संसद न पहुंचे। अब तुम कहोगे कि मैं दिग्विजय सिंह का समर्थक हो गया हूँ। दरअसल साधो, पूरे समाज की समस्या यही है। लोगों को लगता है कि यदि मैं भाजपाई नहीं हूं तो कांग्रेसी हूँ। मैंने एक से कहा कि फिर से नरेंद्र मोदी की सरकार केंद्र में नहीं बननी चाहिए, ऐसा मेरा मानना है। उस व्यक्ति ने कहा कि तुम कांग्रेस के ही गुण गाते रहो। यह देश की विकट समस्या है कि किसी के भाजपाई न होने पर लोग उसे कांग्रेसी कह देते हैं वे यह नहीं समझते कि कांग्रेस का डसा भाजपा से भी डसा गया है जो अन्य जगह दोनों का विकल्प तलाश रहा है जो मिल भी न रहा।

साधो, साध्वी प्रज्ञा बम ब्लास्ट की आरोपी हैं। साध्वी ने गोडसे को देशभक्त बताया था। हालांकि बाद में माफी मांग ली थी। मैं समझता हूं उन्हें माफी की जरूरत नहीं थी। उनके माफी मांग लेने से क्या फर्क पड़ता है? हम अपने अगल बगल देखते हैं तो पाते हैं कि गोडसे को लेकर अधिकतर  लोगों की वही सोच है जो साध्वी ने कहा था। 

पिछले कुछ सालों में जबसे सोशल मीडिया अधिकतर लोगों के हाथों में पहुंचा है तबसे हमने देखा है कि गांधी को लेकर तमाम तरह के मिथ तेजी से फैलाये गए और साथ ही साथ गोडसे को महिमामंडित किया गया। यही हाल नेहरू को लेकर भी रहा। साधो, यह कांग्रेस और गांधी, नेहरू के विचारों को मनाने वालों की नाकामी ही है कि वे इन्हें चुनाव में भुनाना तो दूर उनके बारे में सही तथ्य भी आमजन तक न पहुँचा पाए। वहीं हम भाजपा को देखें तो उसने दीन दयाल उपाध्याय के नाम को न सिर्फ भुनाया है बल्कि उनके नाम पर वोट बटोरते आये हैं। 

साध्वी ने इसका भी लाभ लिया और गोडसे को देशभक्त कहकर जरूरत भर के वोट बटोर लिए। 

साधो, मैं मानता हूं कि साध्वी का विकल्प दिग्विजयसिंह नहीं थे पर भोपाल से और उम्मीदवार भी तो थे जो इनसे बेहतर थे! या फिर नोटा का विकल्प भी तो था। 

साधो, अब क्या करें। यही जनादेश है जिसका सम्मान करने को कहा गया है। अब तुम ही बताओ, गोडसे समर्थक  संसद जाएं और तुम कहो सम्मान करने को तो कैसे होगा? तुम कर लो, हमसे तो न होगा।
 

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