कहने को तो लोकतंत्र है, पर यह तभी तक है जब तक कि आप सरकार से सहमति जताते हैं

Written by मिथुन प्रजापति | Published on: December 16, 2019
साधो, इस समय पूरे देश में CAA और NRC के विरोध में चल रहे प्रोटेस्ट में हो रही घटनाओ को देखकर मुझे पिछले साल अप्रैल  में मुम्बई के कार्टर रोड पर हुए कठुआ और उन्नाव के रेप की घटनाओं का प्रोटेस्ट याद आता है। इस प्रोटेस्ट में लोग अपनी बात कह ही रहे थे कि मंच से कुछ लोगों ने ' रेपिस्टों को फांसी दो' के नारे लगाना शुरू कर दिया। जबकि प्रोटेस्ट का आह्वान करने वाले और प्रोटेस्ट से जुड़ने वालों की विचारधारा अमूमन यही थी कि फाँसी कोई विकल्प नहीं। 



साधो, फिर सवाल उठा कि फांसी की मांग करने वाले ये नारे लगाने वाले कौन थे?  नारे लगाने वालों की तस्वीरों का मिलान किया गया, चेहरे मिलाये गए तो पता चला कि इन लोगों का संबंध उस समय की सरकार के लोगों से है। 

साधो, इससे यह बात समझ आई कि शांतिपूर्ण चल रहे प्रोटेस्ट में किस तरह से विचारधारा का घालमेल किया जाता है। उस समय संभावना वहां यह भी थी कि कुछ लोग हाथापाई कर दें और पुलिस लाठियां चला दे पर सुखद कि यह हुआ नहीं। 

मुम्बई जैसे शहर के प्रोटेस्ट में पुलिस की लाठियां चलने की संभावना कम होती है। उसकी वजह यह कि यहां अक्सर बड़ी हस्तियां प्रोटेस्ट में शामिल होती हैं। 

साधो, पिछली रात और कल पूरा दिन जो खेल पूरे देश में और जामिया के हॉस्टल में हुआ वह पूरा देश देख रहा है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में bbc की पत्रकार के साथ जो हुआ वह देश देख रहा है। सोशल मीडिया पर सैकड़ों वीडियो वायरल हुए हैं जिनमें पुलिस बर्बर तरीके से लाठी चार्ज करती नजर आ रही है। कुछ ऐसे वीडियो भी वायरल हुए हैं जिनमें पुलिस के साथ  कुछ लोग सिर पर हेलमेट डाले छात्रों पर लाठियां बरसा रहे हैं। कौन हैं ये लोग जो पुलिस के साथ मिलकर ये सब खेल कर रहे हैं? 

सुबह खबर लगी कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के बाहर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों के बीच कुछ लोग घुसे और हाथापाई कर माहौल को खराब करने की कोशिश की। 

कल एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें साफ तौर पर देखा गया कि पुलिस की निगरानी में एक बस को आग के हवाले किए जाने के लिए कुछ ज्वलनशील तत्व छिड़का जा रहा है। 

साधो, यह अच्छी चाल होती है। जब कोई प्रोटेस्ट शांतिपूर्ण तरीके से हो रहा हो तो उसमें विरोधी तत्व अपने लोग भेजकर माहौल खराब कर देते हैं। फिर पुलिस को मौका मिल जाता है लाठी चलाने का। यही पूरे देश में हो रहा है इस समय। 

साधो, जो कुछ कश्मीर में हो रहा था वह अब पूरे देश में होना शुरू हुआ है। पहले सिर्फ jnu के छात्रों को देशद्रोही बताया जाता था। अब DU, AMU, BHU सब जगह के छात्रों को देशद्रोही बताया जा रहा है। अपनी बात रखते हर नागरिक को देशद्रोही का तमगा दे दिया जा रहा है। पहले बस कश्मीरी पत्थरबाज थे अब हर वो पत्थरबाज लग रहा कुछ लोगों को जो सरकार से अपनी असहमति जताने सड़क पर आ गया है।

साधो, देश की जनता का इस तरह से ब्रेन वाश किया है कि लोग स्टूडेंट्स की अमानवीय पिटाई को भी सही ठहरा रहे हैं। चुटकुले बना रहे हैं। संवेदना कहाँ है? मर गई? नहीं, सेलेक्टिव हो गयी है। जो सेलेक्टिव है वह संवेदना कैसी ! 

साधो, एक एक्टिविस्ट मित्र का उज्जैन से फोन आया। वह बता रहे थे कि किसी ने उनसे फोन करके कहा कि शांत रहो वरना रासुका लगाकर जेल में डाल देंगे।  'शांत रहो' से उनका सीधा सा तात्पर्य था जो हो रहा है चुपचाप देखो। बस कुछ बोलो मत। रासुका कौन लगायेगा ? जाहिर है कि कोई प्रशासनिक अधिकारी। वह किसके अंडर में कार्य करता है ? सरकार के।  ऐसी कई बातें आये दिन सुनने को मिलती ही रहती हैं। 

साधो, कहने को तो लोकतंत्र है। पर तभी तक है जबतक कि आप सरकार से सहमति जताते हैं। एक बार सरकार से असहमति जताइए फिर लोकतंत्र और तानाशाही का अनुपात कितना है पता चल जाएगा। 

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