दया आने के लिए भी शर्तें होती हैं, दया लाभ देखकर आती है!

Written by Mithun Prajapati | Published on: December 11, 2017
शाम की बेला थी। छोटे मोटे ग्राहक आ जा रहे थे। तब तक छोटे ब्रांड की गाड़ियों को मुंह चिढ़ाती हुई एक BMW कार का ब्रेक मेरी दूकान के सामने लगा। दरवाजा खुला तो एक सलमान सा दिखने वाला व्यक्ति उस गाड़ी से उतरा और पूछा,  "भाई टमाटर क्या भाव दिया?"



मैंने कहा -ये भाव है।
टमाटर के भाव सुनते ही सुबह के फूल सा खिला उसका चेहरा बेटी की शादी के बाद कर्ज में डूबे बाप के चेहरे जैसा बन गया। निर्दोष सा चेहरा लिए उसने दयाभाव से मुझसे पुछा -भाई कुछ कम होगा?

उसे उम्मीद थी की उसका बुझा हुआ चेहरा देख मेरे अंदर दया जागेगी और मैं टमाटर के भाव कम कर दूंगा। विडम्बना देखिये, करोड़ों की गाड़ी से उतरने वाला इंसान सब्जीवाले से तुच्छ से टमाटर के लिए दया की उम्मीद लगाये खड़ा था। मगर क्या करूं, दया की भी शर्तें होती हैं। दया भी अपना लाभ देखकर आती है। मुझे भाव कम करके कोई लाभ नज़र नहीं आ रहा था इसलिए दया भी नहीं आ रही थी।

एक दिन मेरी मम्मी से बगल वाली चाची ने आकर कहा, "मिथुन की मम्मी, कुछ उपले दे देती तो आज का खाना बन जाता, मेरे उपले सूखे नहीं हैं।" मगर मम्मी ने लाचारी दिखाते हुए कह दिया- उपले मेरे भी नहीं सूखे हैं, जो सूख गया था वो चूल्हे में लगा दिया। जबकि उपले टांड़ पर सड़ रहे थे। मैं शर्मिंदा हुआ कि मम्मी झूठ भी बोलती है और मुझे सिखाती है कि बेटा झूठ नहीं बोलना चाहिए। 

थोड़ी देर बाद बगल की ही एक दादी आ के उपले माँगने लगीं तो मम्मी ने झट से उपले उतार के दे दिए। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मैंने पुछा-मम्मी, चाची को उपले नहीं दिए और दादी को दे दिए, ऐसा क्यों..? मम्मी ने बताया की वो बूढी होकर माँगने आयीं थी, भला मैं मना कैसे करती। वैसे भी उनके पेड़ में नीबू तैयार हो गया है, अचार बनाने के लिए मैं भी मांग लाऊंगी। बस मैं समझ गया की दादी के ऊपर मम्मी को दया क्यों आयी। क्योंकि दया भी लाभ देखकर आती है और दया की भी शर्तें होती हैं।

वह व्यक्ति बड़ी उम्मीद लगाये मेरी तरफ देख रहा था और मेरे जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था। मैंने कहा, "नहीं भाई, टमाटर अच्छे हैं, भाव कम नहीं हो पाएंगे।" उसने फिर एक बार दुखी चेहरा बनाकर मेरे अंदर दया पैदा करनी चाही,  ताकि मैं भाव कम कर दूं। मगर मैं भी भाव कम क्यों करूं, मेरा क्या लाभ होगा यही सोच रहा था। उसके ऊपर दया करने के लिए मुझे कोई कारण नजर नहीं आ रहा था। उसका चेहरा देख जो थोड़ी बहुत दया जागती वह भी BMW कार को देख अंदर ही मर जाती।

हमारे देश में सबसे ज्यादा जिस चीज पर दया आती है वह है गाय। गाय के प्रति लोगों में इतनी दया है की वो इंसान की जान लेने में परहेज नहीं करते। लेकिन गौ रक्षा में भी दया शर्त देखकर आती है। एक गाय बिजली के तारों में फंसकर फड़फड़ा रही थी, गौरक्षा दल उसे देख रहा था, मगर छुड़ा नहीं सकता था। उस गाय को गौरक्षक बचा तो सकते थे मगर शर्त ये थी की तार में बिजली न आ रही होती। गाय तड़प के मर गयी मगर गौभक्तों को तनिक दया नहीं आयी। एक व्यक्ति को पीट पीट कर मार दिया गया, महज इस शक पर की जो गाय वह लेकर जा रहा है वह उसे कटेगा लेकिन बाद में जब उसे मार दिया गया तो पता चला वह तो गौ पालक है दूध के लिए गाय को लिए जा रहा है। खैर क्या फर्क पड़ता है पीट पीट कर मार दिया गया,  मुसलमान ही तो था।

BMW से उतरे व्यक्ति ने फिर कहा-अभी तो पिछले हफ्ते ये भाव ले गया था, आज कैसे बढ़ गया..? कुछ तो कम कर लो भाई। जब तीसरी बार उसने आग्रह किया तो दया आ ही गयी। छोटे इंसान बड़ों से दया की उम्मीद करें तो ज्यादातर वो दया नहीं दिखाते मगर बड़े इंसान जब छोटों से दया की उम्मीद करते हैं तो छोटे उसे अपना सौभाग्य समझते हुए ख़ुशी ख़ुशी दया कर देते हैं। मैंने दया दिखाई और किलो के पीछे पूरे पांच रुपये कम करते हुए एक किलो टमाटर उस बनावटी दुखी वाला मुखड़ा लिए खड़े आदमी को दे दिया। भाव कम करवाकर उसके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान दौड़ गयी। उसका मुरझाया चेहरा बेटे की शादी में उम्मीद से ज्यादा दहेज़ पाये बाप की तरह चमक उठा। और मैं भी खुश था की आज मैंने एक करोड़पति के ऊपर दया दिखाई है।

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