“जिसकी लाठी उसकी भैंस” शैली में “चौकीदारी” का ठेका लेना नहीं है चुनाव

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: April 10, 2019
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कल पहले चरण के मतदान के लिए चुनाव प्रचार के अंतिम दिन महाराष्ट्र के लातूर में रैली की और दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार पहली बार वोट देने वाले युवाओं से अपील की,‘‘क्या आपका पहला वोट हवाई हमला करने वालों के लिए हो सकता है?’’ अखबार ने इसे इस शीर्षक के साथ छापा है कि चुनाव आयोग कई बार कह चुका है ... सेना पर राजनीति न करें। अखबार की सूचना यह भी है कि चुनाव आयोग ने मोदी के बयान पर रिपोर्ट मांगी है। अखबार ने यह भी लिखा है कि करगिल युद्ध के बाद भी चुनाव आयोग ने याद दिलाया था कि चुनाव में सेना पर बात नहीं होनी चाहिए।

प्रधानमंत्री भाषणों में तो पाकिस्तान के खिलाफ बोलते हैं पर आज के अखबारों में छपा है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि भाजपा जीतती है तो बातचीत हो सकती है। उनकी राय में भाजपा के जीतने पर शांति वार्ता की संभावना बेहतर है क्योंकि कांग्रेस जीती तो वह कश्मीर मामले को निपटाने के लिहाज से बेहद डरी हुई होगी। इससे तो पाकिस्तान उनका समर्थन करता लग रहा है। पर पाकिस्तान के एक मंत्री फवाद चौधरी ने कहा है कि करतारपुर कॉरीडोर के मामले में भारत की उत्सुकता कम है। अब इन दोनों तथ्यों के मद्देनजर पाकिस्तान क्या चाहता है क्या कह रहा यह सब समझना मुश्किल है और चुनाव के समय में मतदाता ऐसी बातों से राय बनाता है।

पाकिस्तान को तो नहीं रोका जा सकता है पर खुद तो संयमित रहा जा सकता है। चुनाव लोकप्रियता जांचने का मौका होता है लोकप्रियता हासिल करने का नहीं। लेकिन प्रधानमंत्री जो भाषण दे रहे हैं उससे लग रहा है कि वे खास मुद्दों पर लोकप्रियता हासिल कर हाथोहाथ चुनाव जीत जाना चाहते हैं। उनके चाहने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन वे येनकेन प्रकारेण प्रधानमंत्री बनने पार आमादा हैं तो उन्हें इसकी छूट नहीं दी जा सकती है। उनकी पार्टी के एक मुख्य मंत्री देश की सेना को मोदी की सेना कह रहे हैं और मोदी कह रहे हैं कि पुलवामा के शहीदों और (इसके बदले) बालाकोट पर बम गिरा आने वाले वीरों के वोट उन्हें नहीं दिए जा सकते हैं। यह सर्वथा अनैतिक है और दिखाई दे रहा है कि इसे रोका नहीं जा सक रहा है। पर इसकी खबर कहां है?

देश के अखबार और मीडिया संस्थान जिसका काम मतदाताओं और आम नागरिकों को जागरूक करना है, प्रधानमंत्री और सत्तारूढ़ दल की सेवा में लगे हुए हैं। आइए देखें आज इस खबर को किसने कैसे छापा है। जैसा कि मैंने शुरू में ही बताया, दैनिक भास्कर ने शीर्षक में ही लिखा है कि चुनाव आयोग के मना करने के बावजूद प्रधानमंत्री ने ऐसा किया। यही नहीं प्रधानमंत्री ने कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबियों के यहां छापे का जिक्र भी भाषण में किया और अखबार में इसकी भी खबर है जबकि हर कोई जानता हैं कि चुनावों में काले धन और भारी पैमाने पर नकदी का उपयोग किया जाता है।

छापे में पकड़ा गया सारा धन ना अवैध होता है ना काला बाद में ये पैसे वापस भी दिए जाते रहे हैं पर चुनाव के दौरान इसका उपयोग विपक्षी दल को बदनाम करने के लिए किया जाना भी अनुचित है लेकिन हो यही रहा है। एक पार्टी के लोगों के यहां छापे और नकदी की बरामदगी को अखबार बढ़ा चढ़ाकर बताई जा रही है और दूसरे की छिपा दिया गया। प्रधानमंत्री को इसकी भी चर्चा नहीं करनी चाहिए। खासकर तब जब नकदी उनकी पार्टी की भी पकड़ी गई है। जांच उसकी भी चल रही है, भले खबर कम छपी हो।

आज के अंग्रेजी अखबारों में हिन्दुस्तान टाइम्स ने बालाकोट के नाम पर प्रधानमंत्री द्वारा वोट मांगने की खबर को आम खबर की तरह छाप दिया है। तकनीकी तौर पर संतुलित करने के लिए शीर्षक में जोड़ दिया है कि राहुल ने हमले जारी रखे। इंडियन एक्सप्रेस ने ऐसा कुछ नहीं किया है। हालांकि, खबर और शीर्षक दोनों हिन्दुस्तान टाइम्स के मुकाबले छोटे हैं लेकिन खबर पहले पन्ने पर सामान्य खबर की ही तरह है। यही नहीं, राहुल के वायनाड रोड शो पर अमितशाह का यह सवाल भी छापा है कि यह भारत में है या पाकिस्तान में। खबर में बताया गया है कि यह बड़ी संख्या में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के झंडों पर सवाल है। कुल मिलाकर, यह हिन्दू-मुसलमान करने की ही तरह है।

टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक है कि प्रधानमंत्री ने वोट मांगने के लिए पुलवामा के शहीदों के नाम पर आह्वान किया, विपक्ष ने चुनाव आयोग से शिकायत की। द टेलीग्राफ में शीर्षक के ऊपर फ्लैग है, अब तस्वीर साफ है, बिल्कुल साफ। मुख्य शीर्षक है, बालाकोट फॉर बैलट। इंट्रो है, प्रधानमंत्री ने पहली बार वोट देने वालों से कहा, हवाई हमलों के लिए वोट दें।

हिन्दी के जो अखबार मैं देखता हूं उनमें आज इस खबर (आपत्तिजनक शीर्षक) को वैसी प्रमुखता नहीं मिली है जैसी आमतौर पर प्रधानमंत्री के भाषणों को मिलती रही है। मैंने सिर्फ पहला पन्ना देखा है और पहले पन्ने पर नहीं होना भी कम नहीं है। दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। राजस्थान पत्रिका ने यह खबर दो कालम में दो लाइन शीर्षक और एक कॉलम फोटो के साथ सात लाइनों में छापी है। इसके साथ यह सूचना भी कि माकपा ने सेना के नाम पर वोट मांगने का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग से शिकायत की। आयोग ने सीईओ से मांगी रिपोर्ट।

अमर उजाला में चैत्र नवरात्र और पंचम स्कंदमाता शीर्षक सूचना के साथ बताया गया है कि आज पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की आराधना होगी। इसी के साथ मोदी जी की अपील भी (सिंगल कॉलम में) है। उपशीर्षक है, कांग्रेस व सीपीआई (एम) ने आयोग से शिकायत की। अखबार ने एक कदम आगे निकल कर अपने राज्य के मुख्यमंत्री का भी बयान छाप दिया है और इसके साथ प्रियंका तथा मायावती की खबर छापकर संतुलित भी कर दिया है। गनीमत है कि ये सब डेढ़ डेढ़ कॉलम में ही हैं। अगर प्रधानमंत्री की खबर लीड, मुख्यमंत्री की सेकेंड लीड और बाकी खबरें सिंगल कॉलम में होती तो कोई क्या कर लेता। बैलेंस तो तब भी हो जाती।

अकेले नवोदय टाइम्स ने इस खबर को प्रधानमंत्री के सामान्य भाषण की तरह पहले पन्ने पर छापा है। शीर्षक है, “अपना पहला वोट हवाई हमला करने वालों को समर्पित करें युवा : मोदी”। इसके साथ, “मोदी को आनी चाहिए शर्म : ममता” से इसे संतुलित करने की कोशिश की गई है। प्रधानमंत्री का पूरा भाषण बेहद आपत्तिजनक और बिल्कुल अनैतिक है। ऐसा लग रहा है जैसे देश में सरकार बनाने के लिए चुनाव न होकर किसी भैंस को कब्जे में लेने की लड़ाई जिसकी लाठी उसकी भैंस के फार्मूले पर लड़ी जा रही हो। शर्मनाक।

बाकी ख़बरें