कर्नाटक का मामला दिन-प्रतिदिन दिलचस्प होता जा रहा है। विधायक इस्तीफा दिए जा रहे हैं (दो और ने दिया है) पर भाजपा पहले कह चुकी है कि उसका इससे कोई संबंध नहीं है। विधानसभा अध्यक्ष ने कुछेक इस्तीफों को तकनीकी रूप से गलत बताया है और स्वीकार नहीं किया है। दूसरी ओर, यह बीमारी गोवा में भी फैल गई है। द टेलीग्राफ के मुताबिक, वहां भाजपा चुनाव हारकर भी सत्ता में है और 15 कांग्रेस विधायकों में से 10 ने इस्तीफा दे दिया है और भाजपा से 'मिल' गए हैं। कांग्रेस छोड़ने वालों की संख्या दो तिहाई है। इसलिए वे दलबदल कानून से बच जाएंगे। गए हफ्ते इस्तीफा देने वाले कर्नाटक के 10 कांग्रेस और जनतादल (एस) के विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है और इस पर आज सुनवाई है।
द टेलीग्राफ ने लिखा है कि कर्नाटक में (मतदाताओं के साथ) जो धोखाधड़ी हो रही है उसके बारे में भाजपा का कहना है कि उसका कोई लेना देना नहीं है। पर कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस - जनतादल (एस) छोड़ने वाले ज्यादातर विधायक मुंबई के एक होटल में रखे गए हैं जो भाजपा शासित महाराष्ट्र की राजधानी है। मुंबई पुलिस ने बुधवार कर्नाटक के मंत्री और कांग्रेस की मुश्किलें दूर करने वाले डीके शिवकुमार को होटल में घुसने नहीं दिया। वह भी तब जब उनकी उसी होटल में बुकिंग थी। पुलिस ने बागी विधायकों के एक पत्र का हवाला दिया जिसमें उन लोगों ने लिखा है कि शिवकुमार को होटल में घुसने दिया गया तो उन्हें अपनी जान का डर है। विधायक को होटल में घुसने से रोकने के लिए मुंबई पुलिस ने होटल के आस-पास निषेधाज्ञा लागू कर दी है।
अखबार ने लिखा है कि शिवकुमार और जेडीएस के नेता जीटी देवगौड़ा तथा शिवलिंगे गौड़ा सुबह की फ्लाइट से करीब 8.20 बजे संबंधित होटल रेनेसा में पहुंचे ताकि बागी विधायकों को इस्तीफा वापस लेने के लिए मना सकें। पर पुलिस ने उन्हें विधायकों के पत्र का हवाला देकर जाने नहीं दिया। इसपर शिवकुमार ने यहां तक कहा कि उनके पास कोई हथियार नहीं है और उन्हें अपने मित्रों से मिलना है, कॉफी पीनी है। इसपर पुलिस ने अपने समर्थन में शिवकुमार की ट्रैवेल एजेंसी भेजे गए एक मेल की कॉपी दिखाई (जो लीक की गई थी) जिसके अनुसार किसी इमरजेंसी के कारण बुकिंग रद्द कर दी गई थी। होटल के अंदर से एक कांग्रेस विधायक, रमेश जरकिहोली ने एक टीवी टीम से कहा कि उनमें से कोई भी शिवकुमार से मिलना नहीं चाहता है। और यह भी कि उनके इस्तीफों में भाजपा की कोई भूमिका नहीं है। जाहिर है, इस टीम को अंदर जाने दिया गया था। अखबार के मुताबिक उन्हें पिछले दरवाजे से जाने दिया गया था।
इस तरह, होटल में बुकिंग होने के बावजूद शिवकुमार को अंदर नहीं जाने दिया गया क्योंकि उनकी बुकिंग रद्द कर दी गई थी जिसका कोई वैध कारण नहीं था। ग्राहक के रूप में शिवकुमार घंटों होटल के बाहर रहे पर होटल ने ऐसा कुछ नहीं किया जो बुकिंग रद्द किए जाने पर ग्राहक के साथ किया जाना चाहिए। उल्टे पुलिस द्वारा दोपहर बाद करीब तीन बजे शिवकुमार और उनके साथियों को जिनमें मुंबई कांग्रेस के स्थानीय नेता मिलिन्द देवड़ा और संजय निरुपम भी थे को पुलिस गेस्ट हाउस ले जाया गया और रोक लिया गया। देवड़ा ने राज्य सरकार पर पुलिस और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया। शिवकुमार ने शाम में कहा कि उन्हें हवाई अड्डे ले जाया जा रहा है ताकि बैंगलोर की फ्लाइट में बैठाया जा सके। टेलीग्राफ ने लिखा है कि शायद ही कभी किसी राज्य सरकार की पुलिस को दूसरे राज्य के राजनीतिक और विधायी मामलों में इस तरह खुलेआम घसीटा गया हो। अखबार ने इसका शीर्षक लगाया है राष्ट्रीय शर्म।
इसके मुकाबले इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीएस येदुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल वजुभाई वाला से मुलाकात कर मांग की कि विधानसभा अध्यक्ष को सलाह दें कि विधायकों के इस्तीफे को स्वीकार करने की प्रक्रिया को (तेजी से) निपटाएं। कर्नाटक की खबर आज टाइम्स ऑफ इंडिया में लीड है और शीर्षक है, जादुई आंकड़ा 105, कर्नाटक में गठजोड़ 100 पर जबकि दो और कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा दिया। इसके साथ ही टीओआई ने गोवा में कांग्रेस के टूटने की भी खबर छापी है। इंडियन एक्सप्रेस में भी कर्नाटक की खबर ही लीड है पर फ्लैग शीर्षक सुप्रीम कोर्ट में बागी विधायकों की अपील की सुनवाई पर है। गोवा यहां भी लीड के साथ ही है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड नहीं है और शीर्षक है, दो अन्य विधायकों के इस्तीफे से कांग्रेस का संकट गहरा हुआ।
इसके मुकाबले दैनिक भास्कर में खबर का विवरण ज्यादा है। वैसे तो कर्नाटक की खबर कई दिनों से अखबारों में छप रही है। पर जो कहा जा रहा है और जो हो रहा है उसमें तालमेल नहीं है और लग रहा है कि कुछ छिपाया जा रहा है। यहां तक कि राजनाथ सिंह ने संसद में कहा कि कर्नाटक में विधायकों के इस्तीफे से भाजपा का कोई लेना-देना नहीं है तो वह भी प्रमुखता से नहीं छपा। दैनिक भास्कर ने आज कर्नाटक की खबर का जो विस्तार दिया है वह दूसरे अखबारों में अमूमन नहीं हैं। कुछ अन्य हिन्दी अखबारों से अलग, भास्कर ने कर्नाटक की खबर को प्रमुखता दी है। गोवा की खबर इसके साथ ही छोटी सी है जिसका विस्तार अंदर के पन्ने पर होने की सूचना है। फ्लैग शीर्षक है, दिल्ली-बेंगलुरु-मुंबई में चली सरकार बनाने-गिराने की सियासत। मुख्य शीर्षक है, बागियों को मनाने मुंबई पहुंचे कांग्रेसी नेता हिरासत में लिए, बेंगलुरू में दो और इस्तीफे। खबर का इंट्रो है, स्पीकर ने इस्तीफे मंजूर नहीं किए, इसीलिए बची है सरकार।
नवभारत टाइम्स में यह खबर लीड है। शीर्षक है, 'हाथ' का साथ छोड़ने वाले बढ़े। गोवा की खबर भी साथ ही है। हिन्दुस्तान में यह खबर लीड नहीं है और शीर्षक है, गोवा के 10 कांग्रेस विधायक भाजपा में, कर्नाटक संकट बरकरार। नवोदय टाइम्स ने भी गोवा की खबर को प्रमुखता दी है और लीड बनाया है जबकि इससे वहां की सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और चूंकि शीर्षक के अनुसार ही गोवा की दो तिहाई कांग्रेस ने भाजपा में शामिल हो गई है इसलिए कुछ फर्क नहीं पड़ना है। ऐसे में यह खबर कांग्रेस के लिए भले झटका हो, जनता के लिए सूचना भर है। उपशीर्षक, 15 में 10 विधायक बीजेपी शामिल दोहराव है। अखबार ने कर्नाटक की खबर को अलग पर इसके ठीक नीचे छापा है।
अमर उजाला में गोवा की खबर दो कॉलम में और कर्नाटक की खबर चार कॉलम में है। मेरे लिए इसे समझना मुश्किल है। पर राज शीर्षक में ही है, "कर-नाटक सरकार पर संकट और बढ़ा।" कैसे - क्यों बढ़ा यह सब भी बताया गया है पर वैसे नहीं जैसे टेलीग्राफ में है। दैनिक जागरण में भी गोवा लीड है और निश्चित रूप से यह शीर्षक के कारण ही है। यह नवोदय टाइम्स की तरह 15 से 10 विधायकों के दलबदल की सूचना नहीं, राजनीतिक फैसले या हालात की सूचना है। यहां दल बदल कानून से बचने के लिए एक साथ दो तिहाई विधायकों की इस कार्रवाई को बड़ा झटका कहा गया है जो निश्चित रूप से है कांग्रेस को लगा होगा। हालांकि, भाजपा वहां बहुमत में नहीं होने के बाद भी सरकार में थी उसके लिए यह बड़ा लाभ है। फिर भी खबर की प्रस्तुति ही तो कलात्मकता है और भिन्न अखबारों की विशेषता है। शीर्षक है, गोवा में भी कांग्रेस की जमीन खिसकी (अखबार ने मान लिया है कि कर्नाटक में खिसक चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में आज विधायकों के मामले में सुनवाई होनी है तब भी)। उपशीर्षक है, बड़ा झटका - पार्टी के 15 में से 10 विधायक भाजपा में हुए शामिल। कर्नाटक के दो विधायकों के इस्तीफे की खबर सिंगल कॉलम बॉक्स में इसी के साथ है। राजस्थान पत्रिका में गोवा की खबर चार कॉलम में ऊपर और कर्नाटक की खबर तीन कॉलम में उसके नीचे है।
आज के अखबारों में पहले पन्ने पर ढूंढ़ने लायक कुछ खबरें
1. सोसाइटी फॉर इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (एसआईएएम) ने कहा है कि वाहन उद्योग की हालत खराब बनी हुई है। जून में लगातार आठवें महीने कारों की बिक्री गिरी और यह 24.97 प्रति तक पहुंच चुकी है और इस तिमाही में बिक्री तकरीबन दो दशक में सबसे क है। उद्योग में 37 मिलियन (3 करोड़ 70 लाख) लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार पाते हैं। अगर मंदी बनी रही तो हमें बने रहने के लिए कदम उठाना पड़ेगा। (हिन्दुस्तान टाइम्स / टीओआई)
2. आज कई अखबारों में यह खबर तो है कि लड़कों का यौन शोषण करने वालों को भी फांसी की सजा होगी और इस संबंध में सख्त कानून बन गया है। पर हाल ही में मध्य प्रदेश भाजपा के एक नेता के खिलाफ ऐसी ही खबर थी और आरोप यह भी था कि वह लड़का पूरे परिवार के साथ लापता है - आपको आपके अखबार ने खबर दी थी? अगर पीड़ित परिवार समेत लापता हो जाए, खबर भी न छपे तो कानून बनाने से क्या होगा? यह अलग बात है कि पीड़ित 'बालक' नहीं है।
3. सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच की निगरानी कर रहे तरुण गॉबा को अचानक, समय पूर्व वापस उत्तर प्रदेश कैडर में भेज दिया गया है। (द टेलीग्राफ)
4. वित्त मंत्रालय की इमारत में पत्रकारों के प्रवेश पर लगाई गई पाबंदी खत्म करने की एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की मांग। (इंडियन एक्सप्रेस)
इससे आप समझ सकते हैं कि अखबारों ने खुद ही अपने ऊपर सेंसर लगाया हुआ है। टेलीग्राफ की खबर बैंगलोर डेटलाइन से केएम राकेश की है और मुंबई का विवरण पीटीआई से अतिरिक्त रिपोर्टिंग के रूप में छापा गया है। जाहिर है खबर कोई एक्सक्लूसिव नहीं है ना छिपी हुई है। फिर भी नहीं छपने या लीपा पोती के अंदाज में लिखने का कारण आप समझ सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
द टेलीग्राफ ने लिखा है कि कर्नाटक में (मतदाताओं के साथ) जो धोखाधड़ी हो रही है उसके बारे में भाजपा का कहना है कि उसका कोई लेना देना नहीं है। पर कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस - जनतादल (एस) छोड़ने वाले ज्यादातर विधायक मुंबई के एक होटल में रखे गए हैं जो भाजपा शासित महाराष्ट्र की राजधानी है। मुंबई पुलिस ने बुधवार कर्नाटक के मंत्री और कांग्रेस की मुश्किलें दूर करने वाले डीके शिवकुमार को होटल में घुसने नहीं दिया। वह भी तब जब उनकी उसी होटल में बुकिंग थी। पुलिस ने बागी विधायकों के एक पत्र का हवाला दिया जिसमें उन लोगों ने लिखा है कि शिवकुमार को होटल में घुसने दिया गया तो उन्हें अपनी जान का डर है। विधायक को होटल में घुसने से रोकने के लिए मुंबई पुलिस ने होटल के आस-पास निषेधाज्ञा लागू कर दी है।
अखबार ने लिखा है कि शिवकुमार और जेडीएस के नेता जीटी देवगौड़ा तथा शिवलिंगे गौड़ा सुबह की फ्लाइट से करीब 8.20 बजे संबंधित होटल रेनेसा में पहुंचे ताकि बागी विधायकों को इस्तीफा वापस लेने के लिए मना सकें। पर पुलिस ने उन्हें विधायकों के पत्र का हवाला देकर जाने नहीं दिया। इसपर शिवकुमार ने यहां तक कहा कि उनके पास कोई हथियार नहीं है और उन्हें अपने मित्रों से मिलना है, कॉफी पीनी है। इसपर पुलिस ने अपने समर्थन में शिवकुमार की ट्रैवेल एजेंसी भेजे गए एक मेल की कॉपी दिखाई (जो लीक की गई थी) जिसके अनुसार किसी इमरजेंसी के कारण बुकिंग रद्द कर दी गई थी। होटल के अंदर से एक कांग्रेस विधायक, रमेश जरकिहोली ने एक टीवी टीम से कहा कि उनमें से कोई भी शिवकुमार से मिलना नहीं चाहता है। और यह भी कि उनके इस्तीफों में भाजपा की कोई भूमिका नहीं है। जाहिर है, इस टीम को अंदर जाने दिया गया था। अखबार के मुताबिक उन्हें पिछले दरवाजे से जाने दिया गया था।
इस तरह, होटल में बुकिंग होने के बावजूद शिवकुमार को अंदर नहीं जाने दिया गया क्योंकि उनकी बुकिंग रद्द कर दी गई थी जिसका कोई वैध कारण नहीं था। ग्राहक के रूप में शिवकुमार घंटों होटल के बाहर रहे पर होटल ने ऐसा कुछ नहीं किया जो बुकिंग रद्द किए जाने पर ग्राहक के साथ किया जाना चाहिए। उल्टे पुलिस द्वारा दोपहर बाद करीब तीन बजे शिवकुमार और उनके साथियों को जिनमें मुंबई कांग्रेस के स्थानीय नेता मिलिन्द देवड़ा और संजय निरुपम भी थे को पुलिस गेस्ट हाउस ले जाया गया और रोक लिया गया। देवड़ा ने राज्य सरकार पर पुलिस और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया। शिवकुमार ने शाम में कहा कि उन्हें हवाई अड्डे ले जाया जा रहा है ताकि बैंगलोर की फ्लाइट में बैठाया जा सके। टेलीग्राफ ने लिखा है कि शायद ही कभी किसी राज्य सरकार की पुलिस को दूसरे राज्य के राजनीतिक और विधायी मामलों में इस तरह खुलेआम घसीटा गया हो। अखबार ने इसका शीर्षक लगाया है राष्ट्रीय शर्म।
इसके मुकाबले इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीएस येदुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल वजुभाई वाला से मुलाकात कर मांग की कि विधानसभा अध्यक्ष को सलाह दें कि विधायकों के इस्तीफे को स्वीकार करने की प्रक्रिया को (तेजी से) निपटाएं। कर्नाटक की खबर आज टाइम्स ऑफ इंडिया में लीड है और शीर्षक है, जादुई आंकड़ा 105, कर्नाटक में गठजोड़ 100 पर जबकि दो और कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा दिया। इसके साथ ही टीओआई ने गोवा में कांग्रेस के टूटने की भी खबर छापी है। इंडियन एक्सप्रेस में भी कर्नाटक की खबर ही लीड है पर फ्लैग शीर्षक सुप्रीम कोर्ट में बागी विधायकों की अपील की सुनवाई पर है। गोवा यहां भी लीड के साथ ही है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड नहीं है और शीर्षक है, दो अन्य विधायकों के इस्तीफे से कांग्रेस का संकट गहरा हुआ।
इसके मुकाबले दैनिक भास्कर में खबर का विवरण ज्यादा है। वैसे तो कर्नाटक की खबर कई दिनों से अखबारों में छप रही है। पर जो कहा जा रहा है और जो हो रहा है उसमें तालमेल नहीं है और लग रहा है कि कुछ छिपाया जा रहा है। यहां तक कि राजनाथ सिंह ने संसद में कहा कि कर्नाटक में विधायकों के इस्तीफे से भाजपा का कोई लेना-देना नहीं है तो वह भी प्रमुखता से नहीं छपा। दैनिक भास्कर ने आज कर्नाटक की खबर का जो विस्तार दिया है वह दूसरे अखबारों में अमूमन नहीं हैं। कुछ अन्य हिन्दी अखबारों से अलग, भास्कर ने कर्नाटक की खबर को प्रमुखता दी है। गोवा की खबर इसके साथ ही छोटी सी है जिसका विस्तार अंदर के पन्ने पर होने की सूचना है। फ्लैग शीर्षक है, दिल्ली-बेंगलुरु-मुंबई में चली सरकार बनाने-गिराने की सियासत। मुख्य शीर्षक है, बागियों को मनाने मुंबई पहुंचे कांग्रेसी नेता हिरासत में लिए, बेंगलुरू में दो और इस्तीफे। खबर का इंट्रो है, स्पीकर ने इस्तीफे मंजूर नहीं किए, इसीलिए बची है सरकार।
नवभारत टाइम्स में यह खबर लीड है। शीर्षक है, 'हाथ' का साथ छोड़ने वाले बढ़े। गोवा की खबर भी साथ ही है। हिन्दुस्तान में यह खबर लीड नहीं है और शीर्षक है, गोवा के 10 कांग्रेस विधायक भाजपा में, कर्नाटक संकट बरकरार। नवोदय टाइम्स ने भी गोवा की खबर को प्रमुखता दी है और लीड बनाया है जबकि इससे वहां की सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और चूंकि शीर्षक के अनुसार ही गोवा की दो तिहाई कांग्रेस ने भाजपा में शामिल हो गई है इसलिए कुछ फर्क नहीं पड़ना है। ऐसे में यह खबर कांग्रेस के लिए भले झटका हो, जनता के लिए सूचना भर है। उपशीर्षक, 15 में 10 विधायक बीजेपी शामिल दोहराव है। अखबार ने कर्नाटक की खबर को अलग पर इसके ठीक नीचे छापा है।
अमर उजाला में गोवा की खबर दो कॉलम में और कर्नाटक की खबर चार कॉलम में है। मेरे लिए इसे समझना मुश्किल है। पर राज शीर्षक में ही है, "कर-नाटक सरकार पर संकट और बढ़ा।" कैसे - क्यों बढ़ा यह सब भी बताया गया है पर वैसे नहीं जैसे टेलीग्राफ में है। दैनिक जागरण में भी गोवा लीड है और निश्चित रूप से यह शीर्षक के कारण ही है। यह नवोदय टाइम्स की तरह 15 से 10 विधायकों के दलबदल की सूचना नहीं, राजनीतिक फैसले या हालात की सूचना है। यहां दल बदल कानून से बचने के लिए एक साथ दो तिहाई विधायकों की इस कार्रवाई को बड़ा झटका कहा गया है जो निश्चित रूप से है कांग्रेस को लगा होगा। हालांकि, भाजपा वहां बहुमत में नहीं होने के बाद भी सरकार में थी उसके लिए यह बड़ा लाभ है। फिर भी खबर की प्रस्तुति ही तो कलात्मकता है और भिन्न अखबारों की विशेषता है। शीर्षक है, गोवा में भी कांग्रेस की जमीन खिसकी (अखबार ने मान लिया है कि कर्नाटक में खिसक चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में आज विधायकों के मामले में सुनवाई होनी है तब भी)। उपशीर्षक है, बड़ा झटका - पार्टी के 15 में से 10 विधायक भाजपा में हुए शामिल। कर्नाटक के दो विधायकों के इस्तीफे की खबर सिंगल कॉलम बॉक्स में इसी के साथ है। राजस्थान पत्रिका में गोवा की खबर चार कॉलम में ऊपर और कर्नाटक की खबर तीन कॉलम में उसके नीचे है।
आज के अखबारों में पहले पन्ने पर ढूंढ़ने लायक कुछ खबरें
1. सोसाइटी फॉर इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (एसआईएएम) ने कहा है कि वाहन उद्योग की हालत खराब बनी हुई है। जून में लगातार आठवें महीने कारों की बिक्री गिरी और यह 24.97 प्रति तक पहुंच चुकी है और इस तिमाही में बिक्री तकरीबन दो दशक में सबसे क है। उद्योग में 37 मिलियन (3 करोड़ 70 लाख) लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार पाते हैं। अगर मंदी बनी रही तो हमें बने रहने के लिए कदम उठाना पड़ेगा। (हिन्दुस्तान टाइम्स / टीओआई)
2. आज कई अखबारों में यह खबर तो है कि लड़कों का यौन शोषण करने वालों को भी फांसी की सजा होगी और इस संबंध में सख्त कानून बन गया है। पर हाल ही में मध्य प्रदेश भाजपा के एक नेता के खिलाफ ऐसी ही खबर थी और आरोप यह भी था कि वह लड़का पूरे परिवार के साथ लापता है - आपको आपके अखबार ने खबर दी थी? अगर पीड़ित परिवार समेत लापता हो जाए, खबर भी न छपे तो कानून बनाने से क्या होगा? यह अलग बात है कि पीड़ित 'बालक' नहीं है।
3. सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच की निगरानी कर रहे तरुण गॉबा को अचानक, समय पूर्व वापस उत्तर प्रदेश कैडर में भेज दिया गया है। (द टेलीग्राफ)
4. वित्त मंत्रालय की इमारत में पत्रकारों के प्रवेश पर लगाई गई पाबंदी खत्म करने की एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की मांग। (इंडियन एक्सप्रेस)
इससे आप समझ सकते हैं कि अखबारों ने खुद ही अपने ऊपर सेंसर लगाया हुआ है। टेलीग्राफ की खबर बैंगलोर डेटलाइन से केएम राकेश की है और मुंबई का विवरण पीटीआई से अतिरिक्त रिपोर्टिंग के रूप में छापा गया है। जाहिर है खबर कोई एक्सक्लूसिव नहीं है ना छिपी हुई है। फिर भी नहीं छपने या लीपा पोती के अंदाज में लिखने का कारण आप समझ सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)